मोटर यान अधिनियम, 1988



 मोटर यान अधिनियम, 1988

(1988 का अधिनियम संख्यांक 59)

[14 अक्टूबर, 1988]

मोटर यानों से संबंधित विधि का समेकन

और संशोधन करने के लिए

अधिनियम

                भारत गणराज्य के उनतालीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मोटर यान अधिनियम, 1988 है ।

                (2) इसका विस्तार सम्पर्ण भारत पर है ।

                (3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी तथा इस अधिनियम में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का, किसी राज्य के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(1) इस अधिनियम के किसी उपबंध के संबंध में क्षेत्र" से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसे राज्य सरकार, उस उपबंध की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ;

(2) संलग्न यान" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जिससे कोई अर्द्ध-ट्रेलर संलग्न है ;

(3) किसी यान की धुरी के संबंध में धुरी भार" से उस धुरी के साथ लगे हुए कई पहियों द्वारा, उस भू-तल पर, जिस पर वह यान टिका हुआ है, संप्रेषित कुल भार अभिप्रेत है ;

(4) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र" से सक्षम प्राधिकारी द्वारा दिया गया इस आशय का प्रमाणपत्र अभिप्रेत है कि मोटर यान को अध्याय 4 के उपबंधों के अनुसार सम्यक् रूप से रजिस्टर कर दिया गया है ;

(5) मंजिली गाड़ी के संबंध में, कन्डक्टर" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो यात्रियों से किराया संगृहीत करने, उनका मंजिली गाड़ी में प्रवेश करना या उसमें से बाहर जाना विनियमित करने और ऐसे अन्य कृत्य करने में लगा हुआ है जो विहित किए जाएं ;

(6) कन्डक्टर अनुज्ञप्ति" से सक्षम प्राधिकारी द्वारा अध्याय 3 के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है जो उसमें विनिर्दिष्ट व्यक्ति को कन्डक्टर के रूप में कार्य करने के लिए प्राधिकृत करती है ;

(7) ठेका गाड़ी" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो भाड़े या पारिश्रमिक पर यात्री या यात्रियों का वहन करता है और जो किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे यान के संबंध में किसी परमिट के धारक या इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के साथ ऐसे सम्पर्ण यान के उपयोग के लिए की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा के अधीन, उसमें वर्णित यात्रियों के, किसी नियत या तय हुई दर या धनराशि पर,-

(क) समय के आधार पर, चाहे वह किसी मार्ग या दूरी के प्रति निर्देश से है अथवा नहीं ; या

(ख) एक स्थान से अन्य स्थान तक,

वहन में लगा है, और इन दोनों में से किसी भी दशा में, यात्रा के दौरान ऐसे यात्रियों को, जो संविदा में सम्मिलित नहीं है, चढ़ाने या उतारने के लिए कहीं भी रुकता नहीं है, और इसके अन्तर्गत-

(i) बड़ी टैक्सी ; और

(ii) मोटर टैक्सी, इस बात के होते हुए भी है कि इसके यात्रियों से अलग-अलग किराए प्रभारित किए जाते हैं ;

(8) व्यवहारी" के अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति है जो-

                 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

                (ख) चैसिस से संलग्न करने के लिए बाड़ियों के निर्माण ; या

                (ग) मोटर यानों की मरम्मत ; या

                (घ) मोटर यानों के आड्मान, पट्टा पर देने या अवक्रय, में लगा हुआ है ;

(9) ड्राइवर" के अंतर्गत किसी ऐसे मोटर यान के संबंध में जो किसी अन्य मोटर यान से चलाया जाता है, वह व्यक्ति भी है जो चलाए जाने वाले यान के अनुचालक के रूप में कार्य करता है ;

(10) चालन-अनुज्ञप्ति" से ऐसी अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा अध्याय 2 के अधीन दी गई है और जो उसमें विनिर्दिष्ट व्यक्ति को मोटर यान या किसी विनिर्दिष्ट वर्ग या वर्णन का मोटर यान शिक्षार्थी से भिन्न रूप में चलाने के लिए प्राधिकृत करती है ;

(11) शिक्षा संस्था बस" से ऐसी कोई बस अभिप्रेत है जो किसी महाविद्यालय, विद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था के स्वामित्वाधीन है और जिसका उपयोग शिक्षा संस्था के किसी क्रियाकलाप के संबंध में, विद्यार्थियों और कर्मचारिवृन्द के परिवहन के प्रयोजन के लिए ही किया जाता है ;

(12) किराएके अंतर्गत वे धनराशियां हैं जो किसी सीजन टिकट के लिए अथवा ठेका गाड़ी के भाड़े की बाबत संदेय हैं ;

(13) माल" के अंतर्गत जीवित व्यक्तियों के सिवाय यान द्वारा ले जाया जाने वाला पशुधन और (यान में मामूली तौर पर काम आने वाले उपस्कर से भिन्न) कोई भी चीज है, किन्तु मोटर कार में या मोटर कार से संलग्न ट्रैलर में वहन किया जाने वाला सामान या निजी चीजबस्त या यान में यात्रा करने वाले यात्रियों का निजी सामान इसके अंतर्गत नहीं है ;

(14) माल वाहन" से ऐसा कोई मोटर यान अभिप्रेत है जो केवल माल ढ़ोने के काम के लिए निर्मित या अनुकूलित है या ऐसा कोई मोटर यान भी, जो ऐसे निर्मित या अनुकूलित नहीं है, उस दशा में अभिप्रेत है जब कि उसका उपयोग माल ढ़ोने में किया जाता है ;

(15) किसी यान की बाबत सकल यान भार" से यान का कुल भार और उस यान के लिए रजिस्ट्रीकरण प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञेय रूप में प्रमाणित और रजिस्ट्रीकृत भार अभिप्रेत है ;

(16) भारी माल यान" से अभिप्रेत है ऐसा कोई माल यान जिसका सकल यान भार, या ऐसा ट्रेक्टर या रोड-रोलर जिसमें से किसी का लदान रहित भार, 12,000 किलोग्राम से अधिक है ;

(17) भारी यात्री मोटर यानसे अभिप्रेत है ऐसा कोई लोक सेवा यान या प्राइवेट सेवा यान या शिक्षा संस्था बस या कोई बस जिसका सकल यान भारया ऐसी मोटर कार जिसका लदान रहित भार, 12,000 किलोग्राम से अधिक है ;

(18) अशक्त यात्री गाड़ी" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो किसी शारीरिक खराबी या निःशक्तता से पीड़ित किसी व्यक्ति के उपयोग के लिए विशेष रूप से परिकल्पित तथा निर्मित है, केवल अनुकूलित नहीं है, और जिसका उपयोग ऐसे व्यक्ति द्वारा या उसके लिए ही किया जाता है ;

(19) शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति" से ऐसी अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा अध्याय 2 के अधीन दी गई है, और जो उसमें विनिर्दिष्ट व्यक्ति को शिक्षार्थी के रूप में कोई मोटर यान या किसी विनिर्दिष्ट वर्ग या वर्णन का मोटर यान चलाने के लिए प्राधिकृत करती है ;

(20) अनुज्ञापन प्राधिकारीसे वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जो अध्याय 2 या अध्याय 3 के अधीन अनुज्ञप्ति देने के लिए सशक्त है ;

(21) हल्का मोटर यानसे अभिप्रेत है ऐसा कोई परिवहन यान या बस जिसमें से किसी का सकल यान भारया ऐसी मोटर कार या ट्रैक्टर या रोड-रोलर जिसमें से किसी का लदान रहित भार,  [7,500] किलोग्राम से अधिक नहीं है ;

 [(21क) विनिर्माता" से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो मोटर यानों के विनिर्माण में लगा है ;]

(22) बड़ी टैक्सी" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो भाड़े या पारिश्रमिक पर छह से अधिक किन्तु बारह से अनधिक यात्रियों का, जिसके अंतर्गत ड्राइवर नहीं है, वहन करने के लिए निर्मित या अनुकूलित है ;

(23) मध्यम माल यान" से हल्के मोटर यान या भारी माल यान से भिन्न कोई माल वाहन अभिप्रेत है ;

(24) मध्यम यात्री मोटर यान" से ऐसा कोई लोक सेवा यान या प्राइवेट सेवा यान या शिक्षा संस्था बस अभिप्रेत है जो मोटर साइकिल, अशक्त यात्री गाड़ी, हल्का मोटर यान या भारी यात्री मोटर यान से भिन्न है ;

(25) मोटर टैक्सी" से ऐसा कोई मोटर यान अभिप्रेत है जो भाड़े या पारिभाषिक पर अधिक से अधिक छह यात्रियों का, जिसके अंतर्गत ड्राइवर नहीं है, वहन करने के लिए निर्मित या अनुकूलित है ;

(26) मोटर कारसे परिवहन यानबसरोङ-रोलरट्रैक्टरमोटर साइकिल या अशक्त यात्री गाड़ी से भिन्न कोई मोटर यान अभिप्रेत है ;

(27) मोटर साइकिल" से दो पहियों वाला ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जिसमें मोटर यान से संलग्न, एक अतिरिक्त पहिए वाली साइड कार, जो पृथक् की जा सकती है, सम्मिलित है ;

(28) मोटर यान" या यान" से कोई ऐसा यंत्र नोदित यान अभिप्रेत है जो सड़कों पर उपयोग के अनुकूल बना लिया गया है, चाहे उसमें नोदन शक्ति किसी बाहरी स्रोत से संचारित की जाती हो या आंतरिक स्रोत से और इसके अंतर्गत चैसिस, जिससे बाडी संलग्न नहीं है और ट्रेलर भी है, किन्तु इसके अंतर्गत पटरियों पर चलने वाला यान अथवा केवल कारखाने में या अन्य किसी सीमाबद्ध परिसर में उपयोग किए जाने के अनुकूल बना लिया गया विशेष प्रकार का यान या चार से कम पहियों वाला यान जिसमें  [पच्चीस घन सेंटी मीटरट से अनधिक क्षमता वाला इंजन लगाया गया है, नहीं है ;

(29) बस" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो छह से अधिक यात्रियों का, जिसके अंतर्गत ड्राइवर नहीं है, वहन करने के लिए निर्मित या अनुकूलित है ;

(30) स्वामी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके नाम में मोटर यान रजिस्टर है और जहां ऐसा व्यक्ति अवयस्क है, वहां उस अवयस्क का संरक्षक अभिप्रेत है और उस मोटर यान के संबंध में जो अवक्रय करार या पट्टे के करार या आड्मान के करार पर लिया गया है, वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसका उस यान पर उस करार के अधीन कब्जा है ;

(31) परमिट" से ऐसा परमिट अभिप्रेत है जो राज्य या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ने या इस अधिनियम के अधीन इस निमित्त विहित प्राधिकारी ने किसी मोटर यान का परिवहन यान के रूप में उपयोग करने के लिए प्राधिकृत करते हुए दिया है ;

(32) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

(33) प्राइवेट सेवा यान" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो छह से अधिक व्यक्तियों का, जिसके अंतर्गत ड्राइवर नहीं है, वहन करने के लिए निर्मित या अनुकूलित है और साधारणतः ऐसे यान के स्वामी द्वारा या उसकी ओर से, भाड़े या पारिश्रमिक से अन्यथा उसके व्यापार या कारबार के लिए, या उसके संबंध में, व्यक्तियों का वहन करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता है, किन्तु इसमें लोक प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाया जाने वाला मोटर यान नहीं है ;

(34) सार्वजनिक स्थान" से ऐसी सड़क, गली, मार्ग या अन्य स्थान, चाहे वह आम रास्ता हो या नहीं, अभिप्रेत है जिस पर जनता को पहुंच का अधिकार प्राप्त है, और इसके अंतर्गत कोई ऐसा स्थान या अड्डा भी है जहां पर मंजिली गाड़ी द्वारा यात्रियों को चढ़ाया या उतारा जाता है ;

(35) सार्वजनिक सेवा यान" से ऐसा कोई मोटर यान अभिप्रेत है जिसका उपयोग भाड़े या पारिश्रमिक पर यात्रियों का वहन करने के लिए किया जाता है या जिसे उपयोग के अनुकूल बना लिया गया है तथा इसके अंतर्गत बड़ी टैक्सी, मोटर टैक्सी, ठेका गाड़ी और मंजिली गाड़ी भी है  ;

(36) रजिस्ट्रीकृत धुरी भार" से किसी यान की धुरी के संबंध में, धुरी भार अभिप्रेत है जिसकी बाबत रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी द्वारा यह प्रमाणित और रजिस्ट्रीकृत है कि वह उस धुरी के लिए अनुज्ञेय धुरी भार है ;

(37) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी" से वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जिसे अध्याय 4 के अधीन मोटर यानों को रजिस्टर करने के लिए सशक्त किया गया है ;

(38) मार्ग" से यात्रा का वह पथ अभिप्रेत है जिसकी बाबत यह विनिर्दिष्ट है कि वह ऐसा राजमार्ग है जिसमें एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल तक मोटर यान, आ जा सकता है ;

1[(39) अर्द्ध ट्रेलर" से (ट्रेलर से भिन्न) कोई ऐसा यान अभिप्रेत है, जो यंत्र नोदित नहीं है और जो किसी मोटर यान से संयोजित किए जाने के लिए आशयित है तथा जो इस प्रकार निर्मित है, कि उसका एक प्रभाग उस मोटर यान के ऊपर है और उसके भार का एक प्रभाग उस मोटर यान द्वारा वहन किया जाता है ;]

(40) मंजिली गाड़ी" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो भाड़े या पारिश्रमिक पर छह से अधिक यात्रियों का, जिसके अंतर्गत ड्राइवर नहीं है, पूरी यात्रा अथवा यात्रा की मंजिलों तक के लिए, अलग-अलग यात्रियों द्वारा या उनकी ओर से दिए गए अलग-अलग किरायों पर वहन करने के लिए, निर्मित या अनुकूलित है ;

(41) किसी संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, राज्य सरकार" से संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त उसका प्रशासक अभिप्रेत है ;

(42) राज्य परिवहन उपक्रम" से ऐसा कोई उपक्रम अभिप्रेत है जो वहां सड़क परिवहन सेवा की व्यवस्था करता है, जहां ऐसा उपक्रम निम्नलिखित द्वारा चलाया जाता है :-

(i) केन्द्रीय सरकार या कोई राज्य सरकार ;

(ii) सड़क परिवहन निगम अधिनियम, 1950 (1950 का 64) की धारा 3 के अधीन स्थापित कोई सड़क परिवहन निगम ;

(iii) केन्द्रीय सरकार या एक या अधिक राज्य सरकारों के अथवा केन्द्रीय सरकार और एक या अधिक राज्य सरकारों के स्वामित्व या नियंत्रण में की कोई नगरपालिका या कोई निगम या कंपनी ;

 [(iv) जिला परिषद् या वैसा ही कोई अन्य स्थानीय प्राधिकारी ।]

स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, सड़क परिवहन सेवा" से भाड़े या पारिश्रमिक पर सड़क मार्ग द्वारा यात्रियों या माल अथवा दोनों का वहन करने वाली मोटर यान सेवा अभिप्रेत है ;

(43) पर्यटन यान" से ऐसी ठेका गाड़ी अभिप्रेत है जो उन विनिर्देशों के अनुसार निर्मित या अनुकूलित, सज्जित और अनुरक्षित है जिन्हें इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए ;

(44) ट्रैक्टर" से ऐसा मोटर यान अभिप्रेत है जो स्वयं (नोदन के प्रयोजन के लिए काम में आने वाले उपस्कर से भिन्न) कोई भार वहन करने के लिए निर्मित नहीं है, किंतु इसके अंतर्गत रोड-रोलर नहीं है ;

(45) यातायात संकेत" के अंतर्गत सभी संकेत, चेतावनी-संकेत स्तंभ, दिशा सूचक स्तंभ, सड़कों पर चिह्नांकन या अन्य युक्तियां हैं जो मोटर यानों के ड्राइवरों की जानकारी, मार्गदर्शन या निदेशन के लिए है ;

(46) ट्रेलर" से अर्द्ध-ट्रेलर और साइड कार से भिन्न कोई ऐसा यान अभिप्रेत है जो मोटर यान के द्वारा खींचा जाता है अथवा खींचे जाने के लिए आशयित है ;

(47) परिवहन यानसे कोई सार्वजनिक सेवा यानमाल वाहनशिक्षा संस्था बस या प्राइवेट सेवा यान अभिप्रेत है ;

(48) लदान रहित भार" से यान या ट्रेलर का ऐसे सभी उपस्कर सहित भार अभिप्रेत है, जिसका उपयोग मामूली तौर पर यान या ट्रेलर के चालू होने पर किया जाता है किन्तु इसमें ड्राइवर या परिचालक का भार सम्मिलित नहीं है तथा जहां आनुकाल्पिक पुर्जों या बाडी का उपयोग किया जाता है वहां यान के लदान रहित भार से यान का, ऐसे सबसे भारी आनुकल्पिक पुर्जे या बाडी सहित भार अभिप्रेत है ;

(49) भार" से यान के पहियों द्वारा उस भू-तल पर, जिस पर वह यान टिका हुआ है उस समय संचारित किया जाने वाला कुल भार अभिप्रेत है ।

 [2क. ई-गाड़ी और ई-रिक्शा-(1) धारा 7 की उपधारा (1) के परंतुक और धारा 9 की उपधारा (10) में जैसा अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय, इस अधिनियम के उपबंध ई-गाड़ी और ई-रिक्शा को लागू होंगे ।

(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए ई-गाड़ी या ई-रिक्शा" से, भाड़े या पारिश्रमिक के लिए, यथास्थिति, माल या यात्रियों के वहन हेतु ऐसे विनिर्देशों के अनुसार, जो इस निमित्त विहित किए जाएं, विनिर्मित, सन्निर्मित या अनुकूलित, सुसज्जित और अनुरक्षित एक तीन पहियों वाला 4000 वाट से अनधिक विद्युत शक्ति का विशेष प्रयोजन बैटरी युक्त यान अभिप्रेत है ।]

अध्याय 2

मोटर यानों के ड्राइवरों का अनुज्ञापन

3. चालन-अनुप्ति की आवश्यकता-(1) कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर यान तभी चलाएगा जब उसके पास यान चलाने के लिए उसे प्राधिकृत करते हुए उसके नाम में दी गई प्रभावी चालन-अनुज्ञप्ति है ; और कोई भी व्यक्ति [ऐसी  [मोटर टैक्सी या मोटर साइकिल] से भिन्न जिसे उसने अपने उपयोग के लिए भाड़े पर लिया है या धारा 75 की उपधारा (2) के अधीन बनाई गई किसी स्कीम के अधीन किराए पर लिया हैट परिवहन यान को इस प्रकार तभी चलाएगा जब उसकी चालन-अनुज्ञप्ति उसे विनिर्दिष्ट रूप से ऐसा करने का हकदार बनाती है 

(2) वे शर्तें जिनके अधीन उपधारा (1) ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो मोटर यान चलाना सीख रहा है, ऐसी होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

4. मोटर यान चलाने के संबंध में आयु सीमा-(1) कोई भी व्यक्ति, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर यान नहीं चलाएगा :

परन्तु कोई व्यक्ति सोलह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् किसी सार्वजनिक स्थान में  [50 सी० सी० से अनधिक इंजन क्षमता वाली मोटर साइकिल] चला सकेगा ।

(2) धारा 18 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई भी व्यक्ति, जो बीस वर्ष से कम आयु का है, किसी सार्वजनिक स्थान में परिवहन यान नहीं चलाएगा ।

(3) कोई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति या चालन-अनुज्ञप्ति उस वर्ग के, जिसके लिए उसने आवेदन किया है, किसी यान को चलाने के लिए किसी व्यक्ति को तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि वह इस धारा के अधीन उस वर्ग के यान को चलाने के लिए पात्र नहीं है ।

5. धारा 3 और धारा 4 के उल्लंघन के लिए मोटर यानों के स्वामियों का उत्तरदायित्व-मोटर यान का कोई भी स्वामी या भारसाधक व्यक्ति ऐसे किसी व्यक्ति से, जो धारा 3 या धारा 4 के उपबंधों की पूर्ति नहीं करता है, न तो यान चलवाएगा न उसे चलाने की अनुज्ञा देगा ।

6. चालन-अनुज्ञप्तियां धारण करने पर निर्बंधन-(1) कोई भी व्यक्ति उस समय के दौरान, जब वह तत्समय प्रवृत्त कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण करता है, शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति या धारा 18 के उपबंधों के अनुसार दी गई चालन अनुज्ञप्ति के सिवाय या ऐसी दस्तावेज के सिवाय जिसमें उसमें विनिर्दिष्ट व्यक्ति को धारा 139 के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसारमोटर यान चलाने के लिए प्राधिकृत किया गया हैकोई अन्य चालन-अनुज्ञप्ति धारण नहीं करेगा 

(2) चालन अनुज्ञप्ति या शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति का धारक अन्य किसी व्यक्ति को उसका उपयोग करने की अनुज्ञा नहीं देगा 

(3) इस धारा की कोई बात, धारा 9 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारिता वाले अनुज्ञापन प्राधिकारी को उस वर्ग के यानों में, जिनको चलाने के लिए चालन-अनुज्ञप्ति उसके धारक को प्राधिकृत करती है, अन्य वर्ग के यान जोङने से निवारित नहीं करेगी ।

7. कुछ यानों के लिए शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति के दिए जाने पर निर्बंधन- [(1) किसी भी व्यक्ति को परिवहन यान चलाने के लिए शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि उसने हल्का मोटर यान चलाने के लिए कम से कम एक वर्ष तक चालन अनुज्ञप्ति धारण नहीं की है :]

 [परन्तु इस उपधारा में अंतर्विष्ट कोई बात, ई-गाड़ी या ई-रिक्शा को लागू नहीं होगी ।]

(2) अठारह वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को बिना गियर वाली मोटर साइकिल को चलाने की शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञप्ति की वांछा करने वाले व्यक्ति की देखरेख करने वाले व्यक्ति की लिखित सहमति के बिना, नहीं दी जाएगी ।

8. शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति का दिया जाना-(1) कोई व्यक्ति, जो धारा 4 के अधीन मोटर यान चलाने के लिए निरर्हित नहीं है और जो उस समय चालन अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए निरर्हित नहीं है, धारा 7 के उपबंधों के अधीन रहते हुए शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति दिए जाने के लिए उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा जिसकी अधिकारिता ऐसे क्षेत्र पर है-

(i) जिसमें वह व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है या कारबार चलाता है ; या

(ii) जिसमें धारा 12 में निर्दिष्ट वह विद्यालय या स्थापन स्थित है जहां वह मोटर यान चलाना सीखना चाहता है 

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा और उसके साथ ऐसे दस्तावेज होंगे तथा ऐसी फीस होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(3) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन के साथ चिकित्सा प्रमाणपत्र ऐसे प्ररूप में संलग्न होगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए और उस पर ऐसे रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे, जिसे राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई व्यक्ति, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे :

 [परन्तु किसी परिवहन यान से भिन्न किसी यान को चलाने की अनुज्ञप्ति के लिए ऐसा चिकित्सा-प्रमाणपत्र अपेक्षित नहीं है ]

(4) यदि आवेदन से या उपधारा (3) में निर्दिष्ट चिकित्सा-प्रमाणपत्र से यह प्रतीत होता है कि आवेदक किसी ऐसे रोग या ऐसी निःशक्तता से ग्रस्त है जिससे उसके द्वारा उस वर्ग के मोटर यान का चलाया जाना जिसे चलाने के लिए वह उस शिक्षार्थी चालन अनुज्ञप्ति द्वारा, जिसके लिए आवेदन किया गया है, प्राधिकृत हो जाएगा, जनता या यात्रियों के लिए खतरनाक हो सकता है तो अनुज्ञापन प्राधिकारी शिक्षार्थी चालन अनुज्ञप्ति देने से इंकार कर देगा :

परन्तु यदि अनुज्ञापन प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि आवेदक अशक्त यात्री गाड़ी चलाने के लिए ठीक हालत में है तो आवेदक को अशक्त यात्री गाड़ी चलाने तक सीमित शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति दी जा सकेगी ।

(5) किसी भी आवेदक को कोई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति तक तक नहीं दी जाएगी जब तक वह अनुज्ञापन प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में ऐसे परीक्षण में उत्तीर्ण नहीं हो जाता, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए ।

(6) जब समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी को उचित रूप से आवेदन कर दिया गया है और आवेदक ने ऐसे प्राधिकारी का उपधारा (3) के अधीन अपनी शारीरिक समर्थता के बारे में समाधान कर दिया है और उपधारा (5) में निर्दिष्ट परीक्षण, अनुज्ञापन प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में उत्तीर्ण कर लिया है तो अनुज्ञापन प्राधिकारी धारा 7 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आवेदक को शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति देगा, जब तक कि आवेदक मोटर यान चलाने के लिए धारा 4 के अधीन निरर्हित न हो या मोटर यान चलाने के लिए कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण या अभिप्राप्त करने के लिए तत्समय निरर्हित न हो :

परन्तु कोई अनुज्ञापन प्राधिकारी मोटर साइकिल या मोटर यान चलाने के लिए शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति इस बात के होते हुए भी कि वह समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी नहीं है उस दशा में दे सकेगा जिसमें उस अनुज्ञापन प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि इस बात का पर्याप्त कारण है कि आवेदक समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी को आवेदन करने में असमर्थ है ।

(7) जहां केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है वहां वह इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा, साधारणतया या तो आत्यंतिक रूप से या ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो नियमों में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को उपधारा (3) या उपधारा (5) अथवा दोनों के उपबंधों से छूट दे सकेगी ।

(8) मोटर साइकिल चलाने के लिए इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व प्रवृत्त कोई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति, ऐसे प्रारंभ के पश्चात्गियर वाली या बिना गियर वाली किसी मोटर साइकिल के चलाने के लिए प्रभावी समझी जाएगी 

9. चालन-अनुज्ञप्ति का दिया जाना-कोई व्यक्ति, जो उस समय चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए निरर्हित नहीं है, उसको चालन-अनुज्ञप्ति दिए जाने के लिए उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा जिसकी अधिकारिता ऐसे क्षेत्र पर है-

(i) जिसमें वह व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है या कारबार चलाता है ; या

(ii) जिसमें धारा 12 में निर्दिष्ट वह विद्यालय या स्थापन स्थित हैजहां वह मोटर यान चलाना सीख रहा है या सीख चुका है 

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा और उसके साथ ऐसी फीस और ऐसे दस्तावेज होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं ।

 [(3) यदि आवेदक ऐसे परीक्षण में उत्तीर्ण हो जाता है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए तो उसे चालन अनुज्ञप्ति दी जाएगी :

परन्तु ऐसा परीक्षण वहां आवश्यक नहीं होगा जहां आवेदक यह दर्शित करने के लिए सबूत प्रस्तुत कर देता है कि-

(क) (i) आवेदक के पास ऐसे वर्ग के यान को चलाने के लिए पहले भी अनुज्ञप्ति थी और उस अनुज्ञप्ति की समाप्ति की तारीख तथा ऐसे आवेदन की तारीख के बीच की अवधि पांच वर्ष से अधिक नहीं है, या

(ii) आवेदक के पास ऐसे वर्ग के यान को चलाने के लिए धारा 18 के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति है या पहले भी थीया

(iii) आवेदक के पास भारत के बाहर किसी देश के सक्षम प्राधिकारी द्वारा ऐसे वर्ग के यान को चलाने के लिए इस शर्त के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति है कि आवेदक धारा 8 की उपधारा (3) के उपबंधों का पालन करता है,

(ख) आवेदक ऐसी किसी निःशक्तता से ग्रस्त नहीं है जिससे उसके द्वारा यान का चलाया जाना जनता के लिए खतरनाक हो सकता है ; और अनुज्ञापन प्राधिकारी उस प्रयोजन के लिए आवेदक से उसी प्ररूप और उसी रीति से, जो धारा 8 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट है, एक चिकित्सा-प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा :

परन्तु यह और कि जहां आवेदन मोटर यान को (जो परिवहन यान नहीं है) चलाने के लिए चालन अनुज्ञप्ति के लिए है वहां अनुज्ञापन प्राधिकारी आवेदक को इस उपधारा के अधीन विहित यान को चलाने के लिए सक्षमता परीक्षण से छूट दे सकेगा, यदि आवेदक के पास राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त मान्यताप्राप्त किसी संस्था द्वारा दिया गया चालन प्रमाणपत्र है । ]

(4) जहां आवेदन किसी परिवहन यान को चलाने की अनुज्ञप्ति के लिए है, वहां किसी आवेदक को तब तक प्राधिकृत नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके पास ऐसी न्यूनतम शैक्षिक अर्हताएं, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएंऔर धारा 12 में निर्दिष्ट किसी विद्यालय या स्थापन द्वारा दिया गया कोई चालन-प्रमाणपत्र  हो 

 [(5) जहां आवेदक परीक्षण उत्तीर्ण नहीं करता है वहां उस सात दिन की अवधि के पश्चात् परीक्षण पुनः देने की अनुज्ञा दी जा सकेगी :

परन्तु जहां आवेदक तीन बार परीक्षण देने के पश्चात् भी उस उत्तीर्ण नहीं करता है तो वह ऐसे अंतिम परीक्षण की तारीख से साठ दिन की अवधि की समाप्ति के पूर्व ऐसा परीक्षण पुनः देने के लिए अर्हित नहीं होगा ।]

                (6) चालन सक्षमता परीक्षण उस प्रकार के यान में किया जाएगा जिसका आवेदन में निर्देश है :

परन्तु किसी ऐसे व्यक्ति की बाबत जिसने गियर वाली मोटर साइकिल चलाने का परीक्षण उत्तीर्ण कर लिया है, यह समझा जाएगा कि उसने बिना गियर वाली मोटर साइकिल चलाने का परीक्षण भी उत्तीर्ण कर लिया है ।

(7) जब समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी को उचित रूप से आवेदन कर दिया गया है और आवेदक ने अपनी चालन सक्षमता की बाबत ऐसे प्राधिकारी का समाधान कर दिया है तब अनुज्ञापन प्राधिकारी आवेदक चालन-अनुज्ञप्ति देगा जब तक कि आवेदक चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए उस समय निरर्हित न हो :

                परन्तु कोई अनुज्ञापन प्राधिकारी मोटर साइकिल या हल्का मोटर यान चलाने के लिए चालन-अनुज्ञप्ति इस बात के होते हुए भी कि वह समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी नहीं है उस दशा में दे सकेगा जिसमें उस अनुज्ञापन प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि इस बात का उचित और पर्याप्त कारण है कि आवेदक समुचित अनुज्ञापन प्राधिकारी को आवेदन करने में असमर्थ है :

परन्तु यह और कि अनुज्ञापन प्राधिकारी आवेदक को यदि उसके पास पहले कोई चालन-अनुज्ञप्ति थी तो नई चालन-अनुज्ञप्ति तब तक नहीं देगा जब तक कि उसका यह समाधान नहीं हो जाता है कि उसी पहली अनुज्ञप्ति की दूसरी प्रति प्राप्त करने में उसकी असमर्थता का उचित और पर्याप्त कारण है ।

(8) यदि अनुज्ञापन प्राधिकारी काआवेदक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्यह समाधान हो जाता है कि ह-

                (क) आभ्यासिक अपराधी या आभ्यासिक शराबी है ; या

                (ख) स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (1985 का 61) के अर्थ के अन्तर्गत किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का व्यसनी है ; या

(ऐसा कोई व्यक्ति है जिसकी मोटर यान चलाने की अनुज्ञप्ति को पहले किसी समय प्रतिसंहृत कर दिया गया है,

तो वह, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, ऐसे किसी व्यक्ति को चालन-अनुज्ञप्ति देने से इंकार करने वाला आदेश कर सकेगा और इस उपधारा के अधीन अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा किए गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, आदेश की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर, विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा ।

(9) मोटर साइकिल चलाने के लिए इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व प्रवृत्त कोई चालन-अनुज्ञप्ति, ऐसे प्रारंभ के पश्चात्, गियर वाली या बिना गियर वाली किसी मोटर साइकिल के चलाने के लिए प्रभावी समझी जाएगी ।

 [(10) इस धारा में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ई-गाड़ी या ई-रिक्शा को चलाने के लिए चालन-अनुज्ञप्ति ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जारी की जाएगी जो विहित की जाएं ।]

10. चालन-अनुज्ञप्ति का प्ररूप और अंतर्वस्तु-(1) धारा 18 के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति के सिवाय प्रत्येक शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति और चालन-अनुज्ञप्ति ऐसे प्ररूप में होगी और उसमें ऐसी जानकारी अन्तर्विष्ट होगी, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(2) यथास्थिति, शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति या चालन-अनुज्ञप्ति में यह भी अभिव्यक्त किया गया होगा कि धारक निम्नलिखित वर्गों में से एक या अधिक वर्ग का मोटर यान चलाने का हकदार है, अर्थात् :-

(क) बिना गियर वाली मोटर साइकिल ;

(ख) गियर वाली मोटर साइकिल ;

(ग) अशक्त यात्री गाड़ी ;

(घ) हल्का मोटर यान ;

 [(ङ) परिवहन यान ;]

                (झ) रोड-रोलर ;

                (ञ) किसी विनिर्दिष्ट प्रकार का मोटर यान ।

11. चालन-अनुज्ञप्ति में परिवर्धन-(1) किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को चलाने की चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने वाला कोई व्यक्ति, जो किसी अन्य वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को चलाने के लिए चालन-अनुज्ञप्ति को धारण या अभिप्राप्त करने के लिए तत्समय निरर्हित नहीं है, उस अनुज्ञप्ति में ऐसे अन्य वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को जोङ देने के लिए उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को जिसकी उस क्षेत्र पर अधिकारिता है जिसमें वह निवास करता है या अपना कारबार चलाता है, ऐसे प्ररूप में और ऐसे दस्तावेजों सहित तथा ऐसी फीस के साथ, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, आवेदन कर सकेगा ।

(2) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं, धारा 9 के उपबंध इस धारा के अधीन आवेदन को उसी प्रकार लागू होंगे मानो उक्त आवेदन उस धारा के अधीन उस वर्ग या वर्णन के मोटरयान को चलाने की, जिसे आवेदक अपनी अनुज्ञप्ति में जुङवाना चाहता है, अनुज्ञप्ति दिए जाने के लिए आवेदन है ।

12. मोटर यानों के चलाने की शिक्षा देने के लिए विद्यालयों या स्थापनों का अनुज्ञापन और विनियमन-(1) केन्द्रीय सरकार, मोटर यानों के चलाने और उससे संबंधित विषयों में शिक्षा देने के लिए विद्यालयों या स्थापनों के (चाहे वे किसी भी नाम से ज्ञात होंराज्य सरकारों द्वारा अनुज्ञापन और विनियमन के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी 

(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

(क) ऐसे विद्यालयों या स्थापनों का अनुज्ञापन जिसके अन्तर्गत ऐसी अनुज्ञप्तियों का दिया जाना, नवीकरण और प्रतिसंहरण भी है ;

                (ख) ऐसे विद्यालयों या स्थापनों का पर्यवेक्षण ;

                (ग) आवेदन का प्ररूप और अनुज्ञप्ति का प्ररूप और वे विशिष्टियां, जो उसमें अन्तर्विष्ट होंगी ;

                (घ) वह फीस जो ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए आवेदन के साथ दी जाएगी ;

                (ङ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी ;

                (च) ऐसी अनुज्ञप्तियों के दिए जाने या नवीकरण से इंकार किए जाने के आदेशों के विरुद्ध अपीलें और ऐसी अनुज्ञप्तियों का प्रतिसंहरण करने वाले आदेशों के विरुद्ध अपीलें ;

                (छ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति मोटर यानों के चलाने में शिक्षा देने के लिए किसी ऐसे विद्यालय या स्थापन की स्थापना और उसका अनुरक्षण कर सकेगा ;

                (ज) किसी मोटर यान के चालन में दक्षतापूर्ण शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम या पाठ्यक्रमों की प्रकृति, पाठ्यविवरण और अवधि ;

                (झ) ऐसी शिक्षा देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित साधित्र और उपस्कर (जिनके अंतर्गत दोहरे नियंत्रण से युक्त मोटर यान उपस्कर भी हैं) ;

                (ञ) ऐसे परिसरों की उपयुक्तता जिनमें ऐसे विद्यालयों या स्थापनों की स्थापना या अनुरक्षण किया जा सकेगा और वे सुविधाएं जो उनमें दी जाएंगी ;

                (ट) शैक्षिक और वृत्तिक दोनों अर्हताएं (जिसके अंतर्गत अनुभव भी है) जो मोटर यान चलाने की शिक्षा देने वाले व्यक्ति के पास होनी चाहिए ;

                (ठ) ऐसे विद्यालयों और स्थापनों का निरीक्षण (जिसके अंतर्गत उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाएं और ऐसी शिक्षा देने के लिए उनके द्वारा रखे गए साधित्र, उपस्कर और मोटर यान भी हैं) ;

                (ड) ऐसे विद्यालयों या स्थापनों द्वारा अभिलेखों का रखा जाना ;

                (ढ) ऐसे विद्यालयों या स्थापनों का वित्तीय स्थायित्व ;

                (ण) चालन प्रमाणपत्र, यदि कोई हो, जो ऐसे विद्यालयों या स्थापनों द्वारा दिए जाएंगे और वह प्ररूप जिसमें ऐसे चालन प्रमाणपत्र दिए जाएंगे और वे अपेक्षाएं जिनका ऐसे प्रमाणपत्र देने के प्रयोजनों के लिए अनुपालन किया जाएगा ;

                (त) ऐसे अन्य विषय जो इस धारा के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक हों ।

(3) जहां केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, वहां वह इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा, साधारणतया या तो आत्यंतिक रूप से या ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, मोटर यान के चालन में या उससे सम्बन्धित विषयों में शिक्षा देने वाले किसी वर्ग के विद्यालयों या स्थापनों को इस धारा के उपबंधों से छूट दे सकेगी ।

(4) इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व मोटर यानों के चालन या उससे संबंधित विषयों में शिक्षा देने वाला कोई विद्यालय या स्थापन, चाहे वह अनुज्ञप्ति के अधीन हो अथवा न हो, ऐसे प्रारंभ से एक मास की अवधि तक इस अधिनियम के अधीन दी जाने वाली अनुज्ञप्ति के बिना ऐसी शिक्षा देना चालू रख सकेगा और यदि उसने एक मास की उक्त अवधि के भीतर इस अधिनियम के अधीन ऐसी अनुज्ञप्ति के लिए कोई आवेदन किया है और ऐसा आवेदन विहित प्ररूप में है, उसमें विहित विशिष्टियां दी गई हैं और उसके साथ विहित फीस है, तो अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा ऐसे आवेदन के निपटाए जाने तक ऐसी शिक्षा देना चालू रख सकेगा ।

13. मोटर यानों को चलाने की अनुज्ञप्तियों के प्रभावी होने का विस्तार-इस अधिनियम के अधीन दी गई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति या चालन अनुज्ञप्ति संपूर्ण भारत में प्रभावी होगी ।

14. मोटर यानों को चलाने की अनुज्ञप्तियों का चालू रहना-(1) इस अधिनियम के अधीन दी गई शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति, इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, अनुज्ञप्ति दिए जाने की तारीख से छह मास की अवधि तक प्रभावी रहेगी ।

(2) इस अधिनियम के अधीन दी गई नवीकृत चालन-अनुज्ञप्ति,-

                (क) परिवहन यान को चलाने की अनुज्ञप्ति की दशा में, तीन वर्ष की अवधि तक प्रभावी रहेगी,  । । ।

                 [परन्तु खतरनाक या परिसंकटमय प्रकृति के माल को ले जाने वाले परिवहन यान को चलाने की अनुज्ञप्ति की दशा में, वह एक वर्ष की अवधि के लिए प्रभावी रहेगी और उसका नवीकरण इस शर्त के अधीन होगा कि चालक विहित पाठ्य विवरण का एक दिन का पुनश्चर्या पाठ पूरा करेगा ; और]

                (ख) किसी अन्य अनुज्ञप्ति की दशा में,-

(i) यदि उस व्यक्ति ने, जिसने या तो मूल रूप से अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त की है या उसका नवीकरण कराया है, यथास्थिति, उसके दिए जाने या नवीकरण की तारीख को  [पचास वर्षट की आयु प्राप्त नहीं की है, तो-

                (अ) अनुज्ञप्ति के दिए जाने या नवीकरण की तारीख से बीस वर्ष की अवधि तक, या

                (आ) उस तारीख तक, जिसको ऐसा व्यक्ति 3[पचास वर्षट की आयु प्राप्त करता है,

                                इनमें से जो भी पूर्वतर हो, प्रभावी रहेगी ।

3[(ii) यदि उपखंड (i) में निर्दिष्ट व्यक्ति ने, यथास्थिति, अनुज्ञप्ति के दिए जाने या उसका नवीकरण किए जाने की तारीख को पचास वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है तो ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए, ऐसी अनुज्ञप्ति उसके दिए जाने या उसका नवीकरण किए जाने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक प्रभावी रहेगी :]

                परन्तु प्रत्येक चालन-अनुज्ञप्ति, इस उपधारा के अधीन उसके समाप्त हो जाने पर भी, ऐसी समाप्ति से तीस दिन की अवधि तक प्रभावी बनी रहेगी ।

15. चालन-अनुज्ञप्तियों का नवीकरण-(1) कोई भी अनुज्ञापन प्राधिकारी उसे आवेदन किए जाने पर किसी चालन अनुज्ञप्ति को, जो इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन दी गई हो, उसकी समाप्ति की तारीख से नवीकृत कर सकेगा :

परन्तु ऐसी दशा में, जिसमें कि चालन-अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए आवेदन उसकी समाप्ति को तारीख से तीस दिन के पश्चात् किया गया है, चालन-अनुज्ञप्ति उसके नवीकरण की तारीख से नवीकृत की जाएगी :

परन्तु यह और कि जहां आवेदन, परिवहन यान चलाने की अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए है या जहां किसी अन्य दशा में आवेदक ने चालीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है वहां उसके साथ धारा 8 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्ररूप और रीति में चिकित्सा प्रमाणपत्र होगा और धारा 8 की उपधारा (4) के उपबंध, जहां तक हो सके, ऐसी प्रत्येक दशा के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति के संबंध में लागू होते हैं ।

(2) चालन-अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए आवेदन ऐसे प्ररूप में किया जाएगा और उसके साथ ऐसे दस्तावेज होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं ।

(3) जहां चालन-अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए आवेदन उस अनुज्ञप्ति की समाप्ति की तारीख से पूर्व या उसके पश्चात् अधिक से अधिक तीस दिन के भीतर किया गया है वहां ऐसे नवीकरण के लिए देय फीस ऐसी होगी जो इस निमित्त केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(4) जहां चालन-अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए आवेदन उस अनुज्ञप्ति की समाप्ति की तारीख से तीस दिन के पश्चात् किया गया है वहां ऐसे नवीकरण के लिए देय फीस वह रकम होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए :

परंतु उपधारा (3) में निर्दिष्ट फीस, इस उपधारा के अधीन चालन-अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए किए गए आवेदन की बाबत अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा तभी स्वीकार की जा सकेगी जब उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट समय के भीतर उचित और पर्याप्त कारण से आवेदन नहीं कर पाया था :

परन्तु यह और कि यदि चालन-अनुज्ञप्ति के प्रभावहीन होने से पांच वर्ष से अधिक के पश्चात् आवेदन किया गया है तो अनुज्ञापन प्राधिकारी चालन-अनुज्ञप्ति को नवीकृत करने से इंकार कर सकेगा, जब तक कि आवेदक उस प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में धारा 9 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट चालन सक्षमता परीक्षण नहीं दे देता और उसमें उत्तीर्ण नहीं हो जाता ।

(5) जहां नवीकरण के लिए आवेदन नामंजूर कर दिया गया है वहां संदत्त फीस उतनी सीमा तक और ऐसी रीति में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, वापस कर दी जाएगी ।

(6) जब चालन अनुज्ञप्ति का नवीकरण करने वाला प्राधिकारी वह प्राधिकारी नहीं है जिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी तब वह नवीकरण के तथ्य की सूचना उस प्राधिकारी को देगा जिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी ।

16. रोग या निःशक्तता के आधार पर चालन-अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण-पूर्वगामी धाराओं में किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी अनुज्ञापन प्राधिकारी के पास यह विश्वास करने के समुचित आधार हैं कि किसी चालन-अनुज्ञप्ति का कोई धारक किसी रोग या निःशक्तता के आधार पर मोटर यान चलाने के अयोग्य है तो वह अनुज्ञापन प्राधिकारी किसी भी समय उस चालन-अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत कर सकेगा या ऐसी चालन-अनुज्ञप्ति के धारक से उसे धारित करते रहने की शर्त के तौर पर यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसी प्ररूप और उसी रीति में जो धारा 8 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट है, एक नया चिकित्सा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करे; और जहां चालन-अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत करने वाला प्राधिकारी वह प्राधिकारी नहीं है जिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी तब वह चालन-अनुज्ञप्ति देने वाले प्राधिकारी को प्रतिसंहरण के तथ्य की सूचना देगा ।

17. चालन-अनुज्ञाप्तियां देने से इंकार करने या उनके प्रतिसंहरण के आदेश तथा उनसे अपील-(1) जब अनुज्ञापन प्राधिकारी शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति देने या चालन-अनुज्ञप्ति देने से या उसका नवीकरण करने से इंकार करता है या उसका प्रतिसंहरण करता है या किसी चालन-अनुज्ञप्ति में किसी वर्ग के मोटर यान जोङने से इंकार करता है तब वह आदेश द्वारा ऐसा करेगा जिसकी संसूचना यथास्थिति, आवेदक या धारक को दी जाएगी और उसमें ऐसे इंकार या प्रतिसंहरण के कारण लिखित रूप में दिए जाएंगे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति अपने पर आदेश की तामील के तीस दिन के भीतर विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा जो ऐसे व्यक्ति को और उस प्राधिकारी को, जिसने आदेश दिया है, सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् अपील का विनिश्चय करेगा और अपील प्राधिकारी का विनिश्चय उस प्राधिकारी पर आबद्धकर होगा जिसने आदेश दिया था ।

18. केन्द्रीय सरकार के मोटर यानों को चलाने के लिए चालन-अनुज्ञप्ति-(1) ऐसा प्राधिकारी, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, ऐसे व्यक्तियों को, जिन्होंने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है, ऐसे मोटर यान चलाने के लिए जो केन्द्रीय सरकार की संपत्ति है या उस समय अनन्य रूप से उसके नियंत्रणाधीन हैं और देश की रक्षा से संबंधित सरकारी प्रयोजनों के लिए जिनका किसी वाणिज्यिक उद्यम से कोई संबंध नहीं है, उपयोग में लाए जाते हैं, भारत भर में विधिमान्य चालन-अनुज्ञप्ति दे सकेगा ।

(2) इस धारा के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति में उस वर्ग या वर्णन के यानों को, जिन्हें चलाने के लिए उसका धारक हकदार है और उस अवधि को, जिसके लिए वह इस प्रकार हकदार है, विनिर्दिष्ट किया जाएगा ।

(3) इस धारा के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति से उसका धारक उस मोटर यान के सिवाय, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, कोई अन्य मोटर यान चलाने का हकदार नहीं होगा ।

(4) इस धारा के अधीन कोई चालन-अनुज्ञप्ति देने वाला प्राधिकारी किसी राज्य सरकार के अनुरोध पर ऐसे व्यक्ति की बाबत, जिसे चालन-अनुज्ञप्ति दी गई है, ऐसी जानकारी देगा, जैसी वह सरकार किसी समय मांगे

19. अनुज्ञापन प्राधिकारी की, चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने से निरर्हित करने या उसे प्रतिसंहृत करने की शक्ति-(1) यदि अनुज्ञापन प्राधिकारी का, चालन-अनुज्ञप्ति के धारक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् यह समाधान हो जाता है कि वह-

                (क) आभ्यासिक अपराधी या आभ्यासिक शराबी है ; या

                (ख) स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (1985 का 61) के अर्थ के अंतर्गत किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का व्यसनी है ; या

                (ग) कोई संज्ञेय अपराध करने में मोटर यान का उपयोग कर चुका है ; या

                (घ) किसी मोटर यान के ड्राइवर के रूप में अपने पूर्वाचरण से यह दर्शित कर चुका है कि उसके यान चलाने से जनता को खतरा हो सकता है ; या

                (ङ) उसने कपट या दुर्व्यपदेशन द्वारा किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यान की चालन-अनुज्ञप्ति या चलाने की अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त कर ली है ; या

                (च) कोई ऐसा कार्य कर चुका है जिससे जनता को न्यूसेंस या खतरा कारित होने की संभावना है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विहित किया जाए ; या

                (छ) जो धारा 22 की उपधारा (3) के परन्तुक में निर्दिष्ट परीक्षणों में बैठने में असफल रहा है या उनको उत्तीर्ण नहीं कर सका है ; या

(अठारह वर्ष की आयु से कम का व्यक्ति होते हुए जिसे उस व्यक्ति की लिखित अनुमति से शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति या चालन-अनुज्ञप्ति दी गई है जो अनुज्ञप्ति के धारक की देखभाल करता है और जो अब ऐसी देखभाल में नहीं है,

तो वह अनुज्ञापन प्राधिकारी ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे,-

(i) उस व्यक्ति को अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं वर्गों या वर्णनों के यान चलाने की कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने सेकिसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए निरर्हित करने का आदेश दे सकेगा ; या

                (ii) ऐसी किसी अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत कर सकेगा ।

                (2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश किया जाता है वहां चालन-अनुज्ञप्ति का धारक, यदि चालन-अनुज्ञप्ति का पहले ही अभ्यर्पण नहीं कर दिया गया है तो अपनी चालन-अनुज्ञप्ति उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को तुरन्त अभ्यर्पित कर देगा जिसने वह आदेश दिया है तथा अनुज्ञापन प्राधिकारी-

(क) उस चालन-अनुज्ञप्ति के इस अधिनियम के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति होने पर उसे तब तक अपने पास रखे रहेगा जब तक निरर्हता समाप्त नहीं हो जाती या हटा नहीं दी जाती ; या

(ख) उस चालन-अनुज्ञप्ति के इस अधिनियम के अधीन दी गई चालन-अनुज्ञप्ति न होने पर उस पर निरर्हता पृष्ठांकित करेगा और उसे उस अनुज्ञापन प्राधिकारी के पास भेज देगा जिसने वह दी थी ; या

(ग) किसी अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहृत किए जाने की दशा में, उस पर प्रतिसंहृत का पृष्ठांकन करेगा और यदि वह ऐसा प्राधिकारी नहीं है जिसने वह दी थी, तो वह प्रतिसंहरण के तथ्य की सूचना उस प्राधिकारी को देगा जिसने वह अनुज्ञप्ति दी थी :

परन्तु जहां चालन-अनुज्ञप्ति किसी व्यक्ति को एक से अधिक वर्ग या वर्णन के मोटर यान चलाने के लिए प्राधिकृत करती है और उपधारा (1) के अधीन दिया गया आदेश उसे किसी विनिर्दिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यान चलाने से निरर्ह करता है वहां अनुज्ञापन प्राधिकारी चालन-अनुज्ञप्ति पर निरर्हता पृष्ठांकित करेगा और उसे धारक को लौटा देगा ।

(3) अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति उस आदेश की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा और ऐसा अपील प्राधिकारी अनुज्ञापन प्राधिकारी को सूचना देगा तथा किसी भी पक्षकार द्वारा अपेक्षा किए जाने पर उसकी सुनवाई करेगा और ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे किसी अपील प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया आदेश अंतिम होगा  

20. न्यायालय की निरर्हित करने की शक्ति-(1) जब कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए या ऐसे अपराध के लिए, जिसके करने में मोटर यान का उपयोग किया गया था, दोषसिद्ध किया गया है तब वह न्यायालय, जिसने उसे दोषसिद्ध किया है, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य दंड अधिरोपित करने के अतिरिक्त उस व्यक्ति को, जो इस प्रकार दोषसिद्ध किया गया है, सभी वर्गों या वर्णन के यान, या किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के ऐसे यानों को जो ऐसी अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट हैं, चलाने के लिए, कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने के लिए उतनी अवधि के लिए जितनी न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, निरर्ह घोषित कर सकेगा :

परन्तु धारा 183 के अधीन दंडनीय किसी अपराध की बाबत ऐसा कोई आदेश पहले या दूसरे अपराध के लिए नहीं दिया जाएगा 

(2) जहां किसी व्यक्ति को धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ग), धारा 134 या धारा 185 के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, वहां ऐसे किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध करने वाला न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निरर्हता का आदेश करेगा और यदि अपराध धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ग) या धारा 134 के संबंध में है, तो ऐसी निरर्हता एक मास से अन्यून की अवधि के लिए होगी और यदि अपराध धारा 185 के संबंध में है तो ऐसी निरर्हता छह मास से अन्यून की अवधि के लिए होगी ।

(3) न्यायालय, जब तक वह विशेष कारणों से, जिन्हें लेखबद्ध किया जाएगा, अन्यथा आदेश देना उचित न समझे, किसी ऐसे व्यक्ति को निरर्ह करने का आदेश देगा-

(क) जो धारा 184 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किए जाने पर उस धारा के अधीन दंडनीय अपराध के लिए पुनः दोषसिद्ध किया गया है ; या

(ख) जो धारा 189 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है ; या

                (ग) जो धारा 192 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है :

परन्तु निरर्हता की अवधि खंड (क) में निर्दिष्ट दशा में पांच वर्ष से या खंड (ख) में निर्दिष्ट दशा में दो वर्ष से या खंड (ग) में निर्दिष्ट दशा में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी ।

(4) धारा 184 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किए गए किसी व्यक्ति को निरर्ह करने का आदेश देने वाला न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि चाहे ऐसे व्यक्ति ने धारा 9 की उपधारा (3) में यथानिर्दिष्ट चालन सक्षमता का परीक्षण पहले उत्तीर्ण कर लिया हो या  कर लिया होवह तब तक निरर्ह बना रहेगा जब तक वह निरर्हता का आदेश दिए जाने के पश्चात् वैसे परीक्षण में अनुज्ञापन प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में उत्तीर्ण नहीं हो जाता 

(5) वह न्यायालय, जिसको सामान्यतः उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकार के अपराध के लिए हुई किसी दोषसिद्धि की अपील की जा सकेगी, उस उपधारा के अधीन किए गए निरर्हता के किसी आदेश को इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या उसमें परिवर्तन कर सकेगा कि उस दोषसिद्धि के विरूद्ध कोई अपील नहीं होगी जिसके परिणामस्वरूप निरर्हता का ऐसा आदेश किया गया था ।

21. कुछ मामलों में चालन-अनुज्ञप्ति का निलंबन-(1) जहां किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध मेंजो धारा 184 के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया जा चुका हैकिसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस अभिकथन पर कोई मामला रजिस्टर किया गया है कि ऐसे व्यक्ति ने किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यान को ऐसे खतरनाक रूप से चलाने के कारणजैसे कि उक्त धारा 184 में निर्दिष्ट हैएक या अधिक व्यक्तियों की मृत्यु या उन्हें घोर उपहति कारित की हैवहां ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे वर्ग या वर्णन के मोटर यान के संबंध में पारित चालन-अनुज्ञप्ति-

(क) उस तारीख से, जिसको मामला रजिस्टर किया जाता है, छह मास की अवधि तक के लिए, या

(ख) यदि ऐसा व्यक्ति पूर्वोक्त अवधि की समाप्ति के पूर्व उन्मोचित या दोषमुक्त किया गया है तो, यथास्थिति, ऐसे उन्मोचन या दोषमुक्ति तक के लिए, निलंबित हो जाएगी ।

(2) जहां किसी व्यक्ति द्वारा धारित चालन-अनुज्ञप्ति, उपधारा (1) के उपबंधों के आधार पर निलंबित हो जाती है, वहां वह पुलिस अधिकारी, जिसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट मामला रजिस्टर किया है, ऐसे निलंबन की जानकारी उस न्यायालय को देगा जो ऐसे अपराध का संज्ञान करने के लिए सक्षम है और तब ऐसा न्यायालय चालन-अनुज्ञप्ति को कब्जे में ले लेगा, उस पर निलंबन का पृष्ठांकन करेगा और ऐसे पृष्ठांकन के तथ्य की सूचना उस नवीकरण प्राधिकारी को देगा जिसने वह अनुज्ञप्ति दी थी या उसका अंतिम बार नवीकरण किया था ।

(3) जहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट व्यक्ति दोषमुक्त या उन्मोचित किया जाता है, वहां न्यायालय, चालन-अनुज्ञप्ति के निलम्बन के संबंध में ऐसी चालन-अनुज्ञप्ति पर किए गए पृष्ठांकन को रद्द करेगा ।

(4) यदि किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यान के संबंध में कोई चालन-अनुज्ञप्ति उपधारा (1) के अधीन निलंबित की जाती है तो ऐसी अनुज्ञप्ति को धारण करने वाला व्यक्ति ऐसे विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को चलाने के लिए कोई अनुज्ञप्ति धारण करने से या उसे अभिप्राप्त करने से तब तक के लिए विवर्जित किया जाएगा जब तक कि चालन-अनुज्ञप्ति का निलंबन प्रवृत्त रहता है ।

22. दोषसिद्धि पर चालन-अनुज्ञप्ति का निलंबन या रद्दकरण-(1) धारा 20 की उपधारा (3) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जहां धारा 21 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यान को ऐसे खतरनाक रूप से चलाने के कारण, जैसा कि धारा 184 में निर्दिष्ट है, एक या अधिक व्यक्तियों की मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, वहां ऐसे व्यक्ति को दोषसिद्ध करने वाला न्यायालय ऐसे व्यक्ति द्वारा धारित चालन-अनुज्ञप्ति को, जहां तक वह उस वर्ग या वर्णन के मोटर यान के संबंध में है, ऐसी अवधि के लिए रद्द या निलंबित कर सकेगा, जो वह ठीक समझे ।

(2) धारा 20 की उपधारा (2) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई व्यक्ति, जो धारा 185 के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध किया जा चुका है, उस धारा के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए पुनः दोषसिद्ध किया जाता है तो ऐसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि करने वाला न्यायालय ऐसे व्यक्ति द्वारा धारित चालन-अनुज्ञप्ति को, आदेश द्वारा, रद्द करेगा ।

(3) यदि कोई चालन-अनुज्ञप्ति इस धारा के अधीन रद्द या निलंबित की जाती है तो न्यायालय चालन-अनुज्ञप्ति को अपनी अभिरक्षा में ले लेगा, उस पर, यथास्थिति, रद्दकरण या निलंबन का पृष्ठांकन करेगा और इस प्रकार पृष्ठांकित चालन-अनुज्ञप्ति उस प्राधिकारी को भेजेगा जिसने अनुज्ञप्ति जारी की थी या उसका अंतिम बार नवीकरण किया था, और वह प्राधिकारी अनुज्ञप्ति की प्राप्ति पर अनुज्ञप्ति को अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा और निलंबित अनुज्ञप्ति की दशा में अनुज्ञप्ति को निलंबन की अवधि समाप्त हो जाने पर, उसके धारक को, ऐसी वापसी के लिए उसके द्वारा किए गए आवेदन पर, वापस करेगा :

परन्तु ऐसी कोई अनुज्ञप्ति तब तक वापस नहीं की जाएगी जब तक कि उसका धारक निलंबन की अवधि समाप्त होने के पश्चात् उस अनुज्ञापन प्राधिकारी के, जिसने अनुज्ञप्ति जारी की थी या उसका अंतिम बार नवीकरण किया था, समाधानप्रद रूप में धारा 9 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट यान चलाने की सक्षमता का परीक्षण नए सिरे से नहीं दे देता तथा उसमें उत्तीर्ण नहीं हो जाता और धारा 8 की उपधारा (3) में यथा निर्दिष्ट प्ररूप और रीति में चिकित्सा प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं कर देता ।

(4) यदि किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यान को चलाने के लिए कोई अनुज्ञप्ति इस धारा के अधीन रद्द या निलंबित की जाती है तो ऐसी अनुज्ञप्ति को धारण करने वाला व्यक्ति ऐसे विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को चलाने के लिए कोई अनुज्ञप्ति धारण करने से या उसे अभिप्राप्त करने से तब तक के लिए विवर्जित हो जाएगा जब तक चालन-अनुज्ञप्ति का रद्दकरण या निलंबन प्रवृत्त रहता है ।

23. निरर्हता आदेश का प्रभाव-(1) ऐसा व्यक्ति, जिसकी बाबत धारा 19 या धारा 20 के अधीन कोई निरर्हता आदेश दिया गया है, उस सीमा तक और उतनी अवधि के लिए, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट हो, चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने से विवर्जित रहेगा और आदेश की तारीख को यदि ऐसे व्यक्ति द्वारा कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारित है, तो वह उस सीमा तक और उस अवधि के दौरान प्रभावशील न रहेगी ।

(2) धारा 20 के अधीन दिए गए निरर्हता आदेश का प्रवर्तन, उस आदेश के विरुद्ध, अथवा उस दोषसिद्धि के विरुद्ध, जिसके फलस्वरूप वह आदेश दिया गया था, अपील के लम्बित रहने के दौरान तब तक निलंबित या मुल्तवी नहीं किया जाएगा जब तक कि अपील न्यायालय वैसा निदेश न दे ।

(3) कोई व्यक्ति, जिसकी बाबत कोई निरर्हता आदेश दिया गया है उस आदेश की तारीख से छह मास की समाप्ति के पश्चात् किसी समय उस न्यायालय या अन्य प्राधिकारी को जिसने आदेश दिया था, निरर्हता हटाने के लिए आवेदन कर सकेगा तथा, यथास्थिति, वह न्यायालय या प्राधिकारी सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए या तो निरर्हता आदेश को रद्द कर सकेगा या उसमें परिवर्तन कर सकेगा :

परन्तु जहां न्यायालय या अन्य प्राधिकारी इस धारा के अधीन निरर्हता के किसी आदेश को रद्द करने या उसमें कोई परिवर्तन करने से इंकार करता है, वहां उसके अधीन दूसरे आवेदन को, ऐसे इंकार किए जाने की तारीख से तीन मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व ग्रहण नहीं किया जाएगा ।

24. पृष्ठांकन-(1) वह न्यायालय या प्राधिकारी, जिसने निरर्हता का आदेश दिया है, निरर्हता के आदेश की तथा उस अपराध के लिए दोषसिद्धि की, जिसके संबंध में निरर्हता का आदेश दिया गया है, विशिष्टियां उस चालन-अनुज्ञप्ति पर, यदि कोई हो, पृष्ठांकित करेगा या करवाएगा जो निरर्हित व्यक्ति द्वारा धारित है तथा धारा 23 की उपधारा (3) के अधीन दिए गए निरर्हता के आदेश को रद्द करने या उसमें परिवर्तन करने की विशिष्टियां भी उसी प्रकार पृष्ठांकित की जाएंगी ।

(2) जिस न्यायालय ने किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, विहित किया जाए, चाहे ऐसी दोषसिद्धि के संबंध में निरर्हता का आदेश दिया गया हो या नहीं, ऐसी दोषसिद्धि की विशिष्टियां उस चालन-अनुज्ञप्ति पर पृष्ठांकित करेगा या करवाएगा जो दोषसिद्ध किए गए व्यक्ति द्वारा धारित है ।

(3) जो व्यक्ति, उपधारा (2) के अधीन विहित किसी अपराध के लिए अभियुक्त है, वह न्यायालय में हाजिर होते समय अपनी चालन-अनुज्ञप्ति यदि वह उसके पास हो, अपने साथ लाएगा ।

(4) जहां किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध और तीन मास से अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाता हैवहां दंडादेश अधिनिर्णीत करने वाला न्यायालयसंबंधित व्यक्ति की चालन-अनुज्ञप्ति पर ऐसे दंडादेश के तथ्य को पृष्ठांकित करेगा और अभियोजन प्राधिकारी ऐसे पृष्ठांकन के तथ्य की सूचना उस प्राधिकारी को भेजेगाजिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी या अंतिम बार नवीकृत की थी 

(5) जब चालन-अनुज्ञप्ति किसी न्यायालय द्वारा पृष्ठांकित की जाती है या पृष्ठांकित कराई जाती है, तब ऐसा न्यायालय पृष्ठांकन की विशिष्टियां उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को भेजेगा जिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी या अंतिम बार नवीकृत की थी ।

(6) जहां किसी न्यायालय द्वारा की गई दोषसिद्धि या आदेश के विरुद्ध, जो चालन-अनुज्ञप्ति पर पृष्ठांकित किया गया है, किसी अपील में अपील न्यायालय दोषसिद्धि या आदेश में परिवर्तन कर देता है या उसे अपास्त कर देता है वहां अपील न्यायालय उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को सूचित करेगा जिसने चालन-अनुज्ञप्ति दी थी या अंतिम बार नवीकृत की थी और ऐसा प्राधिकारी पृष्ठांकन में संशोधन करेगा या संशोधन करवाएगा ।

25. पृष्ठांकन का उतारा जाना और पृष्ठांकन रहित चालन-अनुज्ञप्ति का दिया जाना-(1) किसी चालन-अनुज्ञप्ति पर किए गए पृष्ठांकन को उसके धारक द्वारा अभिप्राप्त चालन-अनुज्ञप्ति की किसी नई या दूसरी प्रति पर तब तक उतारा जाएगा जब तक कि धारक इस धारा के उपबंधों के अधीन पृष्ठांकन रहित चालन-अनुज्ञप्ति दिए जाने के लिए हकदार नहीं हो जाता ।

(2) जहां यह अपेक्षित है कि चालन-अनुज्ञप्ति पर पृष्ठांकन किया जाए और वह चालन-अनुज्ञप्ति उस न्यायालय या प्राधिकारी के पास नहीं है जिसके द्वारा पृष्ठांकन किया जाना है वहां-

(क) यदि वह व्यक्ति, जिसकी बाबत पृष्ठांकन किया जाना है, उस समय किसी चालन-अनुज्ञप्ति का धारक है तो वह उस चालन-अनुज्ञप्ति को न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष पांच दिन के भीतर या इतने अधिक समय के भीतर पेश करेगा जितना न्यायालय या प्राधिकारी नियत करे ; या

(ख) यदि उस समय वह चालन-अनुज्ञप्ति का धारक नहीं है किन्तु वह उसके पश्चात् चालन-अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त करता है तो वह उस चालन-अनुज्ञप्ति को अभिप्राप्त करने के पश्चात् पांच दिन के भीतर उसे न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष पेश करेगा,

और यदि विनिर्दिष्ट समय के भीतर चालन-अनुज्ञप्ति पेश नहीं की जाती तो वह उक्त समय की समाप्ति पर तब तक प्रभावहीन रहेगी जब तक वह पृष्ठांकन के प्रयोजन के लिए पेश नहीं कर दी जाती ।

(3) जिस व्यक्ति की चालन-अनुज्ञप्ति पर पृष्ठांकन किया गया है, यदि ऐसे पृष्ठांकन के पश्चात् लगातार तीन वर्ष की अवधि के दौरान उसके विरुद्ध कोई अतिरिक्त पृष्ठांकन का आदेश नहीं किया गया है तो वह अपनी चालन-अनुज्ञप्ति का अभ्यर्पण करने पर और पांच रुपए की फीस देने पर ऐसी नई चालन-अनुज्ञप्ति, जिसमें कोई पृष्ठांकन न हो, प्राप्त करने का हकदार होगा :

परन्तु यदि पृष्ठांकन धारा 112 में निर्दिष्ट गतिसीमा का उल्लंघन करने वाले अपराध की बाबत ही हैं, तो ऐसा व्यक्ति पृष्ठांकन की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति पर ऐसी नई चालन-अनुज्ञप्ति जिसमें कोई पृष्ठांकन न हो प्राप्त करने का हकदार होगा :

परन्तु यह और कि क्रमशः तीन वर्ष और एक वर्ष की उक्त अवधि की गणना करने में वह अवधि आवर्जित की जाएगी जिसके दौरान उक्त व्यक्ति चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए निरर्ह कर दिया गया था 

26. राज्य चालान-अनुज्ञप्ति रजिस्टरों का रखा जाना-(1) प्रत्येक राज्य सरकार ऐसे प्ररूप में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, राज्य सरकार के अकुलायन प्राधिकारियों द्वारा दी गई और नवीकृत चालन-अनुज्ञप्तियों की बाबत एक रजिस्टर रखेगी जो राज्य चालन-अनुज्ञप्ति रजिस्टर के रूप में ज्ञात होगा और उसमें निम्नलिखित विशिष्टियां अन्तर्विष्ट होंगी, अर्थात् :-

                (क) चालन-अनुज्ञप्तियों के धारकों के नाम और पते ;

                (ख) अनुज्ञप्ति संख्यांक ;

                (ग) अनुज्ञप्तियों के दिए जाने या नवीकरण की तारीख ।

                (घ) अनुज्ञप्तियों की समाप्ति की तारीख ;

                (ङ) यानों के वर्ग और प्रकार जो चलाए जाने के लिए प्राधिकृत किए गए हैं ; और

                (च) ऐसी अन्य विशिष्टियां, जो केन्द्रीय सरकार विहित करे ।

(2) प्रत्येक राज्य सरकार, राज्य चालन-अनुज्ञप्ति रजिस्टर की  [मुद्रित प्रति या ऐसे अन्य प्ररूप में प्रति, जिसकी केन्द्रीय सरकार अपेक्षा करे] केन्द्रीय सरकार को प्रदत्त करेगी और ऐसे रजिस्टर में समय-समय पर किए गए सभी परिवर्तनों और अन्य संशोधनों के बारे में अविलंब केंद्रीय सरकार को सूचित करेगी ।

(3) राज्य चालन-अनुज्ञप्ति रजिस्टर ऐसी रीति में रखा जाएगा जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए ।

27. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, निम्नलिखित की बाबत नियम बना सकेगी-

 [(क) धारा 2क की उपधारा (2) के अधीन ई-गाड़ी और ई-रिक्शा से संबंधित विनिर्देश ;]

 [(कक)] धारा 3 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट शर्तें ;

(उस प्ररूप कीजिसमें शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किया जा सकेगावह जानकारी जो उसमें अंतर्विष्ट होगी और उन दस्तावेजों का जो धारा 8 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट आवेदन के साथ प्रस्तुत किए जाएंगेउपबंध करना ;

(ग) धारा 8 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट चिकित्सा प्रमाणपत्र के प्ररूप का उपबंध करना ;

(घ) धारा 8 की उपधारा (5) में निर्दिष्ट परीक्षण के लिए विशिष्टियों का उपबंध करना ;

(उस प्ररूप काजिसमें चालन-अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किया जा सकेगावह जानकारी जो उसमें अंतर्विष्ट होगी और उन दस्तावेजों का जो धारा 9 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट आवेदन के साथ प्रस्तुत किए जाएंगेउपबंध करना ;

(च) धारा 9 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट चालन सक्षमता परीक्षण की बाबत विशिष्टियों का उपबंध करना ;

 [(चचऐसी रीति और शर्तें जिनके अधीन रहते हुए चालन-अनुज्ञप्तिधारा 9 की उपधारा (10) के अधीन जारी की जा सकेगी ;]

(छ) उन व्यक्तियों की, जिनको परिवहन यान चलाने के लिए इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी, न्यूनतम शैक्षिक अर्हताएं और वह समय जिसके भीतर ऐसी अर्हताएं, ऐसे व्यक्तियों द्वारा अर्जित की जानी हैं, विनिर्दिष्ट करना ;

(ज) धारा 10 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुज्ञप्तियों के प्ररूप और अंतर्वस्तु का उपबंध करना ;

(झ) धारा 11 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन के प्ररूप और अंतर्वस्तु का तथा आवेदन के साथ प्रस्तुत किए जाने वाले दस्तावेजों और प्रभारित की जाने वाली फीस का उपबंध करना ;

(ऐसी शर्तों का उपबंध करना जिनके अधीन रहते हुए धारा 11 के अधीन किए गए आवेदन को धारा 9 लागू होगी ;

(ट) धारा 15 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन के प्ररूप और अंतर्वस्तु का तथा धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे आवेदन के साथ लगाए जाने वाले दस्तावेजों का उपबंध करना ;

(ठ) धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन, अनुज्ञप्ति देने के लिए प्राधिकारी का उपबंध करना ;

(ड) धारा 8 की उपधारा (2), धारा 9 की उपधारा (2) और धारा 15 की उपधारा (3) और उपधारा (4) के अधीन शिक्षार्थी अनुज्ञप्ति के दिए जाने के लिए और चालन-अनुज्ञप्तियों के दिए जाने और नवीकरण के लिए और मोटर यान चलाने में शिक्षा देने वाले विद्यालयों या स्थापनों को विनियमित करने के प्रयोजन के लिए अनुज्ञप्तियों के दिए जाने और उनके नवीकरण के लिए संदेय फीस विनिर्दिष्ट करना ;

(ढ) धारा 19 की उपधारा (1) के खंड (च) के प्रयोजनों के लिए कार्य विनिर्दिष्ट करना ;

(ण) धारा 24 की उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए इस अधिनियम के अधीन अपराधों को विनिर्दिष्ट करना ;

(त) धारा 26 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं विषयों का उपबंध करना ;

(थ) कोई अन्य विषय जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया गया है या विहित किया जाए ।

28. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार धारा 27 में विनिर्दिष्ट विषयों से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध हो सकेगा-

                (क) अनुज्ञापन प्राधिकारियों और अन्य विहित प्राधिकारियों की नियुक्ति, अधिकारिता, नियंत्रण और कृत्य ;

                (ख) इस अध्याय के अधीन की जाने वाली अपीलों का संचालन और उनकी सुनवाई, ऐसी अपीलों की बाबत देय फीसें और ऐसी फीसों का वापस दिया जाना ;

परन्तु इस प्रकार नियत की जाने वाली कोई फीस पच्चीस रुपए से अधिक नहीं होगी ;

(ग) किन्हीं खोई, नष्ट या कटी-फटी अनुज्ञप्तियों के बदले में दूसरी अनुज्ञप्तियों का दिया जाना, ऐसी फोटो के बदले में, जो पुरानी पड़ गई हैं, नई फोटो रखना और उनके लिए प्रभारित की जाने वाली फीसें ;

(घ) परिवहन यानों के ड्राइवरों द्वारा लगाए जाने वाले बैज और पहनी जाने वाली वर्दी और बैजों के लिए दी जाने वाली फीसें ;

(ङ) धारा 8 की उपधारा (3) के अधीन कोई चिकित्सा प्रमाणपत्र देने के लिए संदेय फीसें ;

(च) इस अध्याय के अधीन देय सब फीसों को या उनके किसी भाग को देने से विहित व्यक्तियों या विहित वर्गों के व्यक्तियों की छूट ;

(छ) एक अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञप्तियों की विशिष्टियों की अन्य अनुज्ञापन प्राधिकारियों को संसूचना ;

(ज) ऐसे व्यक्तियों के कर्तव्य, कृत्य और आचरण जिनकी परिवहन यान चलाने के लिए अनुज्ञप्तियां दी जाती हैं ;

(झ) रोड रोलरों के ड्राइवरों को इस अध्याय के या इसके अधीन बनाए गए नियमों के सब या किन्हीं उपबंधों से छूट ;

(ञ) वह रीति जिसमें राज्य चालन-अनुज्ञप्ति रजिस्टर धारा 26 के अधीन रखे जाएंगे ;

(ट) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।

अध्याय 3

मंजिली गाड़ियों के कंडक्टरों का अनुज्ञापन

29. कंडक्टर अनुज्ञप्ति की आवश्यकता-(1) कोई व्यक्ति किसी मंजिली गाड़ी के कंडक्टर के रूप में तभी कार्य करेगा जब उसके पास ऐसी प्रभावी कंडक्टर अनुज्ञप्ति है जो ऐसे कंडक्टर के रूप में कार्य करने के लिए उसे प्राधिकृत करने के लिए उसके नाम दी गई है ; और कोई भी व्यक्ति किसी मंजिली गाड़ी के कंडक्टर के रूप में कार्य करने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को नियोजित या अनुज्ञात नहीं करेगा जो इस प्रकार अनुज्ञप्त नहीं है ।

(2) राज्य सरकार ऐसी शर्तें विहित कर सकेगी जिन पर उपधारा (1), किसी मंजिली गाड़ी के ऐसे ड्राइवर को, जो कंडक्टर के कृत्यों का पालन कर रहा है या ऐसे व्यक्ति को, जो अधिक से अधिक एक मास की अवधि के लिए कंडक्टर के रूप में कार्य करने के लिए नियोजित किया गया है, लागू नहीं होगी ।

30. कंडक्टर अनुज्ञप्ति का दिया जाना-(1) कोई व्यक्ति, जिसके पास ऐसी न्यूनतम शैक्षिक अर्हताएं हैं जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं और जो धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन निरर्हित नहीं है और जो उस समय कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण या अभिप्राप्त करने के लिए निरर्हित नहीं है, कंडक्टर अनुज्ञप्ति उसे दिए जाने के लिए उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा जिसकी अधिकारिता ऐसे क्षेत्र पर है जिसमें वह मामूली तौर पर निवास करता है या कारबार चलाता है ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा और उसमें ऐसी जानकारी दी जाएगी जो विहित की जाए ।

(3) कंडक्टर अनुज्ञप्ति के लिए प्रत्येक आवेदन के साथ ऐसे प्ररूप में, जैसा विहित किया जाए, चिकित्सा प्रमाणपत्र होगा जो रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा हस्ताक्षरित होगा और उसके साथ आवेदक की नई फोटो की दो साफ प्रतियां भी होंगी ।

(4) इस अध्याय के अधीन दी गई कंडक्टर अनुज्ञप्ति ऐसे प्ररूप में होगी और उसमें ऐसी विशिष्टियां होंगी जो विहित की जाएं और वह उस पूरे राज्य में प्रभावी होगी जिसमें वह दी गई है ।

(5) कंडक्टर अनुज्ञप्ति के लिए और उसके प्रत्येक नवीकरण के लिए फीस, चालन-अनुज्ञप्ति की फीस की आधी होगी ।

31. कंडक्टर अनुज्ञप्ति के दिए जाने के लिए निरर्हताएं-(1) कोई भी व्यक्ति, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, न तो कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण करेगा और न वह उसे दी जाएगी ।

(2) अनुज्ञापन प्राधिकारी कंडक्टर अनुज्ञप्ति देने से इंकार कर सकेगा-

                (क) यदि आवेदक के पास न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता नहीं है ;

                (ख) यदि आवेदक द्वारा पेश किए गए चिकित्सा प्रमाणपत्र से यह प्रकट होता है कि वह कंडक्टर के रूप में कार्य करने के लिए शारीरिक दृष्टि से ठीक हालत में नहीं है ; तथा

                (ग) यदि आवेदक द्वारा धारित पहले की कोई कंडक्टर अनुज्ञप्ति प्रतिसंहृत की गई थी ।

32. कंडक्टर अनुज्ञप्ति का रोग या निःशक्तता के आधारों पर प्रतिसंहरण-यदि किसी अनुज्ञापन प्राधिकारी के पास यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हैं कि किसी कंडक्टर अनुज्ञप्ति का धारक किसी ऐसे रोग या निःशक्तता से ग्रस्त है जिससे कि उसके ऐसी अनुज्ञप्ति धारण करने के लिए स्थायी रूप से अयोग्य हो जाने की संभावना है तो कंडक्टर अनुज्ञप्ति किसी भी समय किसी अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा प्रतिसंहृत की जा सकेगी और जब किसी कंडक्टर अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत करने वाला प्राधिकारी वह प्राधिकारी नहीं है जिसने कंडक्टर अनुज्ञप्ति दी थी तब वह कंडक्टर अनुज्ञप्ति देने वाले प्राधिकारी को अनुज्ञप्ति के ऐसे प्रतिसंहृत करने की संसूचना देगा :

परन्तु किसी अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत करने के पूर्व, अनुज्ञापन प्राधिकारी ऐसी अनुज्ञप्ति धारण करने वाले व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा ।

33. कंडक्टर अनुज्ञप्तियों से इंकार आदि करने वाले आदेश तथा उनसे अपीलें-(1) जब अनुज्ञापन प्राधिकारी कंडक्टर अनुज्ञप्ति देने से या उसका नवीकरण करने से इंकार करता है या उसे प्रतिसंहृत करता है तब वह आदेश द्वारा ऐसा करेगा जिसकी संसूचना, यथास्थिति, आवेदक या धारक को दी जाएगी और जिसमें ऐसे इंकार या प्रतिसंहरण के कारण लिखित रूप में दिए जाएंगे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति अपने पर आदेश की तामील होने के तीस दिन के भीतर विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा, जो ऐसे व्यक्ति और उस प्राधिकारी को, जिसने आदेश दिया है, सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् अपील का विनिश्चय करेगा और अपील प्राधिकारी का विनिश्चय, उस प्राधिकारी पर आबद्धकर होगा, जिसने वह आदेश दिया था ।

34. अनुज्ञापन प्राधिकारी की निरर्हित करने की शक्ति-(1) यदि किसी अनुज्ञापन प्राधिकारी की यह राय है कि कंडक्टर के रूप में किसी कंडक्टर अनुज्ञप्ति के धारक के पूर्वाचरण के कारण यह आवश्यक है कि उसे कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण करने अथवा अभिप्राप्त करने से निरर्हित कर दिया जाए तो वह ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, उस व्यक्ति को कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने से किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए, जो एक वर्ष से अधिक न होगी, निरर्हित करने का आदेश दे सकेगा :

परन्तु अनुज्ञप्ति के धारक को निरर्हित करने के पूर्व, अनुज्ञापन प्राधिकारी ऐसी अनुज्ञप्ति धारण करने वाले व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा ।

(2) ऐसे किसी आदेश के दिए जाने पर, यदि कंडक्टर अनुज्ञप्ति के धारक द्वारा उस कंडक्टर अनुज्ञप्ति का पहले ही अभ्यर्पण नहीं कर दिया गया है तो वह उसे उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को तुरंत अभ्यर्पित कर देगा, जिसने वह आदेश दिया है और वह प्राधिकारी उस अनुज्ञप्ति को तब तक अपने पास रखे रहेगा जब तक निरर्हता समाप्त नहीं हो जाती या हटा नहीं दी जाती ।

(3) जब कंडक्टर अनुज्ञप्ति के धारक को इस धारा के अधीन निरर्हित करने वाला प्राधिकारी वह प्राधिकारी नहीं है जिसने अनुज्ञप्ति दी थी, तब वह कंडक्टर अनुज्ञप्ति देने वाले प्राधिकारी को ऐसी निरर्हता के तथ्य की सूचना देगा ।

(4) उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, अपने पर आदेश की तामील होने के तीस दिन के भीतर, विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा, जो ऐसे व्यक्ति और उस प्राधिकारी को, जिसने आदेश दिया है, सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् अपील का विनिश्चय करेगा और अपील प्राधिकारी का विनिश्चय, उस प्राधिकारी पर आबद्धकर होगा, जिसने वह आदेश दिया था ।

35. न्यायालय की निरर्हित करने की शक्ति-(1) जब कंडक्टर अनुज्ञप्ति को धारण करने वाला कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, तब वह न्यायालय, जिसने उसे दोषसिद्ध किया है, विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य दंड अधिरोपित करने के अतिरिक्त, उस व्यक्ति को, जो इस प्रकार दोषसिद्ध किया गया है, कोई कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण करने से उतनी अवधि के लिए, जितनी वह न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, निरर्ह घोषित कर सकेगा ।

(2) वह न्यायालय जिसमें इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए हुई किसी दोषसिद्धि की अपील होती है, निचले न्यायालय द्वारा दिए गए निरर्हता के किसी आदेश को अपास्त कर सकेगा या उसमें परिवर्तन कर सकेगा, और वह न्यायालय, जिसमें मामूली तौर पर ऐसे न्यायालय से अपीलें होती हैं, उस न्यायालय द्वारा दिए गए निरर्हता के किसी आदेश को इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या उसमें परिवर्तन कर सकेगा कि उस दोषसिद्धि के विरुद्ध कोई अपील नहीं होती जिसके संबंध में वह आदेश दिया गया था ।

36. अध्याय 2 के कुछ उपबंधों का कंडक्टर अनुज्ञप्ति को लागू होना-धारा 6 की उपधारा (2), धारा 14, धारा 15 और धारा 23, धारा 24 की उपधारा (1), और धारा 25 के उपबंध कंडक्टर अनुज्ञप्ति के संबंध में यथासंभव वैसे ही लागू होंगे जैसे वे चालन-अनुज्ञप्ति के संबंध में लागू होते हैं ।

37. व्यावृत्तियां-यदि मंजिली गाड़ी के (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) कंडक्टर के रूप में कार्य करने के लिए कोई अनुज्ञप्ति किसी राज्य में दी जाती है और वह इस अधिनियम के प्रारंभ से तुरंत पूर्व प्रभावी है, तो ऐसे प्रारंभ के होते हुए भी वह उस अवधि के लिए प्रभावी बनी रहेगी, जिसके लिए वह उस दशा में प्रभावी होती जब यह अधिनियम पारित न किया गया होता और ऐसी प्रत्येक अनुज्ञप्ति की बाबत यह समझा जाएगा कि वह इस अध्याय के अधीन ऐसे दी गई अनुज्ञप्ति है मानो यह अध्याय उस तारीख को प्रवृत्त था, जिस तारीख को वह अनुज्ञप्ति दी गई थी ।

38. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध हो सकेगा :-

(क) इस अध्याय के अधीन अनुज्ञापन प्राधिकारियों और अन्य विहित प्राधिकारियों की नियुक्ति, अधिकारिता, नियंत्रण और कृत्य ;

(ख) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए कंडक्टर के कृत्यों का पालन करने वाले मंजिलों गाड़ियों के ड्राइवरों को और कंडक्टरों के रूप में कार्य करने के लिए अस्थायी रूप से नियोजित व्यक्तियों को धारा 29 की उपधारा (1) के उपबंधों से छूट दी जा सकेगी ;

(ग) कंडक्टरों की न्यूनतम शैक्षिक अर्हताएं, उनके कर्तव्य और कृत्य और उन व्यक्तियों के आचरण, जिनको कंडक्टर अनुज्ञप्तियां दी गई हैं ;

(घ) कंडक्टर अनुज्ञप्तियों के लिए अथवा ऐसी अनुज्ञप्तियों के नवीकरण के लिए आवेदन के प्ररूप और वे विशिष्टियां, जो उसमें हो सकेंगी ;

(ङ) वह प्ररूप, जिसमें कंडक्टर अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी या उनका नवीकरण किया जा सकेगा और वे विशिष्टियां, जो उसमें हो सकेंगी ;

(च) किन्हीं खोई, नष्ट या कटी-फटी अनुज्ञप्तियों के बदले में दूसरी अनुज्ञप्तियों का दिया जाना ; ऐसी फोटो के बदले में, जो पुरानी पड़ गई हैं, नई फोटो रखना और उनके लिए प्रभारित  की जाने वाली फीसें ;

(छ) इस अध्याय के अधीन की जाने वाली अपीलों का संचालन और उनकी सुनवाई, ऐसी अपीलों की बाबत देय फीसें और ऐसी फीसों का वापस दिया जाना :

                परन्तु इस प्रकार नियत की जाने वाली कोई फीस पच्चीस रुपए से अधिक नहीं होगी ;

                (ज) मंजिली गाड़ियों के कंडक्टरों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी और लगाए जाने वाले बैज, और ऐसे बैजों के लिए दी जाने वाली फीसें ;

(झ) रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायियों द्वारा धारा 30 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रमाणपत्रों का दिया जाना, और ऐसे प्रमाणपत्रों के प्ररूप ;

(ञ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए और वह विस्तार जिस तक अन्य राज्य में दी गई कंडक्टर अनुज्ञप्ति राज्य में प्रभावी होगी ;

                (ट) कंडक्टर अनुज्ञप्तियों की विशिष्टियों की एक प्राधिकारी से अन्य प्राधिकारियों को संसूचना ; और

                (ठ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।

अध्याय 4

मोटर यानों का रजिस्ट्रीकरण

39. रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकता-किसी सार्वजनिक स्थान में अथवा किसी अन्य स्थान में किसी मोटर यान को कोई व्यक्ति तभी चलाएगा और कोई मोटर यान का स्वामी तभी चलवाएगा या चलाने की अनुज्ञा देगा जब वह यान इस अध्याय के अनुसार रजिस्ट्रीकृत हो तथा यान का रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र निलंबित या रद्द न किया गया हो और यान पर रजिस्ट्रीकरण चिह्न विहित रीति से प्रदर्शित हो :

परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए किसी व्यवहारी के कब्जे में के मोटर यान को लागू नहीं होगी ।

40. रजिस्ट्रीकरण कहां किया जाना है-धारा 42, धारा 43 और धारा 60 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक मोटर यान का स्वामी यान को उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी से रजिस्टर करवाएगा जिसकी अधिकारिता में उसका निवास स्थान या कारबार का स्थान है जहां कि यान आमतौर पर रखा जाता है ।

41. रजिस्ट्रीकरण कैसे होना है-(1) मोटर यान के स्वामी द्वारा या उसकी ओर से रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा और उसके साथ ऐसी दस्तावेजें, विशिष्टियां और जानकारी दी हुई होंगी और वह ऐसी अवधि के भीतर किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं :

परन्तु जहां मोटर यान संयुक्त रूप से एक से अधिक व्यक्तियों के स्वामित्वाधीन है, वहां आवेदन सभी स्वामियों की ओर से एक स्वामी द्वारा किया जाएगा और इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसे आवेदक को ऐसे मोटर यान का स्वामी समझा जाएगा ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन के साथ ऐसी फीस होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(3) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उस मोटर यान के, जिसे उसने रजिस्टर किया हो, स्वामी को, एक रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र ऐसे प्ररूप में देगा और उसमें ऐसी विशिष्टियां और जानकारी दी हुई होंगी और वह ऐसी रीति में होगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(4) रजिस्ट्रीकरण के प्रमाणपत्र में सम्मिलित की जाने के लिए अपेक्षित अन्य विशिष्टियों के अतिरिक्त, वह उस मोटर यान का प्रकार भी विनिर्दिष्ट करेगा जो ऐसे प्रकार का है जिसे केन्द्रीय सरकार, मोटर यान के डिजाइन, निर्माण और उपयोग को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।

(5) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रमाणपत्र की विशिष्टियां एक रजिस्टर में प्रविष्ट करेगा जिसे ऐसे प्ररूप और रीति में रखा जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(6) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उस यान में प्रदर्शित किए जाने के लिए उस यान को (इस अधिनियम में रजिस्ट्रीकरण चिह्न के रूप में निर्दिष्ट) एक पहचान चिह्न देगा जो ऐसे अक्षर समूहों में से किसी एक समूह से मिलकर बनेगा और उसके पश्चात् ऐसे अक्षर और अंक होंगे जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस राज्य को समय-समय पर आबंटित करती है, और उन्हें मोटर यान पर ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में प्रदर्शित किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(7) इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् परिवहन यान से भिन्न मोटर यान के बारे में उपधारा (3) के अधीन दिया गया रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए ऐसे प्रमाणपत्र के दिए जाने की तारीख से केवल पंद्रह वर्ष की अवधि तक विधिमान्य रहेगा और उसका नवीकरण किया जा सकेगा ।

(8) परिवहन यान से भिन्न मोटर यान के स्वामी द्वारा या उसकी ओर से रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण के लिए आवेदन ऐसी अवधि के भीतर और ऐसे प्ररूप में किया जाएगा और उसमें ऐसी विशिष्टियां और जानकारी होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(9) उपधारा (8) में निर्दिष्ट आवेदन के साथ ऐसी फीस होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(10) धारा 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उपधारा (8) के अधीन आवेदन प्राप्त करने पर, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का नवीकरण पांच वर्ष की अवधि के लिए कर सकेगा और उस तथ्य की सूचना, यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है तो मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा ।

(11) यदि स्वामी, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (8) के अधीन आवेदन विहित कालावधि के भीतर करने में असफल रहता है, तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, स्वामी से, उस कार्रवाई के बदले जो धारा 177 के अधीन उसके विरुद्ध की जाए, एक सौ रुपए से अनधिक उतनी रकम का जो उपधारा (13) के अधीन विहित की जाए, संदाय करने की अपेक्षा कर सकेगा :

परन्तु धारा 177 के अधीन कार्रवाई स्वामी के विरुद्ध तब की जाएगी जब स्वामी उक्त रकम का संदाय करने में असफल     रहा हो ।

(12) जहां स्वामी ने उपधारा (11) के अधीन रकम का संदाय कर दिया हो, वहां धारा 177 के अधीन कोई कार्रवाई उसके विरुद्ध नहीं की जाएगी ।

(13) उपधारा (11) के प्रयोजनों के लिए, राज्य सरकार उपधारा (1) या उपधारा (6) के अधीन आवेदन करने में स्वामी की ओर से हुए विलंब की अवधि को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न रकमें विहित कर सकेगी ।

(14) रजिस्ट्रीकरण का दूसरा प्रमाणपत्र दिए जाने के लिए आवेदन  [अंतिम रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी] को ऐसे प्ररूप में किया जाएगा और उसमें ऐसी विशिष्टियां और जानकारी होंगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

42. राजनयिक अधिकारियों आदि के मोटर यानों के रजिस्ट्रीकरण के लिए विशेष उपबंध-(1) जहां किसी मोटर यान के रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी राजनयिक अधिकारी अथवा कौंसलीय अधिकारी द्वारा अथवा उसकी ओर से धारा 41 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन किया गया है वहां उस धारा की उपधारा (3) या उपधारा (6) में किसी बात के होते हुए भी रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उस यान को ऐसी रीति से और ऐसी प्रक्रिया के अनुसार रजिस्टर करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उपधारा (3) के अधीन इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा उपबंधित की जाए तथा उन नियमों में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार उस यान पर प्रदर्शित करने के लिए उसे एक विशेष रजिस्ट्रीकरण चिह्न देगा तथा इस बात का प्रमाणपत्र (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र कहा गया है) देगा कि वह यान इस धारा के अधीन रजिस्टर कर दिया गया है ; और इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत कोई यान जब तक किसी राजनयिक अधिकारी अथवा कौंसलीय अधिकारी की संपत्ति बना रहता है, इस अधिनियम के अधीन अन्यथा रजिस्टर किए जाने के लिए अपेक्षित नहीं होगा ।

(2) यदि इस धारा के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई यान किसी राजनयिक अधिकारी अथवा कौंसलीय अधिकारी की संपत्ति नहीं रहता है तो इस धारा के अधीन दिया गया रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र भी प्रभावी नहीं रहेगा ; और तब धारा 39 और धारा 40 के उपबंध लागू होंगे ।

(3) केन्द्रीय सरकार, राजनयिक अधिकारियों और कौंसलीय अधिकारियों के मोटर यानों के रजिस्ट्रीकरण के लिए रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी द्वारा ऐसे यानों को रजिस्टर करने में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के बारे में, उस प्ररूप के बारे में जिसमें ऐसे यानों के रजिस्ट्रीकरण के प्रमाणपत्र दिए जाने हैं, उस रीति के बारे में जिससे ऐसे रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उन यानों के स्वामियों को भेजे जाने हैं और ऐसे यानों के लिए विशेष रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के बारे में नियम बना सकेगी ।

(4) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, राजनयिक अधिकारी" या कौंसलीय अधिकारी" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे केन्द्रीय सरकार ने उस रूप में मान्यता प्रदान की है और यदि ऐसा प्रश्न उठता है कि वह व्यक्ति ऐसा अधिकारी है या नहीं तो उस प्रश्न पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

43. अस्थायी रजिस्ट्रीकरण-(1) धारा 40 में किसी बात के होते हुए भी, किसी मोटर यान का स्वामी विहित रीति से यान को अस्थायी रूप में रजिस्टर कराने के लिए और विहित रीति से अस्थायी रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र और अस्थायी रजिस्ट्रीकरण चिह्न दिए जाने के लिए किसी रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी अथवा अन्य विहित प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया रजिस्ट्रीकरण, अधिक से अधिक एक मास की अवधि के लिए विधिमान्य होगा, और नवीकरणीय नहीं होगा :

परन्तु जहां इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत कोई मोटर यान चेसिस है जिसमें कोई बाडी नहीं लगाई गई है और जिसमें  [बाडी लगाने के लिए या स्वामी के नियंत्रण के बाहर अकल्पित परिस्थितियों में] उसे कर्मशाला में एक मास की उक्त अवधि से आगे रखा जाता है वहां ऐसी फीस, यदि कोई हो, जो विहित की जाए देने पर उस अवधि को इतनी अतिरिक्त अवधि या अवधियों तक बढ़ाया जा सकेगा जो, यथास्थिति, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या अन्य विहित प्राधिकारी अनुज्ञात करे ।

 [(3) उस दशा में जिसमें मोटर यान अवक्रय करार, पट्टे या आड्मान के अधीन धारित है रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या अन्य विहित प्राधिकारी ऐसे यान के रजिस्ट्रीकरण का अस्थायी प्रमाणपत्र देगा जिसमें उस व्यक्ति का, जिसके साथ स्वामी ने ऐसा करार किया है, पूरा नाम और पता सुपाठ्य और प्रमुख रूप में दिया जाएगा ।]

44. रजिस्ट्रीकरण के समय यान का पेश किया जाना-रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी किसी मोटर यान को रजिस्टर करने के संबंध में या परिवहन यान से भिन्न मोटर यान की बाबत रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण के संबंध में कोई कार्रवाई करने से पूर्व उस व्यक्ति से जिसने, यथास्थिति, उस यान के रजिस्ट्रीकरण के लिए या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण के लिए आवेदन किया है, यह अपेक्षा करेगा कि वह उस यान को या तो स्वयं उसके समक्ष अथवा ऐसे प्राधिकारी के समक्ष पेश करे जिसे राज्य सरकार, आदेश द्वारा, नियुक्त करे जिससे रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी अपना यह समाधान कर सके कि आवेदन में दी हुई विशिष्टियां सही हैं और वह यान इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं की पूर्ति करता है ।

45. रजिस्ट्रीकरण से या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण से इंकार-रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, आदेश द्वारा किसी मोटर यान का रजिस्ट्रीकरण करने से या किसी मोटर यान (परिवहन यान से भिन्न) की बाबत रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का नवीकरण करने से उस दशा में इंकार कर सकता है यदि इन दोनों में से किसी भी दशा में, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह मोटर यान चुराया हुआ है या वह यान यांत्रिक रूप से खराब है या वह इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं का पालन करने में असफल रहा है या यदि आवेदक यान के किसी पूर्व रजिस्ट्रीकरण की विशिष्टियां प्रस्तुत करने में असफल रहता है या, यथास्थिति, यान के रजिस्ट्रीकरण के लिए या उसके रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण के लिए आवेदन में गलत विशिष्टियां देता है और, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उस आवेदक को जिसके यान के रजिस्ट्रीकरण से इंकार किया जाता है या जिसके रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के नवीकरण के लिए आवेदन को नामंजूर किया गया है, ऐसे आदेश की एक प्रति, ऐसे इंकार या नामंजूरी के कारणों सहित देगा ।

46. रजिस्ट्रीकरण की भारत में प्रभावशीलता-धारा 47 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ऐसे मोटर यान की बाबत, जो किसी राज्य में इस अध्याय के अनुसार रजिस्ट्रीकृत है, यह अपेक्षित न होगा कि उसे भारत में अन्यत्र रजिस्टर कराया जाए और ऐसे यान की बाबत इस अधिनियम के अधीन जारी किया गया या प्रवृत्त रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र भारत में सर्वत्र प्रभावशील होगा ।

47. दूसरे राज्यों को ले जाए जाने पर नए रजिस्ट्रीकरण चिह्न का दिया जाना-(1) जब कोई मोटर यान, जो एक राज्य में रजिस्ट्रीकृत है, दूसरे राज्य में बारह मास से अधिक अवधि के लिए रखा गया है, तब उस यान का स्वामी नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न दिए जाने के लिए ऐसी अवधि के भीतर और ऐसे प्ररूप में जिसमें ऐसी विशिष्टियां होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को आवेदन करेगा जिसकी अधिकारिता में वह यान उस समय है और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को प्रस्तुत करेगा :

परंतु इस उपधारा के अधीन किसी आवेदन के साथ निम्नलिखित होगा,-

                (i) धारा 48 के अधीन अभिप्राप्त आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र, या

                (ii) उस दशा में जहां ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया गया है वहां,-

                                (क) धारा 48 की उपधारा (2) के अधीन प्राप्त रसीद ; या

                (ख) यदि यान के स्वामी ने इस निमित्त आवेदन धारा 48 में निर्दिष्ट रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा भेजा है तो उसके द्वारा प्राप्त डाक रसीद, जिसके साथ यह घोषणा होगी कि उसे ऐसे प्राधिकारी से ऐसी कोई संसूचना प्राप्त नहीं हुई है जिसमें ऐसा प्रमाणपत्र दिए जाने से इंकार किया गया है, या उससे ऐसे किसी निदेश का पालन करने की अपेक्षा की गई है जिसके अधीन ऐसा प्रमाणपत्र दिया जा सकेगा :

परन्तु यह और कि ऐसे मामले में जहां मोटर यान अवक्रय, पट्टा या आड्मान करार के अधीन धारित है वहां इस उपधारा के अधीन आवेदन के साथ उस व्यक्ति का आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र होगा जिससे ऐसा करार किया गया है और ऐसे व्यक्ति से जिसके साथ ऐसा करार किया गया है, ऐसा प्रमाणपत्र अभिप्राप्त करने की बाबत धारा 51 के उपबंध, जहां तक हो सके, लागू होंगे ।

(2) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, जिसको उपधारा (1) के अधीन आवेदन किया गया है, धारा 62 के अधीन प्राप्त विवरणियों का, यदि कोई हों, ऐसा सत्यापन करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, उस यान पर तब से प्रदर्शित और दर्शित किए जाने के लिए धारा 41 की उपधारा (6) में यथाविनिर्दिष्ट एक रजिस्ट्रीकरण चिह्न उस यान को देगा और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को आवेदक को लौटाने के पूर्व उस पर वह चिह्न दर्ज करेगा, और उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के साथ पत्र-व्यवहार करके, जिसके द्वारा वह यान उससे पूर्व रजिस्टर किया गया था, उस यान के रजिस्ट्रीकरण को उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के अभिलेखों से अपने अभिलेखों में अंतरित करा लेने की व्यवस्था करेगा ।

(3) जहां मोटर यान अवक्रय या पट्टा या आड्मान करार के अधीन धारित है वहां रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उस मोटर यान को उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के पश्चात् उस व्यक्ति को, जिसका नाम रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में ऐसे व्यक्ति के रूप में विनिर्दिष्ट है जिसके साथ रजिस्ट्रीकृत स्वामी ने अवक्रय या पट्टा या आड्मान करार किया है, (उक्त रजिस्ट्रीकरण चिह्न दिए जाने के तथ्य की जानकारी ऐसे व्यक्ति के उस पते पर जो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट है, रसीदी रजिस्ट्री डाक से ऐसे व्यक्ति को सूचना भेज कर) देगा ।

(4) राज्य सरकार धारा 65 के अधीन ऐसे नियम बना सकेगी जिनमें उस राज्य में रजिस्टर न किए गए ऐसे मोटर यान के स्वामी से, जो उस राज्य में लाया जाता है या उस समय वहां है, यह अपेक्षा की जाए, कि वह उस राज्य के विहित प्राधिकारी को, उस मोटर यान और उसके रजिस्ट्रीकरण के बारे में ऐसी जानकारी दे, जैसी विहित की जाए ।

(5) यदि स्वामी विहित अवधि के भीतर उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने में असफल रहता है तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, स्वामी से उस कार्रवाई के बदले में जो धारा 177 के अधीन उसके विरुद्ध की जाए, एक सौ रुपए से अनधिक उतनी रकम का, जो उपधारा (7) के अधीन विहित की जाए, संदाय करने की अपेक्षा कर सकेगा :

परन्तु धारा 177 के अधीन स्वामी के विरुद्ध कार्रवाई तभी की जाएगी जब स्वामी उक्त रकम का संदाय करने में असफल रहता है ।

(6) जहां स्वामी ने उपधारा (5) के अधीन रकम का संदाय कर दिया है, वहां उसके विरुद्ध धारा 177 के अधीन कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी ।

(7) उपधारा (5) के प्रयोजनों के लिए, राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने में स्वामी की ओर से हुए विलंब की कालावधि को ध्यान में रखते हुए, भिन्न-भिन्न रकमें विहित कर सकेगी ।

48. आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र-(1) किसी मोटर यान का स्वामी धारा 47 की उपधारा (1) के अधीन नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न दिए जाने के लिए आवेदन करते समय, या जहां किसी मोटर यान को उसके रजिस्ट्रीकरण के राज्य से भिन्न किसी राज्य में अंतरित किया जाना हो, वहां ऐसे यान का अंतरक धारा 50 की उपधारा (1) के अधीन अंतरण की रिपोर्ट करते समय उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को, जिसने यान को रजिस्ट्रीकृत किया था, एक आवेदन ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए इस प्रभाव का प्रमाणपत्र (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र कहा गया है) जारी करने के लिए कहेगा कि रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को, यथास्थिति, यान को नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में स्वामित्व के अंतरण की विशिष्टियां प्रविष्ट करने पर कोई आक्षेप नहीं है ।

(2) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त करने पर एक रसीद ऐसे प्ररूप में जारी करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(3) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त करने पर, ऐसी जांच करने और ऐसे आवेदक से ऐसे निदेशों का, जो वह ठीक समझे, अनुपालन करने की अपेक्षा करने के पश्चात् और आवेदन की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर आवेदक को लिखित आदेश द्वारा संसूचित करेगा कि उसने आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र दे दिया है या देने से इंकार कर दिया है :

परन्तु कोई रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र देने से तब तक इंकार नहीं करेगा जब तक कि वह ऐसा करने के कारणों को लेखबद्ध न कर दे और उसकी एक प्रति आवेदक को न दे दी गई हो ।

(4) जहां उपधारा (3) में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र देने से इंकार नहीं करता है या आवेदक को इंकार की संसूचना नहीं देता है वहां यह समझा जाएगा कि रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी ने आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र दे दिया है ।

(5) आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र देने या देने से इंकार करने के पूर्व रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी पुलिस से इस बात की लिखित रिपोर्ट प्राप्त करेगा कि संबंधित मोटर यान की चोरी के संबंध में किसी मामले की रिपोर्ट नहीं की गई है या कोई मामला लंबित नहीं है और यह सत्यापित करेगा कि क्या उस मोटर यान की बाबत सरकार को देय सभी रकमों का, जिसके अंतर्गत सड़क कर भी है, संदाय कर दिया गया है और ऐसी अन्य बातों पर विचार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

 [(6) यान का स्वामी अपने यान की चोरी के बारे में रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को यथाशीघ्र लिखित सूचना भी देगा जिसमें उस पुलिस थाने का नाम भी होगा जहां चोरी की रिपोर्ट की गई थी और रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी आक्षेप न होने प्रमाणपत्र, रजिस्ट्रीकरण, स्वामित्व के अंतरण या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी करने के लिए किसी आवेदन का निपटारा करते समय ऐसी रिपोर्ट पर ध्यान देगा ।]

49. निवास स्थान या कारबार के स्थान का परिवर्तन-(1) यदि किसी मोटर यान का स्वामी उस स्थान पर, जिसका पता यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में अभिलिखित है, निवास करना छोड़ देता है या अपने कारबार का स्थान बंद कर देता है तो वह अपने पते के ऐसे किसी परिवर्तन के तीस दिन के अंदर अपने नए पते की सूचना ऐसे प्ररूप में और ऐसे दस्तावेजों सहित जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को जिसने रजिस्ट्रीकरण प्रमाणप्रत्र दिया था या यदि नया पता किसी अन्य रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी की अधिकारिता के भीतर है तो उस अन्य रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा तथा उसके साथ ही रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को भी, यथास्थिति, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या अन्य रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को भेज देगा जिससे नया पता उसमें प्रविष्ट किया जा सके ।

(2) यदि मोटर यान का स्वामी संबद्ध रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को अपने नए पते की सूचना उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर देने में असफल रहता है तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्वामी से उस कार्रवाई के बदले में, जो धारा 177 के अधीन उसके विरुद्ध की जाए, एक सौ रुपए से अनधिक उतनी रकम का, जो उपधारा (4) के अधीन विहित की जाए, संदाय करने की अपेक्षा कर सकेगा :

परन्तु धारा 177 के अधीन स्वामी के विरुद्ध कार्रवाई तभी की जाएगी जब वह उक्त रकम का संदाय करने में असफल रहता है ।

(3) जहां किसी व्यक्ति ने उपधारा (2) के अधीन रकम का संदाय कर दिया है वहां उसके विरुद्ध धारा 177 के अधीन कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी ।

(4) उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए राज्य सरकार, अपने नए पते की सूचना देने में हुए विलंब की अवधि को ध्यान में रखते हुए, भिन्न-भिन्न रकमें विहित कर सकेगी ।

(5) उपधारा (1) के अधीन सूचना की प्राप्ति पर, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, ऐसा सत्यापन करने के पश्चात् जो वह ठीक समझे, नए पते को रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट करवाएगा ।

(6) मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी से भिन्न रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, जो ऐसी प्रविष्टि करता है, परिवर्तित पते की संसूचना मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा ।

(7) उपधारा (1) की कोई बात उस दशा में लागू नहीं होगी जब रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में अभिलिखित पते में परिवर्तन, ऐसी अस्थायी अनुपस्थिति के कारण हुआ है जिसकी अवधि छह मास से अधिक होनी आशयित नहीं है या जब मोटर यान का रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में अभिलिखित पते पर न तो उपयोग किया जाता है और न वहां से हटाया जाता है । 

50. स्वामित्व का अंतरण-(1) जब इस अध्याय के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी मोटर यान का स्वामित्व अंतरित किया जाता    है तब,-

                (क) अंतरक-

(i) उसी राज्य के भीतर रजिस्ट्रीकृत यान की दशा में, अंतरण के चौदह दिन के भीतर अंतरण के तथ्य की रिपोर्ट ऐसे प्ररूप में और ऐसे दस्तावेजों सहित और ऐसी रीति से जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा जिसकी अधिकारिता के भीतर वह अंतरण किया जाने वाला है और उसी समय उक्त रिपोर्ट की एक प्रति अंतरिती को भेजेगा ; और

(ii) राज्य के बाहर रजिस्ट्रीकृत यान की दशा में, अंतरण के पैंतालीस दिन के भीतर, उपखंड (1) में निर्दिष्ट रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को-

                (अ) धारा 48 के अधीन प्राप्त आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र भेजेगा ; या

                (आ) ऐसे मामले में, जहां ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया गया है,-

                                (1) धारा 48 की उपधारा (2) के अधीन प्राप्त रसीद, या

                (2) यदि उसने धारा 48 में निर्दिष्ट रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को इस निमित्त आवेदन रसीदी रजिस्ट्री-डाक द्वारा भेजा है तो अंतरक द्वारा प्राप्त डाक रसीद, भेजेगा जिसके साथ यह घोषणा होगी कि उसे ऐसे प्राधिकारी से ऐसी कोई संसूचना प्राप्त नहीं हुई है जिसमें ऐसा प्रमाणपत्र दिए जाने से इंकार किया गया है या ऐसे किसी निदेश का पालन करने की उससे अपेक्षा की गई है जिसके अधीन ऐसा प्रमाणपत्र दिया जा सकेगा ;

(ख) अंतरिती उस अंतरण की रिपोर्ट अंतरण के तीस दिन के अंदर उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा जिसकी अधिकारिता के भीतर, यथास्थिति, उसका निवास-स्थान या कारबार का स्थान है जहां यान सामान्यतया रखा जाता है, और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र विहित फीस तथा उसे द्वारा अंतरक से प्राप्त रिपोर्ट की एक प्रति के साथ उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को भेजेगा जिससे स्वामित्व के अंतरण की विशिष्टियां रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट की जा सकें ।

(2) जहां-

                (क) उस व्यक्ति की जिसके नाम में मोटर यान रजिस्ट्रीकृत है, मृत्यु हो जाती है, या

                (ख) मोटर यान सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी सार्वजनिक नीलामी में क्रय या अर्जित किया     गया है,

वहां यान के कब्जे को उत्तराधिकार में प्राप्त करने वाला व्यक्ति या, यथास्थिति, वह व्यक्ति जिसने मोटर यान क्रय या अर्जित किया है, अपने नाम में यान के स्वामित्व का अंतरण कराने के प्रयोजन के लिए उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को, जिसकी अधिकारिता में, यथास्थिति, उसका निवास स्थान या कारबार का स्थान है, जहां यान सामान्यतया रखा जाता है, ऐसी रीति में ऐसी विहित फीस सहित और ऐसी अवधि के भीतर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, आवेदन करेगा ।

                (3) यदि अंतरक या अंतरिती रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को अंतरण के तथ्य की रिपोर्ट, यथास्थिति, उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर करने में असफल रहता है, या यदि वह व्यक्ति जिससे उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने की अपेक्षा की जाती है (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् अन्य व्यक्ति कहा गया है) विहित अवधि के भीतर ऐसा आवेदन करने में असफल रहता है तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यथास्थिति, अंतरक या अंतरिती या अन्य व्यक्ति से ऐसी कार्रवाई के बदले में जो धारा 177 के अधीन उसके विरुद्ध की जाए, एक सौ रुपए से अनधिक उतनी रकम का, जो उपधारा (5) के अधीन विहित की जाए, संदाय करने की अपेक्षा कर सकेगा :

                परन्तु धारा 177 के अधीन कोई कार्रवाई, यथास्थिति, अंतरक या अंतरिती या अन्य व्यक्ति के विरुद्ध वहां की जाएगी जहां वह उक्त रकम को संदाय करने में असफल रहता है ।

                (4) जहां किसी व्यक्ति ने उपधारा (3) के अधीन रकम का संदाय कर दिया है, वहां उसके विरुद्ध धारा 177 के अधीन कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी ।

                (5) उपधारा (3) के प्रयोजनों के लिए, राज्य सरकार, मोटर यान के स्वामित्व के अंतरण के तथ्य की रिपोर्ट देने में अंतरक या अंतरिती या उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने में अन्य व्यक्ति की ओर से किए गए विलंब की अवधि को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न रकमें विहित कर सकेगी ।

                (6) उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट की या उपधारा (2) के अधीन आवेदन की प्राप्ति पर रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी स्वामित्व के अंतरण को रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट करा सकेगा ।

                (7) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, जो ऐसी कोई प्रविष्टि करता है, स्वामित्व के अंतरण की संसूचना अंतरक को, और यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है तो मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा ।

51. अवक्रय करार, आदि के अधीन मोटर यान के बारे में विशेष उपबंध-(1) जहां उस मोटर यान के रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन किया जाता है, जो अवक्रय, पट्टा या आड्मान करार (जिस इस धारा में इसके पश्चात् उक्त करार कहा गया है) के अधीन धारित है, वहां रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उक्त करार के अस्तित्व की बात रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट करेगा ।

(2) जहां इस अध्याय के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी मोटर यान का स्वामित्व अंतरित हो जाता है और अंतरिती किसी व्यक्ति के साथ उक्त करार करता है वहां  [अंतिम रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी] उक्त करार के पक्षकारों से ऐसे प्ररूप में जो केन्द्रीय सरकार विहित करे, आवेदन मिलने पर, उक्त करार के अस्तित्व की बात रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट करेगा  [और इस निमित्त सूचना, मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को भेजी जाएगी, यदि अंतिम रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है]

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन की गई कोई प्रविष्टि सम्बद्ध पक्षकारों द्वारा ऐसे प्ररूप में, जो केन्द्रीय सरकार विहित करे, आवेदन किए जाने पर उक्त करार की समाप्ति का सबूत दिए जाने पर 1[अंतिम रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी] द्वारा रद्द की जा सकेगी 2[और इस निमित्त सूचना, मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को भेजी जाएगी, यदि अंतिम रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है] ।

(4) जो मोटर यान उक्त करार के अधीन धारित है उसके स्वामित्व के अंतरण का प्रविष्टि रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में उस व्यक्ति की लिखित सम्मति से ही की जाएगी जिसका नाम रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में ऐसे व्यक्ति के रूप में विनिर्दिष्ट है जिसके साथ रजिस्ट्रीकृत स्वामी ने उक्त करार किया है न कि अन्यथा ।

(5) जहां वह व्यक्ति, जिसका नाम रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में ऐसे व्यक्ति के रूप में विनिर्दिष्ट है जिसके साथ रजिस्ट्रीकृत स्वामी ने उक्त करार किया है, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी का समाधान कर देता है कि उसने उक्त करार के उपबंधों के अधीन  [रजिस्ट्रीकृत स्वामी से उस यान का कब्जा रजिस्ट्रीकृत स्वामी के व्यतिक्रम के कारण ले लिया है] और रजिस्ट्रीकृत स्वामी रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र देने से इंकार करता है या फरार हो गया है वहां ऐसा प्राधिकारी रजिस्ट्रीकृत स्वामी को (उसके उस पते से जो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दिया हुआ है, रसीदी रजिस्ट्री डाक से सूचना भेजकर) ऐसा अभ्यावेदन करने का, जैसा वह करना चाहे, अवसर देने के पश्चात् तथा इस बात के होते हुए भी कि रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उसके समक्ष पेश नहीं किया गया है उस रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को रद्द कर सकेगा और उस व्यक्ति के नाम में, जिसके साथ रजिस्ट्रीकृत स्वामी ने उक्त करार किया है, नया रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी कर सकेगा :

परन्तु मोटर यान की बाबत रजिस्ट्रीकरण का नया प्रमाणपत्र तभी जारी किया जाएगा जब उस व्यक्ति ने विहित फीस दे दी हो, अन्यथा नहीं :

परन्तु यह और कि ऐसे मोटर यान की बाबत, जो परिवहन यान से भिन्न है, जारी किया गया रजिस्ट्रीकरण का नया प्रमाणपत्र केवल उस शेष अवधि के लिए विधिमान्य होगा जिसके लिए इस उपधारा के अधीन रद्द किया गया प्रमाणपत्र प्रवृत्त रहता ।

(6) रजिस्ट्रीकृत स्वामी धारा 81 के अधीन परमिट के नवीकरण के लिए या धारा 41 की उपधारा (14) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी करने के लिए या धारा 47 के अधीन नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के लिए  [या यान को किसी अन्य राज्य को ले जाए जाने के लिए या यान को एक वर्ग से दूसरे वर्ग में संपरिवर्तित किए जाने के समय, या धारा 48 के अधीन आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र जारी किए जाने के लिए या धारा 49 के अधीन निवास स्थान या कारबार के स्थान के परिवर्तन के लिए या धारा 52 के अधीन यान में परिवर्तन के लिए] समुचित प्राधिकारी को आवेदन करने के पूर्व उस व्यक्ति को, जिसके साथ रजिस्ट्रीकृत स्वामी ने उक्त करार किया है (ऐसे व्यक्ति को इस धारा में इसके पश्चात् वित्तपोषक कहा गया है) आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् प्रमाणपत्र कहा गया है) जारी किए जाने के लिए आवेदन करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा और उपधारा (8) और उपधारा (9) के प्रयोजनों के लिए, किसी परमिट के संबंध में समुचित प्राधिकारी" से वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जो इस अधिनियम द्वारा ऐसे परमिट का नवीकरण करने के लिए प्राधिकृत है और रजिस्ट्रीकरण के संबंध में वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जो इस अधिनियम द्वारा रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी करने या नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के लिए प्राधिकृत है ।

(7) उपधारा (6) के अधीन आवेदन की प्राप्ति से सात दिन के भीतर वित्तपोषक, आवेदन किए गए प्रमाणपत्र को जारी कर सकेगा या ऐसे कारणों से जारी करने से इंकार कर सकेगा, जो लेखबद्ध किए जाएंगे और आवेदक को संसूचित किए जाएंगे, और जहां वित्तपोषक उक्त सात दिन की अवधि के भीतर प्रमाणपत्र जारी करने में असफल रहता है और आवेदक को प्रमाणपत्र जारी किए जाने से इंकार करने के कारणों को संसूचित करने में भी असफल रहता है वहां उस प्रमाणपत्र को जिसके लिए आवेदन किया गया है, वित्तपोषक द्वारा जारी किया गया समझा जाएगा ।

(8) रजिस्ट्रीकृत स्वामी धारा 81 के अधीन किसी परमिट का नवीकरण करने के लिए समुचित प्राधिकारी को आवेदन करते समय या धारा 41 की उपधारा (14) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी करने के लिए या धारा 47 के अधीन नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के लिए आवेदन करते समय ऐसे आवेदन के साथ उस प्रमाणपत्र को, यदि कोई हो, जो उपधारा (7) के अधीन अभिप्राप्त किया गया है, देगा या जहां ऐसा प्रमाणपत्र अभिप्राप्त नहीं किया गया है वहां, यथास्थिति, वित्तपोषक से उस उपधारा के अधीन प्राप्त संसूचना देगा या ऐसी घोषणा करेगा कि उसने उस उपधारा में विनिर्दिष्ट सात दिन की अवधि के भीतर वित्तपोषक से कोई संसूचना प्राप्त नहीं की है ।

(9) समुचित प्राधिकारी, उस यान के संबंध में जो उक्त करार के अधीन धारित है किसी परमिट के नवीकरण के लिए या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी करने के लिए या नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न देने के लिए आवेदन प्राप्त करने पर, इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए-

(क) ऐसी दशा में, जब वित्तपोषक ने आवेदन किए गए प्रमाणपत्र को जारी करने से इंकार कर दिया हो, आवेदक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् या तो,-

                (i) परमिट का नवीकरण कर सकेगा या नवीकरण करने से इंकार कर सकेगा ; या

                (ii) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति जारी कर सकेगा या जारी करने से इंकार कर सकेगा ; या

                (iii) नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न दे सकेगा या देने से इंकार कर सकेगा ;

(ख) किसी अन्य दशा में,-

                (i) परमिट का नवीकरण कर सकेगा ; या

                (ii) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणप्रत्र की दूसरी प्रति जारी कर सकेगा ; या

                (iii) नया रजिस्ट्रीकरण चिह्न दे सकेगा ।

                (10) निम्नलिखित के संबंध में रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में कोई प्रविष्टि करने वाला रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी वित्तपोषक को  [रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वाराट यह संसूचित करेगा कि ऐसी प्रविष्टि कर दी गई है, अर्थात् :-

                                (क) किसी मोटर यान का अवक्रय, पट्टा या आड्मान करार ; या

                                (ख) किसी प्रविष्टि का उपधारा (3) के अधीन रद्दकरण ; या

                                (ग) किसी मोटर यान के स्वामित्व के अंतरण का अभिलेखन ; या

                                (घ) किसी मोटर यान में कोई परिवर्तन ; या

                                (ङ) किसी मोटर यान के रजिस्ट्रीकरण का निलंबन या रद्दकरण ; या

                                (च) पते में परिवर्तन ।

                 [(11) रजिस्ट्रीकृत प्राधिकारी, नए यान का रजिस्ट्रीकरण करते समय या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की दूसरी प्रति या आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र या रजिस्ट्रीकरण का अस्थायी प्रमाणपत्र जारी करते समय या ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र जारी करते समय या उसका नवीकरण करते समय या परमिट में किसी अन्य मोटर यान से संबंधित प्रविष्टियों को प्रतिस्थापित करते समय ऐसे संव्यवहार की सूचना वित्तपोषक को देगा ।

                (12) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, जहां वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन प्रविष्टि करते समय या उपधारा (3) के अधीन उक्त प्रविष्टि को रद्द करते समय या उपधारा (5) के अधीन नया रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करते समय, उसकी संसूचना मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा ।]

 [52. मोटर यान में परिवर्तन-(1) मोटर यान का कोई स्वामी, यान में इस प्रकार का परिवर्तन नहीं करेगा जिससे रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में अंतर्विष्ट विशिष्टियां उन विशिष्टियों से भिन्न हों, जो विनिर्माता द्वारा मूल रूप से विनिर्दिष्ट की गई हों :

परन्तु जहां मोटर यान का स्वामी, भिन्न प्रकार के ईंधन या ऊर्जा के स्रोत से, जिसके अंतर्गत बैटरी, संपीडित प्राकृतिक गैस, सौर शक्ति, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस या कोई अन्य ईंधन या ऊर्जा का कोई स्रोत भी है, प्रचालन को सुकर बनाने के लिए मोटर यान के इंजन या उसके किसी भाग में उपान्तरण, संपरिवर्तन किट लगाकर करता है वहां ऐसा उपान्तरण ऐसी शर्तों के अधीन किया जाएगा, जो विहित की जाएं :

परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार ऐसे संपरिवर्तन किटों के लिए विनिर्देश, अनुमोदनार्थ शर्तें, पश्चरूपांतरण या अन्य संबंधित विषय विहित कर सकेगी :

परन्तु यह भी कि केन्द्रीय सरकार किसी विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए ऊपर विनिर्दिष्ट रीति से भिन्न रीति में यानों में परिवर्तन के लिए छूट प्रदान कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे व्यक्ति को, जो कम-से-कम दस परिवहन यानों का स्वामी है, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, अपने स्वामित्वाधीन किसी यान में ऐसा परिवर्तन करने की अनुज्ञा दे सकेगी जिससे कि वह रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना उसके इंजन को उसी मेक और उसी प्रकार के इंजन से बदल सके ।

(3) जहां किसी मोटर यान में कोई परिवर्तन रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना या उपधारा (2) के अधीन किसी ऐसे अनुमोदन के बिना उसका इंजन बदलने के कारण किया गया है वहां यान का स्वामी ऐसा परिवर्तन किए जाने के चौदह दिन के भीतर परिवर्तन की रिपोर्ट उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को करेगा जिसकी अधिकारिता के भीतर वह निवास करता है और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को विहित फीस के साथ उस प्राधिकारी को भेजेगा जिससे उसमें रजिस्ट्रीकरण की विशिष्टियां प्रविष्ट की जा सकें ।

(4) मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी से भिन्न रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी जो कोई ऐसी प्रविष्टि करता है, प्रविष्टि के ब्यौरों की संसूचना मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा ।

(5) उपधारा (1), उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4) के अधीन बनाए गए उपबंधों के अधीन रहते हुए, अवक्रय करार के अधीन यान रखने वाला कोई व्यक्ति रजिस्ट्रीकृत स्वामी की लिखित सहमति के बिना यान में कोई परिवर्तन नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, परिवर्तन" से यान की संरचना में ऐसा परिवर्तन अभिप्रेत है जिसके परिणामस्वरूप उसके मूल स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है ।]

53. रजिस्ट्रीकरण का निलंबन-(1) यदि किसी रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या अन्य विहित प्राधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी अधिकारिता के अंदर कोई मोटर यान-

(क) ऐसी हालत में है जिसमें सार्वजनिक स्थान में उसके उपयोग से जनता के लिए खतरा पैदा होगा, या वह इस अधिनियम अथवा उसके अधीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं करता है, या

(ख) भाड़े या पारिश्रमिक पर उपयोग किए जाने के लिए विधिमान्य परमिट के बिना इस प्रकार उपयोग में लाया गया है या लाया जा रहा है,

तो वह प्राधिकारी उसके स्वामी को (उसके उस पते से, जो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दिया हुआ है, रसीदी रजिस्ट्री डाक से सूचना भेज कर) ऐसा अभ्यावेदन करने का, जैसा वह करना चाहे, अवसर देने के पश्चात् उस यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को, उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे-

(i) खंड (क) के अधीन आने वाले किसी मामले में, तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक उसके समाधानप्रद रूप में त्रुटियां दूर नहीं कर दी जाती ; और

(ii) खंड (ख) के अधीन आने वाले किसी मामले में अधिक से अधिक चार मास की अवधि के लिए निलंबित कर सकेगा ।

                (2) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी से भिन्न कोई प्राधिकारी जब उपधारा (1) के अधीन ऐसे निलंबन का आदेश देता है तब वह ऐसे निलंबन के तथ्य और उसके कारणों की लिखित सूचना उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा जिसकी अधिकारिता के अंदर वह यान निलंबन के समय है ।

                (3) जब किसी मोटर यान का रजिस्ट्रीकरण उपधारा (1) के अधीन कम से कम एक मास की लगातार अवधि के लिए निलंबित किया गया है तब वह रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, जिसकी अधिकारिता के अंदर वह यान उस समय था जब रजिस्ट्रीकरण का निलंबन किया गया था, उस दशा में, जिसमें वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है, उस निलंबन की सूचना उस प्राधिकारी को देगा ।

                (4) किसी मोटर यान का स्वामी, ऐसे रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या अन्य विहित प्राधिकारी द्वारा, जिसने इस धारा के अधीन उस यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को निलंबित किया है, मांग किए जाने पर उस रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को अभ्यर्पित कर देगा ।

                (5) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र, जो उपधारा (4) के अधीन अभ्यर्पित किया गया है, उस स्वामी को तब लौटाया जाएगा, जब रजिस्ट्रीकरण का निलंबन करने वाला आदेश विखंडित कर दिया गया है, न कि उससे पूर्व ।

54. धारा 53 के अधीन निलंबित रजिस्ट्रीकरण का रद्द किया जाना-जहां धारा 53 के अधीन किसी यान के रजिस्ट्रीकरण का निलंबन किसी अवरोध के बिना, कम से कम छह मास की अवधि तक जारी रहा है, वहां ऐसा रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी जिसकी अधिकारिता के भीतर यान उस समय था जब रजिस्ट्रीकरण निलंबित किया गया था, यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी है तो उस रजिस्ट्रीकरण को रद्द कर सकेगा और यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है, तो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उस प्राधिकारी को भेजेगा, जो उसे रद्द कर सकेगा ।

55. रजिस्ट्रीकरण का रद्द किया जाना-(1) यदि कोई मोटर यान नष्ट हो गया है या स्थायी रूप से इस लायक नहीं रह गया है कि उसका उपयोग किया जा सके, तो स्वामी उस बात की रिपोर्ट चौदह दिन के अन्दर अथवा यथाशक्य शीघ्र, उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को देगा जिसकी अधिकारिता के अंदर, यथास्थिति, उसका निवास स्थान या कारबार का स्थान है, जहां यान सामान्यतया रखा जाता है तथा वह यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को उस प्राधिकारी के पास भेज देगा ।

(2) यदि रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी है तो वह रजिस्ट्रीकरण और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को रद्द करेगा, अथवा यदि वह ऐसा प्राधिकारी नहीं है तो मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को वह रिपोर्ट और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र भेज देगा और वह प्राधिकारी रजिस्ट्रीकरण को रद्द करेगा ।

(3) कोई रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी किसी ऐसे मोटर यान की बाबत, जो उसकी अपनी अधिकारिता के अंदर है, यह आदेश दे सकेगा कि उसकी परीक्षा ऐसे प्राधिकारी द्वारा की जाए जिसे राज्य सरकार आदेश द्वारा नियुक्त करे तथा यदि ऐसी परीक्षा करने पर और उसके स्वामी को (उसके उस पते से, जो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दिया हुआ है रसीदी रजिस्ट्री डाक से सूचना भेज कर) ऐसा अभ्यावेदन करने का, जैसा वह करना चाहे, अवसर देने के पश्चात् उसका यह समाधान हो जाता है कि वह यान ऐसी हालत में है कि वह इस लायक नहीं है कि उसका उपयोग किया जा सके अथवा सार्वजनिक स्थान में उसके उपयोग से जनता के लिए खतरा पैदा होगा और वह इस योग्य भी नहीं है कि उसकी समुचित मरम्मत की जा सके तो वह रजिस्ट्रीकरण को रद्द कर सकेगा ।

(4) यदि रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि कोई मोटर यान स्थायी रूप से भारत से बाहर ले जाया गया है तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी उसके रजिस्ट्रीकरण को रद्द करेगा ।

(5) यदि रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि किसी मोटर यान का रजिस्ट्रीकरण ऐसे दस्तावेजों के आधार पर या तथ्यों के ऐसे व्यपदेशन द्वारा अभिप्राप्त किया गया है जो किसी सारवान् प्रविष्टि के संबंध में मिथ्या थे या उस पर समुदभृत इंजिन संख्यांक या चेसिस संख्यांक रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में प्रविष्ट ऐसे संख्यांक से भिन्न है तो रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी (उसके उस पते पर जो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दिया हुआ है, रसीदी रजिस्ट्री डाक से सूचना भेज कर) स्वामी को ऐसा अभ्यावेदन करने का अवसर देने के पश्चात् जो वह करना चाहे और उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, रजिस्ट्रीकरण रद्द करेगा ।

(6) धारा 54 के अधीन या इस धारा के अधीन किसी मोटर यान के रजिस्ट्रीकरण को रद्द करने वाला रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी यान के स्वामी की उस बात को संसूचना लिखित रूप से देगा और उस यान का स्वामी उस यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को तत्काल उस प्राधिकारी को अभ्यर्पित कर देगा ।

(7) धारा 54 के अधीन या इस धारा के अधीन रद्द करने का आदेश देने वाला रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी, यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी है तो रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को और अपने अभिलेखों में उस यान के बारे में जो कुछ दर्ज किया गया है उसको रद्द करेगा तथा यदि वह मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी नहीं है तो उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र भेजेगा और वह प्राधिकारी रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को और अपने अभिलेखों में उस मोटर यान के बारे में की गई प्रविष्टि को रद्द करेगा ।

(8) इस धारा में और धारा 41, धारा 49, धारा 50, धारा 51, धारा 52, धारा 53 और धारा 54 में मूल रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी" पद से वह रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी अभिप्रेत है, जिसके अभिलेख में यान का रजिस्ट्रीकरण अभिलिखित किया गया है ।

(9) इस धारा में रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र" के अंतर्गत इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन नवीकृत रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र आता है ।

56. परिवहन यानों के ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र-(1) धारा 59 और धारा 60 के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी परिवहन यान को धारा 39 के प्रयोजनों के लिए तभी विधिमान्यतः रजिस्ट्रीकृत समझा जाएगा जब उसके पास ऐसे प्ररूप में जिसमें ऐसी विशिष्टियां और जानकारी दी गई हैं, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ठीक हालत में होने का विहित प्राधिकारी द्वारा या उपधारा (2) में वर्णित किसी प्राधिकृत परीक्षण केन्द्र द्वारा दिया गया इस आशय का प्रमाणपत्र हो कि वह यान इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों की उस समय की सभी अपेक्षाओं की पूर्ति करता है :

परन्तु जहां विहित प्राधिकारी या प्राधिकृत परीक्षण केन्द्र ऐसा प्रमाणपत्र देने से इंकार करता है वहां वह यान के स्वामी को ऐसे इंकार के लिए अपने कारण लिखित रूप में देगा ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्राधिकृत परीक्षण केन्द्र" से ऐसा यान सर्विस केन्द्र या पब्लिक या प्राइवेट गैरेज अभिप्रेत है जिसे राज्य सरकार, ऐसे केन्द्र या गैरेज के प्रचालक के अनुभव, प्रशिक्षण और योग्यता को और उसके परीक्षण उपस्कर तथा परीक्षण कार्मिकों को ध्यान में रखते हुए, केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे केन्द्रों या गैरेजों के विनियमन और नियंत्रण के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार, विनिर्दिष्ट करे ।

(3) उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र उतनी अवधि के लिए प्रभावशील बना रहेगा जितनी केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विहित की जाए ।

(4) विहित प्राधिकारी ठीक हालत में होने के प्रमाणपत्र को ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, किसी भी समय रद्द कर सकेगा यदि उसका समाधान हो जाता है कि जिस यान के संबंध में वह प्रमाणपत्र है वह अब इस अधिनियम की और उसके अधीन बनाए गए नियमों की सभी अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं करता है, और ऐसे रद्द किए जाने पर यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को और यान के बारे में अध्याय 5 के अधीन दिए गए परमिट की बाबत यह समझा जाएगा कि वह तब तक के लिए निलंबित कर दिया गया है जब तक ठीक हालत में होने का नया प्रमाणपत्र अभिप्राप्त नहीं कर लिया जाता :

 [परन्तु ऐसा रद्दकरण किसी विहित प्राधिकारी द्वारा तभी किया जाएगा जब ऐसा विहित प्राधिकारी ऐसी तकनीकी अर्हता धारित करता है, जो विहित की जाए, या जहां विहित प्राधिकारी ऐसी तकनीकी अर्हता धारित नहीं करता है वहां ऐसी अर्हताएं रखने वाले किसी अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर ऐसा किया जा सकेगा ।]

(5) इस अधिनियम के अधीन दिया गया ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र जब तक प्रभावशील बना रहता है तब तक वह संपूर्ण भारत में विधिमान्य होगा ।

57. अपील- [(1) धारा 41, धारा 42, धारा 43, धारा 45, धारा 47, धारा 48, धारा 49, धारा 50, धारा 52, धारा 53, धारा 55 या धारा 56 के अधीन रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस तारीख से तीस दिन के भीतर, जिसको उसे ऐसे आदेश की सूचना प्राप्त हुई है, विहित प्राधिकारी को उस आदेश के विरुद्ध अपील कर सकेगा ।]

(2) अपील प्राधिकारी अपील की सूचना मूल प्राधिकारी को देगा और अपील में मूल प्राधिकारी तथा अपीलार्थ को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात् ऐसे आदेश देगा जो वह ठीक समझता है ।

58. परिवहन यानों के बारे में विशेष उपबंध-(1) केन्द्रीय सरकार (मोटर टैक्सी से भिन्न) किसी परिवहन यान के पहियों में लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार और उनकी बनावट और माडल और अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए, हर बनावट और माडल के परिवहन यान के संबंध में ऐसे यान का  [अधिकतम सकल यान भार] और ऐसे यान की हर धुरी का निरापद अधिकतम धुरी भार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।

(2) रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी मोटर टैक्सी से भिन्न किसी परिवहन यान को रजिस्टर करते समय, रजिस्ट्रीकरण में और अभिलेख में और यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में भी निम्नलिखित विशिष्टियां प्रविष्ट करेगा, अर्थात् :-

                (क) यान का लदान रहित भार ;

                (ख) हर पहिए में लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार ;

                (ग) यान का सकल यान भार और उसकी विभिन्न धुरियों से संबंधित रजिस्ट्रीकृत धुरी भार, और

                (घ) यदि केवल यात्रियों का या माल के साथ-साथ यात्रियों का वहन करने के लिए यान का उपयोग किया जाता है या वह उपयोग करने के लिए अनुकूलित किया जाता है तो उन यात्रियों की संख्या जिनके लिए उसमें बैठने की व्यवस्था है,

तथा यान का स्वामी उन विशिष्टियों को विहित रीति से यान पर प्रदर्शित कराएगा ।

                (3) ऐसे किसी यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में कोई सकल यान भार या उसकी धुरियों में से किसी का ऐसा रजिस्ट्रीकृत धुरी भार प्रविष्ट नहीं किया जाएगा जो ऐसे यान की बनावट और माडल के तथा उसके पहियों पर लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार के संबंध में उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट भार से भिन्न हो :

परन्तु जहां केन्द्रीय सरकार को यह प्रतीत होता है कि उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट भार से अधिक भारी भार किसी विशिष्ट प्रकार के यानों के लिए किसी विशिष्ट क्षेत्र में अनुज्ञात किए जा सकते हैं, वहां केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में आदेश द्वारा निदेश दे सकेगी कि इस उपधारा के उपबंध ऐसे उपांतरणों के साथ लागू होंगे जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(5) किसी यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दर्ज सकल यान भार का उपधारा (3) के उपबंधों के अनुसार, पुनरीक्षण करने की दृष्टि से रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी परिवहन यान के स्वामी से ऐसी प्रक्रिया के अनुसार, जैसी विहित की जाए, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह इतने समय के भीतर, जितना रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करे ।

59. मोटर यान की आयु सीमा नियत करने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, लोक सुरक्षा, सुविधा और इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी मोटर यान का जीवन काल विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिसकी गिनती उसके विनिर्माण की तारीख से की जाएगी जिसके अवसान के पश्चात् उस मोटर यान के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं करता है :

परन्तु केन्द्रीय सरकार, विभिन्न वर्गों या विभिन्न प्रकार के मोटर यानों के लिए भिन्न-भिन्न आयु-सीमाएं विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, किसी मोटर यान के प्रयोजन जैसे, किसी प्रदर्शनी में प्रदर्शन के प्रयोजनों के लिए प्रदर्शन या उपयोग, तकनीकी अनुसंधान या किसी विंटेज कार रैली में भाग लेने के प्रयोजनों के लिए उपयोग को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, किसी वर्ग या प्रकार के मोटर यान को, उस अधिसूचना में कथित प्रयोजन के लिए उपधारा (1) के प्रवर्तन से छूट दे सकेगी ।

(3) धारा 56 में किसी बात के होते हुए भी, कोई भी विहित प्राधिकारी या प्राधिकृत परीक्षण केन्द्र, उपधारा (1) के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना के उपबंधों के उल्लंघन में किसी मोटर यान को ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र नहीं देगा ।

60. केन्द्रीय सरकार के यानों का रजिस्ट्रीकरण-(1) ऐसा प्राधिकारी, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, ऐसे किसी मोटर यान को रजिस्टर कर सकेगा, जो केन्द्रीय सरकार की संपत्ति है या उस समय अनन्य रूप से उस सरकार के नियंत्रण में है और उसका उपयोग देश की रक्षा से संबंधित सरकारी प्रयोजनों के लिए किया जाता है और जो किसी वाणिज्यिक उद्यम से संबद्ध नहीं है और इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत यान की बाबत जब तक वह केन्द्रीय सरकार की संपत्ति बना रहता है, या उसके अनन्य नियंत्रण के अधीन रहता है, यह अपेक्षित न होगा कि उसे इस अधिनियम के अधीन अन्यथा रजिस्टर कराया जाए ।

(2) उपधारा (1) के अधीन यान का रजिस्ट्रीकरण करने वाला प्राधिकारी केन्द्रीय सरकार द्वारा, इस निमित्त बनाए गए नियमों में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार, रजिस्ट्रीकरण चिह्न देगा और उस यान की बाबत इस आशय का एक प्रमाणपत्र जारी करेगा कि ऐसा यान उस समय इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों की सभी अपेक्षाओं की पूर्ति करता है और यह कि यान इस धारा के अधीन रजिस्ट्रीकृत है ।

(3) इस धारा के अधीन रजिस्ट्रीकृत यान के पास उपधारा (2) के अधीन दिया गया प्रमाणपत्र होगा ।

(4) यदि इस धारा के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई यान केन्द्रीय सरकार की संपत्ति या उसके अनन्य नियंत्रण के अधीन नहीं रह जाता है तो धारा 39 और धारा 40 के उपबंध लागू होंगे ।

(5) किसी यान को उपधारा (1) के अधीन रजिस्टर करने वाला प्राधिकारी, किसी राज्य सरकार को यान के साधारण स्वरूप, संपूर्ण आकार और धुरी भार के बारे में ऐसी सभी जानकारी देगा जैसी वह राज्य सरकार किसी समय मांगे ।

61. अध्याय का ट्रेलरों को लागू होना-(1) इस अध्याय के उपबंध ट्रेलरों के रजिस्ट्रीकरण को वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अन्य मोटर यान के रजिस्ट्रीकरण को लागू होते हैं ।

(2) ट्रेलर को दिया गया रजिस्ट्रीकरण चिह्न, चलाने वाले यान के एक तरफ ऐसी रीति से प्रदर्शित किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(3) कोई व्यक्ति उस मोटर यान को, जिसके साथ ट्रेलर संलग्न किया गया है या किए गए हैं, तब तक नहीं चलाएगा जब तक इस प्रकार चलाए जाने वाले मोटर यान का रजिस्ट्रीकरण चिह्न, यथास्थिति, ट्रेलर पर या श्रृंखला के अंतिम ट्रेलर पर ऐसी रीति से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, प्रदर्शित न हो ।

62. चुराए गए और बरामद किए गए मोटर यानों के संबंध में जानकारी का पुलिस द्वारा राज्य परिवहन प्राधिकरण को दिया जाना-राज्य सरकार, यदि वह लोक हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती है, तो पुलिस महानिरीक्षक (चाहे किसी भी पदनाम से ज्ञात हो) और ऐसे अन्य पुलिस अधिकारियों द्वारा, जो राज्य सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, राज्य परिवहन प्राधिकरण को ऐसे यानों के बारे में जो चोरी हो गए हैं, और चोरी हुए ऐसे यान जो बरामद किए गए हैं, जिनके बारे में पुलिस को जानकारी है, जानकारी से युक्त ऐसी विवरणी दिए जाने के लिए निदेश दे सकेगी और ऐसा प्ररूप जिसमें और वह अवधि जिसके भीतर ऐसी विवरणी दी जाएगी, विहित कर सकेगी ।

63. राज्य मोटर यान संबंधी रजिस्टरों का रखा जाना-(1) प्रत्येक राज्य सरकार, ऐसे प्ररूप में जो केन्द्रीय सरकार विहित करे, राज्य मोटर यान रजिस्टर के रूप में ज्ञात एक रजिस्टर उस राज्य में के मोटर यानों की बाबत रखेगी जिसमें निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी, अर्थात् :-

                (क) रजिस्ट्रीकरण संख्यांक ;

                (ख) विनिर्माण का वर्ष ;

                (ग) वर्ग और प्रकार ;

                (घ) रजिस्ट्रीकृत स्वामियों के नाम और पते ; और

                (ङ) ऐसी अन्य विशिष्टियां जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(2) प्रत्येक राज्य सरकार केन्द्रीय सरकार को  [यदि वह ऐसी वांछा करेट राज्य मोटर यान रजिस्टर की एक मुद्रित प्रति देगी और केन्द्रीय सरकार को ऐसे रजिस्टर में समय-समय पर किए गए सभी परिवर्धनों और अन्य संशोधनों की जानकारी भी अविलंब देगी ।

(3) राज्य मोटर यान रजिस्टर ऐसी रीति से, जो राज्य सरकार विहित करे, रखा जाएगा ।

64. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी का उपबंध करने के लिए नियम बना सकेगी, अर्थात् :-

(क) वह अवधि जिसके भीतर और वह प्ररूप जिसमें कोई आवेदन किया जाएगा और वे दस्तावेजें, विशिष्टियां और जानकारी जो उसके साथ धारा 41 की उपधारा (1) के अधीन होंगी ;

(ख) वह प्ररूप जिसमें रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र बनाया जाएगा और वे विशिष्टियां और जानकारी जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी और वह रीति, जिसमें वह धारा 41 की उपधारा (3) के अधीन दिया जाएगा ;

(ग) वह प्ररूप और रीति, जिसमें रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की विशिष्टियां धारा 41 की उपधारा (5) के अधीन रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के अभिलेखों में दर्ज की जाएगी ;

(घ) वह रीति जिससे और वह प्ररूप जिसमें धारा 41 की उपधारा (6) में निर्दिष्ट रजिस्ट्रीकरण चिह्न, अक्षर और अंक तथा अन्य विशिष्टियां प्रदर्शित और दर्शित की जाएंगी ;

(ङ) वह अवधि जिसके भीतर और वह प्ररूप, जिसमें आवेदन किया जाएगा और वे विशिष्टियां और जानकारी जो धारा 41 की उपधारा (8) के अधीन उसमें अन्तर्विष्ट होंगी ;

(च) वह प्ररूप जिसमें धारा 41 की उपधारा (14) में निर्दिष्ट आवेदन किया जाएगा और वे विशिष्टियां और जानकारी जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी और वह फीस जो प्रभारित की जाएगी ;

(छ) वह प्ररूप जिसमें और वह अवधि जिसके भीतर, धारा 47 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन किया जाएगा और वे विशिष्टियां जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी ;

(ज) वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिससे आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र" के लिए आवदेन धारा 48 की उपधारा (1) के अधीन किया जाएगा और धारा 48 की उपधारा (2) के अधीन जारी की जाने वाली रसीद का प्ररूप ;

(झ) ऐसे विषय, जिनका किसी आवेदक द्वारा अनुपालन धारा 48 के अधीन आक्षेप न होने का प्रमाणपत्र दिए जाने के पूर्व किया जाना है ;

(ञ) वह प्ररूप जिसमें पते में तब्दीली की संसूचना धारा 49 की उपधारा (1) के अधीन दी जाएगी और वे दस्तावेज जो आवेदन के साथ दिए जाएंगे ;

(ट) वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिससे स्वामित्व के अंतरण की संसूचना धारा 50 की उपधारा (1) के अधीन या धारा 50 की उपधारा (2) के अधीन दी जाएगी या वह दस्तावेज जो आवेदन के साथ दिया जाएगा ;

                (ठ) वह प्ररूप जिसमें धारा 51 की उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन आवेदन किया जाएगा ;

                (ड) वह प्ररूप जिसमें ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र धारा 56 की उपधारा (1) के अधीन दिया जाएगा और वे विशिष्टियां और जानकारी जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी ;

(ढ) वह अवधि जिसके लिए धारा 56 के अधीन दिया गया या नवीकृत किया गया ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र प्रभावी रहेगा ;

(ण) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के दिए जाने या नवीकरण या परिवर्तन के लिए, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में स्वामित्व के अंतरण की बाबत प्रविष्टि करने, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में अवक्रय या पट्टा या आड्मान करार की बाबत कोई पृष्ठांकन करने या उसे रद्द करने के लिए, रजिस्ट्रीकरण चिह्नों के लिए, ठीक हालत में होने के प्रमाणपत्रों के लिए, और मोटर यानों की परीक्षा या निरीक्षण के लिए प्रभारित की जाने वाली फीसें और ऐसी फीसों का प्रतिदाय ;

                (त) कोई अन्य विषय, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाना है या विहित किया जाए ।

65. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार धारा 64 में विनिर्दिष्ट विषयों से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों को क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किया जा सकता है, अर्थात् :-

(क) उन अपीलों का संचालन और सुनवाई जो इस अध्याय के अधीन की जाएं (ऐसी अपीलों के बारे में दी जाने वाली फीसें और ऐसी फीसों का प्रतिदाय) ;

                (ख) रजिस्ट्रीकर्ता और अन्य विहित प्राधिकारियों की नियुक्ति, कृत्य और अधिकारिता ;

                (ग) रोड रोलर, ग्रेडर और ऐसे अन्य यानों को, जिन्हें सड़कों के निर्माण, मरम्मत और उनकी सफाई के लिए अनन्य रूप से बनाया गया है और उपयोग में लाया जाता है, इस अध्याय के और उसके अधीन बनाए गए नियमों के सभी या किन्हीं उपबंधों से छूट और ऐसी छूट को शासित करने वाली शर्तें ;

(घ) रजिस्ट्रीकरण और ठीक हालत में होने के प्रमाणपत्र और खोए, नष्ट या कटे-फटे प्रमाणपत्रों के बदले में उन प्रमाणपत्रों की दूसरी प्रतियां देना या उनका नवीकरण करना ;

(ङ) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्रों को, यान के कुल वजन से संबंधित उसमें की विशिष्टियों की प्रविष्टियों का पुनरीक्षण करने के लिए, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी के समक्ष पेश करना ;

                (च) मोटर यानों का अस्थायी रजिस्ट्रीकरण और अस्थायी रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र और चिह्नों का दिया जाना ;

                (छ) वह रीति जिससे धारा 58 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट विशिष्टियां और अन्य विहित विशिष्टियां प्रदर्शित की जाएंगी ;

                (ज) जो फीसें इस अध्याय के अधीन देय हैं उन सभी को या उनके किसी भाग को देने से विहित व्यक्तियों या विहित वर्गों के व्यक्तियों को छूट ;

(झ) केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित प्ररूपों से भिन्न ऐसे प्ररूप जो इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाए जाने हैं ;

(ञ) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्रों की विशिष्टियों का रजिस्ट्रीकृत प्राधिकारियों के बीच संसूचित किया जाना तथा उन यानों के स्वामियों द्वारा, जो राज्य के बाहर रजिस्ट्रीकृत हैं, उन यानों को और उनके रजिस्ट्रीकरण की विशिष्टियों का संसूचित किया जाना ;

(ट) धारा 41 की उपधारा (13) या धारा 47 की उपधारा (7) या धारा 49 की उपधारा (4) या धारा 50 की उपधारा (5) के अधीन रकम या रकमें ;

(ठ) ठीक हालत में होने के प्रमाणपत्रों के नवीकरण के लिए आवेदनों के विचारार्थ लंबित रहने तक उन प्रमाणपत्रों की विधिमान्यता की अवधि को बढ़ाया जाना ;

(ड) जो मोटर यान व्यवहारियों के कब्जे में हैं उन्हें इस अध्याय के उपबंधों से छूट और उस छूट के लिए शर्तें और फीस ;

                (ढ) वह प्ररूप जिसमें और वह अवधि जिसके भीतर धारा 62 के अधीन विवरणी भेजी जाएगी ;

                (ण) वह रीति जिसमें राज्य मोटर यान रजिस्टर धारा 63 के अधीन रखा जाएगा ;

                (त) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।

अध्याय 5

परिवहन यानों का नियंत्रण

66. परमिटों की आवश्यकता-(1) किसी मोटर यान का स्वामी किसी सार्वजनिक स्थान में उस यान का परिवहन यान के रूप में उपयोग, चाहे उस यान से वास्तव में यात्री या माल का वहन किया जा रहा है या नहीं, उस परमिट की शर्तों के अनुसार ही करेगा या करने की अनुज्ञा देगा जो उस स्थान में उस रीति से, जिससे उस यान का उपयोग किया जा रहा है, उस यान का उपयोग प्राधिकृत करते हुए प्रादेशिक या राज्य परिवहन प्राधिकरण या किसी विहित प्राधिकारी के द्वारा दिया गया है या प्रतिहस्ताक्षरित किया गया है :

परन्तु मंजिली-गाड़ी परमिट ऐसी किन्हीं शर्तों के अधीन रहते हुए, जो परमिट में विनिर्दिष्ट की जाएं, उस यान का उपयोग ठेका गाड़ी के रूप में करने के लिए प्राधिकृत करेगा :

परन्तु यह और कि मंजिली-गाड़ी परमिट से, ऐसी किन्हीं शर्तों के अधीन रहते हुए जो परमिट में विनिर्दिष्ट की जाएं, उस यान का उपयोग माल-वाहन के रूप में करना, भले ही वह यात्रियों का वहन कर रहा हो या नहीं, प्राधिकृत किया जा सकेगा :

परन्तु यह और भी कि माल-वाहन परमिट ऐसी किन्हीं शर्तों के अधीन रहते हुए जो परमिट में विनिर्दिष्ट की जाएं, उसके धारक द्वारा चलाए जाने वाले व्यापार या कारबार के लिए या उसके संबंध में माल का वहन करने के लिए यान का उपयोग करना प्राधिकृत करेगा ।

(2) माल-वाहन परमिट का धारक, यान का उपयोग किसी पब्लिक या अर्ध-ट्रेलर के, जो उसके स्वामित्व के अधीन नहीं है, खींचने के लिए ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए कर सकेगा जो विहित की जाएं :

 [परन्तु किसी संलग्न यान का परमिट धारक, उस संलग्न यान के मूल गति उत्पादक का उपयोग किसी अन्य अर्द्ध-ट्रेलर के लिए कर सकेगा ।] ;

(3) उपधारा (1) के उपबंध निम्नलिखित को लागू नहीं होंगे, अर्थात् :-

(क) कोई ऐसा परिवहन यान जो केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन है और ऐसे सरकारी प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाया जाता है जिनका किसी वाणिज्यिक उद्यम से कोई संबंध नहीं है ;

(ख) कोई ऐसा परिवहन यान जो किसी स्थानीय प्राधिकारी के अथवा स्थानीय प्राधिकारी से की गई संविदा के अधीन कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के स्वामित्वाधीन है और केवल सड़क को साफ करने, सड़क पर जल छिड़कने या सफाई के प्रयोजनों के लिए ही उपयोग में लाया जाता है ;

                (ग) कोई ऐसा परिवहन यान जो केवल पुलिस, दमकल या रोगी-वाहन कार्य के लिए ही उपयोग में लाया जाता है ;

                (घ) कोई ऐसा परिवहन यान जो शवों और शवों के साथ जाने वाले व्यक्तियों के प्रवहण के लिए ही उपयोग में लाया जाता है ;

(ङ) कोई ऐसा परिवहन यान जो किसी बिगड़े हुए यान का अनुकर्षण करने के लिए या किसी बिगड़े हुए यान से माल को निरापद स्थान पर ले जाने के लिए उपयोग में लाया जाता है ;

(च) कोई ऐसा परिवहन यान जो किसी ऐसे अन्य सार्वजनिक प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता है जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे ;

(छ) कोई ऐसा परिवहन यान जो मोटर यानों का विनिर्माण करने वाले या उनमें व्यवहार करने वाले या चेसिस से संलग्न किए जाने के लिए उनकी बाडी बनाने वाले किसी व्यक्ति द्वारा केवल ऐसे प्रयोजनों के लिए हो और ऐसी शर्तों के अनुसार उपयोग में लाया जाता है जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ;

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(झ) कोई ऐसा माल यान जिसका सकल यान भार 3000 किलोग्राम से अधिक नहीं है ;

(ञ) ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, कोई ऐसा परिवहन यान जो एक राज्य में खरीदा गया है और किसी यात्री या माल का वहन किए बिना उस राज्य में या किसी अन्य राज्य में स्थित किसी स्थान को जा रहा है ;

(ट) कोई ऐसा परिवहन यान जो धारा 43 के अधीन अस्थायी तौर पर रजिस्ट्रीकृत है, उस समय जब वह यान के रजिस्ट्रीकरण के प्रयोजन से खाली ही किसी स्थान को जा रहा है ;

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(ड) कोई ऐसा परिवहन यान जिसे बाढ़, भूकंप या किसी अन्य प्राकृतिक विपत्ति, सड़क पर बाधा या अकल्पित परिस्थितियों के कारण अपने मार्ग के बदले किसी अन्य मार्ग से, भले ही वह राज्य के अंदर हो या बाहर, इस दृष्टि से भेजा जाना आवश्यक है कि वह अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच सके ;

(ढ) कोई ऐसा परिवहन यान जो ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जिसे केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ;

(ण) कोई ऐसा परिवहन यान जो अवक्रय, पट्टा या आड्मान करार के अधीन है और जिसे स्वामी के व्यतिक्रम के कारण उस व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से, जिसके साथ स्वामी ने ऐसा करार किया है, कब्जे में ले लिया गया है, जिससे कि ऐसा मोटर यान अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच सके ; या

(त) कोई परिवहन यान उस समय जब वह खाली ही मरम्मत के प्रयोजन के लिए किसी स्थान को जा रहा है ।

                (4) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) किसी ऐसे मोटर यान को, जिसे ड्राइवर के अलावा नौ से अधिक व्यक्तियों का वहन करने के अनुकूल बना लिया गया है, तब लागू होगी जब राज्य सरकार धारा 96 के अधीन बनाए गए नियम द्वारा ऐसा विहित करे ।

67. राज्य सरकार की सड़क परिवहन का नियंत्रण करने की शक्ति-(1) राज्य सरकार-

                (क) मोटर परिवहन के विकास से जनता, व्यापार और उद्योग को होने वाले फायदे ;

                (ख) सड़क और रेल परिवहन में समन्वय करने की वांछनीयता ;

                (ग) सड़क प्रणाली का क्षय होने से रोकने की वांछनीयता ; और

                (घ) परमिट धारकों के बीच अलाभकर प्रतियोगिता को रोकने की वांछनीयता,

को ध्यान में रखते हुए राज्य परिवहन प्राधिकरण और प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, दोनों को, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर निम्नलिखित की बाबत निदेश दे सकेगी-

(i) मंजिली-गाड़ी, ठेका-गाड़ी तथा माल-वाहन के लिए किराए और माल भाड़े को नियत करना (जिनके अंतर्गत अधिकतम तथा न्यूनतम किराए और माल भाड़े, नियत करना भी है) ;

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

                (ii) ऐसी शर्तों पर, जो ऐसे निदेशों में विनिर्दिष्ट की जाए, साधारणतः लंबी दूरी वाले माल-यातायात का अथवा विनिर्दिष्ट वर्गों के मालों का माल वाहनों द्वारा प्रवहण किए जाने का प्रतिषेध या निर्बन्धन ;

(iii) कोई अन्य विषय जिसकी बाबत राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि वह साधारणतः मोटर परिवहन का विनियमन करने और विशिष्टतः उसके परिवहन के अन्य साधनों में समन्वय करने तथा लंबी दूरी वाले माल-यातायात के प्रवहण संबंधी किसी करार को, जो केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी अन्य देश की सरकार से किया गया हो, प्रभावी करने के लिए आवश्यक या समीचीन है :

परंतु खंड (ii) या खंड (iii) में निर्दिष्ट विषयों की बाबत ऐसी कोई अधिसूचना तब तक नहीं निकाली जाएगी जब तक प्रस्थापित निदेशों का प्रारूप राजपत्र में वह तारीख विनिर्दिष्ट करते हुए प्रकाशित नहीं कर दिया जाता जो ऐसे प्रकाशन के कम से कम एक मास पश्चात् की ऐसी तारीख होगी जिसको या जिसके पश्चात् उस प्रारूप पर विचार किया जाएगा और जब तक किसी आक्षेप या सुझाव पर, जो प्राप्त हो, उन व्यक्तियों के, जिनके हित प्रभावित होते हैं, प्रतिनिधियों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् राज्य परिवहन प्राधिकरण के परामर्श से विचार नहीं कर लिया जाता ।

(2) मंजिली-गाड़ी, ठेका-गाड़ी और माल-वाहन के लिए किराया और माल-भाड़ा नियत करने से संबंधित उपधारा (1) के अधीन किसी निदेश में यह उपबंध किया जा सकेगा कि ऐसे किराए या माल-भाड़े में यात्री और माल पर कर से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मंजिली-गाड़ी, ठेका-गाड़ी या माल-वाहनों के प्रचालकों को, यथास्थिति, यात्रियों या माल भेजने वालों द्वारा संदेय कर भी सम्मिलित होगा ।

68. परिवहन प्राधिकरण-(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य के लिए एक राज्य परिवहन प्राधिकरण गठित करेगी जो उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करेगा और इसी प्रकार प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण गठित करेगी जो प्रत्येक प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के संबंध में, अधिसूचना में विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में, (जिन्हें इस अध्याय में प्रदेश कहा गया है) सर्वत्र उन शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करेगा जो ऐसे प्राधिकरणों को इस अध्याय के द्वारा या अधीन प्रदान किए गए हैं :

परन्तु संघ राज्यक्षेत्रों में प्रशासक किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण का गठन करने से प्रविरत रह सकेगा ।

(2) राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ऐसे एक अध्यक्ष से, जिसे न्यायिक अनुभव या अपील या पुनरीक्षण प्राधिकारी या न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के रूप में अनुभव प्राप्त है जो किसी विधि के अधीन कोई आदेश पारित करने में या विनिश्चय करने में सक्षम है तथा राज्य परिवहन प्राधिकरण की दशा में चार से अनधिक ऐसे अन्य व्यक्तियों से (चाहे वे शासकीय हों या न हों), तथा प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण की दशा में दो से अनधिक ऐसे अन्य व्यक्तियों से (चाहे वे शासकीय हों या न हों) जिन्हें राज्य सरकार नियुक्त करना ठीक समझे, मिलकर बनेगा किन्तु ऐसा कोई भी व्यक्ति, जिसका किसी परिवहन उपक्रम में कोई वित्तीय हित, चाहे स्वत्वधारी, कर्मचारी के रूप में या अन्यथा है, राज्य या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा, न ही बने रहने दिया जाएगा, और यदि कोई व्यक्ति, जो किसी ऐसे प्राधिकरण का सदस्य है, किसी परिवहन उपक्रम में कोई वित्तीय हित अर्जित कर लेता है, तो वह ऐसा हित अर्जित कर लेने के चार सप्ताह के अंदर ऐसे हित के अर्जन की लिखित सूचना राज्य सरकार को देगा तथा पद रिक्त कर देगा :

परन्तु इस उपधारा की किसी बात से, यथास्थिति, राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के सदस्यों में से कोई ऐसे प्राधिकरण की बैठकों में उस दौरान जब अध्यक्ष अनुपस्थित है, सभापतित्व करने से इस बात के होते हुए भी निवारित न होगा कि ऐसे सदस्य को न्यायिक अनुभव या अपील या पुनरीक्षण प्राधिकारी या ऐसे न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के रूप में कोई अनुभव प्राप्त नहीं है जो किसी विधि के अधीन कोई आदेश पारित करने या विनिश्चय करने में सक्षम है :

परन्तु यह और कि राज्य सरकार-

(i) जहां वह ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती है वहां किसी प्रदेश के लिए ऐसा राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण गठित कर सकेगी जिसमें केवल एक सदस्य हो जिसे न्यायिक अनुभव या अपील या पुनरीक्षण प्राधिकारी या ऐसे न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के रूप में कोई अनुभव है जो किसी विधि के अधीन आदेश पारित करने या विनिश्चय करने में सक्षम है ;

(ii) इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा, अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य की अनुपस्थिति में ऐसे प्राधिकरणों के कारबार के संव्यवहार के लिए उपबंध कर सकेगी तथा उन परिस्थितियों को, जिनके अधीन, और वह रीति, जिससे वह कारबार किया जा सकेगा, विनिर्दिष्ट कर सकेगी :

परंतु यह भी कि इस उपधारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि (परिवहन उपक्रम के प्रबंध या चलाने से प्रत्यक्षतः संबंधित पदधारी से भिन्न) कोई पदधारी ऐसे किसी प्राधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने या बने रहने से केवल इस बात के कारण विवर्जित होगा कि वह पदधारी जिस सरकार के नियोजन में है उस सरकार का कोई वित्तीय हित उस परिवहन उपक्रम में है या उस सरकार ने कोई वित्तीय हित उस परिवहन उपक्रम में अर्जित कर लिया है ।

(3) राज्य परिवहन प्राधिकरण और प्रत्येक प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण धारा 67 के अधीन निकाले गए किन्हीं निदेशों को प्रभावी करेगा तथा राज्य परिवहन प्राधिकरण ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए और इस अधिनियम के द्वारा या उसके अधीन अन्यथा उपबंधित को छोड़कर, राज्य में सर्वत्र निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग तथा कृत्यों का निर्वहन करेगा, अर्थात् :-

(क) यदि राज्य का कोई प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण है तो उसके क्रियाकलापों और नीतियों का समन्वय और विनियमन ;

(ख) जहां कोई प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण नहीं है वहां ऐसे प्राधिकरण के कर्तव्यों का पालन करना और यदि वह ठीक समझता है या किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाती है तो दो या अधिक प्रदेशों के लिए किसी सामान्य मार्ग की बाबत उन कर्तव्यों का पालन करना ;

(ग) उन सब विवादों का निपटारा और उन सब मामलों का विनिश्चय करना जिन पर प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरणों के बीच मतभेद पैदा हों ; और

 [(गक) मंजिली गाड़ियों को चलाने के लिए सरकार द्वारा मार्गों का निश्चित किया जाना ;]

(घ) ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन जो विहित किए जाएं ।

                (4) उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन से राज्य परिवहन प्राधिकरण ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को निदेश दे सकेगा तथा प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में ऐसे निदेशों को प्रभावी करेगा और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करेगा ।

                (5) यदि राज्य परिवहन प्राधिकरण और किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को धारा 96 के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है तो वह अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को ऐसे प्राधिकरण या व्यक्ति को, ऐसे निबंधनों, परिसीमाओं और शर्तों पर, जो उक्त नियमों में विहित की जाएं, प्रत्यायोजित कर सकेगा ।

69. परमिटों के लिए आवेदनों संबंधी साधारण उपबंध-(1) परमिट के लिए प्रत्येक आवेदन उस प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को किया जाएगा जिसमें यान या यानों को उपयोग में लाना प्रस्थापित है :

परन्तु यदि ऐसे दो या अधिक प्रदेशों में, जो उसी राज्य के अंदर है, उस यान या उन यानों का उपयोग करना प्रस्थापित है तो आवेदन उस प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को किया जाएगा जिसके प्रदेशों में प्रस्थापित मार्ग या क्षेत्र का अधिकांश भाग पड़ता है और उस दशा में जिसमें कि प्रस्थापित मार्ग या क्षेत्र का भाग प्रत्येक प्रदेश में लगभग बराबर है, उस प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को किया जाएगा जिसमें उस यान या उन यानों को रखना प्रस्थापित है :

परन्तु यह और कि यदि यान या यानों का उपयोग ऐसे दो या अधिक प्रदेशों में, जो विभिन्न राज्यों में पड़ते हैं करना प्रस्थापित है तो आवेदन उस प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को किया जाएगा जिसमें आवेदक निवास करता है या जिसमें उसके कारबार का मुख्य स्थान है ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि किसी ऐसे यान या यानों की दशा में जिनका उपयोग विभिन्न राज्यों में आने वाले दो या अधिक प्रदेशों में करना प्रस्थापित है, उस उपधारा के अधीन आवेदन उस प्रदेश के राज्य परिवहन प्राधिकरण को किया जाएगा जिसमें आवेदक निवास करता है या जिसमें उसके कारबार का मुख्य स्थान है ।

70. मंजिली-गाड़ी परमिट के लिए आवेदन-(1) मंजिली-गाड़ी की बाबत परमिट के लिए (जिसे इस अध्याय में मंजिली-गाड़ी परमिट कहा गया है) या आरक्षित मंजिली-गाड़ी के रूप में परमिट के लिए आवेदन में यथाशक्य निम्नलिखिति विशिष्टियां दी जाएंगी, अर्थात् :-

                (क) वह मार्ग या वे मार्ग अथवा वह क्षेत्र या वे क्षेत्र जिससे या जिनसे वह आवेदन संबंधित है ;

                (ख) ऐसे प्रत्येक यान की किस्म और उसमें बैठने की जगह ;

                (ग) जितनी दैनिक ट्रिपें उपलब्ध कराना प्रस्थापित है उनकी न्यूनतम और अधिकतम संख्या तथा सामान्य ट्रिपों की समय-सारणी ।

स्पष्टीकरण-इस धारा, धारा 72, धारा 80 और धारा 102 के प्रयोजनों के लिए ट्रिपों" से एक स्थान से दूसरे स्थान तक की एकल यात्रा अभिप्रेत है, और प्रत्येक वापसी यात्रा को एक पृथक् ट्रिप समझा जाएगा ;

(घ) उन यानों की संख्या जिन्हें सेवा बनाए रखने तथा विशेष अवसरों के लिए व्यवस्था करने के वास्ते रिजर्व में रखने का इरादा है ;

(ङ) वे इन्तजाम जिन्हें यानों के रखने, अनुरक्षण और मरम्मत के लिए, यात्रियों के आराम और सुविधा के लिए तथा सामान के भंडारकरण तथा निरापद अभिरक्षा में रखने के लिए करने का इरादा है ;

(च) ऐसे अन्य विषय जो विहित किए जाएं ।

                (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन के साथ ऐसे दस्तावेज होंगे जो विहित किए जाएं ।

71. मंजिली-गाड़ी परमिट के लिए आवेदन पर विचार करने में प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण की प्रक्रिया-(1) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण मंजिली-गाड़ी परमिट के लिए आवेदन पर विचार करते समय इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखेगा :

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

                (2) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण मंजिली-गाड़ी परमिट मंजूर करने से उस दशा में इंकार करेगा यदि दी गई किसी समय-सारणी से यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के गति संबंधी उन उपबंधों का, जिस गति से यान चलाए जा सकते हैं उल्लंघन होने की संभावना है :

                परन्तु ऐसे इंकार करने से पूर्व आवेदक को समय-सारणी को ऐसे संशोधित करने का अवसर दिया जाएगा जिससे वह उक्त उपबंधों के अनुकूल हो जाए ।

                (3) (क) राज्य सरकार, यदि केन्द्रीय सरकार द्वारा यानों की संख्या, सड़कों की दशा और अन्य सुसंगत बातों का ध्यान रखते हुए, इस प्रकार निर्दिष्ट किया जाए तो, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य परिवहन प्राधिकरण और प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को यह निदेश देगी कि वह पांच लाख से अन्यून जनसंख्या वाले शहरों में नगर मार्गों पर प्रचालित होने वाली साधारण मंजिली-गाड़ी या किसी विनिर्दिष्ट किस्म की मंजिली-गाड़ी की संख्या को, जो अधिसूचना में नियत और विनिर्दिष्ट की जाए, सीमित करे ।

                (ख) जहां मंजिली गाड़ियों की संख्या खंड (क) के अधीन नियत की गई है, वहां राज्य सरकार, राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए मंजिली गाड़ी परमिटों का कुछ प्रतिशत उसी अनुपात में, जैसा राज्य में लोक सेवाओं में सीधी भर्ती द्वारा की गई नियुक्तियों के मामले में है, आरक्षित रखेगी ।

                (ग) जहां मंजिली गाडि़यों की संख्या खंड (क) के अधीन नियत की गई है, वहां प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए परमिटों की ऐसी संख्या, जो उपखंड (ख) के अधीन राज्य सरकार द्वारा नियत की जाए, आरक्षित रखेगा ।

                (घ) परमिटों की ऐसी संख्या, जो उपखंड (ग) में निर्दिष्ट है, आरक्षित रखने के पश्चात् प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, किसी आवेदन पर विचार करने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा, अर्थात् :-

                                (i) आवेदक का वित्तीय स्थायित्व ;

                (ii) मंजिली-गाड़ी प्रचालक के रूप में समाधानप्रद कार्य जिसके अंतर्गत कर का संदाय भी है, यदि आवेदक मंजिली-गाड़ी सेवा का प्रचालक है या रहा है ; और

                                (iii) ऐसे अन्य विषय जो राज्य सरकार द्वारा विहित किए जाएं :

                परन्तु अन्य शर्तों के समान रहने पर, परमिटों के लिए निम्नलिखित से प्राप्त आवेदनों को अधिमान दिया जाएगा-

                                (i) राज्य परिवहन उपक्रम ;

                (ii) सहकारी सोसाइटियां जो तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन रजिस्ट्रीकृत हैं या रजिस्ट्रीकृत समझी गई हैं ; 1। । ।

(iii) भूतपूर्व सैनिक ;  [या]

2[(iv) व्यक्तियों का कोई अन्य वर्ग या प्रवर्ग जिसे राज्य सरकार, ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, आवश्यक समझे ।]

1।                            ।                              ।                              ।                              ।                              ।

                स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत कोई फर्म या अन्य व्यष्टि संगम भी है, और निदेशक" से फर्म के संबंध में, फर्म का कोई भागीदार अभिप्रेत है ।

72. मंजिली-गाड़ी परमिटों का दिया जाना-(1) धारा 71 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, धारा 70 के अधीन उसे आवेदन किए जाने पर, उस आवेदन के अनुसार या ऐसे उपांतरणों सहित, जो वह ठीक समझता है, मंजिली-गाड़ी परमिट दे सकता है या ऐसा परमिट देने से इंकार कर सकता है :

परन्तु ऐसा कोई परमिट ऐसे किसी मार्ग या क्षेत्र के लिए नहीं दिया जाएगा जो आवेदन में विनिर्दिष्ट नहीं है ।

(2) यदि प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण यह विनिश्चय करता है कि मंजिली-गाड़ी परमिट दिया जाए तो वह विनिर्दिष्ट वर्णन की मंजिली-गाड़ी के लिए परमिट दे सकता है, तथा ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं, परमिट के साथ निम्नलिखित शर्तों में से कोई एक या अधिक लगा सकता है, अर्थात् :-

                (i) यानों का उपयोग किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में ही या विनिर्दिष्ट मार्ग या मार्गों पर ही किया जाएगा ;

                (ii) मंजिली-गाड़ी का प्रचालन किसी विनिर्दिष्ट तारीख से प्रारंभ किया जाएगा ;

                (iii) किसी मार्ग या क्षेत्र के संबंध में साधारणतया या किन्हीं विनिर्दिष्ट दिनों और अवसरों पर उपलब्ध किए जाने वाले दैनिक ट्रिपों की न्यूनतम और अधिकतम संख्या ;

(iv) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित मंजिली-गाड़ी की समय-सारणी की प्रतियां यानों पर तथा मार्ग पर या उस क्षेत्र के भीतर विनिर्दिष्ट अड्डों और विराम-स्थलों पर प्रदर्शित की जाएंगी ;

(v) मंजिली-गाड़ी के प्रचालन में अनुमोदित समय-सारणी से अंतर उतने मार्जिन तक ही होगा जितना प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे ;

(vi) नगरपालिका की सीमाओं तथा ऐसे अन्य क्षेत्रों और स्थानों के अंदर, जो विहित किए जाएं, यात्रियों या माल को, विनिर्दिष्ट स्थानों के सिवाय, और कहीं चढ़ाया या उतारा नहीं जाएगा ;

(vii) यात्रियों की अधिकतम संख्या और सामान का अधिकतम वजन जिसे मंजिली-गाड़ी में या तो साधारणतया अथवा विनिर्दिष्ट अवसरों पर अथवा विनिर्दिष्ट समयों पर और मौसमों में ले जाया जा सकेगा ;

(viii) यात्रियों के सामान का वह वजन और स्वरूप जो निःशुल्क ले जाया जाएगा, सामान का वह कुल वजन जिसे हर यात्री के लिए ले जाया जा सकेगा, तथा वे इंतजाम जो यात्रियों को असुविधा पहुंचाए बिना सामान ले जाने के लिए किए जाएंगे ;

(ix) प्रभार की वह दर जो यात्रियों के निःशुल्क ले जाए जाने वाले सामान से अधिक सामान के लिए उद्गृहीत की जा सकेगी ;

(x) विनिर्दिष्ट किस्म के यान, जिनमें अनुमोदित विनिदेशों के अनुरूप बाडी लगी होगी, उपयोग में लाए जाएंगे ;

परन्तु परमिट के साथ इस शर्त के लगाए जाने से उस तारीख को प्रचालित किसी यान का निरंतर उपयोग, अनुमोदित विनिर्देशों के प्रकाशन की तारीख से दो वर्ष की अवधि के लिए, किया जाना नहीं रुकेगा ;

(xi) यानों में आराम और सफाई के विनिर्दिष्ट स्तर बनाए रखे जाएंगे ;

(xii) वे शर्तें जिन पर मंजिली-गाड़ी से यात्रियों के साथ-साथ या यात्रियों के बिना माल ले जाया जा सकता है ;

(xiii) किराया, अनुमोदित यात्री किराया सारणी के अनुसार प्रभारित किया जाएगा ;

(xiv) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित यात्री किराया सारणी की एक प्रति या उससे उद्धरण तथा विशिष्ट अवसरों के लिए ऐसे अनुमोदित कोई विशेष यात्री किरायों या यात्री किराया दरों की विशिष्टियां मंजिली-गाड़ी पर तथा विनिर्दिष्ट अड्डों तथा विराम-स्थलों पर प्रदर्शित की जाएंगी ;

(xv) यात्रियों को विनिर्दिष्ट विशिष्टियों वाली टिकटें दी जाएंगी तथा उनमें वह यात्री किराया दिखाया हुआ होगा जो वास्तव में लिया गया है और दी गई टिकटों का अभिलेख विनिर्दिष्ट रीति से रखा जाएगा ;

(xvi) यान में ऐसी शर्तों पर, जो विनिर्दिष्ट की जाएं, डाक ले जाई जाएगी (जिनके अन्तर्गत उस समय के बारे में जब डाक ले जाई जानी है तथा उस प्रभार के बारे में, जो उद्गृहीत किए जा सकते हैं, शर्तें भी हैं) ;

(xvii) वे यान जो परमिट के धारक द्वारा यानों के प्रचालन को बनाए रखने तथा विशेष अवसरों के लिए व्यवस्था करने के लिए रिजर्व के रूप में रखे जाने हैं ;

(xviii) वे शर्तें जिन पर ऐसे किसी यान का, ठेका गाड़ी के रूप में उपयोग किया जा सकेगा ;

(xix) यान में रखने, अनुरक्षण और मरम्मत के लिए विनिर्दिष्ट इंतजाम किए जाएंगे ;

(xx) किसी ऐसे विनिर्दिष्ट बस अड्डे या आश्रय का, जिसका अनुरक्षण सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा किया जाता है, उपयोग किया जाएगा, और ऐसा उपयोग करने के लिए कोई विनिर्दिष्ट किराया या फीस दी जाएगी ;

(xxi) परमिट की शर्तों से विचलन प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के अनुमोदन से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ;

(xxii) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण कम से कम एक मास की सूचना देने के पश्चात्-

                (क) परमिट की शर्तों में परिवर्तन कर सकेगा ;

                (ख) परमिट के साथ अतिरिक्त शर्तें लगा सकेगा :

परन्तु खंड (i) के अनुसरण में विनिर्दिष्ट शर्तों में इस प्रकार परिवर्तन न किया जाएगा कि मूल मार्ग में जितनी दूरी आती है उसमें चौबीस किलोमीटर से अधिक का अंतर पड़ जाए और इन सीमाओं के अंदर कोई परिवर्तन केवल तभी किया जा सकेगा जब प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण का समाधान हो जाता है कि ऐसा परिर्वतन जनता की सुविधा के लिए साधक होगा तथा यह समीचीन नहीं है कि उस मूल मार्ग की बाबत जिसमें ऐसा परिवर्तन किया गया है या उसके किसी भाग की बाबत पृथक् परमिट दिया जाए ;

(xxiii) परमिट का धारक प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसी कालिक विवरणियां, आंकड़े तथा अन्य जानकारी देगा जो राज्य सरकार समय-समय पर, विहित करे ;

(xxiv) कोई अन्य शर्तें जो विहित की जाएं ।

73. ठेका गाड़ी परमिट के लिए आवेदन-ठेका गाड़ी के परमिट के लिए (जिसे इस अध्याय में ठेका गाड़ी परमिट कहा गया है) आवेदन में निम्नलिखित विशिष्टियां दी जाएंगी, अर्थात् :-

                (क) यान की किस्म और उसमें बैठने के स्थान ;

                (ख) वह क्षेत्र जिसके लिए परमिट अपेक्षित है ;

                (ग) कोई अन्य विशिष्टियां जो विहित की जाएं ।

74. ठेका गाड़ी परमिट का दिया जाना-(1) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण धारा 73 के अधीन उसे आवेदन किए जाने पर उस आवेदन के अनुसार या ऐसे उपांतरणों सहित, जो वह ठीक समझता है, ठेका गाड़ी परमिट दे सकेगा या ऐसा परमिट देने से इंकार कर सकेगा :

परन्तु ऐसा कोई परमिट ऐसे किसी क्षेत्र के लिए नहीं दिया जाएगा जो आवेदन में विनिर्दिष्ट नहीं है ।

(2) यदि प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण यह विनिश्चय करता है कि ठेका गाड़ी परमिट दिया जाए तो वह ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं, परमिट के साथ निम्नलिखित शर्तों में से कोई एक या अधिक शर्तें लगा सकेगा, अर्थात् :-

                (i) यानों का उपयोग विनिर्दिष्ट क्षेत्र में अथवा विनिर्दिष्ट मार्ग या मार्गों पर ही किया जाएगा ;

                (ii) किसी अस्तिस्वशील संविदा के विस्तारण या उपांतरण से भिन्न भाडे़ की कोई भी संविदा विनिर्दिष्ट क्षेत्र के बाहर विनिर्दिष्ट शर्तों के अनुसार ही की जा सकेगी, अन्यथा नहीं ;

(iii) यात्रियों की अधिकतम संख्या और सामान का अधिकतम वजन, जो यानों में या तो साधारणतया या विनिर्दिष्ट अवसरों पर या विनिर्दिष्ट समयों और मौसमों में ले जाया जा सकेगा ;

(iv) वे शर्तें जिनके रहते हुए किसी ठेका गाड़ी में यात्रियों के साथ-साथ अथवा यात्रियों के बिना माल ले जाया जा सकेगा ;

(v) मोटर टैक्सियों की दशा में विनिर्दिष्ट यात्री किराए या विनिर्दिष्ट दरों पर यात्री किराए लिए जाएंगे और यात्री किराया सारणी की एक प्रति यान पर प्रदर्शित की जाएगी ;

(vi) मोटर टेक्सियों से भिन्न यानों की दशा में, विनिर्दिष्ट अधिकतम दरों से अनधिक, विनिर्दिष्ट दरों पर किराया लिया जाएगा ;

(vii) मोटर टैक्सियों की दशा में यात्रियों के सामान का विनिर्दिष्ट वजन निःशुल्क ले जाया जाएगा और यदि उससे अधिक सामान के लिए कोई प्रभार है तो वह विनिर्दिष्ट दर पर होगा ;

(viii) मोटर टैक्सियों की दशा में, यदि कोई टैक्सी-मीटर विहित किया गया है तो, वह ठीक चालू हालात में लगाया जाएगा और बनाए रखा जाएगा ;

                (ix) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण कम से कम एक मास की सूचना देने के पश्चात्-

                                (क) परमिट की शर्तों में परिवर्तन कर सकेगा ;

                                (ख) परमिट के साथ अतिरिक्त शर्तें लगा सकेगा ;

                (x) परमिट की शर्तों से विचलन प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के अनुमोदन से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ;

                (xi) यानों में आराम और सफाई के विनिर्दिष्ट स्तरमान बनाए रखे जाएंगे ;

                (xii) असाधारण प्रकृति की परिस्थितियों के सिवाय यान के चलाने या यात्रियों को ले जाने से इंकार नहीं किया जाएगा ;

                (xiii) कोई अन्य शर्तें जो विहित की जाएं ।

(3) (क) राज्य सरकार, यदि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा यानों की संख्या, सड़क की दशा और अन्य सुसंगत विषयों को ध्यान में रखते हुए, इस प्रकार निर्दिष्ट किया जाए तो वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य परिवहन प्राधिकरण और प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को यह निदेश देगी कि वह पांच लाख से अन्यून जनसंख्या वाले शहरों में नगर मार्गों पर प्रचालित होने वाला साधारणतया ठेका गाड़ी या किसी विनिर्दिष्ट किस्म की ठेका गाड़ी की संख्या को, जो अधिसूचना में नियत और विनिर्दिष्ट की जाए, सीमित करे ।

(ख) जहां खंड (क) के अधीन ठेका गाड़ियों की संख्या नियत की जाती है वहां प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, ऐसी किसी ठेका गाड़ी के परमिट की मंजूरी के लिए आवेदन पर विचार करने में, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा, अर्थात् :-

                (i) आवेदक का वित्तीय स्थायित्व ;

                (ii) ठेका गाड़ी प्रचालक के रूप में समाधानप्रद कार्यपालन जिसके अंतर्गत कर का संदाय भी है, यदि आवेदक ठेका गाड़ी सेवा का प्रचालक है या रहा है ; और

                (iii) ऐसे अन्य विषय जो राज्य सरकार द्वारा विहित किए जाएं :

परन्तु अन्य शर्तें समान रहने पर, परमिटों के लिए अधिमान निम्नलिखित से प्राप्त आवेदनों को दिया जाएगा-

                                (i) भारतीय पर्यटन विकास निगम ;

                                (ii) राज्य पर्यटन विकास निगम ;

                                (iii) राज्य पर्यटन विभाग ;

                                (iv) राज्य परिवहन उपक्रम ;

                (v) सहकारी सोसाइटियां जो तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन रजिस्ट्रीकृत हैं या रजिस्ट्रीकृत की गई समझी गई हैं ;

                                (vi) भूतपूर्व सैनिक ।

75. मोटर टैक्सियों को किराए पर देने के लिए स्कीम-(1) केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा,  [ऐसे व्यक्तियों को जो अपने उपयोग के लिए स्वयं या ड्राइवरों के माध्यम से मोटर टैक्सी या मोटर साइकिल चलाने की वांछा रखते हैं, मोटर टैक्सियों या मोटर साइकिलोंट किराए पर देने के कारबार को विनियमित करने के प्रयोजन के लिए और उससे संबंधित विषयों के लिए एक स्कीम बना सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन बनाई गई स्कीम में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों का उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

(क) स्कीम के अधीन प्रचालकों को अनुज्ञप्ति देना जिसके अंतर्गत ऐसी अनुज्ञप्तियों का दिया जाना, नवीकरण और प्रतिसंहरण है ;

                (ख) आवेदन का प्ररूप और अनुज्ञप्तियों का प्ररूप तथा उसमें दी जाने वाली विशिष्टियां ;

                (ग) ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए आवेदन के साथ दी जाने वाली फीस ;

                (घ) वे प्राधिकारी जिनको आवेदन किया जाएगा ;

                (ङ) वह शर्त जिसके अधीन ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी, नवीकृत या प्रतिसंहृत की जा सकेंगी ;

                (च) ऐसी अनुज्ञप्तियों के दिए जाने या नवीकरण से इंकार करने वाले आदेशों के विरुद्ध अपीलें और ऐसी अनुज्ञप्तियों को प्रतिसंहृत करने वाले आदेशों के विरुद्ध अपीलें ;

                (छ) वे शर्तें जिनके अधीन मोटर टैक्सी किराए पर दी जा सकेंगी ;

                (ज) अभिलेखों का रखा जाना और ऐसे अभिलेखों का निरीक्षण ;

                (झ) ऐसे अन्य विषय, जो इस धारा के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक हों ।

76. प्राइवेट सेवा यान परमिट के लिए आवेदन-(1) कोई प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, उसको किए गए आवेदन पर, आवेदन के अनुसार या ऐसे उपांतरण सहित जो वह ठीक समझे, प्राइवेट सेवा यान परमिट दे सकेगा या ऐसा परमिट देने से इंकार कर सकेगा :

परन्तु ऐसा कोई परमिट ऐसे किसी क्षेत्र या मार्ग की बाबत नहीं दिया जाएगा जो आवेदन में विनिर्दिष्ट नहीं है ।

(2) किसी मोटर यान का प्राइवेट सेवा यान के रूप में उपयोग करने के परमिट के लिए आवेदन में निम्नलिखित विशिष्टियां दी जाएंगी, अर्थात् :-

                (क) यान की किस्म और उसमें बैठने के स्थान ;

                (ख) उस मार्ग या उन मार्गों का क्षेत्र जिनसे आवेदन संबंधित है,

                (ग) वह रीति जिससे यह दावा किया गया है कि आवेदन द्वारा भाड़े पर या पारिश्रमिक से भिन्न अथवा उसके द्वारा किए जा रहे व्यापार या कारबार के संबंध में व्यक्तियों को ले जाने का प्रयोजन यान द्वारा पूरा किया जाएगा ; और

                (घ) कोई अन्य विशिष्टियां जो विहित की जाएं ।

(3) यदि प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण परमिट देने का विनिश्चय करता है तो वह ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं, परमिट के साथ निम्नलिखित शर्तों में से किसी एक या अधिक शर्तों को लगा सकेगा, अर्थात् :-

                (i) यान का उपयोग विनिर्दिष्ट क्षेत्र में या किसी विनिर्दिष्ट मार्ग या मार्गों पर ही किया जाए ;

                (ii) व्यक्तियों की अधिकतम संख्या और सामान का अधिकतम वजन, जो वहन किया जा सकेगा ;

                (iii) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, कम से कम एक मास की सूचना देने के पश्चात्-

                                (क) परमिट की शर्तों में परिवर्तन कर सकेगा,

                                (ख) परमिट के साथ अतिरिक्त शर्तें लगा सकेगा ;

                (iv) परमिट की शर्तों से विचलन प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के अनुमोदन से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ;

                (v) यानों में आराम और सफाई के विनिर्दिष्ट स्तरमान बनाए रखे जाएंगे ;

                (vi) परमिट का धारक प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसी नियतकालिक विवरणियां, आंकड़े और अन्य जानकारी देगा जो राज्य सरकार समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे ; और

                (vii) ऐसी अन्य शर्तें जो विहित की जाएं ।

77. माल वाहन परमिट के लिए आवेदन-भाड़े पर या पारिश्रमिक के लिए, माल वहन के लिए या आवेदक द्वारा किए जा रहे व्यापार या कारबार के लिए या उसके संबंध में माल वहन के लिए मोटर यान का उपयोग करने के परमिट के लिए आवेदन में (जिसे इस अध्याय में माल वाहन परमिट कहा गया है) जहां तक हो सके, निम्नलिखित विशिष्टियां दी जाएंगी, अर्थात् :-

                (क) वह क्षेत्र या वह मार्ग या वे मार्ग जिनसे आवेदन संबंधित है ;

                (ख) यान की किस्म और क्षमता ;

                (ग) उस माल का स्वरूप जिसे ढोया जाना प्रस्तावित है ;

                (घ) यान के रखने, अनुरक्षण और मरम्मत के लिए और माल के भंडारकरण और निरापद अभिरक्षा के लिए आशयित इन्तजाम ;

(ङ) ऐसी विशिष्टियां जो प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ऐसे किसी कारबार की बाबत, जिसे आवेदक आवेदन किए जाने से पूर्व किसी भी समय भाड़े या पारिश्रमिक पर माल वाहक के रूप में चलाता रहा है और आवेदक द्वारा प्रभारित दरों की बाबत, अपेक्षा करे ;

(च) भाड़े पर या पारिश्रमिक के लिए माल का परिवहन करने के लिए जिन सुविधाओं का प्रदान किया जाना प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के प्रदेश के अंदर है उन पर प्रभाव डालने वाले किसी ऐसे करार या ठहराव की विशिष्टियां जो आवेदक ने चाहे उस प्रदेश के अंदर या उसके बाहर किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से किया है जो ऐसी सुविधाएं प्रदान करता है ;

                (छ) कोई अन्य विशिष्टियां जो विहित की जाएं ।

78. माल वाहन परमिट के लिए आवेदन पर विचार किया जाना-प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, माल वाहन परमिट के लिए आवेदन पर विचार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा, अर्थात् :-

(क) वहन किए जाने वाले माल का, विशेष रूप से मानव जीवन के लिए खतरनाक या परिसंकटमय प्रकृति का होने के संदर्भ में, स्वरूप ;

(ख) वहन किए जाने वाले रसायनों या विस्फोटकों की, विशेष रूप से मानव जीवन की सुरक्षा के संदर्भ में, प्रकृति ।

79. माल वाहन परमिट का दिया जाना-(1) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण धारा 77 के अधीन उसे आवेदन किए जाने पर राज्य में सर्वत्र विधिमान्य होने वाला या उस आवेदन के अनुसार अथवा ऐसे उपांतरणों सहित जो वह ठीक समझे माल वाहन परमिट दे सकेगा या ऐसा परमिट देने से इंकार कर सकेगा :

परन्तु ऐसा कोई परमिट ऐसे किसी क्षेत्र या मार्ग के लिए नहीं दिया जाएगा, जो आवेदन में विनिर्दिष्ट नहीं है ।

(2) यदि प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण यह विनिश्चय करता है कि माल वाहन परमिट दिया जाए तो वह परमिट दे सकेगा तथा ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं, परमिट के साथ निम्नलिखित शर्तों में से एक या अधिक शर्तें लगा सकेगा, अर्थात् :-

                (i) यान का उपयोग विनिर्दिष्ट क्षेत्र में अथवा विनिर्दिष्ट मार्ग या मार्गों पर ही किया जाएगा ;

                (ii) उपयोग में लाए गए किसी यान का सकल यान भार विनिर्दिष्ट अधिकतम भार से अधिक नहीं होगा ;

                (iii) विनिर्दिष्ट स्वरूप के माल का वहन नहीं किया जाएगा ;

                (iv) माल का वहन विनिर्दिष्ट दरों पर किया जाएगा ;

                (v) यानों के रखने, अनुरक्षण और मरम्मत के लिए तथा वहन किए गए माल के भण्डारकरण और निरापद अभिरक्षा के लिए विनिर्दिष्ट इंतजाम किए जाएंगे ;

(vi) परमिट का धारक प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसी नियतकालिक विवरणियां, आंकड़े तथा अन्य जानकारी देगा जो राज्य सरकार समय-समय पर विहित करे ;

                (vii) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण कम से कम एक मास की सूचना देने के पश्चात्-

                                (क) परमिट की शर्तों में परिवर्तन कर सकेगा ;

                                (ख) परमिट के साथ अतिरिक्त शर्तें लगा सकेगा ;

                (viii) परमिट की शर्तों से विचलन प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के अनुमोदन से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ;

                (ix) कोई अन्य शर्तें जो विहित की जाएं ।

(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट शर्तों के अंतर्गत मानव जीवन के लिए खतरनाक या परिसंकटमय प्रकृति के माल के पैकेज बनाने और वहन करने से संबंधित शर्तें हो सकेंगी ।

80. परमिटों के लिए आवेदन करने और उन्हें देने के लिए प्रक्रिया-(1) किसी भी प्रकार के परमिट के लिए आवेदन किसी भी समय किया जा सकेगा ।

(2)  [प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, राज्य परिवहन प्राधिकरण या धारा 66 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई विहित प्राधिकरणट साधारणतः इस अधिनियम के अधीन किसी भी समय किसी भी प्रकार के परमिट के लिए किए गए आवेदन को मंजूर करने से इंकार नहीं करेगा :

परन्तु 1[प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, राज्य परिवहन प्राधिकरण या धारा 66 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई विहित प्राधिकरणट कोई आवेदन संक्षिप्ततः नामंजूर कर सकेगा यदि आवेदन के अनुसार किसी परमिट के देने से यह प्रभाव पड़ेगा कि धारा 71 की उपधारा (3) के खंड (क) के अधीन राजपत्र में अधिसूचना में नियत और विनिर्दिष्ट मंजिली गाड़ियों की संख्या में या धारा 74 की उपधारा (3) के खंड (क) के अधीन राजपत्र में अधिसूचना में नियत और विनिर्दिष्ट ठेका गाड़ियों की संख्या में वृद्धि होगी :

परन्तु यह और कि जहां 1[प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, राज्य परिवहन प्राधिकरण या धारा 66 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई विहित प्राधिकरणट इस अधिनियम के अधीन किसी भी प्रकार के परमिट देने संबंधी आवेदन को नामंजूर कर देता है, वहां वह आवेदक को उसके नामंजूर किए जाने के अपने कारण लिखित रूप में देगा और इस विषय में उसे सुनवाई का अवसर देगा ।

(3) किसी ऐसे आवेदन को, जो अस्थायी परमिट से भिन्न किसी परमिट की शर्तों में, कोई नया मार्ग या नए मार्ग या कोई नया क्षेत्र सम्मिलित करके या उसके अंतर्गत आने वाले मार्ग या मार्गों या क्षेत्र का परिवर्तन करके या मंजिली गाड़ी परमिट की दशा में विनिर्दिष्ट अधिकतम ट्रिपों की संख्या बढ़ा कर या परमिट में विनिर्दिष्ट मार्ग या मार्गों या क्षेत्र में परिवर्तन, विस्तार या कटौती करके परिवर्तन करने के लिए है, नया परमिट दिए जाने का आवेदन माना जाएगा :

परन्तु मंजिली गाड़ी परमिट के ऐसे धारक द्वारा जो किसी मार्ग पर केवल वहन सेवा उपलब्ध कराता है, यानों की संख्या में कोई वृद्धि किए बिना इस प्रकार उपलब्ध कराई गई सेवा की आवृत्ति में वृद्धि करने के लिए किए गए आवेदन को ऐसा मानना आवश्यक नहीं होगा :

परन्तु यह और कि-

(i) परिवर्तन की दशा में, टर्मिनस में परिवर्तन नहीं किया जाएगा और परिवर्तन के अंतर्गत आने वाली दूरी चौबीस किलोमीटर से अधिक नहीं होगी ;

(ii) विस्तारण की दशा में, विस्तारण के अंतर्गत आने वाली दूरी टर्मिनस से चौबीस किलोमीटर से अधिक नहीं होगी,

और ऐसी सीमाओं के भीतर कोई ऐसा परिवर्तन या विस्तारण परिवहन प्राधिकरण का यह समाधान हो जाने के पश्चात् ही किया जाएगा कि ऐसे परिवर्तन से जनता की सुविधाओं की पूर्ति होगी और इस प्रकार परिवर्तित या विस्तारित मूल मार्ग या उसके किसी भाग की बाबत अलग परमिट देना समीचीन नहीं है ।

                (4)  [प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण राज्य परिवहन प्राधिकरण या धारा 66 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई विहित प्राधिकरणट उस तारीख से पूर्व, जो इस निमित्त उस द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, किसी परमिट के स्थान पर, जो उसके द्वारा उक्त तारीख से पहले दिया गया था, यथास्थिति, धारा 72 या धारा 74 या धारा 76 या धारा 79 के उपबंधों के अनुरूप नए सिरे से परमिट दे सकेगी और नया परमिट उसी मार्ग या उन्हीं मार्गों अथवा उसी क्षेत्र के लिए विधिमान्य होगा जिसके या जिनके लिए प्रतिस्थापित परमिट विधिमान्य था :

                परन्तु परमिट के धारक की लिखित सहमति के बिना, नए परमिट के साथ कोई ऐसी शर्त नहीं लगाई जाएगी जो प्रतिस्थापित परमिट के साथ पहले से लगी हुई शर्त से भिन्न है या जो उस परमिट के दिए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन उसके साथ लगाई जा सकती थी ।

                (5) धारा 81 में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन दिया गया परमिट नवीकरण के बिना ही उस अवधि के शेष भाग के लिए प्रभावी होगा जिसके दौरान प्रतिस्थापित परमिट उस प्रकार प्रभावी रहता ।

81. परमिटों को अस्तित्वावधि और उनका नवीकरण-(1) धारा 87 के अधीन दिए गए अस्थायी परमिट या धारा 88 की उपधारा (8) के अधीन दिए गए विशेष परमिट से भिन्न परमिट  [उसके दिए जाने या नवीकरण की तारीख सेट पांच वर्ष की अवधि के लिए प्रभावी होंगे :

परन्तु जहां परमिट धारा 88 की उपधारा (1) के अधीन प्रतिहस्ताक्षरित है, वहां ऐसा प्रतिहस्ताक्षर नवीकरण के बिना ऐसी अवधि के लिए प्रभावी रहेगा जिससे कि प्राथमिक परमिट की विधिमान्यता के समसामयिक हो सके ।

(2) परमिट का नवीकरण उसके अवसान की तारीख से कम से कम पंद्रह दिन पहले किए गए आवेदन पर किया जा सकेगा ।

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण या राज्य परिवहन प्राधिकरण परमिट के नवीकरण के लिए आवेदन को उस उपधारा में विनिर्दिष्ट अन्तिम तारीख के पश्चात् ग्रहण कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक विनिर्दिष्ट समय के अंदर आवेदन करने से उचित और पर्याप्त हेतुक से निवारित हो गया था ।

(4) यथास्थिति, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण या राज्य परिवहन प्राधिकरण निम्नलिखित आधारों में से किसी एक या अधिक आधार पर परमिट के नवीकरण के आवेदन को नामंजूर कर सकता है, अर्थात् :-

(क) आवेदक की वित्तीय दशा, जो आवेदन पर विचार किए जाने की तारीख से पूर्व दिवालापन या तीस दिन की अवधि तक ऋणों के संदाय की डिक्रियों की तुष्टि न होने से साक्ष्यित है ;

(ख) आवेदक, आवेदन पर विचार किए जाने की उस तारीख के पंद्रह दिन पूर्व से गणना करने पर बारह मास के भीतर उस द्वारा चलाई जा रही मंजिली गाड़ी सेवा के परिणामस्वरूप किए गए निम्नलिखित अपराधों में से किसी अपराध के लिए दो या अधिक बार दंडित किया गया है, अर्थात्

                (i) (1) ऐसे यान पर देय कर का संदाय किए बिना कोई वाहन चलाना ;

                (2) कर के संदाय के लिए अनुज्ञात अनुकंपा अवधि के दौरान ऐसे कर का संदाय किए बिना कोई वाहन चलाना और तत्पश्चात् ऐसे यान को चलाना बंद कर देना ;

                (3) किसी अप्राधिकृत मार्ग पर कोई वाहन चलाना ;

                (ii) अप्राधिकृत ट्रिप लगाना :

                परंतु खंड (ख) के प्रयोजन के लिए दंडादेशों की संख्या की गणना करने में, अपील प्राधिकारी के आदेश से रोके गए दंडादेश को हिसाब में नहीं लिया जाएगा :

                परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन कोई आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक आवेदक को सुनवाई का अवसर नहीं दे दिया जाता है ।

                (5) जहां किसी परमिट की अवधि की समाप्ति के पश्चात् इस धारा के अधीन उसका नवीकरण किया गया है वहां ऐसा नवीकरण ऐसी समाप्ति की तारीख से प्रभावी होगा चाहे धारा 87 के खंड (घ) के अधीन अस्थायी परमिट दिया गया हो या न दिया गया हो तथा जहां अस्थायी परमिट दिया गया है वहां ऐसे अस्थायी परमिट के संबंध में दी गई फीस वापस कर दी जाएगी ।

82. परमिट का अंतरण-(1) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई भी परमिट उस परिवहन प्राधिकरण की, जिसने वह परमिट दिया था, अनुज्ञा के बिना एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अंतरणीय न होगा, तथा ऐसी अनुज्ञा के बिना ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसे उस परमिट के अंतर्गत यान अंतरित किया गया है, उस यान का उपयोग उस परमिट द्वारा प्राधिकृत रीति से करने के लिए कोई अधिकार प्रदान न करेगा ।

(2) जब परमिट के धारक की मृत्यु हो जाती है, तब परमिट के अंतर्गत यान का उत्तराधिकार से कब्जा पाने वाला व्यक्ति परमिट का उपयोग तीन मास की अवधि के लिए ऐसे कर सकेगा मानो वह उसे ही दिया गया हो :

परन्तु यह तब जब कि ऐसे व्यक्ति ने धारक की मृत्यु के तीस दिन के अंदर उस परिवहन प्राधिकरण को, जिसने परमिट दिया था, धारक की मृत्यु की और परमिट का उपयोग करने के अपने आशय की सूचना दी हो :

परन्तु यह और कि किसी भी परमिट का इस प्रकार उपयोग उस तारीख के पश्चात् नहीं किया जाएगा जिसको वह मृत धारक के पास होने पर नवीकरण के बिना प्रभावी नहीं रह जाता ।

(3) परिवहन प्राधिकरण, परमिट के धारक की मृत्यु के तीन मास के अंदर उसे आवेदन किए जाने पर परमिट उस व्यक्ति को अंतरित कर सकेगा जिसने परमिट के अंतर्गत यानों पर उत्तराधिकार से कब्जा प्राप्त किया है :

परन्तु परिवहन प्राधिकरण तीन मास की उक्त अवधि के अवसान के पश्चात् किए गए आवेदन को उस दशा में ग्रहण कर सकेगा जब उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक विनिर्दिष्ट समय के भीतर आवेदन करने से उचित और पर्याप्त हेतुक से निवारित हो गया था ।

83. यानों का बदला जाना-परमिट का धारक उस प्राधिकरण की अनुज्ञा से, जिसने परमिट दिया था, परमिट के अंतर्गत किसी यान को उसी किस्म के किसी अन्य यान से बदल सकेगा ।

84. सभी परमिटों से संलग्न साधारण शर्तें-प्रत्येक परमिट की निम्नलिखित शर्तें होंगी-

                (क) परमिट से संबंधित यान के पास धारा 56 के अधीन दिया गया ठीक हालत में होने का विधिमान्य प्रमाणपत्र है और उन्हें सर्वदा ऐसी हालत में बनाए रखा जाता है जिससे इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं की पूर्ति होती है ;

                (ख) परमिट से संबंधित यान को इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञात गति से अधिक गति पर नहीं चलाया जाता ;

                (ग) धारा 67 के अधीन की गई अधिसूचना द्वारा लगाए गए किसी प्रतिषेध या निर्बंधन का तथा नियत किए गए किसी किराए या माल-भाड़े का ऐसे यान के संबंध में अनुपालन किया जाता है जिनसे परमिट संबंधित है ;

                (घ) परमिट से संबंधित यान को धारा 5 या धारा 113 के उपबंधों का उल्लंघन करके नहीं चलाया जाता ;

                (ङ) इस अधिनियम के जो उपबन्ध ड्राइवरों के काम के समय को परिसीमित करने के बारे में हैं, उनका ऐसे यान या यानों के संबंध में अनुपालन किया जाता है जिनसे परमिट संबंधित है ;

                (च) अध्याय 10, अध्याय 11 और अध्याय 12 के उपबंधों का, जहां तक वे परमिट के धारक को लागू होते हैं, अनुपालन किया जाता है ; और

                (छ) आपरेटर का नाम और पता परमिट से संबंधित प्रत्येक यान की बाह्य बाड़ो पर उसके दोनों ओर यान के रंग से विषम चटकीले किसी रंग या किन्हीं रंगों में खिड़की सीमा के नीचे जितना ऊपर हो सके उतना ऊपर बीच में मोटे अक्षरों में लिखा जाएगा या उस यान पर अन्यथा दृढ़ता से चिपकाया जाएगा ।

85. परमिटों का साधारण प्ररूप-इस अधिनियम के अधीन दिया गया प्रत्येक परमिट अपने आप में पूर्ण होगा और उसमें परमिट की सब आवश्यक विशिष्टियां होंगी और उस पर लगाई गई शर्तें दी हुई होंगी ।

86. परमिटों का रद्द किया जाना और उनका निलंबन-(1) जिस परिवहन प्राधिकरण ने परमिट दिया है वह निम्नलिखित दशाओं में परमिट रद्द कर सकेगा या इतनी अवधि के लिए निलंबित कर सकेगा जितनी वह ठीक समझे, अर्थात् :-

(क) धारा 84 में विनिर्दिष्ट किसी शर्त के या परमिट की किसी शर्त के भंग होने पर ; या

(ख) यदि परमिट का धारक किसी यान का उपयोग किसी ऐसी रीति से करता है या कराता है या करने देता है, जो परमिट द्वारा प्राधिकृत नहीं है ; या

(ग) यदि परमिट का धारक उस यान का स्वामी नहीं रह जाता है, जो परमिट के अंतर्गत है ; या

(घ) यदि परमिट के धारक ने परमिट को कपट या दुर्व्यपदेशन द्वारा अभिप्राप्त किया है ; या

(ङ) यदि माल वाहक परमिट का धारक, उचित कारण के बिना उस यान का उपयोग उन प्रयोजनों के लिए करने में असफल रहता है जिनके लिए परमिट दिया गया था ; या

(च) यदि परमिट का धारक किसी विदेश की नागरिकता अर्जित कर लेता है :

परन्तु कोई भी परमिट तब तक निलंबित या रद्द नहीं किया जाएगा जब तक परमिट के धारक को अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर न दे दिया गया हो ।

                (2) परिवहन प्राधिकरण किसी ऐसे परमिट के संबंध में, जो ऐसे किसी प्राधिकरण या व्यक्ति द्वारा दिया गया है जिसे धारा 68 की उपधारा (5) के अधीन इस निमित्त शक्ति प्रत्यायोजित की गई है, उपधारा (1) के अधीन अपने को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग इस प्रकार कर सकेगा मानो उक्त परमिट, परिवहन प्राधिकरण द्वारा दिया गया परमिट हो ।

                (3) जहां परिवहन प्राधिकरण किसी परमिट को रद्द या निलंबित करता है वहां वह की गई कार्रवाई के बारे में अपने कारण उसके धारक को लिखित रूप में देगा ।

                (4) जिस परिवहन प्राधिकरण ने परमिट दिया था वह (परमिट रद्द करने की शक्ति से भिन्न) जिन शक्तियों का प्रयोग उपधारा (1) के अधीन कर सकता है उनका प्रयोग ऐसा कोई प्राधिकरण या व्यक्ति कर सकेगा जिसे ऐसी शक्तियां धारा 68 की उपधारा (5) के अधीन प्रत्यायोजित की गई हैं ।

                (5) जहां कोई परमिट उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ङ) के अधीन रद्द या निलंबित किए जाने योग्य है और परिवहन प्राधिकरण की यह राय है कि मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए परमिट को इस प्रकार रद्द या निलंबित करना उस दशा में आवश्यक या समीचीन न होगा जब परमिट का धारक एक निश्चित धनराशि देने के लिए सहमत हो जाता है वहां उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी परिवहन प्राधिकरण, यथास्थिति, परमिट को रद्द या निलंबित करने के बजाय परमिट के धारक से वह धनराशि वसूल कर सकेगा जिसके बारे में सहमति हुई है ।

                (6) जहां धारा 89 के अधीन अपील की गई है वहां परिवहन प्राधिकरण उपधारा (5) के अधीन जिन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है उनका अपील प्राधिकारी भी प्रयोग कर सकेगा ।

                (7) धारा 88 की उपधारा (9) में निर्दिष्ट परमिट के संबंध में, परमिट देने वाले परिवहन प्राधिकरण द्वारा उपधारा (1) के अधीन प्रयोक्तव्य (परमिट रद्द करने की शक्ति से भिन्न) शक्तियां, किसी भी परिवहन प्राधिकरण और किसी प्राधिकारी या व्यक्तियों द्वारा, जिनको इस निमित्त शक्ति धारा 68 की उपधारा (5) के अधीन प्रत्यायोजित की गई है, प्रयोग की जा सकेगी मानो उक्त परमिट किसी ऐसे प्राधिकारी या व्यक्तियों द्वारा दिया गया परमिट था ।

87. अस्थायी परमिट-(1) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण और राज्य परिवहन प्राधिकरण धारा 80 में अधिकथित प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना, ऐसे परमिट दे सकेंगे जो हर मामले में अधिक से अधिक चार मास की सीमित अवधि के लिए प्रभावी होंगे और जो अस्थायी रूप से परिवहन यान का उपयोग निम्नलिखित के लिए प्राधिकृत करेंगे, अर्थात् :-

                (क) यात्रियों को विशेष अवसरों पर, जैसे मेलों और धार्मिक सम्मेलनों में, ले जाने और वहां से लाने के लिए ; या

                (ख) मौसमी कारबार के प्रयोजनों के लिए ; या

                (ग) किसी विशिष्ट अस्थायी आवश्यकता की पूर्ति के लिए ; या

                (घ) परमिट के नवीकरण के आवेदन पर विनिश्चय लंबित रहने तक के लिए,

और ऐसे किसी परमिट पर ऐसी शर्तें लगा सकेंगे जो वे ठीक समझते हैं :

                परन्तु, यथास्थिति, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण या राज्य परिवहन प्राधिकरण, माल वाहकों की दशा में, असाधारण प्रकृति की परिस्थितियों के अधीन और उनके लिए जो कारण हैं उन्हें लेखबद्ध करके, चार मास से अधिक किंतु एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए परमिट दे सकेंगे ।

                (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, उस उपधारा के अधीन किसी मार्ग या क्षेत्र की बाबत अस्थायी परमिट-

(i) उस दशा में जिसमें उस मार्ग या क्षेत्र के लिए कोई परमिट किसी न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी के ऐसे आदेश के कारण जिससे उसका दिया जाना रोक दिया गया है, धारा 72 या धारा 74 या धारा 76 या धारा 79 के अधीन नहीं दिया जा सकता, इतनी अवधि के लिए दिया जा सकेगा जितनी उससे अधिक न हो, जिसके लिए परमिट का दिया जाना ऐसे रोक दिया गया है, या

(ii) उस दशा में जिसमें उस मार्ग या क्षेत्र की बाबत किसी यान के परमिट को किसी न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा निलंबित किए जाने के परिणामस्वरूप उसी वर्ग के किसी परिवहन यान के पास उसी मार्ग या क्षेत्र की बाबत विधिमान्य परमिट नहीं है, अथवा उस मार्ग या क्षेत्र के लिए ऐसे यानों की संख्या पर्याप्त नहीं है, इतनी अवधि के लिए दिया जा सकेगा जितनी ऐसे निलंबन की अवधि से अधिक न हो :

                परन्तु उन परिवहन यानों की संख्या, जिनकी बाबत अस्थायी परिमिट इस प्रकार दिए गए हैं, उन यानों की संख्या से अधिक न होगी जिनकी बाबत, यथास्थिति, परमिटों का दिया जाना रोक दिया गया है या परमिट निलंबित कर दिया गया है ।

88. जिस प्रदेश में परमिट दिए गए हैं उससे बाहर उनका उपयोग किए जाने के लिए उनका विधिमान्यकरण-(1) जैसा कि अन्यथा विहित किया जाए उसके सिवाय, कोई परमिट जो किसी एक प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ने दिया है, किसी अन्य प्रदेश में तब तक विधिमान्य न होगा जब तक कि वह परमिट उस अन्य प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न कर दिया गया हो और वह परमिट, जो किसी एक राज्य में दिया गया है, किसी अन्य राज्य में तब तक विधिमान्य न होगा जब तक कि वह उस अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण द्वारा या संबंधित प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न कर दिया गया हो :

परन्तु माल वाहक परमिट, जो किसी एक प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ने उसी राज्य में किसी अन्य प्रदेश या प्रदेशों में किसी क्षेत्र के लिए दिया है, संबंधित अन्य प्रदेश के या अन्य प्रदेशों में से हर एक के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के प्रतिहस्ताक्षर के बिना उस क्षेत्र में विधिमान्य होगा :

परन्तु यह और कि जहां किसी मार्ग के आरंभ होने का स्थान और समाप्त होने का स्थान एक ही राज्य में स्थित है, किन्तु ऐसे मार्ग का कुछ भाग किसी अन्य राज्य में पड़ता है और ऐसे भाग की लंबाईं सोलह किलोमीटर से अधिक नहीं है वहां परमिट, इस बात के होते हुए भी कि वह परमिट उस अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षित नहीं है, मार्ग के उस भाग की बाबत, जो अन्य राज्य में पड़ता है, अन्य राज्य में विधिमान्य होगा :

परन्तु यह भी कि-

(क) जहां एक राज्य में दिए गए परमिट के अंतर्गत किसी मोटर यान का उपयोग किसी अन्य राज्य में रक्षा प्रयोजनों के लिए किया जाना है वहां वह यान ऐसे प्ररूप में और ऐसे प्राधिकारी द्वारा, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, जारी किया गया इस आशय का एक प्रमाणपत्र प्रदर्शित करेगा कि उस यान का उपयोग उसमें विनिर्दिष्ट अवधि तक अनन्य रूप से रक्षा के प्रयोजनों के लिए किया जाएगा ; और

(ख) ऐसा कोई परमिट उस अन्य राज्य में इस बात के होते हुए भी विधिमान्य होगा कि वह परमिट उस अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित नहीं है ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी ऐसा परमिट, जो राज्य परिवहन प्राधिकरण द्वारा दिया गया या प्रतिहस्ताक्षरित है, संपूर्ण राज्य भर के लिए या राज्य में ऐसे प्रदेशों के लिए, जो परमिट में विनिर्दिष्ट किए जाएं, विधिमान्य होगा ।

(3) प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण परमिट पर प्रतिहस्ताक्षर करते समय परमिट के साथ कोई भी ऐसी शर्त लगा सकेगा जो वह उस दशा में लगा सकता था जब वह परमिट उसी ने दिया होता तथा इसी प्रकार ऐसी किसी शर्त में परिवर्तन कर सकेगा जो उस प्राधिकरण ने उस परमिट के साथ लगाई थी जिसने वह परमिट दिया था ।

(4) इस अध्याय के वे उपबंध, जो परमिटों के दिए जाने, प्रतिसंहरण और निलंबन से संबंधित हैं, परमिटों पर प्रतिहस्ताक्षर किए जाने, उनके प्रतिसंहरण और निलंबन के संबंध में लागू होंगे

परन्तु जहां उपधारा (5) की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के पश्चात् राज्यों के बीच हुए किसी करार के परिणामस्वरूप यह अपेक्षित है कि किसी एक राज्य में दिए गए परमिट अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण या संबंधित प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किए जाएं, वहां परमिटों को प्रतिहस्ताक्षरित करने के लिए धारा 80 में दी गई प्रक्रिया का अनुसरण करना आवश्यक न होगा ।

(5) ऐसे परमिटों की संख्या नियत करने के लिए जिनको प्रत्येक मार्ग या क्षेत्र की बाबत दिए जाने या प्रतिहस्ताक्षर किए जाने की प्रस्थापना है, राज्यों के बीच करार करने की प्रत्येक प्रस्थापना, प्रत्येक संबंधित राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में और करार के अन्तर्गत प्रस्थापित क्षेत्र या मार्ग में परिचालित प्रादेशिक भाषा के किसी एक या अधिक समाचारपत्र में प्रकाशित की जाएगी जिसके साथ उस तारीख की, जिसके पूर्व उनसे संबंधित अभ्यावेदन दिए जा सकेंगे और राजपत्र में प्रकाशन की तारीख से तीस दिन से कम न होने वाली उस तारीख की, जिसको और उस प्राधिकारी की, जिसके द्वारा तथा उस समय और स्थान की सूचना भी होगी जहां प्रस्थापना और उनके संबंध में प्राप्त अभ्यावेदन पर विचार किया जाएगा ।

(6) राज्यों के बीच हुआ प्रत्येक करार, जहां तक कि उसका संबंध परमिटों के प्रतिहस्ताक्षरित किए जाने से है, संबंधित राज्य सरकारों में से प्रत्येक द्वारा राजपत्र में और करार के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र या मार्ग में परिचालित प्रादेशिक भाषा के किसी एक या अधिक समाचारपत्र में प्रकाशित किया जाएगा और उस राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण तथा संबंधित प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण उसे प्रभावी करेंगे ।

(7) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, एक प्रदेश का प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण धारा 87 के अधीन ऐसा अस्थायी परमिट दे सकेगा, जो, यथास्थिति, उस अन्य प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण की या उस अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण की साधारणतया दी गई या विशिष्ट अवसर के लिए दी गई सहमति से अन्य प्रदेश या राज्य में विधिमान्य होगा ।

(8) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं, यथास्थिति, किसी एक प्रदेश का प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण या राज्य परिवहन प्राधिकरण  [जनता की सुविधा के लिए, ऐसे किसी सार्वजनिक सेवा यान को, जिसके अंतर्गत किसी अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा के अधीन भाड़े या पारिश्रमिक पर यात्री या यात्रियों का वहन करने के लिए धारा 72 के अधीन या इस धारा 74 के  अधीन या इस धारा की उपधारा (9) के अधीन दिए गए परमिट के अंतर्गत आने वाला कोई यान है (जिसके अंतर्गत आरक्षित मंजिली गाड़ी है), मार्ग में ऐसे यात्रियों को, जो उस संविदा में सम्मिलित नहीं हैं, चढ़ाने या उतारने के लिए रुके बिना, उस संपूर्ण यान का उपयोग करने के लिए विशेष परमिट दे सकेगाट और ऐसे प्रत्येक मामले में जिसमें ऐसा विशेष परमिट दिया गया है, प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, उस यान पर संप्रदर्शित किए जाने के लिए ऐसे प्रारूप में और रीति से, जो केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे, उसे एक विशेष भिन्नता सूचक चिह्न देगा तथा ऐसा विशेष परमिट, यथास्थिति, उस अन्य प्रदेश के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के या उस अन्य राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकरण के प्रतिहस्ताक्षर के बिना उस अन्य प्रदेश या राज्य में विधिमान्य होगा ।

(9) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उपधारा (14) के अधीन बनाए जाएं, कोई राज्य परिवहन प्राधिकरण, पर्यटन की अभिवृद्धि के प्रयोजन के लिए संपूर्ण भारत के लिए या ऐसे लगे राज्यों में जो कम से कम संख्या में तीन हों, जिसके अंतर्गत वह राज्य भी हैं जिसमें परमिट दिया गया है और जो आवेदन में उपदर्शित पसंद के अनुसार ऐसे परमिट में विनिर्दिष्ट किए जाएं, पर्यटन यानों की बाबत विधिमान्य परमिट दे सकेगा और धारा 73, धारा 74, धारा 80, धारा 81, धारा 82, धारा 83, धारा 84, धारा 85, धारा 86 1[धारा 87 की उपधारा (1) के खंड (घ) और धारा 89] के उपबंध ऐसे परमिटों के संबंध में यथाशक्य लागू होंगे ।

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(11) उपधारा (9) के अधीन दिए गए प्रत्येक परमिट की निम्नलिखित शर्तें होंगी, अर्थात् :-

(i) प्रत्येक मोटर यान, जिसकी बाबत ऐसा परमिट दिया गया है, ऐसे वर्णन के अनुरूप होगा, बैठने के स्थान, आराम, सुख-सुविधाओं और अन्य बातों के स्तर विषयक ऐसी अपेक्षाओं के अनुरूप होगा जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ;

(ii) ऐसे प्रत्येक मोटर यान को वह व्यक्ति चलाएगा जिसके पास ऐसी अर्हताएं हैं और जो ऐसी शर्तों को पूरा करता है जो केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे ; और

                (iii) ऐसी अन्य शर्तें जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(12) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उपधारा (14) के अधीन बनाए जाएं, समुचित प्राधिकारी अधिक दूरी के अंतरराज्यिक सड़क परिवहन को बढ़ावा देने के प्रयोजन के लिए किसी राज्य में माल वाहकों की बाबत राष्ट्रीय परमिट दे सकेगा और धारा 69, धारा 77, धारा 79, धारा 80, धारा 81, धारा 82, धारा 83, धारा 84, धारा 85 धारा 86, 1[धारा 87 की उपधारा (1) के खंड (घ) और धारा 89ट के उपबंध राष्ट्रीय परमिटों के दिए जाने को या उनके संबंध में यथाशक्य लागू होंगे ।

2।                            ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(14) (क) केन्द्रीय सरकार इस धारा के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।

(ख) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सब बातों या उनमें से किसी के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

                (i) उपधारा (9) और उपधारा (12) में निर्दिष्ट कोई परमिट दिए जाने के लिए दी जाने वाली प्राधिकरण फीस ;

                (ii) मोटर यान का लदान सहित भार नियत किया जाना ;

                (iii) मोटर यान में ले जाए जाने वाली या उस पर प्रदर्शित की जाने वाली सुभेदक विशिष्टियां या चिह्न ;

                (iv) वह रंग या वे रंग जिनसे मोटर यान को रंगा जाना है ;

                (v) ऐसी अन्य बातें जो समुचित प्राधिकारी राष्ट्रीय परमिट देने में विचार करे ।

स्पष्टीकरण-इस धारा में,-

(क) किसी राष्ट्रीय परमिट के संबंध में  समुचित प्राधिकारी" से वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अधीन माल वाहक परमिट देने के लिए प्राधिकृत है ;

(ख) प्राधिकरण फीस" से अभिप्रेत है एक हजार रुपए से अनधिक की वार्षिक फीस जो किसी राज्य का समुचित प्राधिकारी उपधारा (9) और उपधारा (12) में निर्दिष्ट परमिट के अंतर्गत आने वाले किसी मोटर यान का अन्य राज्यों में, संबंधित राज्यों द्वारा उद्गृहीत करों या फीसों, यदि कोई हों, के संदाय के अधीन रहते हुए, उपयोग करने को समर्थ बनाने के लिए प्रभारित कर सकेगा ;

(ग) राष्ट्रीय परमिट" से समुचित प्राधिकारी द्वारा माल वाहक गाड़ियों को दिया गया ऐसा परमिट अभिप्रेत है, जो उसे भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में अथवा जिस राज्य में वह परमिट दिया गया है उसको सम्मिलित करके एक दूसरे से लगे हुए कम से कम चार राज्यों में जो आवेदन में उपदर्शित पसंद के अनुसार ऐसे परमिट में विनिर्दिष्ट किए जाएं, चलाने के            लिए है ।

89. अपील-(1) कोई भी व्यक्ति, जो-

                (क) राज्य या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा परमिट देने से इंकार करने या उसे दिए गए परमिट पर लगाई गई किसी शर्त से व्यथित है, या

                (ख) परमिट के प्रतिसंहरण या निलंबन से या उसकी शर्तों में किए गए किसी परिवर्तन से व्यथित है, या

                (ग) धारा 82 के अधीन परमिट का अंतरण करने से इंकार करने से व्यथित है, या

                (घ) राज्य के प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा परमिट को प्रतिहस्ताक्षरित करने से इंकार करने या ऐसे प्रतिहस्ताक्षरण पर लगाई गई किसी शर्त से व्यथित है, या

                (ङ) परमिट के नवीकरण से इंकार करने से व्यथित है, या

                (च) धारा 83 के अधीन अनुज्ञा देने से इंकार करने से व्यथित है, या

                (छ) किसी अन्य आदेश से, जो विहित किया जाए, व्यथित है,

उपधारा (2) के अधीन गठित राज्य परिवहन अपील अधिकरण को विहित समय से अंदर और विहित रीति से अपील कर सकेगा जो ऐसे व्यक्ति और मूल प्राधिकारी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् उसका विनिश्चय करेगा, जो अंतिम होगा ।

                 [(2) राज्य सरकार, उतने परिवहन अपील अधिकरणों का गठन करेगी, जितने वह ठीक समझे और प्रत्येक ऐसे अधिकरण में ऐसा एक न्यायिक अधिकारी होगा, जो जिला न्यायाधीश की पंक्ति से नीचे का न हो या जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए अर्हित हो और वह अधिकारिता का ऐसे क्षेत्र के भीतर प्रयोग करेगा, जो उस सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए ।]

                (3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक अपील पर, जो इस अधिनियम के प्रारंभ पर लंबित है, इस तरह आगे कार्यवाही किया जाना और निपटाया जाना जारी रखा जाएगा मानो यह अधिनियम पारित नहीं हुआ था ।

                स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए इसके द्वारा घोषित किया जाता है कि जब राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण उस निदेश के अनुसरण में ऐसा कोई आदेश देता है जो अंतरराज्य परिवहन आयोग ने मोटर यान अधिनियम, 1939 (1939 का 4) जो इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पहले था, की धारा 63क की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन दिया है, और कोई व्यक्ति ऐसे आदेश से इस आधार पर व्यथित है कि वह आदेश ऐसे निदेश के अनुरूप नहीं है तब वह राज्य परिवहन अपील अधिकरण को ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील उपधारा (1) के अधीन कर सकेगा, किन्तु ऐसे दिए गए निदेश के विरुद्ध अपील नहीं कर सकेगा ।

90. पुनरीक्षण-राज्य परिवहन अपील अधिकरण, उसे आवेदक किए जाने पर, ऐसे किसी मामले का अभिलेख मंगा सकेगा जिसमें कोई ऐसा आदेश राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा दिया गया है जिसके विरुद्ध कोई अपील नहीं होती है, और यदि राज्य परिवहन अपील अधिकरण को यह प्रतीत होता है कि राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा दिया गया आदेश अनुचित या अवैध है, तो राज्य परिवहन अपील अधिकरण उस मामले के संबंध में ऐसा आदेश दे सकेगा, जो वह ठीक समझता है, और ऐसा प्रत्येक आदेश अंतिम होगा :

परंतु राज्य परिवहन अपील अधिकरण किसी ऐसे व्यक्ति से जो, राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण के आदेश से व्यथित है, कोई आवेदन तभी ग्रहण करेगा जब वह आवेदन उस आदेश की तारीख से तीस दिन के अंदर कर दिया गया है, अन्यथा नहीं :

परन्तु यह और कि यदि राज्य परिवहन अपील अधिकरण का समाधान हो जाता है कि उचित और पर्याप्त कारणों से आवेदक समय के भीतर आवेदन करने से रोक दिया गया था तो वह तीस दिन की उक्त अवधि के अवसान के पश्चात् भी आवेदन ग्रहण कर सकेगा :

परन्तु यह भी कि राज्य परिवहन अपील अधिकरण इस धारा के अधीन कोई ऐसा आदेश, जिससे किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उस व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना नहीं देगा ।

91. ड्राइवरों के काम के घंटों के बारे में निबंधन- [(1) किसी परिवहन यान को चलाने में लगे किसी व्यक्ति के काम के घंटे उतने होंगे, जितने मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम, 1961 (1961 का 2) में उपबंधित हैं ।]

(2) राज्य सरकार, आपात की दशाओं का या ऐसी परिस्थितियों के कारण विलंब की दशाओं का सामना करने के लिए जिनकी पूर्व कल्पना नहीं की जा सकती थी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपधारा (1) के उपबंधों से ऐसी छूट दे सकेगी जो वह ठीक समझती है ।

(3) राज्य सरकार अथवा धारा 96 के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किए जाने पर राज्य या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण उन व्यक्तियों को, जिनका काम उपधारा (1) के उपबंधों में से किसी के अधीन आता है नियोजित करने वाले व्यक्तियों से अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसे व्यक्तियों के काम के घंटे पहले से ही ऐसे नियत करे कि वे इन उपबंधों के अनुरूप हो जाए तथा ऐसे नियत किए गए घंटों का अभिलेख रखे जाने के लिए उपबंध कर सकेगा ।

(4) कोई व्यक्ति उपधारा (3) के अधीन ऐसे व्यक्तियों के लिए नियत या अभिलिखित किए गए काम के घंटों के अलावा न तो काम करेगा न किसी ऐसे अन्य व्यक्तियों से काम कराएगा और न काम करने की अनुज्ञा ही देगा ।

(5) राज्य सरकार उन परिस्थितियों को, जिनके अधीन और ऐसी अवधि को विहित कर सकेगी, जिसके दौरान यान का ड्राइवर यद्यपि काम पर नियोजित न होते हुए, यान पर या उसके निकट रहने के लिए अपेक्षित है, यह समझा जा सकेगा कि वह उपधारा (1) के अर्थ में विश्रामकाल है ।

92. दायित्व का निर्बंधन करने वाली संविदाओं का शून्यकरण-मंजिली-गाड़ी या ठेका गाड़ी में, जिसकी बाबत इस अध्याय के अधीन परमिट दिया गया है, यात्री वहन करने की कोई संविदा वहां तक शून्य होगी जहां तक वह किसी व्यक्ति के ऐसे दायित्व के नकारने या निर्बंधित करने के लिए तात्पर्यित है जो उस यात्री के यान में वहन किए जाने, चढ़ने या उससे उतरने के समय उसकी मृत्यु या शारीरिक क्षति के संबंध में उस व्यक्ति के विरुद्ध दिए गए किसी दावे की बाबत है या किसी ऐसे दायित्व के प्रवर्तन की बाबत कोई शर्तें अधिरोपित करने के लिए तात्पर्यित है ।

93. अभिकर्ता या प्रचारक द्वारा अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त करना-कोई भी व्यक्ति-

(i) सार्वजनिक सेवा यानों द्वारा यात्री के लिए टिकटों के विक्रय में अभिकर्ता या प्रचारक के रूप में अथवा ऐसे यानों के लिए ग्राहकों की अन्य रूप में याचना करने में ; या

(ii) माल वाहनों द्वारा वहन किए जाने वाले माल को संगृहीत, अग्रेषित या वितरित करने के कारबार में अभिकर्ता के रूप में,

अपने को तभी लगाएगा, जब उसने ऐसे प्राधिकरण से अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त कर ली है और ऐसी शर्तों पर ही लगाएगा जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं, अन्यथा नहीं ।

                (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट शर्तों में निम्नलिखित सब बातें या उनमें से कोई हो सकेगी, अर्थात् :-

                                (क) वह अवधि जिसके लिए अनुज्ञप्ति दी जा सकेगी या उसका नवीकरण हो सकेगा ;

                                (ख) अनुज्ञप्ति दी जाने या उसके नवीकरण के लिए देय फीस ;

                (ग) (i) माल वाहनों द्वारा वहन किए जाने वाले माल के संग्रहण, अग्रेषण या वितरण के कारबार में लगे अभिकर्ता की दशा में अधिक से अधिक पचास हजार रुपए तक की राशि की ;

                (ii) किसी अन्य अभिकर्ता या प्रचारक की दशा में अधिक से अधिक पांच हजार रुपए तक की राशि की,

                प्रतिभूति जमा करना ;

                और वे परिस्थितियां जिनमें वह प्रतिभूति समपहृत की जा सकेगी ;

                                (घ) अभिकर्ता द्वारा अभिवहन में माल का बीमा कराने की व्यवस्था ;

                (ङ) वह प्राधिकारी जिसके द्वारा और वे परिस्थितियां जिनमें अनुज्ञप्ति निलंबित की जा सकेगी या प्रतिसंहृत की जा सकेगी ;

                                (च) ऐसी अन्य शर्तें जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

                (3) प्रत्येक अनुज्ञप्ति की यह शर्त होगी कि कोई भी ऐसा अभिकर्ता या प्रचारक, जिसे अनुज्ञप्ति दी गई है, किसी समाचारपत्र, पुस्तक, सूची, वर्गीकृत निदेशिका या अन्य प्रकाशन में तब तक विज्ञापित नहीं करेगा जब तक कि ऐसे समाचारपत्र, पुस्तक, सूची, वर्गीकृत निदेशिका या अन्य प्रकाशन में आने वाले ऐसे विज्ञापन में अनुज्ञप्ति संख्यांक, अनुज्ञप्ति के अवसान की तारीख और अनुज्ञप्ति देने वाले प्राधिकारी की विशिष्टियां न दी गई हों ।

94. सिविल न्यायालयों को अधिकारिता का वर्जन-किसी भी सिविल न्यायालय को इस अधिनियम के अधीन परमिट दिए जाने से संबंधित किसी प्रश्न के ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी, और इस अधिनियम के अधीन परमिट दिए जाने के संबंध में सम्यक् रूप से गठित प्राधिकरणों द्वारा की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई की बाबत कोई व्यादेश किसी सिविल न्यायालय द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा ।

95. मंजिली गाड़ियों और ठेका गाड़ियों की बाबत राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार मंजिली गाड़ियों और ठेका गाड़ियों की बाबत और ऐसे यानों में यात्रियों के आचरण का विनियमन करने के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम-

(क) ऐसे यान से ऐसे व्यक्ति का, जो नियमों का अतिलंघन कर रहा है, उस यान के ड्राइवर या कंडक्टर द्वारा, अथवा ड्राइवर या कंडक्टर या किसी यात्री के अनुरोध पर किसी पुलिस अधिकारी द्वारा निकाल दिया जाना प्राधिकृत कर सकेंगे ;

(ख) ऐसे यात्री से, जिसकी बाबत ड्राइवर या कंडक्टर को युक्तियुक्त रूप से यह संदेह है कि वह नियमों का उल्लंघन कर रहा है, यह अपेक्षा कर सकेंगे कि वह मांग किए जाने पर पुलिस अधिकारी को अथवा ड्राइवर या कंडक्टर को अपना नाम और पता बताए ;

(ग) किसी यात्री से यह अपेक्षा कर सकेंगे कि यदि उससे ड्राइवर या कंडक्टर मांग करता है तो वह यह बताए कि यान में कितनी यात्रा करने का उसका विचार है या कितनी यात्रा उसने की है और ऐसी पूरी यात्रा के लिए किराया दे और उसके लिए जारी किया गया कोई टिकट ले ;

(घ) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि टिकट का धारक उस टिकट की जो उसे दिया गया है, ड्राइवर या कंडक्टर या अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसे यान के स्वामी ने प्राधिकृत किया है इस प्रयोजन के लिए मांग किए जाने पर यात्रा के दौरान दिखाए और यात्रा की समाप्ति पर अभ्यर्पित कर दें ;

(ङ) किसी यात्री से अपेक्षा कर सकेंगे कि यदि ड्राइवर या कंडक्टर उससे अनुरोध करे तो वह उस यात्रा की समाप्ति पर यान से उतर जाए जिसके लिए उसने किराया दिया है ;

                (च) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि टिकट का धारक टिकट को उस अवधि के अवसान पर अभ्यर्पित कर दे जिसके लिए उसे टिकट दिया गया है ;

(छ) किसी यात्री से अपेक्षा कर सकेंगे कि वह ऐसी कोई बात न करे जिससे यान के कार्यचालन में बाधा या अड़चन होने की संभावना है या यान के किसी भाग को या उसके किसी उपस्कर को नुकसान होने की संभावना है अथवा किसी अन्य यात्री को क्षति या कष्ट होने की संभावना है ;

(ज) किसी यात्री से अपेक्षा कर सकेंगे कि वह किसी ऐसे यान में धूम्रपान न करे जिसमें धूम्रपान प्रतिषिद्ध करने की सूचना प्रदर्शित की गई है ;

(झ) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि मंजिली गाड़ियों में शिकायत पुस्तकें रखी जाएं और वे शर्तें विहित कर सकेंगे जिन पर यात्री उनमें कोई शिकायत दर्ज कर सकेंगे ।

96. इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना इस धारा के अधीन निम्नलिखित सब बातों या उनमें से किसी की बाबत नियम बनाए जा सकेंगे, अर्थात् :-

(i) प्रादेशिक और राज्य परिवहन प्राधिकरणों की नियुक्ति की अवधि और उनकी नियुक्ति के निबन्धन तथा उनके द्वारा कारबार का संचालन और उनके द्वारा दी जाने वाली रिपोर्टें ;

(ii) किसी ऐसे प्राधिकरण द्वारा उसके किसी सदस्य की (जिसके अन्तर्गत अध्यक्ष भी है) अनुपस्थिति में कारबार का संचालन तथा उस कारबार का स्वरूप, वे परिस्थितियां जिनमें और वह रीति जिससे कारबार ऐसे संचालित किया जा   सकता है ;

(iii) उन अपीलों का संचालन और सुनवाई जो इस अध्याय के अधीन की जाएं, ऐसी अपीलों की बाबत दी जाने वाली फीसें तथा ऐसी फीसों का प्रतिदाय ;

(iv) वे प्ररूप जिनका इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाना है, जिनके अन्तर्गत परमिटों के प्ररूप    भी हैं ;

(v) खोए, नष्ट हुए या कटे-फटे परमिटों के बदले में परमिटों की प्रतिलिपियों का दिया जाना ;

(vi) वे दस्तावेजें, प्लेटें, और चिह्न जो परिवहन यानों द्वारा अपने साथ ले जाए जाने हैं, वह रीति जिससे वे ले जाए जाने हैं तथा वे भाषाएं जिनमें कोई ऐसी दस्तावेजें अभिव्यक्त की जानी हैं ;

(vii) परमिटों, परमिटों की दूसरी प्रतियों और प्लेटों के लिए आवेदनों के संबंध में दी जाने वाली फीसें ;

(viii) इस अध्याय के अधीन दी जाने वाली सभी या किन्ही फीसों या उनके किन्हीं भागों को देने से विहित व्यक्तियों या विहित वर्गों के व्यक्तियों को छूट ;

(ix) परमिटों की अभिरक्षा, उनका प्रस्तुत किया जाना तथा उनके प्रतिसंहरण या उनकी समाप्ति पर उनका रद्द किया जाना, तथा जो परमिट रद्द कर दिए गए हैं, उनका लौटाया जाना ;

(x) वे शर्तें जिन पर और वह विस्तार जिस तक अन्य राज्य में दिया गया परमिट प्रतिहस्ताक्षर के बिना राज्य में विधिमान्य होगा ;

(xi) वे शर्तें जिन पर और वह विस्तार जिस तक एक प्रदेश में दिया गया परमिट प्रतिहस्ताक्षर के बिना राज्य के अन्य प्रदेश में विधिमान्य होगा ;

(xii) वे शर्तें, जो धारा 67 की उपधारा (1) के खंड (iii) में निर्दिष्ट प्रकार के किसी करार को प्रभावी करने के प्रयोजन से परमिट पर लगाई जानी है ;

(xiii) वे प्राधिकरण जिनको, वह समय जिसके अन्दर और वह रीति जिससे अपीलें की जा सकेंगी ;

(xiv) चाहे साधारणतया या विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में मंजिली गाड़ियों और ठेका गाड़ियों की संरचना और उनके फिटिंग तथा उनके द्वारा ले जाए जाने वाले उपस्कर ;

(xv) मंजिली गाड़ी या ठेका गाड़ी जितने यात्रियों का वहन करने के लिए अनुकूलित है उनकी संख्या का अवधारण और उतने यात्रियों की संख्या का अवधारण जिनका वहन किया जा सकेगा ;

(xvi) वे शर्तें जिन पर मंजिली गाड़ियों तथा ठेका गाड़ियों द्वारा यात्रियों के बदले में भागतः या पूर्णतः माल का वहन किया जा सकेगा ;

(xvii) मंजिली गाड़ी या ठेका गाड़ी में छोड़ी गई संपत्ति की निरापद अभिरक्षा और उसका व्ययन ;

(xviii) परिवहन यानों की रंगाई और चिह्नांकन का विनियमन तथा किसी विज्ञापन का उन पर संप्रदर्शन और विशिष्टतया परिवहन यानों को ऐसे रंग में या ऐसी रीति से रंगने या चिह्नित करने का प्रतिषेध जिससे कोई व्यक्ति यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित हो जाए कि उस यान का डाक परिवहन के लिए उपयोग किया जाता है ;

(xix) मंजिली गाड़ियों या ठेका गाड़ियों में शवों का अथवा संक्रामक या सांसर्गिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों का अथवा यात्रियों को असुविधा या क्षति कर सकने वाले माल का प्रवहण तथा ऐसे वाहनों का उस दशा में निरीक्षण और विसंक्रामण जब उनका उपयोग इन प्रयोजनों के लिए किया जाता है ;

(xx) मोटर टैक्सियों पर ऐसे टैक्सी मीटरों का लगाया जाना जिनके लिए अनुमोदन अपेक्षित है, अथवा मानक प्रकार के टैक्सी मीटरों का उपयोग किया जाना और टैक्सी मीटरों की जांच और परीक्षा और उनको मुद्राबन्द करना ;

(xxi) विनिर्दिष्ट स्थानों या विनिर्दिष्ट क्षेत्रों पर अथवा सम्यक् रूप से अधिसूचित अड्डों या विराम स्थलों से भिन्न स्थानों पर मंजिली गाड़ियों अथवा ठेका गाड़ियों द्वारा यात्रियों को चढ़ाए जाने या उतारे जाने का प्रतिषेध तथा मंजिली गाड़ी के ड्राइवर से यह अपेक्षा करना कि वह, जब कोई यात्री अधिसूचित विराम स्थान पर यान में चढ़ना या यान से उतरना  चाहता है, तब उसके द्वारा अपेक्षा की जाने पर वाहन को रोके और उचित समय तक खड़ा रखे ;

(xxii) वे अपेक्षाएं जिनकी पूर्ति सम्यक् रूप से अधिसूचित किसी अड्डे या विराम स्थान के सन्निर्माण या उपयोग में की जाएगी, जिनके अंतर्गत उनका उपयोग करने वाले सभी की सुविधा के लिए यथेष्ट उपस्कर और सुविधाओं की      व्यवस्था करना ; वह फीस यदि कोई हो, जो ऐसी सुविधाओं के उपयोग के लिए प्रभारित की जा सकेगी, वे अभिलेख जो ऐसे अड्डों और स्थानों पर रखे जाएंगे, वे कर्मचारिवृन्द जो वहां नियोजित किए जाएंगे तथा ऐसे कर्मचारिवृन्द के कर्तव्य और आचरण तथा साधारणतया ऐसे अड्डों और स्थानों को उपयोग के योग्य और स्वच्छ दशा में बनाए रखना भी है ;

(xxiii) मोटर टैक्सी रैंकों का विनियमन ;

(xxiv) परिवहन यानों के स्वामियों से यह अपेक्षा करना कि वे अपने पतों में किसी तब्दीली की सूचना दें अथवा भाड़े या पारिश्रमिक पर यात्रियों का वहन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले किसी यान के काम न करने या उसे कोई नुकसान हो जाने की रिपोर्ट दें ;

(xxv) विनिर्दिष्ट व्यक्तियों को ऐसे सब परिसरों में, जो परमिटों के धारकों द्वारा अपने कारबार के प्रयोजनों के लिए काम में लाए जाते हैं, किसी भी उचित समय पर प्रवेश करने और उनका निरीक्षण करने के लिए प्राधिकृत करना ;

(xxvi) मंजिली गाड़ी के भारसाधक व्यक्ति से यह अपेक्षा करना कि वह वैध या आमतौर पर लिया जाने वाला किराया देने वाले किसी भी व्यक्ति को ले जाए ;

(xxvii) वे शर्तें जिन पर और उस किस्म के आधान या यान जिनमें पशु या पक्षी ले जाए जा सकेंगे, और वे मौसम जिनके दौरान पशु या पक्षी ले जा सकेंगे या नहीं ले जाए जा सकेंगे ;

(xxviii) उन अभिकर्ताओं या प्रचारकों का अनुज्ञापन तथा उनके आचरण का विनियमन जो सार्वजनिक सेवा यानों द्वारा यात्रा करने के टिकटों के विक्रय में या ऐसे यानों के लिए अन्यथा ग्राहकी की याचना करने के काम में लगे हुए हैं ;

(xxix) माल वाहनों द्वारा वहन किए जाने वाले माल के अग्रेषण और वितरण के लिए संग्रहण के कारबार में लगे अभिकर्ताओं का अनुज्ञापन ;

(xxx) परिवहन यानों और उनकी अंतर्वस्तुओं तथा उनसे संबंधित परमिटों का निरीक्षण ;

(xxxi) माल वाहनों में ड्राइवर से भिन्न व्यक्तियों को ले जाना ;

(xxxii) परिवहन यानों के स्वामियों द्वारा रखे जाने वाले अभिलेख और दी जाने वाली विवरणियां ; और

(xxxiii) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाए ।

अध्याय 6

राज्य परिवहन उपक्रमों के बारे में विशेष उपबंध

97. परिभाषा-इस अध्याय में, जब तक कि सदंर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, सड़क परिवहन सेवा" से भाड़े या पारिश्रमिक पर सड़क से यात्री या माल अथवा दोनों का वहन करने वाले मोटर यानों द्वारा सेवा अभिप्रेत है ।

98. इस अध्याय का अध्याय 5 और अन्य विधियों पर अध्यारोही होना-इस अध्याय और इसके अधीन बनाए गए नियम या किए गए आदेश के उपबंध अध्याय 5 में या इस समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अथवा किसी ऐसी विधि के आधार पर प्रभावी किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे ।

99. राज्य परिवहन उपक्रम की सड़क परिवहन सेवा के संबंध में प्रस्थापना का तैयार किया जाना और प्रकाशन- [(1)] जहां किसी राज्य सरकार की यह राय है कि एक दक्ष, यथोचित, मितव्ययी और समुचित रूप से समन्वित सड़क परिवहन सेवा उपलब्ध कराने के प्रयोजन से लोक हित में आवश्यक है कि साधारणतः सड़क परिवहन सेवाएं अथवा उसके किसी क्षेत्र या मार्ग या भाग के संबंध में किसी विशिष्ट प्रकार की ऐसी सेवा राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा, चाहे अन्य व्यक्तियों का पूर्णतया या आंशिक रूप से अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाई जाए और चालू रखी जाए, वहां राज्य सरकार उन सेवाओं के स्वरूप की, जिनके उपलब्ध कराए जाने की    प्रस्थापना है, और उस क्षेत्र या मार्ग की, जिस पर उसे चलाने की प्रस्थापना है, विशिष्टियां और उससे संबंधित अन्य सुसंगत विशिष्टियां देते हुए एक स्कीम के संबंध में प्रस्थापना बना सकेगी और ऐसी बनाई गई प्रस्थापना को राज्य सरकार के राजपत्र में और उस क्षेत्र या मार्ग में, जिसमें ऐसी स्कीम चलाने की प्रस्थापना है, परिचालित प्रादेशिक भाषा के कम से कम एक समाचारपत्र में, तथा ऐसी अन्य रीति से भी, जो ऐसी प्रस्थापना बनाने वाली राज्य सरकार ठीक समझे, प्रकाशित कराएगी ।

                 [(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जब कोई प्रस्थापना उस उपधारा के अधीन प्रकाशित की जाती है, तब,  ऐसी प्रस्थापना के प्रकाशन की तारीख से किसी भी व्यक्ति को प्रस्थापना के लंबित रहने के दौरान अस्थायी परमिट के सिवाय कोई परमिट, नहीं दिया जाएगा और ऐसा अस्थायी परमिट दिए जाने की तारीख से केवल एक वर्ष की अवधि तक या धारा 100 के अधीन स्कीम के अंतिम रूप से प्रकाशन की तारीख तक इनमें से जो भी पूर्वतर हो, विधिमान्य होगा ।]

100. प्रस्थापना पर आपत्ति-(1) राजपत्र में किसी स्कीम के संबंध में प्रस्थापना के प्रकाशन पर तथा उस क्षेत्र या मार्ग में, जिसमें ऐसी स्कीम चलाने की प्रस्थापना है, परिचालित प्रादेशिक भाषा के कम से कम एक समाचारपत्र में प्रकाशन पर कोई भी व्यक्ति राजपत्र में उसके प्रकाशन की तारीख से तीस दिन के अन्दर उसके बारे में आपत्तियां राज्य सरकार के समक्ष फाइल कर सकेगा ।

                (2) राज्य सरकार ऐसी आपत्तियों पर विचार करने के पश्चात् तथा आपत्तिकर्ता या उसके प्रतिनिधियों, और राज्य परिवहन उपक्रम के प्रतिनिधियों को, यदि वे ऐसा चाहें, इस विषय में सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, ऐसी प्रस्थापना का अनुमोदन या उसमें परिवर्तन कर सकेगी ।

                (3) उपधारा (2) के अधीन अनुमोदित या उपांतरित रूप में प्रस्थापना से संबंधित स्कीम तब ऐसी स्कीम बनाने वाली राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में और उस स्कीम के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र या मार्ग में परिचालित प्रादेशिक भाषा के कम से कम एक समाचारपत्र में प्रकाशित की जाएगी और वैसा हो जाने पर वह राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को अन्तिम होगी तथा अनुमोदित स्कीम कही जाएगी और जिस क्षेत्र या मार्ग से वह संबंधित है वह अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग कहलाएगा :

                परन्तु ऐसी कोई स्कीम, जो किसी अंतरराज्यिक मार्ग से संबंधित है, तभी अनुमोदित स्कीम समझी जाएगी जब उस पर केन्द्रीय सरकार का पूर्व अनुमोदन हो; अन्यथा नहीं ।

                (4) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, जहां कोई स्कीम उपधारा (1) के अधीन स्कीम से संबंधित प्रस्थापना के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष की अवधि के अन्दर राजपत्र में उपधारा (3) के अधीन अनुमोदित स्कीम के रूप में प्रकाशित नहीं की जाती है वहां वह प्रस्थापना व्यपगत हो गई समझी जाएगी ।

                स्पष्टीकरण-इस उपधारा में निर्दिष्ट एक वर्ष की अवधि की संगणना करने में ऐसी कालावधि या कालावधियां जिनके दौरान उपधारा (3) के अधीन अनुमोदित स्कीम का प्रकाशन किसी न्यायालय के रोक आदेश या आदेश के कारण रुक गया था,  अपवर्जित कर दी जाएंगी ।

101. राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा कतिपय परिस्थितियों में अतिरिक्त सेवाओं का चलाया जाना-धारा 87 में किसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य परिवहन उपक्रम, लोकहित में, विशेष अवसरों पर, जैसे मेलों और धार्मिक सम्मेलनों की ओर से यात्रियों के प्रवहण के लिए अतिरिक्त सेवाएं चला सकेगा :

                परंतु राज्य परिवहन उपक्रम, संबंधित परिवहन प्राधिकरण को ऐसी अतिरिक्त सेवाओं के चलाए जाने के बारे में अविलम्ब सूचित करेगा ।

102. स्कीम का रद्द या उपांतरित किया जाना-(1) यदि राज्य सरकार किसी भी समय लोकहित में ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह प्रस्तावित उपान्तरण की बाबत-

(i) राज्य परिवहन उपक्रम को ; और

(ii) किसी अन्य व्यक्ति को जिसका राज्य सरकार की राय में प्रस्तावित उपान्तरण से प्रभावित होना संभाव्य है,

सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् किसी अनुमोदित स्कीम को उपान्तरित कर सकेगी ।

(2) राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन प्रस्तावित किसी उपान्तरण को राजपत्र में और उस क्षेत्र में, जिसको ऐसे उपान्तरण के अन्तर्गत लाने का प्रस्ताव है ; परिचालित प्रादेशिक भाषाओं के एक समाचार-पत्र में प्रकाशित करेगी और उसमें यह तारीख होगी,  जो राजपत्र में ऐसे प्रकाशन से तीस दिन से कम नहीं होगी और वह समय और स्थान भी होगा जहां इस निमित्त प्राप्त किसी अभ्यावेदन की राज्य सरकार द्वारा सुनवाई की जाएगी ।

103. राज्य परिवहन उपक्रमों को परमिट दिया जाना-(1) जहां किसी अनुमोदित स्कीम के अनुसरण में कोई राज्य परिवहन उपक्रम अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग की बाबत मंजिली गाड़ी परमिट या माल वाहक परमिट या ठेका गाड़ी परमिट के लिए ऐसी रीति से, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विहित की जाए, आवेदन करता है वहां जब उक्त क्षेत्र या मार्ग एक से अधिक प्रदेशों में पड़ता है तब राज्य परिवहन प्राधिकरण और किसी अन्य दशा में प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण, अध्याय 5 में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, राज्य परिवहन उपक्रम को ऐसे परमिट देगा ।

                (2) इस प्रयोजन से कि अनुमोदित स्कीम अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग के बारे में कार्यान्वित की जाए, यथास्थिति, राज्य परिवहन प्राधिकरण या संबंधित प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण आदेश द्वारा,-

(क) कोई अन्य परमिट देने या उसका नवीकरण करने के किसी आवेदन को ग्रहण करने से इन्कार कर सकेगा अथवा किसी ऐसे आवेदन को नामंजूर कर सकेगा, जो लम्बित हो ;

(ख) किसी विद्यमान परमिट को रद्द कर सकेगा ;

(ग) किसी विद्यमान परमिट के निबन्धनों में ऐसे उपांतरण कर सकेगा कि-

                (i) वह परमिट किसी विनिर्दिष्ट तारीख से आगे के लिए प्रभावहीन हो जाए ;

                (ii) उस परमिट के अधीन प्रयुक्त किए जाने के लिए प्राधिकृत यानों की संख्या घट जाए ;

                (iii) उस परमिट के अन्तर्गत क्षेत्र या मार्ग वहां तक कम हो जाए जहां तक कि वह परमिट अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग से संबंधित है ।

                (3) शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया जाता है कि उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन राज्य परिवहन प्राधिकरण या किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा की गई किसी कार्रवाई या दिए गए आदेश के विरुद्ध कोई अपील न होगी ।

104. अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग की बाबत परमिट दिए जाने पर निर्बन्धन-जहां किसी अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग की बाबत कोई स्कीम धारा 100 की उपधारा (3) के अधीन प्रकाशित की गई है वहां, यथास्थिति, राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण कोई भी परमिट उस स्कीम के उपबंधों के अनुसार ही देगा, अन्यथा नहीं :

                परन्तु जहां अनुमोदित स्कीम के अनुसरण में किसी अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग की बाबत परमिट के लिए कोई आवेदन राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा नहीं किया गया है वहां, यथास्थिति, राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ऐसे अधिसूचित क्षेत्र या अधिसूचित मार्ग की बाबत किसी व्यक्ति को अस्थायी परमिट इस शर्त पर दे सकेगा कि ऐसा परमिट उस क्षेत्र या मार्ग की बाबत राज्य परिवहन उपक्रम को परमिट दिए जाने पर प्रभावी नहीं रहेगा ।

105. प्रतिकर अवधारित करने के सिद्धांत और रीति तथा उसका संदाय-(1) जहां धारा 103 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कोई विद्यमान परमिट रद्द किया जाता है या उसके निबन्धनों में उपांतरण किया जाता है वहां उस परमिट के धारक को राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा प्रतिकर दिया जाएगा जिसकी रकम, यथास्थिति, उपधारा (4) या उपधारा (5) के उपबंधों के अनुसार अवधारित की जाएगी ।

                (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, किसी विद्यमान परमिट के रद्द किए जाने अथवा उसके निबन्धनों में कोई उपांतरण किए जाने के कारण कोई प्रतिकर उस दशा में देय न होगा जब उसके बदले में किसी दूसरे मार्ग या क्षेत्र के लिए, यथास्थिति, राज्य परिवहन प्राधिकरण या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण ने परमिट देने का प्रस्ताव किया है और परमिट के धारक ने उसे स्वीकार कर लिया है ।

                (3) शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया जाता है कि कोई भी प्रतिकर धारा 103 की उपधारा (2) के खण्ड (क) के अधीन परमिट का नवीकरण करने से इन्कार करने के कारण देय न होगा ।

                (4) जहां धारा 103 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के उपखण्ड (i) अथवा उपखण्ड (ii) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कोई विद्यमान परमिट रद्द किया जाता है या उसके निबन्धनों में ऐसे उपांतरण किए जाते हैं कि परमिट का धारक उसके अधीन उपयोग के लिए प्राधिकृत किसी यान का उपयोग उस पूरी अवधि के लिए, जिसके लिए वह परमिट अन्यथा प्रभावी होता, करने से निवारित हो जाता है वहां ऐसे रद्द किए जाने या उपांतरण से प्रभावित प्रत्येक यान के लिए परमिट के धारक को देय प्रतिकर की संगणना निम्नलिखित रीति से की जाएगी :-

(क) परमिट की असमाप्त अवधि के प्रत्येक पूरे मास के लिए या मास के पन्द्रह दिन से अधिक के भाग के लिए-

दो सौ रुपए ;

(ख) परमिट की असमाप्त अवधि के मास के उस भाग के लिए जो पन्द्रह दिन से अधिक नहीं है-     एक सौ रुपए :

                परन्तु प्रतिकर की रकम किसी भी दशा में चार सौ रुपए से कम न होगी ।

                (5) जहां धारा 103 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (iii) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी विद्यमान परमिट के निबन्धनों में ऐसे उपांतरण किए जाते हैं कि उसके अधीन उपयोग के लिए प्राधिकृत किसी यान का क्षेत्र या मार्ग कम हो जाता है वहां ऐसी कमी के कारण परमिट के धारक को देय प्रतिकर निम्नलिखित सूत्र के अनुसार संगणित रकम होगी, अर्थात् :-

यर

                स्पष्टीकरण-इस सूत्र में-

                                (i) ‘य’ से वह दूरी या क्षेत्र अभिप्रेत है जितने से परमिट के अन्तर्गत मार्ग या क्षेत्र कम किया जाता है ;

                                (ii) ‘र’ से वह रकम अभिप्रेत है जो उपधारा (4) के अनुसार संगणित की गई है ;

                                (iii) ‘म’ से मार्ग की वह कुल लम्बाई अथवा वह कुल क्षेत्र अभिप्रेत है जो परमिट के अंतर्गत है ।

                (6) इस धारा के अधीन देय प्रतिकर की रकम उसके हकदार व्यक्ति या व्यक्तियों को राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा उस  तारीख से, जिसको परमिट का रद्द किया जाना या परिवर्तन प्रभावी होता है, एक मास के अन्दर दी जाएगी :

                परन्तु यदि राज्य परिवहन उपक्रम उक्त एक मास की अवधि के अन्दर उसे देने में असफल रहता है तो वह उस तारीख से, जिसको वह रकम देय होती है, उस पर सात प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देगा ।

106. यानों में पाई गई वस्तुओं का व्ययन-जहां राज्य परिवहन उपक्रम द्वारा चलाए जा रहे किसी परिवहन यान में पाई गई किसी वस्तु पर उसके स्वामी द्वारा विहित अवधि के अन्दर दावा नहीं किया जाता वहां राज्य परिवहन उपक्रम उस वस्तु को विहित रीति से बेच सकेगा और उसके विक्रय-आगम, उसके स्वामी द्वारा उनकी मांग किए जाने पर, उनमें से विक्रय के आनुषंगिक खर्चे काट कर, उसे दे दिए जाएंगे ।

107. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार इस अध्याय के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :-

                                (क) वह प्ररूप जिसमें किसी स्कीम की बाबत कोई प्रस्थापना धारा 99 के अधीन प्रकाशित की जा सकेगी ;

                                (ख) वह रीति जिसमें धारा 100 की उपधारा (1) के अधीन आक्षेप फाइल किए जा सकेंगे ;

                (ग) वह रीति जिसमें धारा 100 की उपधारा (2) के अधीन आक्षेपों पर विचार और उनका निपटारा किया          जा सकेगा ;

                (घ) वह प्ररूप जिसमें धारा 100 की उपधारा (3) के अधीन कोई अनुमोदित स्कीम प्रकाशित की जा सकेगी ;

                (ङ) वह रीति जिसमें धारा 103 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन किया जा सकेगा ;

                (च) वह अवधि जिसके अन्दर किसी परिवहन यान में छूटी पाई गई किसी वस्तु का स्वामी, धारा 106 के अधीन उसके लिए दावा कर सकेगा तथा उस वस्तु के विक्रय की रीति ;

                (छ) इस अध्याय के अधीन आदेशों की तामील की रीति ;

                (ञ) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाए ।

108. राज्य सरकार की कुछ शक्तियों का केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रयोग किया जा सकना-राज्य सरकार को इस अध्याय के अधीन प्रदत्त शक्तियां, ऐसे निगम या कम्पनी के सम्बन्ध में, जो केन्द्रीय सरकार के अथवा केन्द्रीय सरकार और एक या अधिक राज्य सरकारों के स्वामित्वाधीन या नियन्त्रणाधीन हैं, किसी अन्तरराज्यिक मार्ग या क्षेत्र के बारे में केवल केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रयुक्त की  जा सकेंगी ।

अध्याय 7

मोटर यानों का निर्माण, उपस्कर और अनुरक्षण

109. यानों के निर्माण और अनुरक्षण संबंधी साधारण उपबन्ध-(1) प्रत्येक मोटर यान का निर्माण ऐसे किया जाएगा और उसे ऐसे अनुरक्षित रखा जाएगा कि वह हर समय उसे चलाने वाले व्यक्ति के वास्तविक नियंत्रण में रहे ।

                (2) जब तक कि मोटर यान में विहित प्रकार की यांत्रिक या वैद्युत संकेतन युक्ति लगी न हो तब तक प्रत्येक मोटर यान, ऐसे निर्मित किया जाएगा कि उसमें स्टीयरिंग नियंत्रण दाहिनी ओर हो ।

                 [(3) यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, यह अधिसूचित कर सकेगी कि किसी विनिर्माता द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली कोई वस्तु या प्रक्रिया ऐसे मानक के अनुरूप होगी, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए ।]

110. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार मोटर यानों और ट्रेलरों के निर्माण, उपस्कर और अनुरक्षण का विनियमन करने के लिए निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी की बाबत नियम बना सकेगी, अर्थात् :-

                                (क) यानों की और ले जाए जाने वाले भार की चौड़ाई, ऊंचाई, लम्बाई और प्रलंब ;

 [(ख) टायरों का आकार, प्रकार, अधिकतम खुदरा कीमत और हालत जिसके अन्तर्गत (विनिर्माण की तारीख और वर्ष का उस पर समुद्भृत किया जाना है और अधिकतम भार वहन क्षमता ;)]

(ग) ब्रेक और स्टीयरिंग गियर ;

(घ) सुरक्षा कांच का प्रयोग, जिसके अंतर्गत कलईदार सुरक्षा कांच के प्रयोग का प्रतिषेध है ;

(ङ) संकेतन-साधित्र, लैम्प और परावर्तक ;

(च) गति नियंत्रक ;

(छ) धुएं, दिखाई देने वाली भाप, चिन्गारी, राख, बाल-कण या तेल का उत्सर्जन ;

(ज) यानों से निकलने वाली या होने वाली आवाज को घटाना ;

(झ) चेसिस संख्यांक तथा इंजन संख्यांक और विनिर्माण की तारीख का उत्कीर्ण होना ;

(ञ) सुरक्षा पट्टियां, मोटर साइकिलों की हैंडिल श्लाका, ऑटो-डिपर और ड्राइवरों, यात्रियों और सड़क का उपयोग करने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए आवश्यक अन्य उपस्कर ;

(ट) यान में अन्तःनिर्मित सुरक्षा युक्तियों के रूप में प्रयुक्त संघटकों के मानक ;

(ठ) मानव जीवन के लिए खतरनाक या परिसंकटमय प्रकृति के माल के परिवहन के लिए उपबंध ;

(ड) वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन के लिए मानक ;

 [(ढ) विहित किए जाने वाले यानों के वर्ग में उत्प्रेरक परिवर्तक का लगाया जाना ;

(ण) सार्वजनिक यानों में दृश्य, श्रव्य या रेडियो या टेपरिकार्डर जैसी युक्तियों का लगाया जाना ;

(त) यान के विक्रय के पश्चात् वारंटी और उसके लिए मानक :]

                परन्तु पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित विषयों के संबंध में कोई नियम ; जहां तक हो सके, भारत सरकार के पर्यावरण से संबंधित मंत्रालय से परामर्श करने के पश्चात् बनाए जाएंगे ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन उसमें वर्णित बातों को शासित करने वाले नियम बनाए जा सकेंगे जिनके अन्तर्गत ऐसी बातों का अनुपालन सुनिश्चित कराने की रीति और ऐसी बातों की बाबत या तो साधारणतया मोटर यानों या ट्रेलरों की बाबत या किसी विशिष्ट वर्ग या विशिष्ट परिस्थितियों में मोटर यानों या ट्रेलरों की बाबत मोटर यानों के अनुरक्षण भी हैं ।

                (3) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी-

                                (क) केंद्रीय सरकार, किसी वर्ग के मोटर यानों को इस अध्याय के उपबंधों से छूट दे सकेगी ;

(ख) कोई राज्य सरकार, किसी मोटर यान या किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को उपधारा (1) के अधीन बनाए गए नियमों से ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए छूट दे सकेगी जो केंद्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

111. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) कोई राज्य सरकार, मोटर यानों और ट्रेलरों के निर्माण, उपस्कर और अनुरक्षण का विनियमन करने के लिए धारा 110 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट बातों से भिन्न सभी बातों की बाबत नियम बना सकेगी ।

                (2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस धारा के अधीन या तो साधारणतया मोटर यानों या ट्रेलरों की बाबत या किसी विशिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यानों या ट्रेलरों की बाबत या विशिष्ट परिस्थितियों में निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी के बारे में नियम बनाए जा सकेंगे, अर्थात् :-

                (क) सार्वजनिक सेवा यानों में बैठने की व्यवस्था और मौसम से यात्रियों का संरक्षण ;

                (ख) कुछ समय पर या कुछ स्थानों में सुनाई देने वाले संकेतकों के प्रयोग का प्रतिषेध या निर्बन्धन ;

                (ग) ऐसे साधित्रों का ले जाया जाना, प्रतिषिद्ध करना जिनसे क्षोभ या खतरा होने की संभावना है ;

                (घ) विहित प्राधिकारियों द्वारा यानों का नियतकालिक परीक्षण और निरीक्षण  [और ऐसे परीक्षण के लिए प्रभारित की जाने वाली फीस ;]

                (ङ) रजिस्ट्रीकरण चिह्नों से भिन्न विशिष्टियां जो यानों पर प्रदर्शित की जानी हैं और वह रीति जिससे वे प्रदर्शित की जाएंगी ;

                (च) मोटर यानों के साथ ट्रेलरों का उपयोग ; और

                 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

अध्याय 8

यातायात का नियंत्रण

112. गति सीमा-(1) कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में किसी मोटर यान को न तो उस अधिकतम गति से अधिक या न्यूनतम गति से कम गति पर चलाएगा, न चलवाएगा और न चलाने देगा जो इस अधिनियम के अधीन या उस समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के द्वारा या अधीन उस यान के लिए नियत की गई है :

                परन्तु ऐसी अधिकतम गति किसी भी दशा में केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी मोटर यान या   किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यानों के लिए नियत की गई अधिकतम गति से अधिक नहीं होगी ।

(2) यदि राज्य सरकार का या ऐसे किसी प्राधिकारी का जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत हो, समाधान हो जाता है कि सार्वजनिक सुरक्षा या सुविधा की दृष्िट से या किसी सड़क या पुल के स्वरूप के कारण यह आवश्यक है कि मोटर यानों की गति परिसीमित की जाए, तो वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और धारा 116 के अधीन उचित स्थानों पर समूचित यातायात चिह्न रखवाकर या लगावाकर मोटर यानों की या किसी विनिर्दिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यानों की या ऐसे मोटर यानों की जिनके साथ ट्रेलर संलग्न है या तो साधारणतया या किसी विशिष्ट क्षेत्र में या विशिष्ट सड़क या सड़कों के बारे में ऐसी अधिकतम गति सीमाएं या न्यूनतम गति सीमाएं नियत कर सकेगी जो वह ठीक समझे :

                परन्तु ऐसी अधिसूचना आवश्यक नहीं होगी यदि इस धारा के अधीन कोई निर्बंधन एक मास से अधिक के लिए प्रवृत्त नहीं रहना है ।

                (3) इस धारा की कोई बात धारा 60 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी यान को उस समय लागू न होगी जब उसका उपयोग युद्धाभ्यास और खुले क्षेत्र में गोला चलाने तथा तोप दागने का अभ्यास अधिनियम, 1938 (1938 का 5) की धारा 2 की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट क्षेत्र में और अवधि के दौरान सैनिक युद्धाभ्यास के लिए किया जा रहा है ।

113. भार की सीमाएं और उपयोग किए जाने के बारे में निर्बन्धन-(1) राज्य सरकार राज्य या प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरणों द्वारा  [परिवहन यानों] के लिए परमिट दिए जाने के संबंध में शर्तें विहित कर सकेगी तथा किसी क्षेत्र में या मार्ग पर ऐसे यानों का उपयोग प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगी ।

                (2) जैसा अन्यथा विहित किया जाए उसके सिवाय, कोई व्यक्ति किसी ऐसे मोटर यान को, जिसमें वातीय टायर न लगे हों, किसी सार्वजनिक स्थान में न तो चलाएगा, न चलवाएगा और न चलाने देगा ।

                (3) कोई व्यक्ति ऐसे किसी मोटर यान या ट्रेलर को किसी सार्वजनिक स्थान में न तो चलाएगा, न चलवाएगा और न  चलाने देगा-

(क) जिसका लदान रहित भार यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में विनिर्दिष्ट लदान रहित भार से अधिक है, या

(ख) जिसका लदान सहित भार रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में विनिर्दिष्ट यान सहित सकल भार से अधिक है ।

                (4) जहां उपधारा (2) या उपधारा (3) के खंड (क) का उल्लंघन करके चलाए गए किसी मोटर यान या ट्रेलर का ड्राइवर या भारसाधक व्यक्ति उसका स्वामी नहीं है, वहां न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि वह अपराध उस मोटर यान या ट्रेलर के स्वामी की जानकारी से या उसके आदेशों के अधीन किया गया था ।

114. यान तुलवाने की शक्ति-(1)  [यदि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत मोटर यान विभाग के किसी अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि किसी माल यान या ट्रेलर का उपयोग धारा 113 का उल्लंघन करके किया जा रहा है तो वह ड्राइवर से यह अपेक्षा करेगा किट वह यान को तुलवाने के वास्ते ऐसे किसी तोलनयंत्र पर, यदि कोई हो, ले जाए जो किसी स्थान से आगे के मार्ग पर दस किलोमीटर की दूरी के अन्दर या यान के गन्तव्य स्थान से बीस किलोमीटर की दूरी के अन्दर हो, और यदि ऐसे तुलवाने पर यह पाया जाता है कि उस यान ने भार से संबंधित धारा 113 के उपबंधों का किसी प्रकार उल्लंघन किया है तो वह ड्राइवर को लिखित आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगा कि वह अधिक वजन को अपनी जोखिम पर उतार दे और यान या ट्रेलर को उस स्थान से तब तक न हटाए जब तक लदान सहित भार कम नहीं कर दिया जाता या यान अथवा ट्रेलर की बाबत अन्यथा ऐसी कार्रवाई नहीं कर दी जाती जिससे वह धारा 113 का अनुपालन करे और ऐसी सूचना प्राप्त होने पर ड्राइवर ऐसे निदेशों का पालन करेगा ।

                (2) जहां उपधारा (1) के अधीन प्राधिकृत व्यक्ति उक्त आदेश लिखित रूप में करता है वहां माल वाहन परमिट पर अधिक लदान से सुसंगत ब्यौरे भी पृष्ठांकित करेगा और ऐसे पृष्ठांकन का तथ्य उस प्राधिकारी को भी संसुचित करेगा जिसने वह परमिट दिया था ।

115. यानों का उपयोग निर्बंधित करने की शक्ति-यदि राज्य सरकार का या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि सार्वजनिक सुरक्षा या सुविधा की दृष्टि से या किसी सड़क या पुल के स्वरूप के कारण साधारणतया किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में या किसी विनिर्दिष्ट सड़क पर मोटर यानों या किसी विनिर्दिष्ट वर्ग या वर्णन के मोटर यानों के चलाए जाने या ट्रेलरों के उपयोग को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित करना आवश्यक है तो वह, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे अपवादों सहित और ऐसी शर्तों पर, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, ऐसा कर सकेगा और जब ऐसा कोई प्रतिषेध या निर्बन्धन अधिरोपित किया जाता है तब वह सरकार या प्राधिकारी धारा 116 के अधीन उचित स्थानों पर समुचित यातायात चिह्न रखवाएगा या लगावाएगा :

                परन्तु जहां इस धारा के अधीन कोई प्रतिषेध या निर्बन्धन एक मास से अधिक प्रवृत्त नहीं रहना है, वहां राजपत्र में उसकी अधिसूचना आवश्यक नहीं होगी, किन्तु ऐसे प्रतिषेध या निर्बन्धन का ऐसा स्थानीय प्रचार किया जाएगा जैसा परिस्थितियों में संभव हो ।

116. यातायात चिह्न लगवाने की शक्ति-(1) (क) राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी धारा 112 की उपधारा (2) के अधीन नियत किन्हीं गति सीमाओं को या धारा 115 के अधीन अधिरोपित किन्हीं प्रतिषेधों या निर्बन्धनों को या साधारणतया मोटर यान यातायात के विनियमन के प्रयोजन के लिए यातायात चिह्न को सार्वजनिक जानकारी के प्रयोजन के लिए किसी सार्वजनिक स्थान में रखवा या लगवा सकेगा अथवा रखने या लगाने देगा ।

                (ख) राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा या अनुसूची के भाग क में निर्दिष्ट समुचित यातायात चिह्न को उपयुक्त स्थानों में लगवा कर, केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए चालन विनियमों के प्रयोजनों के लिए कुछ सड़कों को मुख्य सड़कों के रूप में अभिहित कर सकेगा ।

                (2) ऐसे किसी प्रयोजन के लिए, जिसके लिए अनुसूची में उपबन्ध किया गया है, उपधारा (1) के अधीन रखे या लगाए गए यातायात चिह्नों का आकार, रंग और प्रकार वही होगा और उनके वही अर्थ होंगे, जो अनुसूची में दिए गए हैं, किन्तु राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त कोई प्राधिकारी उक्त अनुसूची में दिए गए किसी चिह्न में उस पर शब्दों, अक्षरों या अंकों का ऐसी लिपि में प्रतिलेखन जोड़ना प्राधिकृत कर सकेगा जो वह राज्य सरकार ठीक समझे, परन्तु ऐसे प्रतिलेखनों का आकार और रंग वैसा ही होगा जैसा अनुसूची में दिए गए शब्दों, अक्षरों या अंकों का है ।

                (3) उपधारा (1) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् कोई भी यातायात चिह्न किसी सड़क पर या उसके निकट न तो रखा जाएगा और न लागाया जाएगा ; किन्तु उन सभी यातायात चिह्नों  की बाबत जो इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा रखवाए या लगवाए गए थे, इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए यह समझा जाएगा कि वे उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन रखे या लगाए गए  यातायात चिह्न हैं ।

                (4) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, पुलिस अधीक्षक से अनिम्न पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को इस बात के लिए प्राधिकृत कर सकेगी कि वह किसी ऐसे चिह्न या विज्ञापन को, जो उसकी राय में इस प्रकार रखा गया है कि उसके कारण कोई यातायात चिह्न दिखाई नहीं पड़ता है अथवा किसी ऐसे चिह्न या विज्ञापन को, जो उसकी राय में किसी यातायात चिह्न के इतना समरूप है कि भ्रम पैदा हो सकता है, या जो उसकी राय में ड्राइवर की एकाग्रता या ध्यान को बटा सकता है, हटा दे या हटवा दे ।

                (5) कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन रखे गए या लगाए गए किन्हीं यातायात चिह्नों को न तो जानबूझकर हटाएगा, न परिवर्तित करेगा, न विरूपित करेगा और न किसी भी प्रकार से बिगाड़ेगा ।

                (6) यदि कोई व्यक्ति किसी यातायात चिह्न को घटनावश ऐसा नुकसान पहुंचाता है कि वह उस प्रयोजन के लिए बेकार हो जाता है जिसके लिए उसे इस धारा के अधीन रखा या लगाया गया है तो वह उन परिस्थितियों की, जिनमें यह घटना हुई है, रिपोर्ट यथाशीघ्र और किसी भी दशा में घटना के चौबीस घंटे के भीतर पुलिस अधिकारी को देगा या पुलिस थाने में करेगा ।

                (7) [पहली अनुसूची] में दिए गए चिह्नों को मोटर यातायात से संबंधित ऐसे अन्तरराष्ट्रीय कन्वेंशन के अनुरूप कर देने के प्रयोजन के लिए, जिसकी केन्द्रीय सरकार तत्समय एक पक्षकार है, केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसे चिह्न में कोई परिवर्धन या परिवर्तन कर सकेगी और ऐसी अधिसूचना के निकाले जाने पर 1[पहली अनुसूची] को तद्नुसार संशोधित समझा जाएगा ।

117. पार्किंग-स्थल और विराम स्थल-राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी संबंधित क्षेत्र में अधिकारिता रखने वाले स्थानीय प्राधिकारी से परामर्श करके ऐसे स्थान अवधारित कर सकेगा जहां मोटर यान या तो अनिश्चित या विनिर्दिष्ट समय तक ठहर सकेंगे, तथा वे स्थान अवधारित कर सकेगा जिनमें सार्वजनिक सेवा यान उतने समय से अधिक समय तक ठहर सकेंगे जितना यात्रियों को चढ़ाने और उतारने के लिए आवश्यक है ।

118. चालन विनियम-केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, मोटर यानों के चलाने के लिए विनियम बना सकेगी ।

119. यातायात चिह्नों का अनुसण करने का कर्तव्य-(1) मोटर यान का प्रत्येक ड्राइवर यान को किसी आज्ञापक यातायात चिह्न द्वारा दिए गए संकेत के अनुरूप और केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए चालन विनियमों के अनुरूप चलाएगा और उन सभी निदेशों का अनुपालन करेगा जो ऐसे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा दिए जाएं जो उस समय सार्वजनिक स्थान में यातायात का विनियमन करने में लगा हुआ है ।

                (2) इस धारा में आज्ञापक यातायात चिह्न" से अनुसूची के भाग क में दिया गया कोई यातायात चिह्न या उसी प्रकार का ऐसा कोई यातायात चिह्न (अर्थात् कोई युक्ति, शब्द या अंक प्रदर्शित करने वाली और लाल जमीन या किनारे वाली गोल डिस्क का या वैसी डिस्क वाला यातायात चिह्न) अभिप्रेत है जो धारा 116 की उपधारा (1) के अधीन मोटर यान यातायात को विनियमित करने के प्रयोजन के लिए रखा या लगाया गया है ।

120. बाईं ओर के नियंत्रण वाले यान-कोई व्यक्ति बाईं ओर के स्टीयरिंग नियंत्रण वाले ऐसे किसी मोटर यान को किसी सार्वजनिक स्थान में तभी चलाएगा या चलवाएगा या चलाने देगा, जब उसमें विहित प्रकार की यांत्रिक या विद्युत संकेतन युक्ति लगी हुई हो और वह चालू हालत में हो, अन्यथा नहीं ।

121. संकेत और संकेतन युक्तियां-किसी मोटर यान का ड्राइवर ऐसे संकेत ऐसे अवसरों पर करेगा जो केन्द्रीय सरकार विहित करे :

                परन्तु दाईं या बाईं ओर मुड़ने के या रोकने के आशय का संकेत-

(क) दाईं ओर के स्टीयरिंग नियंत्रण वाले मोटर यान की दशा में, यान में लगी विहित प्रकृति की यांत्रिक या विद्युत युक्ति द्वारा दिया जा सकेगा ; और

(ख) बाईं ओर के स्टीयरिंग नियंत्रण वाले मोटर यान की दशा में यान में लगी विहित प्रकृति की यांत्रिक या विद्युत युक्ति द्वारा दिया जाएगा :

                परंतु यह और कि राज्य सरकार, किसी क्षेत्र या मार्ग की चौड़ाई और हालत को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे किसी मोटर यान या ऐसे किसी वर्ग या वर्णन के मोटर यानों को उस क्षेत्र या मार्ग पर चलाने के प्रयोजन के लिए इस धारा के प्रवर्तन से ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए छूट दे सकेगी जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं ।

122. यान को खतरनाक स्थिति में छोड़ना-किसी मोटर यान का भारसाधक व्यक्ति किसी यान या ट्रेलर को किसी सार्वजनिक स्थान पर न तो ऐसी स्थिति में, न ऐसी हालत में और न ऐसी परिस्थितियों में छोड़ेगा या रहने देगा या छाड़ने या रहने देने की अनुज्ञा देगा, जिससे सार्वजनिक स्थान या उपयोग करने वाले अन्य व्यक्तियों या यात्रियों को खतरा, बाधा या असम्यक् असुविधा हो या होने की संभावना हो ।

123. रनिंग बोर्ड आदि पर सवारी करना-(1) मोटर यान का ड्राइवर या भारसाधक व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को न तो रनिंग बोर्ड पर ले जाएगा और न यान की बाडी के अंदर ले जाने से अन्यथा ले जाएगा और न ऐसे ले जाए जाने की अनुज्ञा देगा ।

                (2) कोई व्यक्ति मोटर यान के रनिंग बोर्ड या छत या बोनेट पर यात्रा नहीं करेगा ।

124. पास या टिकट के बिना यात्रा करने का प्रतिषेध-कोई व्यक्ति किसी मंजिली गाड़ी में यात्रा करने के प्रयोजन के लिए तभी प्रवेश करेगा या उसमें रहेगा, जब उसके पास समुचित पास या टिकट हो, अन्यथा नहीं :

                परंतु जहां मंजिली गाड़ी में ऐसे टिकट देने का प्रबंध है, जिसे लेकर किसी व्यक्ति को यात्रा करनी होती है, वहां कोई व्यक्ति ऐसी मंजिली गाड़ी में प्रवेश कर सकेगा, किंतु उसमें प्रवेश करने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र वह अपना किराया कंडक्टर या ड्राइवर को, जो कंडक्टर के कृत्यों का पालन करता हो, देगा और, यथास्थिति, ऐसे कंडक्टर या ड्राइवर से अपनी यात्रा के लिए टिकट लेगा ।

                स्पष्टीकरण-इस धारा में,-

(क) पास" से अभिप्रेत है कर्तव्य, विशेषाधिकार या सौजन्य पास जिससे वह व्यक्ति, जिसे यह पास दिया जाता है, मंजिली गाड़ी में निःशुल्क यात्रा करने का हकदार होता है और इसके अंतर्गत वह पास भी है जो उसमें विनिर्दिष्ट अवधि के लिए मंजिली गाड़ी में यात्रा के लिए संदाय किए जाने पर जारी किया गया है ;

(ख) टिकट" के अंतर्गत एकल टिकट, वापसी टिकट या सीजन टिकट भी है ।

125. ड्राइवर को बाधा-मोटर यान चलाने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसी रीति से या ऐसी जगह पर किसी व्यक्ति को खड़ा रहने या बैठने अथवा किसी वस्तु को रखने की अनुज्ञा न देगा जिससे यान पर अपना नियंत्रण रखने में ड्राइवर को रुकावट हो ।

126. खड़े यान-कोई भी व्यक्ति, जो मोटर यान चला रहा है या उसका भारसाधक है, उस यान को किसी सार्वजनिक स्थान में उस दशा के सिवाय खड़ा न रखेगा या खड़ा रखने की अनुज्ञा न देगा, जब ड्राइवर की सीट पर ऐसा व्यक्ति है जो उस यान को चलाने के लिए सम्यक् रूप से अनुज्ञप्त है अथवा जब उसकी यांत्रिक क्रिया बंद कर दी गई है और ब्रेक लगा दिया गया है या लगा दिए गए हैं  या ऐसे अन्य उपाय कर लिए गए हैं जिनसे यह सुनिश्िचत हो गया है कि ड्राइवर की अनुपस्थिति में वह यान घटनावश चल नहीं सकता ।

127. सार्वजनिक स्थान पर परित्यक्त या अकेला छोड़े गए मोटर यानों का हटाया जाना- [(1) जहां कोई मोटर यान किसी सार्वजनिक स्थान पर दस घंटे या उससे अधिक तक परित्यक्त या अकेला छोड़ दिया जाता है अथवा किसी ऐसे स्थान पर खड़ा किया जाता है जहां ऐसा खड़ा किया जाना विधिक रूप से प्रतिषिद्ध है वहां अधिकारिता प्राप्त वर्दी पहने हुए पुलिस अधिकारी, यान अनुकर्षण सेवा द्वारा उसके हटाने को अथवा किसी अन्य साधन द्वारा, जिसके अंतर्गत पहिया क्लैम्पन है, उसकी निश्चलता को प्राधिकृत कर सकेगा ।]

                (2) जहां कोई परित्यक्त, अकेला छोड़ा गया, टूटा हुआ, जला हुआ या आंशिक रूप से खुला हुआ यान, 1[सार्वजनिक स्थान]   के संबंध में, उसकी स्थिति के कारण, यातायात संकट उत्पन्न कर रहा है अथवा उसकी विद्यमानता यातायात में बाधा उत्पन्न कर रही है वहां अधिकारिता प्राप्त पुलिस अधिकारी द्वारा उसको यान अनुकर्षण सेवा द्वारा 1[सार्वजनिक स्थान] से तुरंत हटाने के लिए प्राधिकृत किया जा सकता है ।

                (3) जहां कोई यान उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी पुलिस अधिकारी द्वारा हटाए जाने के लिए प्राधिकृत किया जाता है, वहां यान का स्वामी सभी अनुकर्षण खर्चों तथा उसके अतिरिक्त किसी अन्य शास्ति के लिए भी उत्तरदायी होगा ।

128. ड्राइवरों और पिछली सवारियों के लिए सुरक्षा उपाय-(1) दो पहिए वाले मोटर साइकिल का ड्राइवर मोटर साइकिल पर अपने अतिरिक्त एक से अधिक व्यक्ति नहीं ले जाएगा और ऐसा कोई व्यक्ति ड्राइवर की सीट के पीछे उपयुक्त सुरक्षा उपायों से दृढ़ता से लगी हुई समुचित सीट पर बैठा कर ही ले जाया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

                (2) केंद्रीय सरकार, उपधारा (1) में उल्लिखित सुरक्षा उपायों के अतिरिक्त, दो पहिया मोटर साइकिलों और उनकी पिछली सवारियों के लिए अन्य सुरक्षा उपाय विहित कर सकेगी ।

129. सुरक्षात्मक टोप का पहनना-किसी वर्ग या वर्णन की मोटर साइकिल को (साइड कार से अन्यत्र) चलाने वाला या उस पर सवारी करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, जब किसी सार्वजनिक स्थान पर हो,  [ऐसे वर्णन का सुरक्षात्मक टोप पहनेगा जो भारतीय मानक ब्यूरो के मानको के अनुरूप होट :

                परंतु यदि कोई ऐसा व्यक्ति, जो सिक्ख है, किसी सार्वजनिक स्थान पर, मोटर साइकिल चलाते या उस पर सवारी करते समय पगड़ी पहने हुए है तो इस धारा के उपबन्ध उसे लागू नहीं होंगे :

                परंतु यह और कि राज्य सरकार, ऐसे अपवादों के लिए, जो वह ठीक समझे, ऐसे नियमों द्वारा, उपबंध कर सकेगी ।

                स्पष्टीकरण-सुरक्षात्मक टोप" से हेलमेट अभिप्रेत है,-

(क) जिसके बारे में उसकी आकृति, सामग्री और बनावट के आधार पर उचित रूप से यह आशा की जा सकती है कि वह किसी मोटर साइकिल के चलाने वाले या उस पर सवारी करने वाले व्यक्ति की, किसी दुर्घटना की दशा में, क्षति से किसी सीमा तक सुरक्षा करेगा ; और

(ख) जो पहनने वाले के सिर में, टोप में लगे हुए फीतों या अन्य बंधनों से सुरक्षित रूप से बंधा होगा ।

130. अनुज्ञप्ति और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र पेश करने का कर्तव्य-(1) किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर यान का ड्राइवर वर्दी पहने हुए किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा मांग की जाने पर अपनी अनुज्ञप्ति जांच के लिए पेश करेगा :

                परंतु ड्राइवर, जहां उसकी अनुज्ञप्ति इस अधिनियम या किसी अन्य अधिनियम के अधीन किसी अधिकारी  या प्राधिकारी को प्रस्तुत की गई है या उसके द्वारा अभिगृहीत की गई है, अनुज्ञप्ति के स्थान पर उसके बारे में ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा जारी की गई रसीद या अन्य अभिस्वीकृति पेश कर सकेगा और तत्पश्चात् ऐसी अवधि के भीतर अनुज्ञप्ति, ऐसी रीति से जो केंद्रीय सरकार विहित करे, मांग करने वाले पुलिस अधिकारी को पेश कर सकेगा ।

                 [(2) किसी सार्वजनिक स्थान पर मोटर यान का कंडक्टर, यदि कोई हो, इस निमित्त प्राधिकृत मोटर यान विभाग के अधिकारी द्वारा मांग किए जाने पर अनुज्ञप्ति जांच के लिए पेश करेगा ।]

                3[(3) (धारा 60 के अधीन रजिस्ट्रीकृत यान से भिन्न) मोटर यान का स्वामी अथवा उसकी अनुपस्थिति में यान का ड्राइवर या अन्य भारसाधक व्यक्ति, रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी या मोटर यान विभाग के इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा मांग किए जाने पर, यान का बीमा प्रमाणपत्र पेश करेगा और जहां यान कोई परिवहन यान है वहां, धारा 56 में निर्दिष्ट ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र और परमिट भी पेश करेगा ; और यदि कोई या सभी प्रमाणपत्र अथवा परमिट उसके कब्जे में नहीं है तो वह मांग किए जाने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर उसकी सम्यक् रूप से अनुप्रमाणित फोटो प्रति, स्वयं प्रस्तुत करेगा या उस अधिकारी को जिसने उसकी मांग की है रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, बीमा प्रमाणपत्र" से धारा 147 की उपधारा (3) के अधीन जारी किया गया प्रमाणपत्र अभिप्रेत है ।]

(4) यदि, यथास्थिति, उपधारा (2) में निर्दिष्ट अनुज्ञप्ति या उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रमाणपत्र या परमिट उस समय उस व्यक्ति के पास नहीं है जिससे उसकी मांग की गई है तो उस दशा में इस धारा का पर्याप्त अनुपालन हो जाएगा जब ऐसा व्यक्ति ऐसी अनुज्ञप्ति या प्रमाणपत्र या परमिट को ऐसी अवधि के भीतर ऐसी रीति से जो केंद्रीय सरकार विहित करे, पुलिस अधिकारी या मांग करने वाले प्राधिकारी को पेश करता है :

परंतु इस उपधारा के उपबंध, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे यह अपेक्षा की गई है कि वह परिवहन यान का रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र या उसके ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र पेश करे, उस विस्तार तक और ऐसे उपांतरण के सहित ही लागू होंगे जो विहित किए जाएं ।

131. रक्षक रहित रेल समतल क्रासिंग पर कतिपय पूर्वावधानियां बरतने का ड्राइवर का कर्तव्य-मोटर यान का प्रत्येक ड्राइवर किसी रक्षक रहित रेल समतल क्रासिंग पर पहुंचने पर यान को रोक देगा और यान का ड्राइवर उस यान के कंडक्टर या क्लीनर या परिचर या किसी अन्य व्यक्ति को समतल क्रासिंग तक चलवाएगा और यह सुनिश्चित कराएगा कि किसी भी दिशा से कोई गाड़ी या ट्राली आ तो नहीं रही है और तब मोटर यान को ऐसे समतल क्रासिंग से पार करवाएगा, तथा जहां यान में कंडक्टर या क्लीनर या परिचर या कोई अन्य व्यक्ति उपलब्ध नहीं हो वहां यान का ड्राइवर रेल लाइन को पार करने से पूर्व यह सुनिश्चित करने के लिए यान से स्वयं उतरेगा कि किसी भी दिशा से कोई गाड़ी या ट्राली आ तो नहीं रही है ।

132. कुछ दशाओं में ड्राइवर का रोकने का कर्तव्य-(1) किसी मोटर यान का ड्राइवर उस यान को निम्नलिखित दशाओं में रोकेगा और [उसे ऐसे युक्तियुक्त समय तक, जो आवश्यक हो और जो चौबीस घंटे से अधिक न हो, खड़ा रखेगा] अर्थात् :-

1[(क) वर्दी पहने हुए ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा, जो उपनिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, ऐसा करने की अपेक्षा की जाने पर, यान के किसी व्यक्ति, पशु या अन्य यान के साथ दुर्घटना हो जाने अथवा किसी संपत्ति को कोई नुकसान पहुंचाने की दशा में, या]

(ख) किसी ऐसे पशु के भारसाधक व्यक्ति द्वारा ऐसे करने की अपेक्षा की जाने पर जबकि ऐसे व्यक्ति को आशंका है कि वह पशु नियंत्रण के बाहर हो गया है या यान से डर कर अनियंत्रित हो जाएगा ; या

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

और वह अपना नाम और पता तथा यान के स्वामी का नाम और पता ऐसी किसी दुर्घटना या नुकसान से प्रभावित किसी व्यक्ति को बताएगा जो उसकी मांग करे परंतु यह तब जबकि ऐसा व्यक्ति भी अपना नाम और पता दे ।

(2) मोटर यान का ड्राइवर ऐसे व्यक्ति द्वारा मांग की जाने पर जिसने अपना नाम और पता दिया है और यह अभिकथन किया है कि ड्राइवर ने धारा 184 के अधीन दंडनीय अपराध किया है, उस व्यक्ति को अपना नाम और पता देगा ।

(3) इस धारा में पशु" शब्द से कोई घोड़ा, ढ़ोर, हाथी, ऊंट, गधा, खच्चर, भेड़ या बकरी अभिप्रेत है ।

133. मोटर यान के स्वामी का जानकारी देने का कर्तव्य-ऐसे मोटर यान का स्वामी, जिसके ड्राइवर या कंडक्टर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध में अभियुक्त है, राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी पुलिस अधिकारी द्वारा मांग की जाने पर ड्राइवर या कंडक्टर के नाम और पते से तथा उसके द्वारा धारित अनुज्ञप्ति से संबंधित ऐसी सब जानकारी देगा जो उसके पास है या जिसे यह समुचित तत्परता से अभिनिश्चित कर सकता है ।

134. दुर्घटना और किसी व्यक्ति को हुई क्षति की दशा में ड्राइवर का कर्तव्य-जब किसी मोटर यान के कारण हुई किसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को क्षति होती है या पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचता है तब यान का ड्राइवर या यान का भारसाधक अन्य व्यक्ति-

 [(क) जब तक कि भीड़ के क्रोध के कारण या उसके नियंत्रण के परे किसी अन्य कारण से ऐसा करना व्यवहार्य              न हो, आहत व्यक्ति को निकटतम चिकित्सा व्यवसायी के पास या अस्पताल में ले जाकर उसके लिए चिकित्सीय सहायता प्राप्त करने के लिए सभी समुचित कदम उठाएगा और प्रत्येक रजिस्ट्रीकृत व्यवसायी  का या अस्पताल से ड्यूटी पर चिकित्सक का यह कर्तव्य होगा कि वह किसी प्रक्रिया संबंधी औपचारिकता की प्रतीक्षा किए बिना आहत व्यक्ति की तुरंत परिचर्या करे और उसे चिकित्सा सहायता दे या उसका उपचार करे जब तक कि आहत व्यक्ति, या उसके अवयस्क होने की दशा में उसका संरक्षक, अन्यथा इच्छा प्रकट न करे ;]

(ख) किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अपेक्षित कोई जानकारी उसके लिए मांग किए जाने पर देगा अथवा उस दशा में, जब कोई पुलिस अधिकारी उपस्थित नहीं है, घटना की परिस्थितियों की, जिसके अंतर्गत वे परिस्थितियां, यदि कोई हैं,  भी हैं जिनके कारण खंड (क) में यथा अपेक्षित चिकित्सीय ध्यान प्राप्त करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए हैं, रिपोर्ट निकटतम पुलिस थाने को यथासंभव शीघ्र तथा हर दशा में घटना के चौबीस घंटे के अंदर देगा ;

 [(ग) उस बीमाकर्ता को, जिसने बीमा प्रमाणपत्र जारी किया है, दुर्घटना होने के बारे में निम्नलिखित सूचना लिखित रूप में देगा, अर्थात् :-

(i) बीमा पालिसी संख्यांक और उसकी विधिमान्यता की अवधि ;

(ii) दुर्घटना की तारीख, समय और स्थान ;

(iii) दुर्घटना में आहत या मृत व्यक्तियों की विशिष्टियां ;

(iv) ड्राइवर का नाम और उसकी चालन अनुज्ञप्ति की विशिष्टियां ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, ड्राइवर" पद के अंतर्गत यान का स्वामी भी है ।]

135. दुर्घटना के मामलों का अन्वेषण करने और मार्गस्थ सुख-सुविधाओं आदि के लिए स्कीमें बनाना-(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निम्नलिखित के लिए उपबंध करने के लिए एक या अधिक स्कीमें बना सकेगी, अर्थात् :-

                                (क) मोटर यान दुर्घटनाओं के कारणों की बाबत गहन अध्ययन और विश्लेषण ;

                                (ख) राजमार्गों पर मार्गस्थ सुख-सुविधाएं ;

                                (ग) राजमार्गों पर यातायात सहायता चौकियां ; और

                                (घ) राजमार्गों पर ट्रकों के खड़ा करने के लिए प्रक्षेत्र ।

(2) किसी राज्य सरकार द्वारा इस धारा के अधीन बनाई गई प्रत्येक स्कीम बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखी जाएगी ।

136. दुर्घटनाग्रस्त यान का निरीक्षण-जब कोई मोटर यान दुर्घनाग्रस्त हो जाता है तब राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई व्यक्ति, उस दशा में अपना प्राधिकार पेश करके, जब उससे वैसी अपेक्षा की गई है, यान का निरीक्षण कर सकेगा और उस प्रयोजन के लिए किसी भी उचित समय पर ऐसे किसी परिसर में प्रवेश कर सकेगा जिसमें वह यान हो और यान को परीक्षा के लिए वहां से ले जा सकेगा :

परंतु वह स्थान जहां वह यान इस प्रकार ले जाया जाता है, यान के स्वामी को बता दिया जाएगा और  [यान, उसके स्वामी, ड्राइवर या भारसाधक व्यक्ति को, औपचारिकताएं पूरी करने के पश्चात् चौबीस घंटे के भीतरट लौटा दिया जाएगा ।

137. केंद्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-केंद्रीय सरकार, निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी का उपबंध करने के लिए नियम बना सकेगी, अर्थात् :-

(क) ऐसे अवसर जिन पर मोटर यानों के ड्राइवरों द्वारा संकेत किए जाएंगे और धारा 121 के अधीन ऐसे संकेत ;

(ख) वह रीति जिससे धारा 130 के अधीन पुलिस अधिकारी को अनुज्ञप्तियां और प्रमाणपत्र पेश किए जा सकेंगे ।

138. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार धारा 137 में विनिर्दिष्ट विषयों से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित बातों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-

(क) जो यान सड़कों पर बिगड़ गए हैं या खड़े छोड़ दिए गए हैं या परित्यक्त कर दिए गए हैं, उनको भार सहित हटाना और उनकी निरापद अभिरक्षा ;

(ख) तोलने के यंत्रों का लगाया जाना और उनका उपयोग ;

(ग) मार्गस्थ सुख-सुविधा प्रक्षेत्रों का रख-रखाव और प्रबंध ;

(घ) दमकल-दल यानों, रोगी वाहनों और अन्य विशेष वर्गों या वर्णन के यानों को इस अध्याय के सभी या किन्हीं उपबंधों से ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए छूट जो विहित की जाए ;

(ङ) पार्किंग स्थल और अड्डों का रख-रखाव और प्रबंध तथा उनके उपयोग के लिए प्रभारित की जाने वाली फीसें, यदि कोई हों ;

(च) मोटर यान को पहाड़ी की ढ़लान पर गियर लगाए बिना या तो साधारणतया या किसी विनिर्दिष्ट स्थान में चलाने का प्रतिषेध ;

(छ) चलते मोटर यान को पकड़ने या उस पर चढ़ने का प्रतिषेध ;

(ज) मोटर यानों द्वारा पैदल मार्ग या पटरी मार्ग के उपयोग का प्रतिषेध ;

(झ) साधारणतया जनता या किसी व्यक्ति को खतरे, क्षति या क्षोभ का अथवा सम्पत्ति को खतरे या क्षति का अथवा यातायात में बाधा का निवारण ; और

(ञ) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाए ।

अध्याय 9

अस्थायी रूप से भारत से जाने या भारत में आने वाले मोटर यान

139. केंद्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निम्नलिखित सभी प्रयोजनों या उनमें से किसी के लिए, नियम बना सकेगी, अर्थात् :-

(क) ऐसे व्यक्तियों को, जो भारत से अस्थायी रूप से भारत के बाहर किसी स्थान को मोटर यान ले जा रहे हैं, अथवा जो भारत से अस्थायी रूप से भारत के बाहर किसी स्थान को जा रहे हैं और जिनकी इच्छा भारत से अपनी अनुपस्थिति के दौरान मोटर यान चलाने की है, यात्रा पासों, प्रमाणपत्रों या प्राधिकार-पत्रों का दिया जाना और           उनका अधिप्रमाणीकरण ;

(ख) वे शर्तें विहित करना, जिनके अधीन भारत के बाहर से भारत में ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जिनका भारत में अस्थायी रूप से ठहरने का इरादा है, अस्थायी रूप से लाए गए मोटर यान भारत में कब्जे में रखे जा सकेंगे और उनका उपयोग किया जा सकेगा ; और

(ग) वे शर्तें विहित करना जिनके अधीन भारत में अस्थायी रूप से ठहरने के लिए भारत के बाहर के किसी स्थान से भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्ति भारत में मोटर यान चला सकेंगे ।

                (2) उन मोटर यानों की सेवाओं को सुगम और विनियमित करने के प्रयोजन के लिए, जो भारत और किसी अन्य देश के बीच किसी पारस्परिक ठहराव के अधीन चल रही हैं, और जो यात्री या माल या दोनों का भाड़े या पारिश्रमिक पर सड़क द्वारा वहन करते हैं, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी, अर्थात् :-

(क) वे शर्तें जिनके अधीन वे मोटर यान, जो ऐसी सेवाएं कर रहे हैं, भारत के बाहर से भारत में लाए जा सकेंगे और भारत में कब्जे में रखे जा सकेंगे और उनका उपयोग किया जा सकेगा ;

(ख) वे शर्तें जिनके अधीन मोटर यान भारत के किसी स्थान से भारत के बाहर किसी स्थान को ले जाए जा सकेंगे ;

(ग) वे शर्तें जिनके अधीन ऐसे मोटर यानों के ड्राइवरों और कंडक्टरों के रूप में नियोजित व्यक्ति भारत में आ सकेंगे या भारत से जा सकेंगे ;

(घ) ऐसे मोटर यानों के ड्राइवरों और कंडक्टरों के रूप में नियोजित व्यक्तियों को यात्रा पासों, प्रमाणपत्रों या प्राधिकार-पत्रों का दिया जाना और उनका अधिप्रमाणीकरण ;

(ङ) ऐसे मोटर यानों पर प्रदर्शित की जाने वाली (रजिस्ट्रीकरण चिह्नों से भिन्न) विशिष्टियां और वह रीति जिससे ऐसी विशिष्टियां प्रदर्शित की जानी हैं ;

(च) ऐसे मोटर यानों के साथ ट्रेलरों का उपयोग ;

(छ) ऐसे मोटर यानों तथा उनके ड्राइवरों और कंडक्टरों को [उपधारा (4) में निर्दिष्ट से भिन्नट इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के सब या किन्हीं उपबन्धों से छूट ;

(ज) ऐसे मोटर यानों के ड्राइवरों और कंडक्टरों की पहचान ;

(झ) खोए या विरूपित यात्रा पासों, प्रमाणपत्रों या प्राधिकार-पत्रों, परमिटों, अनुज्ञप्तियों या किन्हीं अन्य विहित दस्तावेजों का प्रतिस्थापन उतनी फीस देने पर किया जाना जितनी विहित की जाए ;

(ञ) सीमाशुल्क, पुलिस या स्वास्थ्य से संबंधित सड़क परिवहन सेवाओं को सुगम करने की दृष्टि से उन्हें ऐसी विधियों के उपबंधों से छूट ;

(ट) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाए ।

(3) इस धारा के अधीन बनाया गया कोई नियम ऐसे प्रवर्तित न होगा कि उससे किसी व्यक्ति को किसी राज्य में कोई ऐसा कर देने से उन्मुक्ति मिल जाए जो उस राज्य में मोटर यानों या उनके उपयोक्ताओं से उद्गृहीत किया जाता है ।

(4) इस अधिनियम की या इसके अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए किसी नियम की कोई बात जो :-

                                (क) मोटर यानों के रजिस्ट्रीकरण और उनकी पहचान से संबंधित है, या

                                (ख) मोटर यानों के निर्माण, अनुरक्षण और उपस्कर की आवश्यकताओं से संबंधित है, या

                                (ग) मोटर यानों के ड्राइवरों और कंडक्टरों के अनुज्ञापन तथा अर्हताओं से संबंधित है,

निम्नलिखित को लागू नहीं होगी, अर्थात् :-

(i) ऐसा कोई मोटर यान जिसे या किसी मोटर यान का ऐसा ड्राइवर जिसे उपधारा (1) के खंड (ख) या खंड (ग)    के अधीन या उपधारा (2) के अधीन बनाए गए नियम लागू हैं ; या

(ii) किसी मोटर यान का ऐसा कंडक्टर जिसे उपधारा (2) के अधीन बनाए गए नियम लागू हैं ।

अध्याय 10

कुछ मामलों में त्रुटि के बिना दायित्व

140. त्रुटि न होने के सिद्धांत पर कतिपय मामलों में प्रतिकर का संदाय करने का दायित्व-(1) जहां मोटर यान या मोटर यानों के उपयोग में हुई दुर्घटना के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता हुई है वहां, यथास्थिति, यान का स्वामी या यानों के स्वामी ऐसी मृत्यु या निःशक्तता के बारे में प्रतिकर का संदाय इस धारा के उपबंधों के अनुसार संयुक्ततः और पृथक्तः करने के लिए दायी होंगे ।

                (2) ऐसे प्रतिकर की रकम, जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बारे में उपधारा (1) के अधीन संदेय होगी,  [पचास हजार रुपएट  की नियत राशि होगी और किसी व्यक्ति की स्थायी निःशक्तता के बारे में उस उपधारा के अधीन संदेय प्रतिकर की रकम, 1[पच्चीस हजार रुपएट की नियत राशि होगी ।

                (3) उपधारा (1) के अधीन प्रतिकर के लिए किसी दावे में दावेदार से यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह यह अभिवाक् दे और यह सिद्ध करे कि वह मृत्यु या स्थायी निःशक्तता जिसके बारे में प्रतिकर का दावा किया गया है संबंधित यान या यानों के स्वामी या स्वामियों के या किसी अन्य व्यक्ति के किसी दोषपूर्ण कार्य, उपेक्षा या व्यतिक्रम के कारण हुई थी ।

                (4) उपधारा (1) के अधीन प्रतिकर के लिए दावा, यथास्थिति, ऐसे व्यक्ति के जिसकी मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में दावा किया गया है, किसी दोषपूर्ण कार्य, उपेक्षा या व्यतिक्रम के कारण विफल नहीं होगा और ऐसी मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में वसूलीय प्रतिकर की मात्रा ऐसी मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के उत्तरदायित्व में ऐसे व्यक्ति के अंश के आधार पर कम नहीं की जाएगी ।

                 [(5) किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक क्षति के संबंध में उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, जिसके लिए यान का स्वामी अनुतोष के रूप में प्रतिकर देने का दायी है, वह तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन प्रतिकर का संदाय करने का भी दायी होगा :

परन्तु किसी अन्य विधि के अधीन दिए जाने वाले प्रतिकर की ऐसी रकम को इस धारा या धारा 163क के अधीन संदेय प्रतिकर की रकम में से घटा दिया जाएगा ।]

141. मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के लिए प्रतिकर का दावा करने के अन्य अधिकार के बारे में उपबंध-(1) किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में धारा 140 के अधीन प्रतिकर का दावा करने का अधिकार इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंध के अधीन उसके बारे में प्रतिकर का दावा करने के लिए  [धारा 163क में निर्दिष्ट स्कीम के अधीन दावा करने के अधिकार के सिवाय किसी अन्य अधिकार (ऐसे अन्य अधिकार को, इस धारा में इसके पश्चात्] त्रुटि के सिद्धांत पर अधिकार कहा गया है), के अतिरिक्त होगा ।

(2) किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में धारा 140 के अधीन प्रतिकर के लिए कोई दावा यथासंभव शीघ्रता से निपटाया जाएगा और जहां ऐसी मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में किसी प्रतिकर का दावा धारा 140 के अधीन और त्रुटि के सिद्धान्त पर किसी अधिकार के अनुसरण में भी किया गया है वहां धारा 140 के अधीन प्रतिकर के लिए दावा उपरोक्त रूप में पहले निपटाया जाएगा ।

(3) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में धारा 140 के अधीन प्रतिकर का संदाय करने के लिए दायी व्यक्ति त्रुटि के सिद्धान्त पर अधिकार के अनुसरण में प्रतिकर का संदाय करने के लिए भी दायी है, वहां इस प्रकार दायी व्यक्ति प्रथम वर्णित प्रतिकर का संदाय करेगा और,-

(क) जहां प्रथम वर्णित प्रतिकर की रकम द्वितीय वर्णित प्रतिकर की रकम से कम है वहां वह (प्रथम वर्णित प्रतिकर के अतिरिक्त) द्वितीय वर्णित प्रतिकर का केवल उतना संदाय करने के लिए दायी होगा जो उस रकम के बराबर है जो प्रथम वर्णित प्रतिकर से अधिक हो ;

(ख) जहां प्रथम वर्णित प्रतिकर की रकम द्वितीय वर्णित प्रतिकर की रकम के बराबर या उससे अधिक है वहां वह द्वितीय वर्णित प्रतिकर का संदाय करने के लिए दायी नहीं होगा ।

142. स्थायी निःशक्तता-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी व्यक्ति की स्थायी निःशक्तता धारा 140 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रकृति की दुर्घटना से हुई तब मानी जाएगी, जब ऐसे व्यक्ति को दुर्घटना के कारण ऐसी क्षति या क्षतियां हुई हैं जिससे :-

(क) किसी भी नेत्र की दृष्टि का या किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थायी विच्छेद या किसी अंग या जोड़ का विच्छेद हुआ है ; या

(ख) किसी अंग या जोड़ की शक्ति का विनाश या उसमें स्थायी कमी आई है, या

(ग) सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपण हुआ है ।

143. 1923 के अधिनिमय 8 के अधीन कतिपय दावों को इस अध्याय का लागू होना-इस अध्याय के उपबंध धारा 140 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रकृति की किसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप हुई, कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) के अधीन किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में प्रतिकर के लिए किसी दावे के संबंध में भी लागू होंगे और इस प्रयोजन के लिए उक्त उपबंध आवश्यक उपांतरणों के साथ उस अधिनियम के भाग माने जाएंगे ।

144. अध्यारोही प्रभाव-इस अध्याय के उपबंध इस अधिनियम के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के किसी अन्य उपबंध में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

अध्याय 11

मोटर यानों का पर-व्यक्ति जोखिम बीमा

145. परिभाषाएं-इस अध्याय में,-

(क) प्राधिकृत बीमाकर्ता" से वह बीमाकर्ता अभिप्रेत है जो साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 (1972 का 57) और उस अधिनियम के अधीन साधारण बीमा कारबार करने के लिए प्राधिकृत किसी सरकारी बीमा निधि के अधीन भारत में तत्समय साधारण बीमा कारबार कर रहा है ;

(ख) बीमा प्रमाणपत्र" से वह प्रमाणपत्र अभिप्रेत है जो प्राधिकृत बीमाकर्ता द्वारा धारा 147 की उपधारा (3)      के अनुसरण में दिया गया है और इसके अंतर्गत ऐसा कवर नोट भी है जो ऐसी अपेक्षाओं के अनुपालन में हो, जो विहित की जाएं, और जब किसी पालिसी के संबंध में एक से अधिक प्रमाणपत्र दिए गए हैं या प्रमाणपत्र की कोई प्रतिलिपि दी गई   है तब, यथास्थिति, वे सब प्रमाणत्र या वह प्रतिलिपि भी इसके अंतर्गत है ;

(ग) किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक क्षति के संबंध में जहां कहीं भी दायित्व" का प्रयोग किया गया है,      वहां उसके अंतर्गत धारा 140 के अधीन उसके बारे में दायित्व भी हैं ;

(घ) बीमा पालिसी" के अंतर्गत बीमा प्रमाणपत्र" भी है ;

(ङ) संपत्ति" के अंतर्गत मोटर यान में ले जाया जा रहा माल सड़कें, पुल, पुलिया, काजवे, वृक्ष, स्तंभ तथा मील के पत्थर भी हैं ;

(च) व्यतिकारी देश" से ऐसा कोई देश अभिप्रेत है जिसे केंद्रीय सरकार पारस्परिकता के आधार पर इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए राजपत्र में व्यतिकारी देश के रूप में अधिसूचित करे ;

(छ) पर-व्यक्ति" के अंतर्गत सरकार भी है ।

146. पर-व्यक्ति जोखिम बीमा के लिए आवश्यकता-(1) कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान में मोटर यान का उपयोग यात्री से भिन्न रूप में तभी करेगा या किसी अन्य व्यक्ति से तभी कराएगा या उसे करने देगा जब, यथास्थिति, उस व्यक्ति या उस अन्य व्यक्ति द्वारा उस यान के उपयोग के संबंध में ऐसी बीमा पालिसी प्रवृत्त है जो इस अध्याय की अपेक्षाओं के अनुपालन में है, अन्यथा नहीं :

                 [परन्तु किसी खतरनाक या परिसंकटमय माल को वहन करने वाले या वहन करने के लिए आशयित यान की दशा में, लोक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991 (1991 का 6) के अधीन बीमा पालिसी होगी ।]

                स्पष्टीकरण-केवल वेतन पाने वाले कर्मचारी के रूप में मोटर यान चलाने वाले व्यक्ति को उस समय जब उस यान के उपयोग के संबंध में ऐसी पालिसी प्रवृत्त नहीं है जैसी इस उपधारा द्वारा अपेक्षित है, उस उपधारा का उल्लंघन करने वाला तभी समझा जाएगा जब वह जानता हो या उसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसी कोई पालिसी प्रवृत्त नहीं है, अन्यथा नहीं ।

(2) उपधारा (1) ऐसे किसी यान को लागू न होगी जो केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन है और जिसका उपयोग ऐसे सरकारी प्रयोजनों के लिए किया जाता है जो किसी वाणिज्यिक उद्यम से संबंधित नहीं है ।

(3) समुचित सरकार, आदेश द्वारा, ऐसे किसी यान को उपधारा (1) के प्रवर्तन से छूट दे सकेगी जो निम्नलिखित प्राधिकरणों में से किसी के स्वामित्वाधीन है, अर्थात् :-

(क) केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार, उस दशा में जब उस यान का उपयोग ऐसे सरकारी प्रयोजनों के लिए किया जाता है जो किसी वाणिज्यिक उद्यम से संबंधित हो ;

(ख) कोई स्थानीय प्राधिकरण ;

(ग) कोई राज्य परिवहन उपक्रम ;

                परंतु किसी ऐसे प्राधिकरण के संबंध में कोई ऐसा आदेश तभी किया जाएगा जब उस प्राधिकरण के किसी यान के उपयोग से पर-व्यक्ति के प्रति उस प्राधिकरण या उसके नियोजनाधीन किसी व्यक्ति द्वारा उपगत किसी दायित्व की पूर्ति के लिए उस प्राधिकरण द्वारा कोई निधि इस अधिनियम के अधीन उस निमित्त बनाए गए नियमों के अनुसार स्थापित की गई है और बनाई रखी जाती है ; अन्यथा नहीं ।

                स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए समुचित सरकार" से, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार   अभिप्रेत है, और-

(i) ऐसे किसी निगम या कंपनी के संबंध में, जो केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन है,    केंद्रीय सरकार या वह राज्य सरकार अभिप्रेत है ;

(ii) ऐसे किसी निगम या कंपनी के संबंध में, जो केंद्रीय सरकार तथा एक या अधिक राज्य सरकारों के स्वामित्वाधीन है, केंद्रीय सरकार अभिप्रेत है ;

(iii) किसी अन्य राज्य परिवहन उपक्रम या किसी स्थानीय प्राधिकरण के संबंध में वह सरकार अभिप्रेत है जिसका उस उपक्रम या प्राधिकरण पर नियंत्रण है ।

147. पालिसियों की अपेक्षाएं तथा दायित्व की सीमाएं-(1) इस अध्याय की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के लिए बीमा पालिसी ऐसी होनी चाहिए, जो-

                                (क) ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो प्राधिकृत बीमाकर्ता है दी गई है ; और

                (ख) पालिसी में विनिर्दिष्ट व्यक्ति या वर्ग के व्यक्ितयों का उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट विस्तार तक निम्नलिखित के लिए बीमा करती है, अर्थात् :-

(i) उस यान का किसी सार्वजनिक स्थान में उपयोग करने से  [किसी व्यक्ति की, जिसके अंतर्गत यान में ले जाए जाने वाले माल का स्वामी या उसका प्राधिकृत प्रतिनिधि है, मृत्यु या शारीरिक क्षति होनेट अथवा किसी पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की बाबत उसके द्वारा उपगत दायित्व ;

(ii) उस यान का किसी सार्वजनिक स्थान में उपयोग करने से किसी सार्वजनिक सेवा यान के किसी यात्री की मृत्यु या शारीरिक क्षति :

                परंतु कोई पालिसी-

(i) उस पालिसी द्वारा बीमाकृत किसी व्यक्ति के कर्मचारी की उसके नियोजन से और उसके दौरान हुई मृत्यु के संबंध में अथवा ऐसे कर्मचारी की उसके नियोजन से और उसके दौरान हुई शारीरिक क्षति के संबंध में ऐसे दायित्व को पूरा करने के लिए अपेक्षित नहीं होगी, जो किसी ऐसे कर्मचारी की मृत्यु या उसकी शारीरिक क्षति की बाबत कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) के अधीन होने वाले दायित्व से भिन्न है जो,-

                (क) यान चलाने में नियोजित है, या

                (ख) सार्वजनिक सेवा यान की दशा में, उस यान के कंडक्टर के रूप में, अथवा उस यान पर टिकटों की जांच करने में नियोजित है, या

                (ग) माल वहन की दशा में, उस यान में वहन किया जा रहा है, या

                                (ii) किसी संविदात्मक दायित्व को पूरा करने के लिए अपेक्षित नहीं होगी ।

                स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए, यह घोषित किया जाता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक क्षति अथवा पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति के नुकसान को इस बात के होते हुए भी कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है या जिसे क्षति पहुंची है या जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचा है वह दुर्घटना के समय सार्वजनिक स्थान में नहीं था या थी, उस दशा में सार्वजनिक स्थान में यान के उपयोग से हुआ समझा जाएगा जबकि वह कार्य या लोप, जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटना हुई, सार्वजनिक स्थान में हुआ था ।

                (2) उपधारा (1) के परंतुक के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) में निर्दिष्ट बीमा पालिसी के अन्तर्गत किसी दुर्घटना की बाबत उपगत कोई दायित्व निम्नलिखित सीमाओं तक होगा, अर्थात् :-

                                (क) खंड (ख) में यथाउपबंधित के सिवाय, उपगत दायित्व की रकम ;

                                (ख) पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति को हुए नुकसान की बाबत, छह हजार रुपए की सीमा :

                परंतु इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पहले सीमित दायित्व वाली बीमा पालिसी जो प्रवृत्त है, ऐसे प्रारंभ के पश्चात् चार मास की अवधि के लिए अथवा ऐसी पालिसी की समाप्ति की तारीख तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, प्रभावी बनी रहेगी ।

                (3) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए पालिसी तब तक प्रभावी नहीं होगी, जब तक बीमाकर्ता द्वारा उस व्यक्ति के पक्ष में, जिसने पालिसी कराई है बीमा-प्रमाणपत्र विहित प्ररूप में और किन्हीं शर्तों की, जिन पर वह पालिसी दी गई है, तथा किन्हीं, अन्य विहित बातों को, विहित विशिष्टियों सहित नहीं दे दिया जाता ; और भिन्न-भिन्न मामलों के लिए भिन्न-भिन्न प्ररूप, विशिष्टियां और बातें विहित की जा सकेंगी ।

                (4) जहां इस अध्याय या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन बीमाकर्ता द्वारा दिए गए कवर नोट के पश्चात् बीमा पालिसी विहित समय के अंदर नहीं भेज दी जाती वहां बीमाकर्ता कवर नोट की विधिमान्यता की अवधि की समाप्ति के सात दिन के अंदर यह बात उस रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी को, जिसके अभिलेख में कवर नोट से संबंधित यान रजिस्ट्रीकृत है अथवा ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जो राज्य सरकार विहित करे ; अधिसूचित करेगा ।

                (5) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई बीमाकर्ता जो इस धारा के अधीन बीमा पालिसी देता है, उस व्यक्ति की या उन वर्गों के व्यक्तियों की जो पालिसी में विनिर्दिष्ट हैं, किसी ऐसे दायित्व की बाबत क्षतिपूर्ति करने के लिए जिम्मेदार होगा जिसकी उस व्यक्ति या उन वर्गों के व्यक्तियों के मामले में पूर्ति के लिए वह पालिसी तात्पर्यित है ।

148. व्यतिकारी देशों में दी गई बीमा पालिसियों की विधिमान्यता-जहां भारत और किसी व्यतिकारी देश के बीच हुए ठहराव के अनुसरण में ऐसा कोई मोटर यान, जो व्यतिकारी देश में रजिस्ट्रीकृत है; ऐसे किसी मार्ग पर या किसी क्षेत्र के भीतर चलता है; जो दोनो देशों में पड़ता है, और यान का उपयोग किए जाने के संबंध में व्यतिकारी देश में ऐसी बीमा पालिसी प्रवृत्त हैं, जो उस देश में प्रवृत्त बीमा विधि की अपेक्षाओं का अनुपालन करती है वहां धारा 147 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो धारा 164 के अधीन बनाए गए जाएं ऐसी बीमा पालिसी उस पूरे मार्ग या क्षेत्र में, जिसकी बाबत वह ठहराव किया गया है, ऐसे प्रभावी होगी मानो वह बीमा पालिसी इस अध्याय की अपेक्षाओं का अनुपालन करती हो ।

149. पर-व्यक्ति जोखिमों की बाबत बीमाकृत व्यक्तियों के विरुद्ध हुए निर्णयों और अधिनिर्णयों की तुष्टि करने का बीमाकर्ताओं का कर्तव्य-(1) यदि किसी व्यक्ति के पक्ष में, जिसने पालिसी कराई है, धारा 147 की उपधारा (3) के अधीन बीमा-प्रमाणपत्र दे दिए जाने के पश्चात्, धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन  [या धारा 163क के उपबंधों के अधीनट पालिसी द्वारा पूरा करने के लिए अपेक्षित दायित्व के संबंध में (जो दायित्व पालिसी के निबंधनों के अंतर्गत है) ऐसे किसी व्यक्ति के विरुद्ध निर्णय या अधिनिर्णय अभिप्राप्त कर लिया जाता है जिसका पालिसी द्वारा बीमा किया हुआ है तो इस बात के होते हुए भी कि बीमाकर्ता पालिसी को शून्य करने या रद्द करने का हकदार है अथवा उसने पालिसी शून्य या रद्द कर दी है, बीमाकर्ता इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए डिक्री का फायदा उठाने के हकदार व्यक्ति को, उस दायित्व के संबंध में उसके अधीन देय राशि,              जो बीमाकृत राशि से अधिक न होगी, खर्चों की बाबत देय किसी रकम तथा निर्णयों पर ब्याज संबंधी किसी अधिनियमिति के आधार पर उस राशि पर ब्याज की बाबत देय किसी धनराशि सहित इस प्रकार देगा मानो वह निर्णीतऋणी हो ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन किसी बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि, किसी निर्णय या अधिनिर्णय के संबंध में तभी देय होगी जब उन कार्यवाहियों के प्रारंभ के पूर्व जिनमें निर्णय या अधिनिर्णय दिया गया है, बीमकर्ता को उन कार्यवाहियों के लाए जाने की अथवा किसी निर्णय या अधिनिर्णय के संबंध में जब तक उसका निष्पादन अपील के लंबित रहने पर रोक दिया गया है सूचना, यथास्थिति,    न्यायालय या दावा अधिकरण के माध्यम से मिल चुकी थी अन्यथा नहीं, और कोई बीमाकर्ता जिसे ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों के लाए जाने की सूचना इस प्रकार दी गई है, उसका पक्षकार बनाए जाने और निम्नलिखित आधारों में से किसी आधार पर प्रतिवाद करने का हकदार होगा, अर्थात् :-

(क) पालिसी की किसी विनिर्दिष्ट शर्त का भंग किया गया है, जो निम्नलिखित शर्तों में से एक है, अर्थात् :-

(i) ऐसी शर्त, जो यान का निम्नलिखित दशाओं में उपयोग किया जाना अपवर्जित करती है, अर्थात् :-

(क) भाड़े या पारिश्रमिक के लिए, जब वह यान बीमा संविदा की तारीख को ऐसा यान हैजो भाड़े या पारिश्रमिक पर चलाने के परमिट के अंतर्गत नहीं है, या

(ख) आयोजित दौड़ और गति परीक्षा के लिए, या

(ग) जिस परमिट के अधीन यान का उपयोग किया जाता है उसके द्वारा अनुज्ञात न किए गए प्रयोजन के लिए, जब वह यान परिवहन यान है, या

(घ) साइड कार संलग्न किए बिना, जब यान मोटर साइकिल है, या

(ii) ऐसी शर्त जो नामित व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा या ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा जो सम्यक् रूप से अनुज्ञप्त नहीं है या ऐसे किसी व्यक्ित द्वारा, जिसे चालन अनुज्ञप्ित धारण या अभिप्राप्त करने से निरर्हित कर दिया गया है, निरर्हता की अवधि के दौरान, यान का चलाया जाना अपवर्जित करती है ; या

(iii) ऐसी शर्त जो युद्ध, गृहयुद्ध, बल्वे या सिविल अंशाति की स्थिति के कारण या उसके योगदान से हुई क्षति के लिए दायित्व अपवर्जित करती है ; या

(ख) वह पालिसी इस आधार पर शून्य है कि वह किसी तात्त्विक तथ्य के प्रकट न किए जाने से, अथवा ऐसे तथ्य के व्यपदेशन से, जिसकी कोई तात्त्विक विशिष्टि मिथ्या है, अभिप्राप्त की गई थी ।

                (3) जहां कोई ऐसा निर्णय, जैसा उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, किसी व्यतिकारी देश के न्यायालय से अभिप्राप्त किया गया है तथा विदेशी निर्णय की दशा में वह उस विषय की बाबत, जिसका न्यायनिर्णयन उसके द्वारा किया गया है, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 13 के उपबन्धों के आधार पर निश्चायक है वहां बीमाकर्ता [जो बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4)    के अधीन रजिस्ट्रीकृत बीमाकर्ता है, भले ही वह व्यतिकारी देश की तत्समान विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो या न होट डिक्री का फायदा उठाने के हकदार व्यक्ति के प्रति उस रीति से और उस विस्तार तक जो उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट है, ऐसे दायी होग मानो वह निर्णय भारत के किसी न्यायालय द्वारा दिया गया हो :

                परंतु बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि किसी ऐसे निर्णय के संबंध में तभी संदेय होगी जब उन कार्यवाहियों के, जिनमें निर्णय दिया गया है, प्रारंभ के पूर्व बीमाकर्ता को उन कार्यवाहियों के लाए जाने की सूचना संबंधित न्यायालय के माध्यम से मिल चुकी थी,  अन्यथा नहीं तथा कोई बीमाकर्ता, जिसे सूचना ऐसे दी गई है व्यतिकारी देश की तत्समान विधि के अधीन उन कार्यवाहियों में पक्षकार बनाए जाने और उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट आधारों के समान आधारों पर प्रतिवाद करने का हकदार है ।

                (4) जहां उस व्यक्ति को, जिसने पालिसी कराई है, धारा 147 की उपधारा (3) के अधीन बीमा प्रमाणपत्र दे दिया गया है वहां पालिसी का उतना भाग, जितना उस पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्तियों का बीमा उपधारा (2) के खंड (ख) में दी गई शर्तों से भिन्न किन्हीं शर्तों के निर्देश से निर्बन्धित करने के लिए तात्पर्यित है, धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन पालिसी के द्वारा पूरा करने के लिए अपेक्षित दायित्वों के संबंध में प्रभावहीन होगा :

                परंतु बीमाकर्ता द्वारा किसी व्यक्ति के किसी दायित्व के निर्वहन में या मद्दे दी गई कोई धनराशि, जो केवल इस उपधारा के आधार पर पालिसी के अन्तर्गत है, बीमाकर्ता द्वारा उस व्यक्ति से वसूलीय होगी ।

                (5) यदि वह रकम, जिसे बीमाकर्ता पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्ति द्वारा उपगत दायित्व की बाबत देने के लिए इस धारा के अधीन जिम्मेदार हो जाता है, उस रकम से अधिक है जिसके लिए बीमाकर्ता, इस धारा के उपबंधों के अलावा, उस दायित्व की बाबत पालिसी के अधीन दायी होगा, तो बीमाकर्ता उस अधिक रकम को उस व्यक्ति से वूसल करने का हकदार होगा ।

                (6) इस धारा में तात्त्विक तथ्य" और तात्त्विक विशिष्टि" पदों से क्रमशः इस प्रकार का तथ्य या इस प्रकार की विशिष्टि अभिप्रेत है जिससे किसी भी व्यवहारकुशल बीमाकर्ता के विवेक पर यह अवधारित करने में प्रभाव पड़े कि क्या वह जोखिम उठाए और यदि वह ऐसा करे तो कितने प्रीमियम पर तथा किन शर्तों पर करे और जो दायित्व पालिसी के निबंधनों के अंतर्गत है" पद से ऐसा दायित्व अभिप्रेत है जो पालिसी के अंतर्गत है या जो इस तथ्य के न होने पर पालिसी के अंतर्गत होता कि बीमाकर्ता, पालिसी को शून्य या रद्द करने का हकदार है या उसे शून्य या रद्द कर चुका है ।

                (7) कोई भी बीमाकर्ता, जिसे उपधारा (2) या उपधारा (3) में निर्दिष्ट सूचना दे दी गई है, उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी ऐसे निर्णय या अधिनिर्णय का या उपधारा (3) में निर्दिष्ट निर्णय में फायदा उठाने के हकदार किसी व्यक्ति के प्रति अपने दायित्व को उस रीति से भिन्न रीति से शून्य करने का हकदार होगा, जो, यथास्थिति, उपधारा (2) में या व्यतिकारी देश की तत्समान विधि में   उपबंधित है, अन्यथा नहीं ।

                स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए दावा अधिकरण" से धारा 165 के अधीन गठित दावा अधिकरण और अधिनिर्णय" से धारा 168 के अधीन उस अधिकरण द्वारा किया गया अधिनिर्णय अभिप्रेत है ।

150. बीमाकृत व्यक्ति के दिवालिया होने पर बीमाकर्ताओं के विरुद्ध पर-व्यक्तियों के अधिकार-(1) जहां इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार की गई बीमा संविदा के अधीन किसी व्यक्ति का बीमा उन दायित्वों के लिए किया गया है जो वह पर-व्यक्तियों के प्रति उपगत करे, वहां- 

                (क) उस व्यक्ति के दिवालिया हो जाने अथवा अपने लेनदारों से प्रशमन या ठहराव कर लेने पर, या

                (ख) यदि बीमाकृत व्यक्ति कंपनी है तो उस कंपनी के परिसमापन के लिए आदेश दे दिए जाने पर अथवा स्वेच्छया परिसमापन के लिए संकल्प पारित कर दिए जाने पर अथवा उस कंपनी के कारबार या उपक्रम का रिसीवर या प्रबंधक सम्यक् रूप से नियुक्त कर दिए जाने पर अथवा किसी संपत्ति के प्लवमान भार द्वारा प्रतिभूत डिबेंचरों के धारकों द्वारा या उनकी ओर से उस संपत्ति का, जो भार में समाविष्ट या उसके अधीन है, कब्जा ले लिए जाने पर,

उस दशा में जब, ऐसा होने से पूर्व या पश्चात्, कोई ऐसा दायित्व बीमाकृत व्यक्ति द्वारा उपगत कर लिया जाता है, संविदा के अधीन उस दायित्व की बाबत बीमाकर्ता के विरुद्ध उसके अधिकार, विधि के किसी उपबंध में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी उस पर-व्यक्ति को अंतरित तथा उसमें निहित किए जाएंगे जिसके प्रति वह दायित्व उपगत किया गया था ।

                (2) जहां दिवाला विधि के अनुसार मृत-ऋणी की संपदा के प्रशासन के लिए आदेश दिया गया है वहां यदि दिवाला कार्यवाही में साबित किए जाने योग्य कोई ऋण मृतक द्वारा किसी दायित्व की बाबत पर-व्यक्ति को देय है जिसके लिए उसका बीमा इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार बीमा संविदा के अधीन किया गया था तो उस दायित्व की बाबत बीमाकर्ता के विरुद्ध मृत-ऋणी के अधिकार, विधि के किसी उपबंध में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, उस व्यक्ति को अंतरित और उसमें निहित हो जाएंगे जिसको वह ऋण  देय हो ।

                (3) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए दी गई पालिसी में ऐसी कोई शर्त प्रभावहीन होगी जिससे प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः यह तात्पर्यित है कि उन घटनाओं में से, जो उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) में विनिर्दिष्ट हैं, कोई भी घटना बीमाकृत व्यक्ति के बारे में हो जाने पर अथवा दिवाला विधि के अनुसार मृत-ऋणी की संपदा के प्रशासन के लिए आदेश दिए जाने पर पालिसी शून्य हो जाएगी अथवा उसके अधीन पक्षकारों के अधिकार परिवर्तित हो जाएंगे ।

(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अंतरण पर, बीमाकर्ता का पर-व्यक्ति के प्रति वैसा ही दायित्व होगा जैसा उसका बीमाकृत व्यक्ति के प्रति होता, किंतु-

(क) यदि बीमाकर्ता का बीमाकृत व्यक्ति के प्रति दायित्व पर-व्यक्ति के प्रति बीमाकृत व्यक्ति के दायित्व से अधिक है तो इस अध्याय की कोई बात ऐसे आधिक्य के बारे में बीमाकर्ता के विरुद्ध बीमाकृत व्यक्ति के अधिकारों पर प्रभाव न डालेगी, और

(ख) यदि बीमाकर्ता का बीमाकृत व्यक्ति के प्रति दायित्व पर-व्यक्ति के प्रति बीमाकृत व्यक्ति के दायित्व से कम है तो इस अध्याय की कोई बात अतिशेष के बारे में बीमाकृत व्यक्ति के विरुद्ध पर-व्यक्ति के अधिकारों पर प्रभाव न डालेगी ।

151. बीमा के बारे में जानकारी देने का कर्तव्य-(1) कोई भी व्यक्ति, जिसके विरुद्ध धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट किसी दायित्व की बाबत कोई दावा किया जाता है, दावा करने वाले व्यक्ति के द्वारा या उसकी ओर से मांग की जाने पर यह बताने से इंकार नहीं करेगा कि उस दायित्व की बाबत किसी ऐसी पालिसी द्वारा, जो इस अध्याय के उपबंधों के अधीन दी गई है,  उसका बीमा किया हुआ है या नहीं अथवा यदि बीमाकर्ता ने पालिसी शून्य या रद्द न कर दी होती तो वह ऐसे बीमाकृत रहता या नहीं और वह उस दशा में, जिसमें वह ऐसे बीमाकृत है या होता, उस पालिसी से संबंधित ऐसी विशिष्टियां देने से इंकार नहीं करेगा जो उसकी बाबत दिए गए बीमा प्रमाणपत्र में विनिर्दिष्ट थीं ।

                (2) किसी व्यक्ति के दिवालिया हो जाने पर अथवा अपने लेनदारों से प्रशमन या ठहराव कर लेने पर अथवा दिवाला विधि के अनुसार मृत व्यक्ति की संपदा के प्रशासन के लिए आदेश दे दिए जाने पर अथवा किसी कंपनी के परिसमापन के लिए आदेश दे दिए जाने पर अथवा उस कंपनी के स्वेच्छया परिसमापन के लिए संकल्प पारित कर दिए जाने पर अथवा किसी कंपनी के कारबार या उपक्रम का रिसीवर या प्रबंधक सम्यक् रूप से नियुक्त कर दिए जाने पर अथवा किसी संपत्ति के प्लवमान भार द्वारा प्रतिभूत किन्हीं डिबेंचरों के धारकों द्वारा या उनकी ओर से उस संपत्ति का, जो भार में समाविष्ट या उसके अधीन हैं, कब्जा ले लिए जाने पर, यथास्थिति, दिवालिया ऋणी का, मृत-ऋणी के वैयक्तिक प्रतिनिधि का या कंपनी का, अथवा दिवाले की दशा में शासकीय समनुदेशिती या रिसीवर का न्यासी, समापक, रिसीवर या प्रबंधक या संपत्ति पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे किसी व्यक्ति के अनुरोध पर, जो यह दावा करता है कि दिवालिया-ऋणी, मृत-ऋणी या कंपनी उसके प्रति ऐसे दायित्व के अधीन है, जो इस अध्याय के उपबंधों के अंतर्गत है, ऐसी जानकारी दे जिसकी उसके द्वारा यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन से कि क्या कोई अधिकार धारा 150 के अधीन उसे अंतरित और उसमें निहित हो गए हैं तथा ऐसे अधिकारों को, यदि कोई हो, प्रवर्तित कराने के प्रयोजन से उचित रूप से अपेक्षा की जाए, तथा ऐसी कोई बीमा संविदा प्रभावहीन होगी जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयुक्त दशाओं में ऐसी जानकारी दी जाने पर संविदा का शून्य हो जाना उसके अथवा उसके अधीन पक्षकारों के अधिकारों का परिवर्तित हो जाना अथवा उक्त दशाओं में उसका दिया जाना अन्यथा प्रतिषिद्ध या निवारित हो जाना तात्पर्यित हो ।

                (3) यदि उपधारा (2) के अनुसरण में या अन्यथा किसी व्यक्ति को दी गई जानकारी से उसके पास यह अनुमान लगा लेने का उचित आधार है कि इस अध्याय के अधीन उस किसी विशिष्ट बीमाकर्ता के विरुद्ध अधिकार अंतरित हो गए हैं या हो गए होंगे तो उस बीमाकर्ता का वही कर्तव्य होगा जो उक्त उपधारा के अनुसार उन व्यक्तियों का है, जो उसमें वर्णित हैं ।

                (4) इस धारा द्वारा अधिरोपित जानकारी देने के कर्तव्य के अंतर्गत यह कर्तव्य भी होगा कि जो बीमा संविदाएं, प्रीमियम रसीदें और अन्य सुसंगत दस्तावेजें उस व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में हैं, जिस पर ऐसा कर्तव्य अधिरोपित किया गया है, उनका निरीक्षण किया जाने दिया जाए और उनकी प्रतियां ली जाने दी जाएं ।

152. बीमाकर्ताओं और बीमाकृत व्यक्तियों के बीच समझौता-(1) किसी ऐसे दावे के बारे में, जो धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकार के किसी दायित्व की बाबत पर-व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, किसी बीमाकर्ता द्वारा किया गया कोई समझौता तभी विधिमान्य होगा जब ऐसा पर-व्यक्ति उस समझौते का पक्षकार है, अन्यथा नही ।

                (2) जहां वह व्यक्ति, जिसका बीमा इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए दी गई पालिसी के अधीन किया गया है, दिवालिया हो गया है अथवा जहां उस दशा में, जिसमें ऐसा व्यक्ति कंपनी है, उस कंपनी के परिसमापन के लिए आदेश दे दिया गया है अथवा उसके स्वेच्छया परिसमापन के लिए संकल्प पारित कर दिया गया है वहां, यथास्िथति, पर-व्यक्ति के प्रति दायित्व उपगत हो जाने के पश्चात् अथवा दिवाले या परिसमापन के प्रारंभ के पश्चात् न तो बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्ति के बीच किया गया कोई करार और न पूर्वोक्त प्रारंभ के पश्चात् बीमाकृत व्यक्ति द्वारा कोई अधित्यजन, समनुदेशन या अन्य व्ययन, अथवा बीमाकृत व्यक्ति को की गई कोई अदायगी,  उन अधिकारों को विफल करने के लिए प्रभावी होगी जो पर-व्यक्ति को इस अध्याय के अधीन अंतरित है बल्कि वे अधिकार वैसे ही रहेंगे मानो ऐसा कोई करार, अधित्यजन, समुनदेशन या व्ययन या अदायगी नहीं की गई है ।

153. धारा 150, धारा 151 और धारा 152 के बारे में व्यावृत्ति-(1) धारा 150, धारा 151 और धारा 152 के प्रयोजनों के लिए किसी बीमा पालिसी के अधीन बीमाकृत व्यक्ति के संबंध में पर-व्यक्ति के प्रति दायित्व" के प्रति निर्देश के अंतर्गत किसी अन्य बीमा पालिसी के अधीन बीमाकर्ता की हैसियत में उस व्यक्ति के दायित्व के प्रति निर्देश न होगा ।

(2) धारा 150, धारा 151 और धारा 152 के उपखंड वहां लागू न होंगे जहां कंपनी का स्वेच्छया परिसमापन उसके पुनर्गठन के लिए अथवा दूसरी कंपनी से उसके समामेलन के प्रयोजन के लिए ही किया जाता है ।

154. बीमाकृत व्यक्तियों के दिवाले से बीमाकृत व्यक्ति के दायित्व या पर-व्यक्तियों के दावों पर प्रभाव न पड़ना-जहां उस व्यक्ति को, जिसने पालिसी कराई है, बीमा-प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है वहां जिस व्यक्ति का उस पालिसी द्वारा बीमा किया गया है उसके संबंध में धारा 150 की उपधारा (1) या उपधारा (2) में वर्णित प्रकार की किसी घटना के होने से उस व्यक्ति के इस प्रकार के किसी दायित्व पर, जो धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकृति का है, इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी,    कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ; किंतु इस धारा की कोई बात बीमाकर्ता के विरुद्ध ऐसे किन्हीं अधिकारों पर प्रभाव नहीं डालेगी जो उस व्यक्ति को, जिसके प्रति वह दायित्व उपगत किया गया थाधारा 150, धारा 151 और धारा 152 के उपबंधों के अधीन प्रदान किए गए हैं ।

155. कुछ वाद-हेतुकों पर मृत्यु का प्रभाव-भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (1925 का 39) की धारा 306 में किसी बात के होते हुए भी, उस व्यक्ति की मृत्यु, जिसके पक्ष में बीमा-प्रमाणपत्र दिया गया है, उस दशा में जिसमें वह ऐसी घटना होने के पश्चात् होती है जिससे इस अध्याय के उपबंधों के अधीन दावा पैदा हो गया है, ऐसे किसी वाद-हेतुक के जारी रहने को वर्जित  करेगी जो उसकी संपदा या बीमाकर्ता के विरुद्ध उक्त घटना से पैदा होता है 

156. बीमा-प्रमाणपत्र का प्रभाव-जब बीमाकर्ता ने ऐसी बीमा संविदा के बारे में, जो बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्ति के बीच है, बीमा-प्रमाणपत्र जारी कर दिया है तब-

(क) यदि और जब तक प्रमाणपत्र में वर्णित पालिसी, बीमाकर्ता द्वारा बीमाकृत को नहीं दी गई है तो और तब तक बीमाकर्ता की बाबत, जहां तक बीमाकर्ता और बीमाकृत से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति के बीच की बात है, यह समझा जाएगा कि उसने बीमाकृत व्यक्ति को बीमा पालिसी दे दी है जो सभी प्रकार से ऐसे प्रमाणपत्र में दिए हुए वर्णन और विशिष्टियों के अनुरूप है ; और

(ख) यदि बीमाकर्ता ने प्रमाणपत्र में वर्णित पालिसी बीमाकृत को दे दी है किंतु पालिसी के वास्तविक निबंधन पालिसी की उन विशिष्टियों से, जो प्रमाणपत्र में उल्लिखित हैं, उन व्यक्तियों के लिए कम अनुकूल हैं जो पालिसी के अधीन या आधार पर बीमाकर्ता के विरुद्ध दावा या तो प्रत्यक्ष रूप से या बीमाकृत व्यक्ति के माध्यम से करते हैं, तो जहां तक बीमाकर्ता और बीमाकृत से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति के बीच की बात है, पालिसी की बाबत यह समझा जाएगा कि वह सभी प्रकार से उन विशिष्टियों के अनुरूप है, जो उक्त प्रमाणपत्र में उल्लिखित हैं ।

157. बीमा प्रमाणपत्र का अंतरण-(1) जहां कोई व्यक्ति, जिसके पक्ष में उस अध्याय के उपबंधों के अनुसार बीमा प्रमाणपत्र दिया गया है, उस मोटर यान का स्वामित्व, जिसकी बाबत ऐसा बीमा लिया गया था, उससे संबंधित बीमा पालिसी सहित, किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित करता है वहां बीमा प्रमाणपत्र और प्रमाणपत्र में वर्णित पालिसी उस व्यक्ति के पक्ष में, जिसे मोटर यान अंतरित किया गया है, उसके अंतरण की तारीख से प्रभावशील रूप से अंतरित समझी जाएगी ।

 [स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि ऐसे समझे गए अंतरण में उक्त बीमा प्रमाणपत्र और बीमा पालिसी के अधिकारों और दायित्वों का अंतरण सम्मिलित होगा ।]

(2) अंतरिती, विहित प्ररूप में, अंतरण की तारीख से चौदह दिन के भीतर, बीमा प्रमाणपत्र और प्रमाणपत्र में वर्णित   पालिसी में, उसके पक्ष में अंतरण के तथ्य की बाबत आवश्यक परिवर्तन करने के लिए बीमाकर्ता को आवेदन करेगा और बीमाकर्ता प्रमाणपत्र में तथा बीमा का पालिसी में बीमा के अंतरण की बाबत आवश्यक परिवर्तन करेगा ।

158. कतिपय दशाओं में कुछ प्रमाणपत्रों, अनुज्ञप्ति और परमिट का पेश किया जाना-(1) किसी सार्वजनिक स्थान में    मोटर यान चलाने वाला कोई भी व्यक्ति वर्दी पहने हुए किसी पुलिस अधिकारी द्वारा, जिसे राज्य सरकार ने इस निमित्त प्राधिकृत किया है, अपेक्षा किए जाने पर निम्नलिखित दस्तावेज पेश करेगा जो उस यान के उपयोग से संबंधित हैं, अर्थात् :-

                                (क) बीमा प्रमाणपत्र ;

                                (ख) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र ;

                                (ग) चालन अनुज्ञप्ति ; और

                (घ) परिवहन यान की दशा में, धारा 56 में निर्दिष्ट, ठीक हालत में होने का प्रमाणपत्र और परमिट ।

                (2) जहां मोटर यान के किसी सार्वजनिक स्थान में होने के कारण ऐसी दुर्घटना होती है जिसके परिणामस्वरूप किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या उसे शारीरिक क्षति होती है वहां, यदि यान का ड्राइवर उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रमाणपत्रों, चालन अनुज्ञप्ति और परमिट को उस समय पुलिस अधिकारी को पेश नहीं करता है तो वह उक्त प्रमाणपत्रों, अनुज्ञप्ति और परमिट को उस पुलिस थाने में पेश करेगा जहां वह धारा 134 द्वारा अपेक्षित रिपोर्ट करता है ।

                (3) किसी व्यक्ति को बीमा प्रमाणपत्र पेश करने में असफलता के ही कारण उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन उस दशा में दोषसिद्ध नहीं किया जाएगा जब, यथास्थिति, उस तारीख से, जिसको उसका पेश किया जाना उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित किया गया था अथवा, दुर्घटना होने की तारीख से, सात दिन के अंदर वह ऐसे प्रमाणपत्र को उस पुलिस थाने में पेश कर देता है जिसे उसने उस पुलिस अधिकारी को जिसने उसे पेश किए जाने की मांग की थी, या, यथास्थिति, दुर्घटना स्थल के पुलिस अधिकारी को अथवा उस पुलिस थाने के भारसाधक पुलिस अधिकारी को, जिसमें उसने दुर्घटना की रिपोर्ट लिखाई है, विनिर्दिष्ट किया हो :

                परन्तु इस उपधारा के उपबंध किसी परिवहन यान के ड्राइवर को उसी विस्तार तक और ऐसे उपांतरणों के साथ लागू होंगे जो विहित किए जाएं, अन्यथा नहीं ।

                (4) मोटर यान का स्वामी ऐसी जानकारी देगा जिसे देने की अपेक्षा उससे राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त पुलिस अधिकारी द्वारा या उसकी ओर से यह अवधारित करने के प्रयोजन से की जाए कि क्या वह यान धारा 146 का उल्लंघन करके और ऐसे किसी अवसर पर चलाया जा रहा था या नहीं जब ड्राइवर से इस धारा के अधीन यह अपेक्षा की गई थी कि वह अपना बीमा प्रमाणपत्र पेश करे ।

                (5) इस धारा में, अपना बीमा प्रमाणपत्र पेश करे" पद से सुसंगत बीमा प्रमाणपत्र पेश करना या इस बाबत ऐसा अन्य साक्ष्य, जैसा विहित किया जाए, पेश करना अभिप्रेत है कि यान धारा 146 का उल्लंघन करके नहीं चलाया जा रहा था ।

[(6) जैसे ही किसी ऐसी दुर्घटना की बाबत जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक क्षति अंतर्ग्रस्त है, कोई इत्तिला पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित की जाती है या कोई रिपोर्ट इस धारा के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा पूरी की जाती है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, उसकी एक प्रति, यथास्थिति, इत्तिला अभिलिखित करने की तारीख से तीन दिन के भीतर या ऐसी रिपोर्ट पूरी होने पर, अधिकारिता, रखने वाले दावा अधिकरण को और उसकी एक प्रति संबंधित बीमाकर्ता को भेजेगा और जहां एक प्रति स्वामी को उपलब्ध कराई जाती है, वहां वह भी ऐसी रिपोर्ट की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर उसे दावा अधिकरण और बीमाकर्ता को भेजेगा ।]

159. यान का उपयोग करने के प्राधिकार के लिए आवेदन करने पर बीमा प्रमाणपत्र पेश किया जाना-राज्य सरकार मोटर यान के स्वामी से यह अपेक्षा करने वाले नियम बना सकेगी कि जब वह सार्वजनिक स्थान पर यान का उपयोग करने का प्राधिकार के लिए कर देकर या अन्यथा, आवेदन करे तब वह इस आशय का ऐसा साक्ष्य, जो उन नियमों द्वारा विहित किया जाए, पेश करे कि या तो-

(क) उस तारीख को जब यान का उपयोग करने का प्राधिकार प्रवृत्त होता है, आवेदक द्वारा या उसके आदेशों पर या उसकी अनुज्ञा से अन्य व्यक्तियों द्वारा उस यान का उपयोग किए जाने के संबंध में आवश्यक बीमा पालिसी प्रवृत्त होगी, या

(ख) वह यान ऐसा यान है जिसे धारा 146 लागू नहीं होती है ।

160. दुर्घटनाग्रस्त यानों को विशिष्टियां देने का कर्तव्य-रजिस्ट्रकर्ता प्राधिकारी या पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी ऐसे व्यक्ति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर जो यह अभिकथन करता है कि वह मोटर यान के उपयोग के कारण हुई दुर्घटना की बाबत प्रतिकर का दावा करने का हकदार है, या ऐसे बीमाकर्ता द्वारा अपेक्षा किए जाने पर जिसके खिलाफ किसी मोटर यान की बाबत दावा किया है, यथास्थिति, उस व्यक्ति को या उस बीमाकर्ता को उसके द्वारा विहित फीस दिए जाने पर, ऐसे प्ररूप में और उतने समय के भीतर जो केन्द्रीय सरकार विहित करे, ऐसी कोई जानकारी देगा जो उक्त प्राधिकारी या उक्त पुलिस अधिकारी के पास यान के पहचान चिह्नों और अन्य विशिष्टियों के संबंध में और उस व्यक्ति के नाम और पते के संबंध में हो जो दुर्घटना के समय यान का उपयोग कर रहा था या जिसे उस यान से क्षति हुई थी और संपत्ति का, यदि कोई है, नुकसान हुआ था ।

161. टक्कर मार कर भागने संबंधी मोटर दुर्घटना के मामले में प्रतिकर के बारे में विशेष उपबंध-(1) इस धारा, धारा 162 धारा 163 के प्रयोजनों के लिए,-

(क) घोर उपहति" का वही अर्थ होगा जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में उसका है ;

(ख) टक्कर मार कर भागने संबंधी मोटर दुर्घटना" से ऐसे मोटर यान या मोटर यानों के उपयोग से उद्भूत दुर्घटना अभिप्रेत हैजिनकी पहचान इस प्रयोजन के लिए युक्तियुक्त प्रयत्न करने के बाद भी अभिनिश्चित नहीं की जा सकती है ;

(ग) स्कीम" से धारा 163 के अधीन बनाई गई स्कीम अभिप्रेत है ।

(2) साधारण बीमा कारबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 (1972 का 57) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या विधि का बल रखने वाली किसी लिखत में किसी बात के होते हुए भी, उक्त अधिनियम की धारा 9 के अधीन बनाया गया भारतीय साधारण बीमा निगम और तत्समय भारत में साधारण बीमा कारबार करने वाली बीमा कंपनियां टक्कर मारकर भागने संबंधी मोटर दुर्घटना से उद्भूत किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के बारे में प्रतिकर का, इस अधिनियम और स्कीम के उपबंधों के अनुसार, संदाय करने के लिए उपबंध करेगी ।

(3) इस अधिनियम और स्कीम के उपबंधों के अधीन रहते हुए,-

(क) टक्कर मार कर भागने संबंधी मोटर दुर्घटना के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु के बारे में         [पच्चीस हजार रुपए की नियत राशि का ;

(ख) टक्कर मार कर भागने संबंधी मोटर दुर्घटना के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की घोर उपहति के बारे में      1[बारह हजार पांच सौ रुपए] की नियत राशि का,प्रतिकर के रूप में संदाय किया जाएगा ।

(4) धारा 166 की उपधारा (1) के उपबंध इस धारा के अधीन प्रतिकर के लिए आवेदन करने के प्रयोजन के लिए वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस उपधारा में निर्दिष्ट प्रतिकर के लिए आवेदन करने के प्रयोजन के लिए लागू होते हैं ।

162. धारा 161 के अधीन संदत्त प्रतिकर का कतिपय मामलों में प्रतिदाय-(1) धारा 161 के अधीन किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के मामले में प्रतिकर का संदाय इस शर्त के अधीन होगा कि यदि प्रतिकर के किसी दावे के बदले या उसकी पुष्टि के रूप में कोई प्रतिकर (जिसे इस उपधारा में इसके पश्चात् अन्य प्रतिकर कहा गया है) या अन्य रकम ऐसी मृत्यु या घोर उपहति के बारे में इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध या किसी अन्य विधि के अधीन या अन्यथा अधिनिर्णीत की जाती है या संदत्त की जाती है तो पूर्वोक्त अन्य प्रतिकर या अन्य रकम का उतना भाग जितना धारा 161 के अधीन संदत्त प्रतिकर के बराबर हो, बीमाकर्ता को प्रतिदत्त किया जाएगा ।

(2) किसी मोटर यान या मोटर यानों के उपयोग से उद्भूत किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक क्षति को अंतर्वलित करने वाली किसी दुर्घटना के बारे में इस अधिनियम (धारा 161 से भिन्न) या किसी अन्य विधि के किसी उपबंध के अधीन प्रतिकर का संदाय करने के पूर्व ऐसा प्रतिकर अधिनिर्णीत करने वाला अधिकरण, न्यायालय या अन्य प्राधिकारी यह सत्यापित करेगा कि क्या ऐसी मृत्यु या शारीरिक क्षति के बारे में प्रतिकर धारा 161 के अधीन पहले ही संदत्त कर दिया गया है या उस धारा के अधीन प्रतिकर के संदाय के लिए कोई आवेदन लंबित है और ऐसा अधिकरण, न्यायालय या अन्य प्राधिकारी-

(क) यदि धारा 161 के अधीन प्रतिकर का पहले ही संदाय किया जा चुका है तो उसके द्वारा अधिनिर्णीत प्रतिकर का संदाय करने के लिए दायी व्यक्ति को यह निदेश देगा कि वह उसके उतने भाग का जितना उपधारा (1) के उपबंधों के अनुसार प्रतिदाय करने के लिए अपेक्षित है, बीमाकर्ता को प्रतिदाय करे ;

(ख) यदि धारा 161 के अधीन प्रतिकर का संदाय करने के लिए कोई आवेदन लंबित है, तो उसके द्वारा अधिनिर्णीत प्रतिकर से संबंधित विशिष्टियां बीमकर्ता को भेजेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, धारा 161 के अधीन प्रतिकर के लिए कोई आवेदन-

(i) यदि ऐसा आवेदन नामंजूर कर दिया गया है, तो आवेदन के नामंजूर कर दिए जाने की तारीख तक, और

(ii) किसी अन्य मालमे मेंआवेदन के अनुसरण में प्रतिकर का संदाय किए जाने की तारीख तक,लंबित समझा जाएगा 

163. टक्कर मार कर भागने संबंधी मोटर दुर्घटनाओं के मामलों में प्रतिकर के संदाय के लिए स्कीम-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक स्कीम बनाएगी, जिसमें वह रीति जिससे स्कीम का साधारण बीमा निगम द्वारा प्रशासन किया जाएगा, वह प्ररूप, रीति और समय जिसके भीतर प्रतिकर के लिए आवेदन किए जाएंगे, वे अधिकारी या प्राधिकारी जिन्हें ऐसे आवेदन किए जाएंगे, वह प्रक्रिया जो ऐसे आवेदनों पर विचार करने के लिए और उन पर आदेश पारित करने के लिए ऐसे अधिकारियों या प्राधिकारियों द्वारा अनुसरित की जाएगी और स्कीम के प्रशासन तथा प्रतिकर के संदाय से संसक्त या आनुषंगिक सभी अन्य विषय निर्दिष्ट किए जाएंगे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन बनाई गई स्कीम में यह उपबंध किया जा सकेगा कि-

(क) उसके किसी उपबंध का उल्लंघन ऐसी अवधि के कारावास से जो विनिर्दिष्ट की जाएगी किंतु किसी भी दशा में तीन मास से अधिक नहीं होगी, या जुर्माने से, जो उतनी रकम तक का हो सकेगा जो विनिर्दिष्ट की जाएगी किंतु जो किसी भी दशा में पांच सौ रुपए से अधिक नहीं होगा, या दोनों से दंडनीय होगा ;

(ख) ऐसी स्कीम द्वारा किसी अधिकारी या प्राधिकारी को प्रदत्त शक्तियां, या उस पर अधिरपित कृत्य या कर्तव्य ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा केंद्रीय सरकार के लिखित पूर्व अनुमोदन से किसी अन्य अधिकारी या प्राधिकारी को प्रत्यायोजित किए जा सकेंगे ;

(ग) ऐसी स्कीम का कोई उपबंध ऐसी तारीख से जो इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व यथा विद्यमान मोटर यान अधिनियम, 1939 (1939 का 4) के अधीन तोषण निधि के स्थापित किए जाने की तारीख से पूर्वतर न हो, भूतलक्षी प्रभाव से प्रवर्तित हो सकेगा :

परन्तु ऐसा भूतलक्षी प्रभाव इस प्रकार नहीं दिया जाएगा कि ऐसे किसी व्यक्ति के हितों पर, जो ऐसे उपबंध द्वारा शासित हो, प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।

 [163क. संरचना सूत्र के आधार पर प्रतिकर के संदाय की बाबत विशेष उपबंध-(1) इस अधिनियम में अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या विधि का बल रखने वाली किसी लिखत में किसी बात के होते हुए भी, मोटर यान का स्वामी या प्राधिकृत बीमाकर्ता, मोटर यान के उपयोग से हुई दुर्घटना के कारण हुई मृत्यु या स्थायी निःशक्तता की दशा में, यथास्थिति, विधिक वारिसों या आहत व्यक्ति को, दूसरी अनुसूची में उपवर्णित प्रतिकर का संदाय करने के लिए दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, स्थायी निःशक्तता" का वही अर्थ और विस्तार है जो कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) में है ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रतिकर के लिए किसी दावे में, दावाकर्ता से यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह यह अभिवचन करे या यह सिद्ध करे कि वह मृत्यु या स्थायी निःशक्तता जिसकी बाबत दावा किया गया है, संबंधित यान या यानों के स्वामी या किसी अन्य व्यक्ति के दोषपूर्ण कार्य या उपेक्षा या व्यतिक्रम के कारण हुई थी ।

(3) केन्द्रीय सरकार, जीवन निर्वाह की लागत को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर दूसरी अनुसूची का संशोधन कर सकेगी ।

163ख. कतिपय दशाओं में दावा फाइल करने का विकल्प-जहां कोई व्यक्ित धारा 140 और धारा 163क के अधीन प्रतिकर का दावा करने का हकदार है वहां वह केवल उक्त धाराओं में से किसी एक धारा के अधीन दावा फाइल करेगा न कि दोनों धाराओं के अधीन ।]

164. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार इस अध्याय केधारा 159 में विनिर्दिष्ट विषयों से भिन्नउपबंधों की कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी 

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिनाऐसे नियमों में निम्नलिखित उपबंध किया जा सकेगाअर्थात् :-

                (क) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए काम में लाए जाने वाले प्ररूप ;

                (ख) बीमा-प्रमाणपत्रों के लिए आवेदन करना और उनका दिया जाना ;

                (ग) खोए, नष्ट हुए या कटे-फटे, बीमा प्रमाणपत्रों के बदले में उनकी दूसरी प्रतियों का दिया जाना ;

                (घ) बीमा प्रमाणपत्रों की अभिरक्षा, उन्हें पेश करना, रद्द करना और अभ्यर्पित करना ;

                (ङ) इस अध्याय के अधीन दी गई बीमा पालिसियों के बीमाकर्ताओं द्वारा रखे जाने वाले अभिलेख ;

                (च) इस अध्याय के उपबंधों से छूट प्राप्त व्यक्तियों या यानों की प्रमाणपत्रों द्वारा या अन्यथा पहचान ;

                (छ) बीमाकर्ताओं द्वारा बीमा पालिसियों विषयक जानकारी का दिया जाना ;

                (ज) इस अध्याय के उपबंधों को उन यानों के लिए, जो भारत में अस्थायी वास के लिए आने वाले व्यक्तियों द्वारा लाए गए हैं, या उन यानों के लिए, जो किसी व्यतिकारी देश में रजिस्ट्रीकृत हैं तथा भारत में किसी मार्ग या क्षेत्र में चल रहे हैं, विहित उपांतरणों सहित लागू करके अनुकूल बनाना ;

(वह प्ररूप जिसमें और वह समय-परिसीमा जिसके भीतर धारा 160 में निर्दिष्ट विशिष्टियां दी जा सकेंगी ; और

(ञ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।

अध्याय 12

दावा अधिकरण

165. दावा अधिकरण-(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक या अधिक मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (जिन्हें इस अध्याय में इसके पश्चात् दावा अधिकरण कहा गया है) ऐसे क्षेत्र के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, उन दुर्घटनाओं की बाबत प्रतिकर के दावों के न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए गठित कर सकेगी जिनमें मोटर यानों के उपयोग से व्यक्तियों की मृत्यु या उन्हें शारीरिक क्षति हुई है या पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति को नुकसान हुआ है या दोनों बातें हुई हैं ।

स्पष्टीकरण-शंकाओं के निराकरण के लिए यह घोषित किया जाता है कि उन दुर्घटनाओं की बाबत प्रतिकर के दावों के न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए गठित कर सकेगी जिनमें मोटर यानों के उपयोग से व्यक्तियों की मृत्यु या उन्हें शारीरिक क्षति हुई है" पद के अंतर्गत  [धारा 140 और धारा 163क के अधीन] प्रतिकर के लिए दावे भी हैं ।

(2) दावा अधिकरण उतने सदस्यों से मिलकर बनेगा जितने राज्य सराकर नियुक्त करना ठीक समझे और जहां वह दो या अधिक सदस्यों से मिलकर बनता है वहां उनमें से एक को उसका अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा ।

(3) कोई व्यक्ति दावा अधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तब तक अर्ह न होगा जब कि वह-

                                (क) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश न हो या न रहा हो, या

                                (ख) जिला न्यायाधीश न हो या न रहा हो, या

(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में  [या किसी जिला न्यायाधीश के रूप मेंट नियुक्ति के लिए अर्ह  हो ।

                (4) जहां किसी क्षेत्र के लिए दो या अधिक दावा अधिकरण गठित किए गए हैं वहां राज्य सरकार, साधारण या विशेष   आदेश द्वारा, उनमें कामकाज के वितरण का विनियमन कर सकेगी ।

166. प्रतिकर के लिए आवेदन-(1) धारा 165 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकार की दुर्घटना से उद्भूत प्रतिकर के लिए आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया जा सकेगा, अर्थात् :-

                                (क) उस व्यक्ति द्वारा, जिसे क्षति हुई है ; या

                                (ख) संपत्ति के स्वामी द्वारा ; या

(ग) जब दुर्घटना के परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है, तब मृतक के सभी या किसी विधिक प्रतिनिधि द्वारा ; या

(घ) जिस व्यक्ति को क्षति पहुंची है उसके द्वारा अथवा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अभिकर्ता द्वारा अथवा मृतक के सभी या किसी विधि प्रतिनिधि द्वारा :

परंतु जहां प्रतिकर के लिए किसी आवेदन में मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुए हैं वहां वह आवेदन मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधियों की ओर से या उनके फायदे के लिए किया जाएगा और जो विधिक प्रतिनिधि ऐसे सम्मिलित नहीं हुए हैं उन्हें आवेदन के प्रत्यर्थियों के रूप में पक्षकार बनाया जाएगा ।  

 [(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन, दावाकर्ता के विकल्प पर, उस दावा अधिकरण को जिसकी उस क्षेत्र पर अधिकारिता थी जिसमें दुर्घटना हुई है, अथवा उस दावा अधिकरण को जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर दावाकर्ता निवास करता है या कारबार करता है अथवा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रतिवादी निवास करता है, किया जाएगा और वह ऐसे प्रारूप में होगा और उसमें ऐसी विशिष्टियां होंगी जो विहित की जाएं :

परंतु जहां धारा 140 के अधीन प्रतिकर के लिए कोई दावा ऐसे आवेदन में नहीं किया जाता है वहां उस आवेदन में आवेदक के हस्ताक्षर के ठीक पूर्व उस आशय का एक पृथक् कथन होगा ।]

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

 [(4) दावा अधिकरण, धारा 158 की उपधारा (6) के अधीन उसको भेजी गई दुर्घटनाओं की किसी रिपोर्ट को इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर के लिए आवेदन के रूप में मानेगा ।]

167. कतिपय मामलों में प्रतिकर के लिए दावों के बारे में विकल्प-जहां किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उसे हुई शारीरिक क्षति से इस अधिनियम के अधीन तथा कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) के अधीन भी प्रतिकर के लिए दावा उद्भूत होता है वहां प्रतिकर पाने का हकदार व्यक्ति कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 में किसी बात के होते हुए भी ऐसे प्रतिकर के लिए, अध्याय 10 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, दावा उन दोनों अधिनियमों में से किसी एक के अधीन कर सकेगा, दोनों के अधीन नहीं कर सकेगा ।

168. दावा अधिकरणों का अधिनिर्णय-(1) धारा 166 के अधीन किए गए प्रतिकर के लिए आवेदन की प्राप्ति पर,        दावा अधिकरण बीमाकर्ता को आवेदन की सूचना देने और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् (जिसके अंतर्गत बीमाकर्ता भी है), यथास्थिति, दावे की या दावों में से प्रत्येक की जांच करेगा तथा, धारा 162 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अधिनिर्णय देगा जिसमें प्रतिकर की उतनी रकम अवधारित होगी, जितनी उसे न्यायसंगत प्रतीत होती है तथा वह व्यक्ति या वे व्यक्ति विनिर्दिष्ट होंगे जिन्हें प्रतिकर दिया जाएगा, और अधिनिर्णय देते समय दावा अधिकरण वह रकम विनिर्दिष्ट करेगा जो, यथास्थिति, बीमाकर्ता द्वारा या उस यान के जो दुर्घटना में अंतर्ग्रस्त था, स्वामी या ड्राइवर द्वारा, अथवा उन सब या उनमें से किसी के द्वारा दी जाएगी :

परंतु जहां ऐसे आवेदन में किसी व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में धारा 140 के अधीन प्रतिकर के लिए कोई दावा किया गया है, वहां ऐसा दावा और ऐसी मृत्यु या स्थायी निःशक्तता के बारे में प्रतिकर के लिए कोई अन्य दावा (चाहे वह ऐसे आवेदन में या अन्यथा किया गया है) अध्याय 10 के उपबंधों के अनुसार निपटाया जाएगा ।

(2) दावा अधिकरण अधिनिर्णय की प्रतियां संबंधित पक्षकारों को शीघ्र ही, और किसी भी दशा में अधिनिर्णय की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर, परिदत्त करने की व्यवस्था करेगा ।

(3) जहां इस धारा के अधीन कोई अधिनिर्णय किया जाता है वहां वह व्यक्ति जिससे ऐसे अधिनिर्णय के निबन्धनों के अनुसार किसी रकम का संदाय करने की अपेक्षा की जाती है, दावा अधिकरण द्वारा अधिनिर्णय घोषित करने की तारीख से तीस दिन के भीतर अधिनिर्णीत समस्त रकम, ऐसी रीति से जैसी दावा अधिकरण निर्दिष्ट करे, जमा करेगा ।

169. दावा अधिकरणों की प्रक्रिया और शक्तियां-(1) धारा 168 के अधीन कोई जांच करते समय दावा अधिकरण ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस निमित्त बनाए जाएं, ऐसी संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो वह ठीक समझे ।

(2) दावा अधिकरण को शपथ पर साक्ष्य लेने, साक्षियों को हाजिर कराने तथा दस्तावेजों और भौतिक वस्तुओं का प्रकटीकरण और पेशी कराने तथा ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए, जो विहित किए जाएं, सिविल न्यायालय की सब शक्तियां प्राप्त होंगी, तथा दावा अधिकरण को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के सब प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।

(3) ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए जो इस निमित्त बनाए जाएं, दावा अधिकरण, प्रतिकर के किसी दावे का अधिनिर्णय करने के प्रयोजन के लिए, जांच करने में उसे सहायता देने के लिए, जांच से सुसंगत किसी विषय का विशेष ज्ञान रखने वाले एक या अधिक व्यक्तियों को चुन सकेगा ।

170. कतिपय मामलों में बीमाकर्ता को पक्षकार बनाया जाना-जहां जांच के अनुक्रम में दावा अधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि-

(क) दावा करने वाले व्यक्ति तथा उस व्यक्ति के बीच, जिसके विरुद्ध दावा किया गया है, दुरभिसंधि है ; या

(ख) वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध दावा किया गया है, उस दावे का विरोध करने में असफल रहा है,

वहां वह उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह निदेश दे सकेगा कि वह बीमाकर्ता, जिस पर ऐसे दावे की बाबत दायित्व है,    उस कार्यवाही का पक्षकार बनाया जाए और ऐसे पक्षकार बनाए गए बीमाकर्ता को तब धारा 149 की उपधारा (2) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह अधिकार होगा कि वह उस दावे का विरोध उन सब या किन्हीं आधारों पर करे, जो उस व्यक्ति को  प्राप्त है, जिसके विरुद्ध दावा किया गया है ।

171. जहां दावा मंजूर किया गया है वहां ब्याज दिलाना-जहां कोई दावा अधिकरण इस अधिनियम के अधीन किए गए प्रतिकर के दावे को मंजूर करता है वहां ऐसा अधिकरण यह निदेश दे सकेगा कि प्रतिकर की रकम के अतिरिक्त उतनी दर से तथा उस तारीख से जो दावा करने की तारीख से पहले की न होगी, जिसे वह इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, साधारण ब्याज भी दिया जाए ।

172. कतिपय मामलों में प्रतिकरात्मक खर्चे दिलाना-(1) इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर के किसी दावे का न्यायनिर्णयन करने वाले दावा अधिकरण का जहां किसी मामले में ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह समाधान हो जाता है कि-

(क) बीमा पालिसी इस आधार पर शून्य है कि वह ऐसे तथ्य के व्यपदेशन से अभिप्राप्त की गई थी जिसकी कोई महत्वपूर्ण विशिष्टि मिथ्या थी ; या

(ख) किसी पक्षकार या बीमाकर्ता ने कोई मिथ्या या तंग करने वाला दावा या प्रतिवाद पेश किया है,

वहां अधिकरण आदेश दे सकेगा कि जो पक्षकार दुर्व्यपदेशन का दोषी रहा है या जिसने ऐसा दावा या प्रतिवाद पेश किया है वह, यथास्थिति, बीमाकर्ता अथवा उस पक्षकार को, जिसके विरुद्ध ऐसा दावा या प्रतिवाद पेश किया गया है, प्रतिकर के रूप में विशेष   खर्चा दे ।

(2) कोई भी दावा अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन विशेष खर्चों के बारे में एक हजार रुपए से अधिक की किसी रकम का आदेश न देगा ।

(3) कोई भी व्यक्ति या बीमाकर्ता, जिसके विरुद्ध इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है, मात्र इस कारण ऐसे दुर्व्यपदेशनदावे या प्रतिवाद के संबंध मेंजैसा उपधारा (1) में निर्दिष्ट हैकिसी आपराधिक दायित्व से छूट नहीं पाएगा 

(4) किसी दुर्व्यपदेशन, दावे या प्रतिवाद की बाबत इस धारा के अधीन प्रतिकर के रूप में अधिनिर्णीत कोई रकम             ऐसे दुर्व्यपेदशन, दावे या प्रतिवाद की बाबत प्रतिकर के संबंध में नुकसानी के लिए किसी पश्चात्वर्ती वाद में गणना में ली जाएगी ।

173. अपीलें-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई भी व्यक्ति, जो दावा अधिकरण के अधिनिर्णय से व्यथित है, उस अधिनिर्णय की तारीख से नब्बे दिन के भीतर उच्च न्यायालय को अपील कर सकेगा :

                परंतु ऐसे व्यक्ित की अपील उच्च न्यायालय द्वारा ग्रहण नहीं की जाएगी जिससे ऐसे अधिनिर्णय के निबंधनों के अनुसार किसी रकम का संदाय करने की अपेक्षा की गई है, यदि वह ऐसे उच्च न्यायालय में पच्चीस हजार रुपए या इस प्रकार अधिनिर्णीत रकम का पचास प्रतिशत, इनमें से जो भी कम हो, ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट रीति से जमा नहीं कर देता :

                परन्तु यह और कि यदि उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि समय पर अपील करने से अपीलार्थी पर्याप्त कारण से निवारित रहा था तो वह उक्त नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् भी अपील ग्रहण कर सकेगा ।

                (2) दावा अधिकरण के अधिनिर्णय के विरुद्ध कोई अपील उस दशा में न होगी जिसमें अपील में विवादग्रस्त रकम दस हजार रुपए से कम है ।

174. बीमाकर्ता से धनराशि की वसूली भू-राजस्व की बकाया के रूप में करना-जहां किसी अधिनिर्णय के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा कोई रकम देय है वहां दावा अधिकरण उस रकम के हकदार व्यक्ति द्वारा उसे आवेदन किए जाने पर उस रकम का प्रमाणपत्र कलक्टर को भेज सकेगा तथा कलक्टर उसे ऐसी रीति से वसूल करने के लिए अग्रसर होगा मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।

175. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-जहां किसी क्षेत्र के लिए कोई दावा अधिकरण गठित किया गया है वहां किसी भी सिविल न्यायालय को यह अधिकारिता न होगी कि वह प्रतिकर के किसी दावे से संबंधित किसी ऐसे प्रश्न को ग्रहण करे जिसका न्यायनिर्णन उस क्षेत्र के लिए दावा अधिकरण द्वारा किया जा सकता है, तथा प्रतिकर के दावे की बाबत दावा अधिकरण द्वारा या उसके समक्ष की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई की बाबत सिविल न्यायालय कोई भी व्यादेश मंजूर नहीं करेगा ।

176. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-राज्य सरकार धारा 165 से धारा 174 तक के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी और ऐसे नियम विशिष्टतया निम्नलिखित सभी बातों या उनमें से किसी के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :-

(क) प्रतिकर के दावों के लिए आवेदन का प्ररूप तथा वे विशिष्टियां जो उनमें हो सकेंगी और वे फीसें, यदि कोई हों, जो ऐसे आवेदनों की बाबत दी जानी हैं ;

                (ख) इस अध्याय के अधीन जांच करने में दावा अधिकरण द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ;

                (ग) सिविल न्यायालय में निहित शक्तियां जिनका प्रयोग दावा अधिकरण कर सकेगा ;

                (घ) वह प्ररूप जिसमें, वह रीति जिससे तथा वह फीस (यदि कोई हो) जिसे देने पर दावा अधिकरण के अधिनिर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकेगी ; और

                (ङ) कोई अन्य बात, जो विहित की जानी है या की जाए ।

अध्याय 13

अपराध, शास्तियां और प्रक्रिया

177. अपराधों के दण्ड के लिए साधारण उपबंध-जो कोई इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम, विनियम या अधिसूचना के किसी उपबंध का उल्लंघन करेगा वह जब उस अपराध के लिए कोई शास्ति उपबंधित नहीं है, प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा ; और किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए, जुर्माने से, जो तीन सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

178. पास या टिकट के बिना यात्रा करने और कंडक्टर द्वारा कर्तव्य की अवहेलना के लिए तथा ठेका गाड़ी आदि के चलाने से इंकार करने के लिए शास्ति आदि-(1) जो कोई मंजिली गाड़ी में समुचित पास या टिकट के बिना यात्रा करेगा या मंजिली गाड़ी में रहेगा या उससे उतरने पर जांच के लिए पास या टिकट देने में असफल रहेगा या देने से इंकार करेगा अथवा पास या टिकट की अध्यपेक्षा की जाने पर उसे तत्काल परिदत्त करने में असफल रहेगा या इंकार करेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

                स्पष्टीकरण-इस धारा में पास" और टिकट" के वही अर्थ हैं जो धारा 124 में इनके हैं ।

(2) यदि मंजिली गाड़ी का कंडक्टर या मंजिली गाड़ी का ड्राइवर जो ऐसी मंजिली गाड़ी के ऐसे कंडक्टर के कृत्यों का पालन कर रहा है, जिसका यह कर्तव्य है कि-

(वह मंजिली गाड़ी में यात्रा करने वाले व्यक्ति द्वारा भाड़ा दिए जाने पर उसे टिकट देजानबूझकर या उपेक्षापूर्वक,-

                                                (i) भाड़ा दिए जाने पर उसे स्वीकार करने में असफल रहेगा या इंकार करेगा ; या

                                                (ii) टिकट देने में असफल रहेगा या इन्कार करेगा ; या

                                                (iii) अवैध टिकट देगा ; या

                                                (iv) कम मूल्य का टिकट देगा ; या

(ख) वह किसी पास या टिकट की जांच करे, जानबूझकर या उपेक्षापूर्वक ऐसा करने में असफल रहेगा या        इंकार करेगा,

तो वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

                (3) यदि ठेका गाड़ी का परमिट धारक या ड्राइवर इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के उल्लंघन में ठेका गाड़ी के चलाने या यात्रियों को ले जाने से इंकार करेगा तो वह,-

(क) दो पहिए या तीन पहिए वाले मोटर यानों की दशा में, जुर्माने से, जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ; और

                                (ख) किसी अन्य दशा में, जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

179. आदेशों की अवज्ञा, बाधा डालना और जानकारी देने से इंकार करना-(1) जो कोई जानबूझकर ऐसे किसी निर्देश की अवज्ञा करेगा जो वैसा निदेश देने के लिए इस अधिनियम के अधीन सशक्त किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा विधिपूर्वक दिया गया है या ऐसे किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करने में किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को बाधा पहुंचाएगा जो व्यक्ति या प्राधिकारी उसका निर्वहन करने के लिए इस अधिनियम के अधीन अपेक्षित या सशक्त है, वह उस दशा में जब उस अपराध के लिए कोई अन्य शास्ति उपबन्धित नहीं है, जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

                (2) जो कोई इस अधिनियम द्वारा या के अधीन कोई जानकारी देने के लिए अपेक्षित होते हुए ऐसी जानकारी को जानबूझकर रोकेगा या ऐसी जानकारी देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके सही होने का उसे विश्वास नहीं है, वह उस दशा में जब उस अपराध के लिए कोई अन्य शास्ति उपबन्धित नहीं है, कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से,    जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

180. अप्राधिकृत व्यक्तियों को यान चलाने की अनुज्ञा देना-जो कोई किसी मोटर यान का स्वामी या भारसाधक व्यक्ति होते हुए ऐसे अन्य किसी व्यक्ति से, जो धारा 3 या धारा 4 के उपबन्धों की पूर्ति नहीं करता है, यान चलवाएगा या चलाने देगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

181. धारा 3 या धारा 4 के उल्लंघन में यानों को चलाना-जो कोई धारा 3 या धारा 4 के उल्लंघन में किसी मोटर यान     को चलाएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा,   अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

182. अनुज्ञप्ति संबंधी अपराध-(1) जो कोई चालन-अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए इस अधिनियम के अधीन निरर्हित होते हुए सार्वजनिक स्थान या किसी अन्य स्थान में मोटर यान चलाएगा या चालन-अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करेगा या उसे अभिप्राप्त करेगा अथवा पृष्ठांकन रहित चालन-अनुज्ञप्ति दिए जाने का हकदार न होते हुए अपने द्वारा पहले धारित चालन-अनुज्ञप्ति पर किए गए पृष्ठांकनों को प्रकट किए बिना चालन-अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करेगा या उसे अभिप्राप्त करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा, और उसके द्वारा ऐसे अभिप्राप्त की गई कोई चालन-अनुज्ञप्ति प्रभावहीन होगी ।

                (2) जो कोई कंडक्टर अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए इस अधिनियम के अधीन निरर्हित होते हुए किसी मंजिली गाड़ी के कंडक्टर के रूप में सार्वजनिक स्थान में कार्य करेगा अथवा कंडक्टर अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करेगा या उसे   अभिप्राप्त करेगा, अथवा पृष्ठांकन रहित कंडक्टर अनुज्ञप्ति दिए जाने का हकदार न होते हुए अपने द्वारा पहले धारित कंडक्टर अनुज्ञप्ति पर किए गए पृष्ठांकनों को प्रकट किए बिना कंडक्टर अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करेगा या उसे अभिप्राप्त करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा,  तथा उसके द्वारा ऐसे अभिप्राप्त की गई कोई कंडक्टर अनुज्ञप्ति प्रभावहीन होगी ।

 [182क. यान के सन्निर्माण और अनुरक्षण से संबंधित अपराधों के लिए दंड-कोई व्यक्ति जो धारा 109 की उपधारा (3) के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, प्रथम अपराध के लिए एक हजार रुपए के जुर्माने से और किन्हीं पश्चात्वर्ती अपराधों के लिए पांच हजार रुपए के जुर्माने से दंडनीय होगा ।]

183. अत्यधिक गति आदि से चलाना-(1) जो कोई धारा 112 में निर्दिष्ट गति-सीमा का उल्लंघन करके मोटर यान चलाएगा वह जुर्माने से, जो चार सौ रुपए तक का हो सकेगा, या इस उपधारा के अधीन अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुकने पर इस उपधारा के अधीन अपराध के लिए पुनः दोषसिद्ध होने की दशा में जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

                (2) जो कोई ऐसे व्यक्ति से, जो मोटर यान चलाने के लिए उसके द्वारा नियोजित या उसके नियंत्रणाधीन है, धारा 112 में निर्दिष्ट गति-सीमा का उल्लंघन करते हुए उसे चलवाएगा, वह जुर्माने से, जो तीन सौ रुपए तक का हो सकेगा या इस उपधारा के अधीन अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुकने पर इस उपधारा के अधीन अपराध के लिए पुनः दोषसिद्ध होने की दशा में,    जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

                (3) कोई व्यक्ति केवल एक साक्षी के इस आशय के साक्ष्य पर ही कि उस साक्षी की राय में ऐसा व्यक्ति ऐसी गति से यान को चला रहा था जो विधिविरुद्ध है, तब तक दोषसिद्ध नहीं किया जाएगा जब तक उस राय की बाबत यह दर्शित नहीं कर दिया जाता है कि वह किसी यांत्रिक युक्ति के उपयोग से अभिप्राप्त प्राक्कलन पर आधारित है ।

                (4) ऐसी समय सारणी का प्रकाशन जिसके अधीन ऐसे किसी निदेश का दिया जाना जिसके अनुसार कोई यात्रा या यात्रा का भाग विनिर्दिष्ट समय के अन्दर पूरा कर लिया जाना है, उस दशा में, जिसमें न्यायालय की यह राय है कि मामले की परिस्थितियों में यह साक्ष्य नहीं है कि वह यात्रा या यात्रा का भाग धारा 122 में निर्दिष्ट गति-सीमा का उल्लंघन किए बिना विनिर्दिष्ट समय के अन्दर पूरा कर लिया लिया जाए, इस बात का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य होगा कि जिस व्यक्त ने वह समय सारणी प्रकाशित की है या वह निदेश दिया है उसने उपधारा (2) के अधीन दण्डनीय अपराध किया है ।

184. खतरनाक तरीके से मोटर यान चलाना-जो कोई मोटर यान को ऐसी गति से ऐसे तरीके से चलाएगा जो मामले की उन सब परिस्थितियों को, जिनके अन्तर्गत उस स्थान का स्वरूप, हालत और उपयोग भी है, जहां वह यान चलाया जा रहा है तथा    उस स्थान में यातायात के परिणाम को जो वास्तव में उस समय है या जिसके होने की युक्तियुक्त रूप से प्रत्याशा की जा सकती है, ध्यान में रखते हुए साधारण जनता के लिए खतरनाक है, वह प्रथम अपराध पर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए उस दशा में, जिसमें कि वह वैसे ही पूर्ववर्ती अपराध के किए जाने के तीन वर्ष के अन्दर किया गया है, कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी,      या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

185. किसी मत्त व्यक्ति द्वारा या मादक द्रव्यों के असर में होते हुए किसी व्यक्ति द्वारा मोटर यान चलाया जाना-मोटर यान को चलाते समय या चलाने का प्रयत्न करते समय-

 [(क) जिस किसी के रक्त में किसी श्वास विश्लेषक द्वारा परीक्षण किए जाने पर रक्त के प्रति 100 मिली लीटर   में 30 मिलीग्राम से अधिक ऐल्कोहाल पाया जाता है, या]

(ख) जो कोई मादक द्रव्य के असर में इस सीमा तक है कि वह मोटर यान पर समुचित नियंत्रण रखने में असमर्थ है,

वह प्रथम अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से तथा पश्चात्वर्ती अपराध के लिए उस दशा में, जिसमें कि वह वैसे ही पूर्ववर्ती अपराध के किए जाने के तीन वर्ष के भीतर किया गया है, कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो तीन हजार रुपए रुपए तक का  हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया गया मादक द्रव्य ऐसा समझा जाएगा जिससे व्यक्ति मोटर यान पर उचित नियंत्रण रखने योग्य नहीं रहता ।

186. मोटर यान चलाने के लिए मानसिक या शारीरक रूप से अयोग्य होते हुए यान चलाना-जो कोई किसी सार्वजनिक स्थान में उस समय मोटर यान चलाएगा जब उसे इस बात का ज्ञान है कि वह किसी ऐसे रोग या निःशक्तता से ग्रस्त है जिसके परिणामस्वरूप यान का उसके द्वारा चलाया जाना साधारण जनता के लिए खतरे का कारण हो सकता है, वह प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

187. दुर्घटना सम्बन्धी अपराधों के लिए दण्ड-जो कोई धारा 132 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) या धारा 133 या धारा 134 के उपबंधों का अनुपालन करने में असफल रहेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, अथवा इस धारा के अधीन अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुकने पर इस धारा के अधीन अपराध के लिए पुनः दोषसिद्ध होने की दशा में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

188. कतिपय अपराधों का दुष्प्रेरण करने के लिए दण्ड-जो कोई धारा 184, धारा 185 या धारा 186 के अधीन अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा वह उस अपराध के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय होगा ।

189. दौड़ और गति का मुकाबला-जो कोई राज्य सरकार की लिखित सहमति के बिना किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर यान की किसी भी प्रकार की दौड़ या गति का मुकाबला करने देगा या उसमें भाग लेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

190. असुरक्षित दशा वाले यान का उपयोग किया जाना-(1) जो कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में ऐसे मोटर यान या ट्रेलर को, उस समय चलाएगा या चलवाएगा या चलाने देगा जब उस यान या ट्रेलर में ऐसी कोई खराबी है जिसकी उस व्यक्ति को जानकारी है या जिसका पता उसे मामूली सावधानी बरतने पर चल सकता था और खराबी ऐसी है कि उससे यान का चलाया जाना ऐसे स्थान का उपयोग करने वाले व्यक्तियों और यानों के लिए खतरे का कारण हो सकता है, वह जुर्माने से, जो दो सौ पचास रुपए तक का हो सकेगा अथवा उस दशा में जिसमें कि ऐसी खराबी के कारण दुर्घटना हो जाती है जिससे शारीरिक क्षति या सम्पत्ति को नुकसान पहुंचता है, कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा,        अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

                (2)  जो कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में कोई मोटर यान ऐसे चलाएगा या चलवाएगा या चलाने देगा जिससे सड़क सुरक्षा, शोर नियंत्रण और वायु प्रदूषण के संबंध में विहित मानकों का उल्लंघन होता है तो वह प्रथम अपराध के लिए एक हजार रुपए तक जुर्माने से, तथा किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए दो हजार रुपए तक जुर्माने से, दंडनीय होगा ।

                (3) जो कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में कोई मोटर यान ऐसे चलाएगा या चलवाएगा या चलाने देगा जिससे ऐसे माल के वहन से संबंधित जो मानव जीवन के लिए खतरनाक या परिसंकटमय प्रकृति का है, इस अधिनियम के या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों का उल्लंघन होता है तो वह प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो तीन हजार रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा दोनों से, और किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए, जुर्माने से जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा या कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

191. यान का ऐसी हालत में विक्रय या यान का ऐसी हालत में परिवतर्न जिससे इस अधिनियम का उल्लंघन हो-जो कोई मोटर यानों का आयातकर्ता या व्यापारी होते हुए मोटर यान या ट्रेलर का ऐसी हालत में विक्रय या परिदान करेगा अथवा विक्रय या परिदान की प्रस्थापना करेगा जिससे सार्वजनिक स्थान में उसके उपयोग से अध्याय 7 का या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन होगा अथवा मोटर यान या ट्रेलर को ऐसे परिवर्तित करेगा कि उसकी ऐसी हालत हो जाए जिससे सार्वजनिक स्थान में उसके उपयोग से अध्याय 7 का या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन होगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :

परन्तु कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन उस दशा में दोषसिद्ध न किया जाएगा जिसमें वह साबित कर देता है कि उसके पास यह विश्वास करने का उचित कारण था कि वह यान सार्वजनिक स्थान में तब तक उपयोग में न लाया जाएगा जब तक वह ऐसी हालत में नहीं कर दिया जाता जिसमें उसका ऐसा उपयोग विधिपूर्णतया किया जा सकता है ।

 [192. रजिस्ट्रीकरण के बिना यान का उपयोग-(1) जो कोई धारा 39 के उपबंधों के उल्लंघन में, किसी मोटर यान को चलाएगा अथवा मोटर यान का उपयोग कराएगा या किए जाने देगा, वह प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु दो हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दंडनीय होगा तथा किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु पांच हजार रुपए से कम का   नहीं होगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा :

                परन्तु न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, कोई लघुतर दण्ड अधिरोपित कर सकेगा ।

(2) इस धारा की कोई बात आपात के दौरान ऐसे व्यक्तियों को ले जाने के लिए, जो रोग से या क्षति से ग्रस्त हैं या कष्ट निवारण के लिए खाद्य या सामग्रियों के या वैसे ही प्रयोजन के लिए चिकित्सीय प्रदायों के परिवहन के लिए मोटर यान के उपयोग के संबंध में लागू नहीं होगी :

परन्तु यह तब जबकि वह व्यक्ति, जो यान का उपयोग कर रहा है, उसके बारे में रिपोर्ट प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसे उपयोग की तारीख से सात दिन के भीतर दे दे ।

(3) वह न्यायालय, जिसमें उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकृति के अपराध की बाबत किसी दोषसिद्धि की अपील होती है, निचले न्यायालय द्वारा किए गए किसी आदेश को, इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या परिवर्तित कर सकेगा कि उस दोषसिद्धि के विरुद्ध, जिसके संबंध में ऐसा आदेश किया गया था कोई अपील नहीं होती है ।

192क. परमिट के बिना यान का उपयोग-(1) जो कोई धारा 66 की उपधारा (1) के उपबन्धों के उल्लंघन में अथवा        ऐसे परमिट की उस मार्ग संबंधी जिस पर या उस क्षेत्र संबंधी जिसमें या उस प्रयोजन संबंधी जिसके लिए उस यान का उपयोग किया  जा सकेगा, किसी शर्त के उल्लंघन में यान को चलाएगा, अथवा मोटर यान का उपयोग कराएगा या किए जाने देगा, वह प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु दो हजार रुपए से कम का नहीं होगा, तथा किसी पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, किन्तु तीन मास से कम की नहीं होगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु पांच हजार रुपए से कम का नहीं होगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, कोई लघुतर दण्ड अधिरोपित कर सकेगा । 

(2) इस धारा की कोई बात आयात के दौरान ऐसे व्यक्तियों को ले जाने के लिए, जो रोग से या क्षति से ग्रस्त हैं या मरम्मत के लिए सामग्री के या कष्ट निवारण के लिए खाद्य या सामग्रियों के या वैसे ही प्रयोजन के लिए चिकित्सीय प्रदायों के परिवहन के लिए मोटर यान के उपयोग के संबंध में लागू नहीं होगी :

परन्तु यह तब जब कि वह व्यक्ति, जो यान का उपयोग कर रहा है, उसके बारे में रिपोर्ट प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसे उपयोग की तारीख से सात दिन के भीतर दे दे ।

(3) वह न्यायालय, जिसमें उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकृति के अपराध की बाबत किसी दोषसिद्धि की अपील होती है, निचले न्यायालय द्वारा किए गए किसी आदेश को इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या परिवर्तित कर सकेगा कि उस दोषसिद्धि के विरुद्ध, जिसके संबंध में ऐसा आदेश किया गया था, कोई अपील नहीं होती है ।]

193. बिना समुचित प्राधिकार वाले अभिकर्ताओं और प्रचारकों के लिए दण्ड-जो कोई धारा 93 के अथवा उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबन्धों का उल्लंघन करके अभिकर्ता या प्रचारक के रूप में काम करेगा वह प्रथम अपराध के लिए    जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

194. अनुज्ञेय भार से अधिक भार वाले यान को चलाना- [(1) जो कोई धारा 113 या धारा 114 या धारा 115 के उपबन्धों के उल्लंघन में किसी मोटर यान को चलाएगा अथवा मोटर यान का उपयोग कराएगा या किए जाने देगा, वह दो हजार रुपए के न्यूनतम जुर्माने से, और लदान सीमा से अधिक भार को उतरवाने के लिए प्रभारों का संदाय करने के दायित्व सहित ऐसे अधिक भार के लिए एक हजार रुपए प्रति टन के हिसाब से अतिरिक्त रकम से, दण्डनीय होगा ।]

(2) यान का कोई ड्राइवर जो रुकने से और धारा 114 के अधीन इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी द्वारा ऐसा करने के निदेश दिए जाने के पश्चात् यान का भार कराने से इंकार करता है अथवा भार कराने से पूर्व माल को हटाता है या हटवाता है, वह जुर्माने से, जो तीन हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

195. कतिपय परिस्थितियों में न्यूनतम जुर्माने का अधिरोपण-(1) जो कोई इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किए जाने पर वैसा ही अपराध, पूर्ववर्ती अपराध के किए जाने के तीन वर्ष के भीतर दूसरी बार या उसके पश्चात्वर्ती बार करेगा तो कोई न्यायालय ऐसे अपराध के लिए अधिरोपणीय जुर्माने की अधिकतम रकम के एक चौथाई से कम जुर्माना केवल उन कारणों से, जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाएंगे, अधिरोपित करेगा, अन्यथा नहीं ।

(2) उपधारा (1) की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसा कारावास अधिनिर्णीत करने की न्यायालय की शक्ति को निर्बन्धित करती है जिसे वह मामले की परिस्थितियों में आवश्यक समझता है और जो उस अपराध की बाबत इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट अधिकतम सीमा से अधिक नहीं है ।

196. बीमा न किए गए यान को चलाना-जो कोई धारा 146 के उपबन्धों का उल्लंघन करके कोई मोटर यान चलाएगा     या चलवाएगा, या चलाने देगा वह कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

197. प्राधिकार के बिना यान ले जाना-(1) जो कोई किसी मोटर यान को या तो उसके स्वामी की सहमति प्राप्त किए बिना या अन्य विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना ले जाएगा और चलाएगा, वह कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा :

परन्तु कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन उस दशा में दोषसिद्ध न किया जाएगा जब न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसे व्यक्ति ने ऐसे समुचित विश्वास से कार्य किया है कि उसे विधिपूर्ण प्राधिकार प्राप्त है अथवा ऐसे समुचित विश्वास से कार्य किया है कि यदि उसने स्वामी की सहमति मांगी होती तो मामले की परिस्थितियों में स्वामी ने अपनी सहमति दे दी होती ।

(2) जो कोई, विधिविरुद्ध रूप से, बलपूर्वक या बल की धमकी द्वारा या अन्य प्रकार के अभित्रास के द्वारा, किसी मोटर यान को छीन लेता है या उस पर नियंत्रण करता है, वह कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो पांस सौ रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।

(3) जो कोई किसी मोटर यान के संबंध में उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई कार्य करने का प्रयास करेगा या किसी ऐसे कार्य को करने का दुष्प्रेरण करेगा, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने भी, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अपराध किया है ।

198. यान में अनधिकृत हस्तक्षेप-जो कोई विधिपूर्ण प्राधिकार या युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना किसी खड़े हुए मोटर यान में प्रवेश करेगा या चढ़ेगा या मोटर यान के ब्रेक या यंत्र जाल के किसी भाग को बिगाड़ेगा वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

199. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है वहां    प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी उस उल्लंघन के दोषी समझे जाएंगे तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्रवाई किए जाने और दण्डित किए जाने के भागी होंगे :

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबंधित किसी दण्ड के लिए दायी नहीं बनाएगी   यदि वह यह साबित कर देता है कि वह अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उस अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए उसने सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस उपधारा का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक,  सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(कंपनीसे कोई भी निगमित निकाय अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी हैतथा

(ख) फर्म के संबंध में, निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

200. कतिपय अपराधों का शमन-(1) धारा 177, धारा 178, धारा 179, धारा 180, धारा 181, धारा 182, धारा 183      की उपधारा (1) या उपधारा (2), धारा 184, धारा 186,  [धारा 189, धारा 190 की उपधारा (2)], धारा 191, धारा 192, धारा 194, धारा 196 या धारा 198 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किया गया हो या पश्चात् किया गया हो, ऐसे अधिकारियों या प्राधिकारियों द्वारा और ऐसी राशि के लिए जो राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, शमन या तो अभियोजन संस्थित किए जाने के पूर्व या पश्चात् किया जा सकेगा ।

(2) जहां किसी अपराध का शमन उपधारा (1) के अधीन किया गया है वहां अपराधी को, यदि वह अभिरक्षा में हो,     निर्मुक्त कर दिया जाएगा और ऐसे अपराध के बारे में उसके विरुद्ध आगे कार्यवाही नहीं की जाएगी ।

201. यातायात के मुक्त प्रवाह में अवरोध डालने के लिए शास्ति-(1) जो कोई किसी निर्योग्य यान को किसी सार्वजनिक स्थान पर ऐसी रीति से रखेगा जिससे कि यातायात का मुक्त प्रवाह अवरुद्ध होता है तो वह, जब तक यान उस स्थिति में रहता है, प्रति घंटा पचास रुपए तक की शास्ति के लिए दायी होगा :

                परन्तु दुर्घटनाग्रस्त यान केवल उस समय से शास्ति का दायी होगा जिस समय विधि के अधीन निरीक्षण की औपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं :

                 [परन्तु यह और कि जहां यान किसी सरकारी अभिकरण द्वारा हटाया जाता है वहां अनुकर्षण प्रभार यान के स्वामी या ऐसे यान के भारसाधक व्यक्ति से वसूल किए जाएंगे ।]

 [(2) इस धारा के अधीन शास्तियां या अनुकर्षण प्रभार ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा वसूल किए जाएंगे जिसे राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्राधिकृत करे ।]

202. वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति-(1) वर्दी में कोई भी पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को, जिसने उसकी उपस्थिति में ऐसा अपराध किया है जो धारा 184 या धारा 185 या धारा 197 के अधीन दण्डनीय है, वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकेगा :

परन्तु ऐसे किसी व्यक्ति को जो धारा 185 के अधीन दण्डनीय अपराध के संबंध में ऐसे गिरफ्तार किया गया हैधारा 203 और धारा 204 में निर्दिष्ट उसकी चिकित्सीय परीक्षा उसकी गिरफ्तारी के दो घण्टों के भीतर किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी से कराई जाएगी और ऐसा  करने की दशा में उसे अभिरक्षा से निर्मुक्त किया जाएगा 

 [(2) वर्दी पहने हुए कोई पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को जिसने इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया है, बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकेगा, यदि ऐसा व्यक्ति अपना नाम और पता देने से इंकार करता है ।]

(3) मोटर यान के ड्राइवर को वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने वाला पुलिस अधिकारी परिस्थितियों से अपेक्षित होने पर यान के अस्थायी निपटारे के लिए ऐसे कदम उठाएगा या उठवाएगा जो वह उचित समझे ।

203. श्वास-परीक्षण- [(1) वर्दी पहने हुए कोई पुलिस अधिकारी या मोटर यान विभाग का कोई अधिकारी जिसे उस विभाग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाए, किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर यान चलाने वाले या चलाने का प्रयास करने वाले किसी व्यक्ति से श्वास परीक्षण के लिए वहां या पास के स्थान में श्वास के एक या अधिक नमूने देने की उस दशा में अपेक्षा कर सकेगा जब ऐसे पुलिस अधिकारी या अधिकारी के पास ऐसे व्यक्ति द्वारा धारा 185 के अधीन दंडनीय कोई अपराध किए जाने का संदेह करने का कोई युक्तियुक्त कारण है :

परन्तु श्वास परीक्षण के लिए कोई अपेक्षा ऐसे अपराध के किए जाने के पश्चात् युक्तियुक्त तौर पर तब तक नहीं जाएगी (जब तक कि ऐसा श्वास परीक्षण यथासाध्य शीघ्र नहीं करा लिया गया हो) ।]

(2) यदि कोई मोटर यान किसी सार्वजनिक स्थान में दुर्घटनाग्रस्त है और वर्दी में किसी पुलिस अधिकारी को यह संदेह करने का युक्तियुक्त कारण है कि उस व्यक्ति के, जो दुर्घटना के समय मोटर यान चला रहा था, रक्त में एल्कोहल थी या वह धारा 185 में निर्दिष्ट किसी मादक द्रव्य के असर में यान चला रहा था, तो वह इस प्रकार मोटर यान चलाने वाले किसी व्यक्ति से,-

                (क) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो किसी अस्पताल में अन्तरंग रोगी के रूप में है, उस अस्पताल में,

                (ख) किसी अन्य व्यक्ति की दशा में, या तो उस स्थान पर या उसके समीप जहां अपेक्षा की गई है या यदि पुलिस अधिकारी उचित समझे तो पुलिस अधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट पुलिस थाने पर,

श्वास-परीक्षण के लिए श्वास-नमूना देने की अपेक्षा कर सकेगा :

                परन्तु उस व्यक्ति से, जो किसी अस्पताल में अन्तरंग रोगी के रूप में है, ऐसा नमूना देने की अपेक्षा उस दशा में नहीं की जाएगी जब उस रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी को, जिसकी अव्यवहित देखरेख में उक्त व्यक्ति है, नमूना लेने की प्रस्थापना की सूचना पहले नहीं दी गई है अथवा वह इस आधार पर नमूना दिए जाने पर आपत्ति करता है कि नमूने का दिया जाना या दिए जाने की अध्यपेक्षा रोगी की समुचित देखरेख या उपार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी ।

(3) यदि वर्दी में किसी पुलिस अधिकारी को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी व्यक्ति पर उसके द्वारा किए गए श्वास-परीक्षण के परिणामस्वरूप यह प्रतीत होता है कि वह युक्ति जिसके द्वारा परीक्षण किया गया है, यह उपदर्शित करती है कि उस व्यक्ति के रक्त में एल्कोहल है, तो पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकेगा किंतु तब नहीं जब वह व्यक्ति अन्तरंग रोगी के रूप में अस्पताल में हो ।

(4) यदि श्वास-परीक्षण के लिए श्वास का नमूना देने के लिए उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अपेक्षित कोई व्यक्ति ऐसा करने से इन्कार करता है या ऐसा करने में असफल रहता है और पुलिस अधिकारी को उसके रक्त में एल्कोहल होने का सन्देह करने का युक्तियुक्त कारण है तो पुलिस अधिकारी उसे बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकेगा किन्तु तब नहीं जब वह अंतरंग रोगी के रूप में अस्पताल में हो ।

(5) इस धारा के अधीन गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को, जब वह पुलिस थाने में हो, श्वास-परीक्षण के लिए श्वास का नमूना देने का अवसर दिया जाएगा ।

(6) इस धारा के उपबन्धों के अनुसरण में किए गए श्वास-परीक्षण के परिणाम साक्ष्य में ग्राह्य होंगे ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, श्वास-परीक्षण" से किसी व्यक्ति के रक्त में एल्कोहल होने का कोई संकेत प्राप्त करने के प्रयोजानार्थ उस व्यक्ति द्वारा दिए गए श्वास के नमूने पर, उस युक्ति के द्वारा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे परीक्षण के प्रयोजन के लिए अनुमोदित की जाए, किया गया परीक्षण अभिप्रेत है ।

204. प्रयोगशाला परीक्षण-(1) किसी ऐसे व्यक्ति सेजिसे धारा 203 के अधीन गिरफ्तार किया गया हैजब वह पुलिस थाने में होऐसे रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी कोजो पुलिस अधिकारी द्वारा पेश किया जाएप्रयोगशाला परीक्षण के लिए अपने रक्त का कोई नमूना देने को पुलिस अधिकारी द्वारा अपेक्षा की जा सकेगीयदि,-

(क) पुलिस अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि वह युक्ति जिसके द्वारा ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में श्वास-परीक्षण किया गया है, ऐसे व्यक्ति के रक्त में एल्कोहल होने का संकेत करती है, या

(ख) ऐसे व्यक्ति ने, जब उसे श्वास-परीक्षण कराने के लिए अवसर दिया गया था, ऐसा करने से इन्कार किया है, ऐसा नहीं किया है या करने में असफल रहा है :

                परन्तु जहां ऐसा नमूना देने के लिए अपेक्षित व्यक्ति कोई स्त्री है और ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा पेश किया गया रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी कोई पुरुष चिकित्सा व्यवसायी है तो नमूना किसी स्त्री की उपस्थिति में ही, चाहे वह चिकित्सा व्यवसायी हो या नहीं, लिया जाएगा ।

(2) किसी व्यक्ति से, जब वह अंतरंग रोगी के रूप में किसी अस्पताल में हो, किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अस्पताल में प्रयोगशाला परीक्षण के लिए अपने रक्त का नमूना देने की अपेक्षा की जा सकेगी-

(क) यदि पुलिस अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि वह युक्ित, जिसके द्वारा ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में श्वास का परीक्षण किया गया है, ऐसे व्यक्ति के रक्त में एल्कोहल होने का संकेत करती है, या

(ख) यदि उस व्यक्ति ने, चाहे अस्पताल में या अन्यत्र, श्वास-परीक्षण के लिए श्वास का नमूना देने की अपेक्षा की जाने पर ऐसा करने से इन्कार किया है, ऐसा नहीं किया है या ऐसा करने में असफल रहा है, और पुलिस अधिकारी के पास उसके रक्त में एल्कोहल होने का सन्देह करने का युक्तियुक्त कारण है :

                परन्तु किसी व्यक्ति से, इस उपधारा के अधीन प्रयोगशाला परीक्षण के लिए अपने रक्त का नमूना देने की अपेक्षा नहीं की जाएगी यदि उस रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी को, जिसकी अव्यवहित देखरेख में उक्त व्यक्ति है, नमूना लेने की प्रस्थापना की सूचना पहले नहीं दी गई है, अथवा वह इस आधार पर नमूना दिए जाने पर आपत्ति करता है कि नमूने का दिया जाना या दिए जाने की अध्यपेक्षा रोगी की समुचित देखरेख या उपचार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी ।

(3) इस धारा के अनुसरण में किए गए प्रयोगशाला परीक्षण के परिणाम साक्ष्य में ग्राह्य होंगे ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, प्रयोगशाला परीक्षण" से केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा स्थापितअनुरक्षित अथवा मान्यताप्राप्त प्रयोगशाला में रक्त के नमूने का किया गया विश्लेषण अभिप्रेत है ।

205. मोटर यान चलाने की अयोग्यता की उपधारणा-धारा 185 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए किसी कार्यवाही में यदि यह साबित हो जाता है कि किसी अभियुक्त ने, जब किसी पुलिस अधिकारी द्वारा किसी समय ऐसा करने के लिए अनुरोध किया गया था, श्वास-परीक्षण के लिए श्वास का नमूना अथवा प्रयोगशाला परीक्षण के लिए उसके रक्त का नमूना लिए जाने या देने से इन्कार किया था, ऐसा नहीं किया था या करने में असफल रहा था, तो उसका इन्कार, ऐसा न करना या असफलता, जब तक कि उसके लिए उचित कारण न दर्शित किया गया हो, उस समय उसकी दशा के बारे में, अभियोजन की ओर से दिए गए किसी साक्ष्य का समर्थन करने वाला या प्रतिरक्षा की ओर से दिए गए किसी साक्ष्य का खंडन करने वाला माना जाएगा ।  

206. पुलिस अधिकारी की दस्तावेज परिबद्ध करने की शक्ति-(1) यदि किसी पुलिस अधिकारी अथवा राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अन्य व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी मोटर यान पर ले जाया जाने वाला कोई भी पहचान चिह्न अथवा कोई अनुज्ञप्ति, परमिट, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र, बीमा प्रमाणपत्र, या अन्य दस्तावेज, जिसे मोटर यान के ड्राइवर या अन्य भारसाधक व्यक्ति द्वारा उसके समक्ष पेश किया गया है, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 464 के अर्थ में मिथ्या दस्तावेज है, तो वह उस चिह्न या दस्तावेज को अभिगृहीत कर सकेगा तथा यान के ड्राइवर या स्वामी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसे चिह्न या दस्तावेज के अपने कब्जे में होने अथवा यान में विद्यमान होने का कारण बताए ।

(2) यदि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी पुलिस अधिकारी अथवा अन्य व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी मोटर यान का ड्राइवर जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है, फरार हो सकता है या समन की तामील से अन्यथा बच सकता है तो वह ऐसे ड्राइवर द्वारा धारित किसी अनुज्ञप्ति को अभिगृहीत कर सकेगा और उस अपराध का संज्ञान करने वाले न्यायालय के पास उसे भेज सकेगा तथा उक्त न्यायालय अपने समक्ष ऐसे ड्राइवर के प्रथम बार उपस्थित होने पर उस अनुज्ञप्ति को ऐसी अस्थायी अभिस्वीकृति के बदले में, जो उपधारा (3) के अधीन दी गई है, उसे लौटा देगा ।

(3) कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जिसने उपधारा (2) के अधीन किसी अनुज्ञप्ति को अभिगृहीत किया है, उस व्यक्ति को, जिसने अनुज्ञप्ति अभ्यर्पित की है, उसके लिए अस्थायी अभिस्वीकृति देगा तथा ऐसी अभिस्वीकृति धारक को जब तक वह अनुज्ञप्ति उसे लौटा नहीं दी जाती अथवा ऐसी तारीख तक जो पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति द्वारा उस अभिस्वीकृति में निर्दिष्ट की गई है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, यान चलाने के लिए प्राधिकृत करेगी :

परन्तु यदि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति का, उससे आवेदन किए जाने पर यह समाधान हो जाता है कि वह अनुज्ञप्ति उसके धारक को अभिस्वीकृति में विनिर्दिष्ट तारीख से पूर्व ऐसे किसी     कारण से, जिसके लिए वह धारक उत्तरदायी नहीं है, नहीं लौटाई जा सकती अथवा नहीं लौटाई गई है तो, यथास्थति, मजिस्ट्रेट,   पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति मोटर चलाने के प्राधिकार की अवधि को उस तारीख तक के लिए बढ़ा सकेगा जो अभिस्वीकृति में विनिर्दिष्ट की जाए ।

207. रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र, परमिट, आदि के बिना उपयोग किए गए यानों के निरुद्ध करने की शक्ति-(1) यदि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी मोटर यान का उपयोग धारा 3 या धारा 4 या धारा 39 के उपबन्धों का उल्लंघन करके या धारा 66 की उपधारा (1) द्वारा अपेक्षित परमिट के बिना अथवा उस मार्ग सम्बन्धी, जिस पर या उस क्षेत्र सम्बन्धी जिसमें अथवा उस प्रयोजन सम्बन्धी जिसके लिए उस यान का उपयोग किया जा सकता है, ऐसे परमिट की किसी शर्त का उल्लंघन करके किया गया है या किया जा रहा है तो वह उस यान को अभिगृहीत और विहित रीति से निरुद्ध कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए ऐसे कोई कदम उठा सकेगा या उठवा सकेगा जो उस यान की अस्थायी सुरक्षित अभिरक्षा के लिए वह उचित समझे :

परन्तु जहां ऐसे अधिकारी या व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी मोटर यान का उपयोग धारा 3 या धारा 4 का उल्लंघन करके, या धारा 66 की उपधारा (1) द्वारा अपेक्षित परमिट के बिना किया गया है या किया जा रहा है वहां वह यान को अभिगृहीत करने के बजाय यान के रजिस्ट्रीकरण का प्रमाणपत्र अभिगृहीत कर सकेगा तथा उसके लिए अभिस्वीकृति देगा ।

(2) जहां कोई मोटर यान उपधारा (1) के अधीन अभिगृहीत और निरुद्ध किया गया है वहां उस मोटर यान का स्वामी या उसका भारसाधक व्यक्ति, परिवहन प्राधिकारी या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी को, ऐसे यान के निर्मुक्त कर देने के लिए सुसंगत दस्तावेजों के साथ आवेदन कर सकेगा, और ऐसा प्राधिकारी या अधिकारी ऐसे दस्तवेजों का सत्यापन करने के पश्चात्, आदेश द्वारा यान को ऐसी शर्तों के अधीन निर्मुक्त कर सकेगा जो वह प्राधिकारी या अधिकारी अधिरोपित करना ठीक समझे ।

208. मामलों का संक्षिप्त निपटारा-(1) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध (उस अपराध से भिन्न जिसे  केन्द्रीय सरकार, नियमों द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे) का संज्ञान करने वाला न्यायालय अभियुक्त व्यक्ति पर तामील किए जाने वाले समन में-

(i) उस दशा में जिसमें अपराध इस अधिनियम के अधीन कारावास से दंडनीय है, यह कह सकेगा कि वह, और

(ii) किसी अन्य मामले में, यह कहेगा कि वह-

(क) स्वयं या अभिवक्ता द्वारा उपस्िथत हो ; या

(ख) आरोप की सुनवाई के पूर्व किसी विनिर्दिष्ट तारीख तक यह अभिवचन करे कि वह अरोप का दोषी है और न्यायालय को, धनादेश द्वारा, उतनी धनराशि (जो उस अधिकतम जुर्माने से अधिक नहीं होगी जो अपराध के लिए अधिरोपित की जा सके) जितनी न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, भेजे और धनादेश के कूपन में ही दोषी होने का अभिवचन करे :

परन्तु न्यायालय, उपधारा (2) में निर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध की दशा में, समन में यह कथन करेगा कि यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो वह ऐसा अभिवचन खंड (ख) में विनिर्दिष्ट रीति से करेगा और ऐसे अभिवाक् से युक्त अपने पत्र के साथ अपनी चालन अनुज्ञप्ति न्यायालय को भेजेगा ।

(2) जहां वह अपराध, जिसकी बाबत उपधारा (1) के अनुसार कार्रवाई की गई है, ऐसा अपराध है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया है, वहां न्यायालय, यदि अभियुक्त व्यक्ति यह अभिवचन करता है कि वह आरोप का दोषी है और उसने अपने अभिवाक् से युक्त पत्र के साथ अपनी चालन अनुज्ञप्ति न्यायालय को भेजी है तो उसकी चालन-अनुज्ञप्ति पर ऐसी दोषसिद्धि को पृष्ठांकित करेगा ।

(3) जहां अभियुक्त व्यक्ति दोषी होने का अभिवचन करता है और विनिर्दिष्ट राशि भेजता है तथा उसने, यथास्थिति, उपधारा (1) के या उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबंधों का अनुपालन कर दिया है, वहां उस अपराध की बाबत उसके विरुद्ध कोई और कार्यवाही नहीं की जाएगी और न उसे, इस अधिनियम में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, दोषी होने का अभिवचन करने के कारण अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने से निरर्हित ही किया जाएगा ।

209. दोषसिद्धि पर निर्बंधन-धारा 183 या धारा 184 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिए अभियोजित कोई भी व्यक्ति तभी दोषसिद्ध किया जाएगा जब-

(क) अपराध किए जाने के समय उसे यह चेतावनी दे दी गई थी कि उसका अभियोजन करने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा, या

(ख) अपराध किए जाने के चौदह दिन के भीतर अपराध का स्वरूप तथा वह समय और स्थान जहां उसका किया जाना अभिकथित है, विनिर्दिष्ट करने वाली सूचना की तामील उस पर या अपराध किए जाने के समय यान के स्वामी के रूप में रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति पर कर दी गई थी या रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेज दी गई थी, या

(ग) अपराध किए जाने के अट्ठाईस दिन के भीतर उस पर अपराध के लिए समन की तामील कर दी गई थी :

परंतु इस धारा की कोई बात वहां लागू न होगी जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि-

(क) इस उपधारा में निर्दिष्ट सूचना या समन की तामील में असफलता इस बात के कारण हुई थी कि न तो अभियुक्त व्यक्ति का नाम और पता और न यान के रजिस्ट्रीकृत स्वामी का नाम और पता ही समुचित तत्परता से समय के भीतर अभिनिश्चित किया जा सकता था, या

                (ख) ऐसी असफलता अभियुक्त के आचरण के कारण हुई थी ।

210. दोषसिद्धि संबंधी सूचना का न्यायालयों द्वारा भेजा जाना-प्रत्येक न्यायालय, जिसके द्वारा कोई ऐसा व्यक्ति, जो चालन-अनुज्ञप्ित धारण किए हुए है, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए या ऐसे किसी अपराध के लिए, जिसके किए जाने में मोटर यान का उपयोग किया गया था, दोषिसिद्ध किया गया है, उसकी सूचना-

(क) उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को देगा जिसने वह चालन-अनुज्ञप्ति दी थी, और

(ख) उस अनुज्ञापन प्राधिकारी को देगा जिसके द्वारा उस अनुज्ञप्ति का अंतिम बार नवीकरण किया गया था,

और ऐसी प्रत्येक सूचना में अनुज्ञप्ति धारक का नाम और पता, अनुज्ञप्ति संख्यांक, उसके दिए जाने की तारीख और उसके नवीकरण    की तारीख, अपराध का स्वरूप, उसके लिए दिया गया दंड और ऐसी अन्य विशिष्टियां होंगी जो विहित की जाएं ।

अध्याय 14

प्रकीर्ण

211. फीस उद्गृहीत करने की शक्ति-ऐसे किसी नियम में, जिसे केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन बनाने के लिए सशक्त है, आवेदनों, दस्तावेजों के संशोधन, प्रमाणपत्र, अनुज्ञप्ति, परमिट दिए जाने, परीक्षणों, पृष्ठांकन, बैजों, प्लेटों, प्रतिहस्ताक्षरों, प्राधिकरण, आंकड़ों अथवा दस्तावेजों या आदेशों की प्रतियां दिए जाने के संबंध में तथा ऐसे किसी अन्य प्रयोजन या बात के लिए, जिसके लिए अधिकारियों या प्राधिकारियों द्वारा इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन कोई सेवाएं की जानी हैं, ऐसी फीसों के, जो आवश्यक समझी जाएं, उद्ग्रहण के लिए उपबंध, इस आशय के किसी अभिव्यक्त उपबंध के न होते हुए भी, हो सकेगा :

                परंतु यदि सरकार, लोक हित में ऐसा करना आवश्यक समझे तो वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा, व्यक्तियों के किसी वर्ग को कोई ऐसी फीस देने में या तो भागतः या पूर्णतः छूट दे सकेगी ।

212. नियमों और अधिसूचनाओं का प्रकाशन, प्रारंभ और रखा जाना-(1) इस अधिनियम के अधीन नियम बनाने की शक्ति इस शर्त के अधीन है कि नियम पूर्व प्रकाशन के पश्चात् बनाए जाएंगे ।

                (2) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए सभी नियम राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और जब तक कि कोई पश्चात्वर्ती तारीख नियत न की गई हो, ऐसे प्रकाशन की तारीख को प्रवृत्त हो जाएंगे ।

                (3) किसी राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र, राज्य विधान-मण्डल के समक्ष रखा जाएगा ।

                (4) इस अधिनियम के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, धारा 75 की उपधारा (1) और धारा 163 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाई गई प्रत्येक स्कीम और धारा 41 की उपधारा (4) ; धारा 58 की उपधारा (1), धारा 59 की उपधारा (1) ; धारा 112 की उपधारा (1) के परन्तुक  [धारा 163क की उपधारा (4)] और धारा 213 की उपधारा (4) के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना बनाए जाने या निकाली जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम, स्कीम, या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या होगी ।  यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए या वह स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए या वह अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा या हो जाएगी । किन्तु नियम, स्कीम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।   

213. मोटर यान अधिकारियों की नियुक्ति-(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए एक मोटर यान विभाग स्थापित कर सकेगी तथा ऐसे व्यक्तियों को उसके अधिकारी नियुक्त कर सकेगी जिन्हें वह ठीक समझे ।

(2) ऐसा प्रत्येक अधिकारी भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा ।

                (3) राज्य सरकार, मोटर यान विभाग के अधिकारियों द्वारा उनके कृत्यों का निर्वहन विनियमित करने के लिए तथा विशिष्टितया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उन वर्दियों को जो उन्हें पहननी हैं, उन प्राधिकारियों को, जिनके अधीनस्थ वे रहेंगे, उन कर्तव्यों को, जिनका उन्हें पालन करना है, उन शक्तियों को (जिनके अंतर्गत इस अधिनियम के अधीन पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रयोगतव्य शक्तियां भी हैं) जिनका उन्हें प्रयोग करना है तथा उन शर्तों को, जो ऐसी शक्तियों के प्रयोग पर लागू होनी हैं, विहित करने के लिए नियम बना सकेगी ।

(4) केन्द्रीय सरकार, अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा वे न्यूनतम अर्हताएं विहित कर सकेगी जो इस रूप में नियुक्ति किए जाने के लिए उक्त अधिकारियों या उनमें से किसी वर्ग के अधिकारियों के पास होना चाहिए । 

(5) उन शक्तियों के अतिरिक्त जो मोटर यान विभाग के किसी अधिकारी को उपधारा (3) के अधीन प्रदान की जाए, ऐसे अधिकारी, को जिसे राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किया जाए, यह शक्ति होगी कि वह,-

(क) यह अभिनिश्चित करने की दृष्टि से कि इस अधिनियम तथा इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं, ऐसी परीक्षा और जांच करे जो वह ठीक समझता है ;

(ख) ऐसी सहायता सहित यदि कोई हो, जिसे वह ठीक समझता है, ऐसे किसी परिसर में प्रवेश करे, उसका निरीक्षण करे और उसकी सलाह ले जो ऐसे व्यक्ति के अधिभोगाधीन जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने इस अधिनियम के अधीन अपराध किया है अथवा जिसमें ऐसा कोई मोटर यान जिसकी बाबत ऐसा अपराध किया गया है, रखा हुआ है : परंतु-

(i) वारंट के बिना ऐसी कोई तलाशी राजपत्रित अधिकारी की पंक्ति के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी ;

(ii) जहां कोई अपराध केवल जुर्माने से दंडनीय है वहां तलाशी सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व नहीं की जाएगी ;

(iii) जहां तलाशी बिना वारंट के की जाती हैवहां संबंधित राजपत्रित अधिकारी वारंट अभिप्राप्त  करने के आधार को लेखबद्ध करेगा और अपने ठीक ऊपर के वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्ट करेगा कि ऐसी तालाशी ली गई है ;

(ग) किसी व्यक्ति की परीक्षा करे और ऐसा कोई रजिस्टर या अन्य दस्तावेज, जो इस अधिनियम के अनुसरण में रखा जाता या रखी जाती हैं, पेश करने की अपेक्षा करे और मौके पर या अन्यथा, किसी व्यक्ति के कथन ले जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक समझे ;

(घ) ऐसे किन्हीं रजिस्टरों या दस्तावेजों को अभिगृहीत करे या उनके भागों की प्रतिलिपियां ले जिन्हें वह इस अधिनियम के अधीन उस अपराध की बाबत सुसंगत समझे जिसके किए जाने का विश्वास करने का उसके पास कारण है ;

(ङ) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध की बाबत अभियोजन प्रारंभ करे और किसी न्यायालय के समक्ष अपराधी की हाजिरी सुनिश्िचित करने के लिए बंधपत्र ले ;

(च) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करे जो वहित की जाएं :

परंतु इस उपधारा के अधीन किसी भी व्यक्ति को ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर देने या ऐसा कोई कथन करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा जिसकी प्रवृत्ति उसको ही अपराध में फंसाने की हो ।

(6) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध इस धारा के अधीन किसी तलाशी या अभिग्रहण के संबंध में यावत्शक्य ऐसे लागू होंगे जैसे वे उस संहिता की धारा 94 के अधीन निकाले गए किसी वारंट के प्राधिकार से की गई किसी तलाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं ।

214. आरंभिक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों पर अपील और पुनरीक्षण का प्रभाव-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन आरंभिक प्राधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश के विरुद्ध अपील की गई है या पुनरीक्षण का आवेदन किया गया है, वहां ऐसी अपील या पुनरीक्षण का आवदेन ऐसे प्रवर्तित न होगा जिससे वह आदेश रुक जाए जिसे आरंभिक प्राधिकारी ने पारित किया था और ऐसा आदेश, यथास्थिति, उस अपील या पुनरीक्षण के आवेदन का निपटारा लंबित रहने तक प्रवृत्त बना रहेगा, जब तक कि विहित अपील प्राधिकारी या पुनरीक्षण प्राधिकारी अन्यथा निदेश न दे । 

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भीयदि परमिट के नवीकरण के लिए किसी व्यक्ति द्वारा किया गया आवेदन आरंभिक प्राधिकारी द्वारा नामंजूर कर दिया गया है और ऐसे व्यक्ति ने ऐसी ना मंजूरी के विरुद्ध इस अधिनियम में के अधीन अपील की है या पुनरीक्षण का आवेदन किया है तोयथास्थतिअपील प्राधिकारी या पुनरीक्षण प्राधिकारी आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगा कि वह परमिट उसमें विनिर्दिष्ट अवधि के समाप्त हो जाने पर भी तब तक के लिए विधिमान्य बना रहेगा जब तक अपील या पुनरीक्षण के आवेदन का निपटारा नहीं हो जाता है 

(3) सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस अधिनियम के अधीन दिया गया कोई भी आदेश, कार्यवाहियों में किसी गलती, लोप या अनियमितता के कारण अपील या पुनरीक्षण में केवल तभी उल्टा जाएगा या परिवर्तित किया जाएगा जब, यथास्थिति, विहित अपील प्राधिकरी या पुनरीक्षण प्राधिकारी को यह प्रतीत हो कि ऐसी गलती, लोप या अनियमितता से वास्तव में न्याय नहीं हो पाया है, अन्यथा नहीं ।

215. सड़क सुरक्षा परिषदें और समितियां-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, देश के लिए एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद् गठित कर सकेगी जिसमें एक अध्यक्ष और उतने अन्य सदस्य होंगे जितने वह सरकार आवश्यक समझती है और वे ऐसे निबंधनों और शर्तों पर नियुक्त किए जाएंगे जो वह सरकार अवधारित करे 

                (2) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य के लिए एक राज्य सड़क सुरक्षा परिषद् गठित कर सकेगी जिसमें एक अध्यक्ष और उतने अन्य सदस्य होंगे जितने वह सरकार आवश्यक समझती है और वे ऐसे निबंधनों और शर्तों पर नियुक्त किए जाएंगे जो वह सरकार अवधारित करे ।

                (3) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य में प्रत्येक जिले के लिए एक जिला सड़क सुरक्षा समिति गठन कर सकेगी जिसमें एक अध्यक्ष और उतने अन्य सदस्य होंगे जितने वह सरकार आवश्यक समझती है और वे ऐसे निबंधनों और शर्तों पर नियुक्त किए जाएंगे जो वह सरकार अवधारित करे ।

(4) इस धारा में निर्दिष्ट परिषदें और समितियां, सड़क सुरक्षा कार्यक्रमों से संबंधित ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेंगी जोयथास्िथतिकेंद्रीय सरकार या राज्य सरकारअधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुएविनिर्दिष्ट करे 

216. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों से सुसंगत ऐसे उपबंध कर सकेगी जो उसे कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत होते हैं :

परंतु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, बनाए जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष   रखा जाएगा ।

217. निरसन और व्यावृत्तियां-(1) मोटर यान अधिनियम, 1939 (1939 का 4) और किसी राज्य में इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व प्रवृत्त, इस अधिनियम की तत्स्थानी कोई विधि (जिन्हें इसके पश्चात् इस धारा में निरसित अधिनिमितियां कहा गया है) इसके द्वारा निरसित की जाती हैं ।

                (2) उपधारा (1) द्वारा निरसित अधिनियमितियों का निरसन कर दिए जाने पर भी-

(क) निरसित और ऐसे प्रारंभ से ठीक पूर्व प्रवृत्त अधिनियमितियों के अधीन निकाली गई कोई अधिसूचना, नियम, विनियम, आदेश या सूचना, अथवा की गई कोई नियुक्ति या घोषणा, अथवा दी गई कोई छूट अथवा किया गया कोई अधिहरण या अधिरोपित की गई कोई शास्ति या जुर्माना, कोई समपहरण, रद्दकरण अथवा की गई कोई अन्य बात या कोई अन्य कार्रवाई, जहां तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंध के अधीन निकाली गई, दी गई, किया गया या की गई समझी जाएगी ;

(ख) निरसित अधिनियमितियों के अधीन जारी किए गए या दिए गए ठीक हालत में होने के प्रमाणपत्र का या रजिस्ट्रीकरण या अनुज्ञप्ति या परमिट का ऐसे प्रारंभ के पश्चात्, उन्हीं शर्तों के अधीन और उसी अवधि के लिए,         बराबर प्रभाव बना रहेगा, मानो कि यह अधिनियम पारित ही नहीं हुआ है ;

(ग) किसी निरसित अधिनियमिति के प्रति या उसके किसी उपबंध के प्रति निर्देश करने वाले किसी दस्तावेज का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम के प्रति या इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंध के प्रति निर्देश है ;

(घ) निरसित अधिनियमितियों के उपबंध के अनुसार रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी द्वारा सुभिन्न चिह्नों का समनुदेशन और मोटर यानों पर उनके प्रदर्शन की रीति, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात्, तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक कि धारा 41 की उपधारा (6) के अधीन अधिसूचना नहीं निकाली जाती है ;

(ङ) मोटर यान अधिनियम, 1939 (1939 का 4) की धारा 68ग या किसी राज्य में प्रवृत्त तत्समान विधि,           यदि कोई है, के अधीन बनाई गई और इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व लंबित कोई स्कीम इस अधिनियम की धारा 100 के उपबंधों के अनुसार निपटाई जाएगी ; 

(च) मोटर यान अधिनियम, 1939 (1939 का 4) की धारा 68च की उपधारा (1क) के अधीन या किसी राज्य में इस अधिनियम के ठीक पूर्व प्रवृत्त तत्स्थानी उपबंध, यदि कोई है, के अधीन दिए गए परमिट तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक इस अधिनियम के अध्याय 6 के अधीन अनुमोदित स्कीम प्रकाशित नहीं की जाती है ।

(3) किसी निरसित अधिनियमिति के अधीन संदेय कोई शास्ति इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रीति से वसूल की जा सकेगी, किन्तु निरसित अधिनियमितियों के अधीन ऐसी शास्ति की वसूली के लिए पहले ही की गई किसी कार्रवाई पर इससे प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

(4) इस धारा में विशिष्ट बातों के उल्लेख से यह नहीं समझा जाएगा कि वह निरसनों के प्रभाव के संबंध में साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के साधारण तौर पर लागू होने पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है या कोई प्रभाव डालती है ।

 [217क. मोटर यान अधिनियम, 1939 के अधीन अनुदत्त परमिट, चालक अनुज्ञप्ति और रजिस्ट्रीकरण का                नवीकरण-धारा 217 की उपधारा (1) द्वारा उस धारा में निर्दिष्ट अधिनियमितियों के निरसन के होते हुए भी, उक्त अधिनियमितियों के अधीन जारी किए गए या अनुदत्त किसी उपयुक्तता प्रमाणपत्र या रजिस्ट्रीकरण या अनुज्ञप्ति या परमिट को इस अधिनियम के अधीन नवीकृत किया जा सकेगा ।]

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