हिन्दू विधि में 'श्रुति' और 'स्मृति' की परिभाषा,Definition of 'Shruti' and 'Smriti' in Hindu Law

 

हिन्दू विधि में 'श्रुति'से क्या अभिप्राय है?

श्रुति हिन्दू विधि का एक प्रमुख एवं प्राचितम स्रोत है। श्रुति का शाब्दिक अर्थ है-'सुना हुआ' या 'श्रवण किया हुआ'। ईश्वर की वह वाणी जो हमारे ऋषि-मुनियों ने सुनी और हमें दी, श्रुति कहलाती है। श्रुति का ही दूसरा नाम 'वेद' है। वेदों में ईश्वर की वाणी है। वेद चार प्रकार के हैं-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद। इन वेदों में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों,कर्मकांडों एवं यज्ञों का वर्णन मिलता है। वेदों में कई स्थानों पर विवाह के विभिन्न प्रकारों यथा ब्रह्म,असुर,गांधर्व,पुत्र की आवश्यकता,क्षेत्रज,दत्तक पुत्र, विभाजन,उत्तराधिकार से स्त्री का अपवर्जन आदि का उल्लेख किया गया है। यही कारण है कि श्रुति अर्थात वेदों को हिन्दू विधि का सर्वोपरि स्रोत माना जाता है।



'स्मृति' क्या  है?

श्रुति की तरह स्मृति भी हिन्दू विधि का एक प्रमुख स्रोत है। स्मृति का शाब्दिक अर्थ है 'जो कुछ याद रखा गया' अर्थात् जो कुछ स्मरण में है। हमारे ऋषि मुनियों ने देव वाणी का श्रवण किया और इस देव वाणी का वेदों में संकलन किया। इस प्रकार स्मृतियाँ ऋषि-मुनियों की स्मृति पर आधारित है। जैमिनी के अनुसार-स्मृतियाँ उन्हीं ऋषि मुनियों द्वारा संकलित की गई है जिन पर वेद प्रकट हुए थे।

स्मृतियाँ दो प्रकार की हैं-धर्मसूत्र एवं धर्मशास्त्र। महर्षि गौतम,बौधायन, आपस्तम्ब, वशिष्ठ, विष्णु,हरित आदि द्वारा धर्मसूत्रों की रचना की गई है, जबकि मनुस्मृति,याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति आदि प्रमुख धर्मशास्त्र हैं। मनुस्मृति में रूढ़ि को प्रमुख स्थान दिया गया है। याज्ञवल्क्य स्मृति में मूल एवं प्रकिया विधि दोनों के नियमों की विवचेना की गई है। नारद स्मृति में केवल व्यवहार खण्ड है,आचार और प्रायश्चित नहीं है।

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आप इस वीडियो को भी देख सकते हैं जिसमें 'श्रुति' और 'स्मृति' की परिभाषा बताई हुए है।




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