सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम , 2008 ( LIMITED LIABILITY PARTNERSHIP ACT , 2008 ] ]




सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम , 2008 

( LIMITED LIABILITY PARTNERSHIP ACT , 2008 ] ] 

प्रश्न 1 

( क ) सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम 2008 की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये । 

( ख ) सीमित दायित्व साझेदारी की प्रकृति को समझाइये । 

उत्तर- 

( क ) अधिनियम की विशेषताएँ सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम , 2008 भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करने वाला एक महत्त्वपूर्ण विधायन है । उद्यमिता , ज्ञान , पूँजी एवं श्रम मिलकर आर्थिक एवं औद्योगिक विकास को गतिशील बनाते हैं । ' दायित्व ' ( Liability ) का तत्व भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है । दायित्व दो प्रकार का हो सकता है - असीमित दायित्व ( Unlimited Liability ) एवं सीमित दायित्व ( Limited Liability ) दोनों का सम्मिश्रण आर्थिक एवं औद्योगिक विकास को संगठित एवं चालित करता है ।

 इन्हीं सब बातों को दृष्टिगत रखते हुए " सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम , 2008 " Limited Liability Partnership Act , 2008 ) पारित किया गया । इस अधिनियम को 7 जनवरी , 2009 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली । इस अधिनियम का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है । 

अधिनियम की विशेषताएँ 

इस अधिनियम की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

1. सीमित दायित्व साझेदारी एक ' निगमित निकाय ' ( Body Corporate ) है । इसका अपने साझेदारों से एक अलग विधिक अस्तित्व है । 

2. सीमित दायित्व साझेदारी का गठन किया जा सकता है 

( i ) कम - से - कम दो व्यक्तियों द्वारा ; 

( ii ) किसी वैध कारबार के लिए ; 

( iii ) निगमन दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके ; 

( iv ) रजिस्ट्रीकरण द्वारा । 

3. सीमित दायित्व साझेदारी के अन्तर्गत साझेदारी समझौते द्वारा अपने अधिकारों एवं दायित्वों को परिभाषित कर सकते हैं । ऐसे समझौते इस अधिनियम के प्रावधानों के अध्यधीन होंगे । 

4. सीमित दायित्व साझेदारी फर्म अपनी आस्तियों ( Assets ) के लिए पूर्णरूप से दायी ( Liable ) होगी । साझेदार अपने - अपने योगदान तक दायी ठहराये जायेंगे । 5. एक भागीदार दूसरे भागीदार के अप्राधिकृत कार्यों अथवा दुराचरण के लिए उत्तरदायी नहीं होगा । फर्म तथा उन साझीदारों , जिन्होंने लेनदारों से कपट करने के आशय से या कपटपूर्ण प्रयोजनों हेतु कार्य किया है , का दायित्व सभी या किसी एक ऋण या अन्य हेतु असीमित होगा । 

6. प्रत्येक सीमित दायित्व साझीदारी में कम - से - कम दो व्यक्ति साझीदार के रूप में नामोदिष्ट होंगे जिनमें से कम - से - कम एक भारत का निवासी होगा । 

7. सीमित दायित्व साझीदारी का सही एवं ऋणु ( fair and just ) लेखा रखा जायेगा , उसका अंकेक्षण ( Audit ) कराया जायेगा तथा रिपोर्ट की एक प्रति रजिस्ट्रार को भेजी जायेगी । 

8. केन्द्रीय सरकार द्वारा किसी सीमित दायित्व साझीदारी के वर्ग को लेखा अंकेक्षण से छूट प्रदान की जा सकेगी । 

9. आवश्यक होने पर साझीदारी ( कम्पनी ) के निरीक्षण हेतु केन्द्रीय सरकार द्वारा निरीक्षकों की नियुक्ति की जा सकेगी । 

10. अधिनियम में सीमित दायित्व साझीदारी के समामेलन ( Amalgamation ) सहित समझौते या बन्दोबस्त का प्रावधान किया गया है । 

11. किसी फर्म , प्राइवेट कम्पनी या असूचीबद्ध पब्लिक कम्पनी को सीमित दायित्व साझीदारी में परिवर्तित होने की अनुज्ञा प्रदान की गई है । 

12. ऐसी साझेदारी पर केन्द्रीय सरकार द्वारा कम्पनी विधि के प्रावधानों को लागू किया जा सकता है । 

( ख ) सीमित दायित्व साझेदारी की प्रकृति 

सीमित दायित्व साझेदारी एक् निगमित निकाय ( Body Corporate ) है । इसका अपने साझेदारों में पृथक् विधिक अस्तित्व है । 

इसका शाश्वत उत्तराधिकार ( Perpetual succession ) होता है । इसके साझेदारों में किसी प्रकार के परिवर्तन से सीमित दायित्व साझेदारी के अस्तित्व , अधिकारों एवं दायित्वों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । ( धारा 3 ) 

साझेदार - कोई भी व्यक्ति अथवा निगमित निकाय सीमित दायित्व साझेदारी का साझेदार हो सकेगा । ऐसे व्यक्ति साझीदार बनने के पात्र नहीं होंगे : 

( i ) जो विकृतचित्त है ; या 

( ii ) जो अनुन्मोचित दिवालिया है ; या 

( iii ) जिसने दिवालापन हेतु आवेदन किया है । ( ' धारा 5 ) 

साझेदारों की संख्या - सीमित दायित्व साझेदारी के कम - से - कम दो सदस्य होने आवश्यक हैं । दो से कम संख्या होने पर भी यदि छ : माह तक साशय साझेदारी का कामकाज चलाया जाता है तो वह एकल साझेदारी उस अवधि के दौरान उपगत बाध्यताओं के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा । ( धारा 6 ) 

नामोदिष्ट साझेदार - प्रत्येक सीमित दायित्व साझेदारी में कम - से - कम दो नामोदिष्ट साझीदार ( designated partneres ) अवश्य होंगे । उनमें से कम - से - कम भारत का निवासी होना अपेक्षित है । 

कोई भी साझेदारी समझौते की शर्तों के अनुसार नामोदिष्ट साझीदार बन सकता है एवं उन्हीं शर्तों के अनुसार साझेदार होना छोड़ सकता है । 

नामोदिष्ट साझेदार बनने के लिए स्वतन्त्र सम्पति का होना आवश्यक है । नामोदिष्ट साझेदारी की नियुक्ति के 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रार को उक्त आशय की सूचना देनी होगी । 

प्रत्येक नामोदिष्ट साझीदार को केन्द्रीय सरकार द्वारा एक " नामोदिष्ट साझीदार पहचान संख्या " ( Designated Partner Identification Number ) प्राप्त करना होगा । ( धारा 7 ) 

यदि सीमित दायित्व साझेदारी में किसी समय नामोदिष्ट साझीदार का स्थान रिक्त हो जाता है तो ऐसे रिक्त स्थान पर 30 दिन के भीतर नये नामोदिष्ट साझीदार की नियुक्ति की जायेगी । यदि ऐसा साझीदार नियुक्त नहीं किया जाता है और केवल एक ही नामोदिष्ट साझीदार रह गया है तो ऐसी स्थिति में प्रत्येक साझीदार को नामोदिष्ट साझीदार बनना समझा जायेगा । ( धारा 8 ) 

नामोदिष्ट साझीदार के दायित्व - नामोदिष्ट साझीदार को वे सारे कार्य करने होंगे तथा दायित्वों का निर्वहन करना होगा जो अधिनियम द्वारा अपेक्षित है । 

दायित्वों का उल्लेख समझौते में भी किया जाता है । इसमें दस्तावेज , विवरण , रिपोर्ट आदि का दाखिल किया जाना भी सम्मिलित है । ( धारा 8 ) 

शास्ति - धारा 10 में शास्ति के बारे में प्रावधान किया गया है । धारा 7 , 8 एवं 9 के उपबन्धों का उल्लंघन किये जाने पर न्यूनतम 10 हजार रुपये तथा अधिकतम पाँच लाख रुपए [ धारा 7 ( 1 ) के मामले में ] एवं एक लाख रुपए धारा 7 ( 4 ) व ( 5 ) तथा 8 व 9 के मामले में जुर्माना निर्धारित है ।

 

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