मुसलमान कौन है? || Who is a Muslim? || مسلمان کون ہے؟ || Law's Study
प्रश्न 1. मुसलमान ( मुस्लिम ) कौन है ? इस्लाम के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए ।
[ Who is a Muslim ? Discuss the basic principles of Islam . ]
उत्तर - मुस्लिम विधि मुसलमानों पर लागू होती है , अत : सबसे पहला प्रश्न यह उठता है कि ' मुसलमान ' कौन हैं ?
मुसलमान की सबसे सरल एवं व्यापक परिभाषा यह है कि- " जो व्यक्ति इस्लाम में विश्वास रखता है , वह मुसलमान है ।
" दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति मुसलमान है
( i ) जो एक अल्लाह की सत्ता में विश्वास रखता है अर्थात् यह मानता है कि अल्लाह एक है [ There is no God but Allah ] एवं
( ii ) जो मोहम्मद साहब को अल्लाह का पैगम्बर मानता है ( ला इल्लाह इल लिल्लाह , मोहम्मद उर रसूल अल्लाह )
' क्वीन एम्प्रेस बनाम रमजान ' [ ( 1885 ) 7 इलाहबाद 461 ) ] के मामले में भी मुसलमान की यही परिभाषा दी गई है ।
' अब्राहम बनाम अब्राहम ' [ ( 1863 ) 9 एम.आई.ए. 199 ] के मामले में यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से या धर्म परिवर्तन से मुसलमान हो सकता है ।
' मुन्नवर उल इस्लाम बनाम रिषु अरोड़ा ' [ ए.आई.आर. 2014 दिल्ली 130 ] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि - मुस्लिम स्वीय विधि के अन्तर्गत पक्षकारों में से किसी के द्वारा धर्म परिवर्तन किए जाने पर विवाह का भी विघटन हो जाता है अर्थात् विवाह समाप्त हो जाता है ।
( Apostasy of either party to marriage under Muslim Personal Law , put an end to marriage . )
मुस्लिम विधि के अनुसार यदि माता - पिता में से कोई एक मुसलमान है तो सन्तान को मुसलमान मान लिया जाता है । इसी प्रकार यदि माता - पिता कालान्तर में धर्म परिवर्तन द्वारा मुसलमान बन जाते हैं तो भी सन्तान को मुसलमान मान लिया जाता है ।
' आजिम खां बनाम राजा सैय्यद मोहम्मद सादत अली खान ' ( ए.आई.आर 1931 अवध 177 ) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि मुस्लिम पिता की कोई सन्तान है तो वह पिता के धर्म की मानी जायेगी ।
कोई भी व्यक्ति तब तक मुसलमान बने रहता है जब तक कि वह अन्य कोई दूसरा धर्म ग्रहण नहीं कर लेता । यदि कोई मुसलमान सिर्फ कुछ पूजा - पाठ को अपना लेता है तो इससे यह नहीं माना जायेगा कि वह मुसलमान नहीं रह गया है । [ आजिमा बीबी बनाम मुंशी शामलानन्द ( 1912 ) 17 सी . डब्ल्यू . एन . 121 ] |
यदि कोई व्यक्ति अन्य धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेता है तो उसके लिए इस आशय की घोषणा किया जाना आवश्यक होगा । ( डॉ . अब्दुल रहीम उन्दे बनाम श्रीमती पदमा अब्दुल रहीम उन्द्र , ए . आई . आर . 1982 बम्बई 341 )
इस्लाम के सिद्धान्त
शब्द ' इस्लाम ' का अर्थ है ' अल्लाह की इच्छा के सामने अपने आपको समर्पित कर देना । " इस्लाम के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
( 1 ) अल्लाह एक है - इस्लाम का सबसे प्रमुख एवं सर्वोपरि सिद्धान्त है ' अल्लाह एक है " अर्थात् एक अल्लाह की सत्ता में विश्वास होना । इस्लाम में अल्लाह को एक इकाई के रूप में माना जाता है । यह अद्वैतवाद पर आधारित है । बहुदेववाद एवं मूर्ति पूजा में इसका विश्वास नहीं है । जो एकाधिक अल्लाह में विश्वास करता है उसे इस्लाम विरोधी माना जाता है । इसका मूल सिद्धान्त है " There is no God but Allah .
( 2 ) बंधुत्व की भावना - इस्लाम का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ' बन्धुत्व की भावना ' है । वैसे तो बन्धुत्व की भावना को सभी धर्मों में स्थान दिया गया है लेकिन जितनी प्रमुखता इस्लाम में दी गई है , उतनी अन्य धर्मों में नहीं दी गई है ।
इस्लाम में इसे केवल एक सिद्धान्त के रूप में ही अंगीकृत नहीं किया गया है अपितु इसे व्यवहार में भी अपनाया गया है । एक ही बर्तन में पानी पीना , एक ही बर्तन में खाना , इत्यादि इसके अच्छे उदाहरण हैं । झूठे बर्तनों का आचार विचार इस्लाम में नहीं है ।
मोहम्मद पैगम्बर की मान्यता थी कि श्रेष्ठता की पहचान रंग व जाति न होकर इंसान के कर्तव्य से है । अरब एवं गैर - अरब सभी एक समान हैं , क्योंकि सभी आदम की सन्तान हैं ।
( 3 ) सर्वाधिक पुराने पंथ की धारणा - इस्लाम की यह मान्यता है कि इस्लाम कोई नया पंथ नहीं होकर सर्वाधिक पुराना पंथ है । मोहम्मद पैगम्बर ने तो यहाँ तक कहा है कि इस्लाम इतना पुराना पंथ है जितना अरब की पहाड़ियाँ । कुरान के सिद्धान्तों के अनुसार इस्लाम संसार की सृष्टि के समकालीन है । जब तक यह संसार रहेगा तब तक इस्लाम रहेगा । इस्लाम के यही महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं ।
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