माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम 1996 का संक्षिप्त विवरण , महत्वपूर्ण धाराएँ व प्रावधान

 माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम 1996 का संक्षिप्त विवरण , महत्वपूर्ण धाराएँ व प्रावधान




माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम , 1996
 1. सक्षिप्त विवरण
● इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996 है।
● इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है । 
● परन्तु इसके भाग- 1 , 3 , 4 का विस्तार जम्मू कश्मीर राज्य पर केवल तब होगा , जब वे अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक सुलह को लागू होते हों ।
● इस अधिनियम में 86 धारायें तथा 4 भाग हैं । 
● भाग- 1 में 10 अध्याय बताए गए हैं तथा भाग 2 के अन्तर्गत 2 अध्याय बताए गए हैं तथा भाग- 3,4 में किसी अध्याय के सन्दर्भ में प्रावधान नहीं किया गया है । 
● इस अधिनियम को बनाने का मुख्य उद्देश्य आपसी सुलह एवं किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा किन्हीं विवादो को सुलझाने पर उसे कानूनी वैधता प्रदान करना है , कि न्यायालय से एक तरफ बैठकर किया जाता है ।

2. महत्वपूर्ण धाराए 
>  संक्षिप्त नाम , विस्तार तथा प्रारम्भ ( धारा - 1 ) 
> परिभाषाएँ ( क ) ( ख ) ( ग ) ( च ) ( ज ) ( धारा - 2 ) 
> यायिक मध्यक्षेप का विस्तार ( धारा - 5 ) 
> माध्यस्थम् करार ( धारा -7 ) 
> जहाँ माध्यस्थम् करारं हो वहाँ माध्यस्थम् के लिए पक्षकारों को निर्दिष्ट करने की शक्ति ( धारा - 8 ) 
> न्यायालय द्वारा अन्तरिम उपाय ( धारा - 9 ) 
> मध्यस्थों की संख्या ( धारा - 10 )
> मध्यस्थों की नियुक्ति ( धारा - 11 )
> आक्षेप ( धारा - 12 - 13 ) 
> माध्यस्थम अधिकरण की अपनी अधिकारिता के बारे में विनिर्णय करने की  सक्षमता ( धारा - 16 ) 
> माध्यस्थम अधिकरण द्वारा आदिष्ट अन्तरिम उपाय ( धारा - 17 ) 
> माध्यस्थम स्थान ( धारा - 20 ) 
> माध्यस्थम कार्यवाही का प्रारम्भ किया जाना ( धारा - 21 ) 
> भाषा ( धारा - 22 )
> साक्ष्य लेने में न्यायालय की सहायता ( धारा - 27 ) 
> मध्यस्थों के पैनल द्वारा विनिश्चय किया जाना ( धारा - 29 ) 
> माध्यस्थम पंचाट की समय - सीमा ( धारा - 29 क ) 
> त्वरित प्रक्रिया ( धारा - 29 ख ) 
> समझौता ( धारा - 30 ) 
> माध्यस्थम पंचाट का प्रारूप और उसकी विषय - वस्तु ( धारा - 31 ) 
> पंचाट का सुधार और निर्वचन , अतिरिक्त पंचाट ( धारा - 33 ) 
> माध्यस्थम पंचाट अपास्त करने के लिए आवेदन ( धारा - 34 ) 
> माध्यस्थम् पंचाट की अन्तिमता ( धारा - 35 ) 
> प्रवर्तन ( धारा - 36 ) 
> निक्षेप ( धारा - 38 ) 
> सुलह कार्यवाहियों का आरम्भ ( धारा - 62 )
> सुलहकर्ताओं की संख्या ( धारा - 63 ) 
> सुलहकर्ताओं की नियुक्ति ( धारा - 64 ) 
> पक्षकारों का सुलहकर्ता से सहयोग ( धारा -71 ) 
> विवादों के निपटारे के लिए पक्षकारों द्वारा सुझाव ( धारा -72 ) 
> समझौता करार ( धारा -73,74 ) 
> सुलह कार्यवाहियों का समापन ( धारा - 76 ) 
> माध्यस्थम् या न्यायिक कार्यवाहियों का सहारा लेना ( धारा -77 ) 
> खर्चे ( धारा -78 ) 
> निक्षेप ( धारा -79 ) 
> नियम बनाने की उच्च न्यायालय की शक्ति ( धारा - 82 )  
* सात अनुसूची के सन्दर्भ में प्रावधान किया गया है।

3. महत्वपूर्ण प्रावधान
> माध्यस्थम् । 
> माध्यस्थम् करार । 
> न्यायालय की शक्ति । 
> मध्यस्थों की संख्या । 
> मध्यस्थ की नियुक्ति । 
> मध्यस्थों के सन्दर्भ में आक्षेप के आधार तथा प्रक्रिया । 
> मध्यस्थ की कार्य करने में असफलता या असम्भवता । 
> माध्यस्थम् कार्यवाही एवं उनका संचालन । 
> माध्यस्थम् कार्यवाहियों का प्रारम्भ किया जाना । 
> सुनवाई तथा लिखित कार्यवाहियाँ  
> माध्यस्थम् पंचाट की समय सीमा ॐ
> समझौता | 
> पंचाट का प्रारूप और उसकी विषयवस्तु । 
> पंचाट का सुधार , निर्वचन , अतिरिक्त पंचाट । 
> पंचाट अपास्त करने के लिए आवेदन 
> पंचाटों की अन्तिमता । 
> प्रर्वतन । 
> अपीलें । 
> निक्षेप । 
> माध्यस्थम अधिकरण द्वारा अपनी अधिकारिता के बारे में विनिर्णय की सक्षमता । 
> माध्यस्थम अधिकरण द्वारा आदिष्ट अन्तरिम उपाय । 
> 2015 में किए गए महत्वपूर्ण संशोधन ।

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