कम्पनियों और फर्मों की कसौटी की टिप्पणी || Criterion Note of Companies and Firms
कम्पनियों और फर्मों की कसौटी की टिप्पणी || Criterion Note of Companies and Firms
कम्पनियों और फर्मों की कसौटी की टिप्पणी || Criterion Note of Companies and Firms
कराधान विधि के सिद्धान्त
[ Principles of Taxation Law ]
" भारतीय आयकर विधि के अन्तर्गत कर देयता की कसौटी आवास है , न कि नागरिकता । " कम्पनियों और फर्मों की कसौटी की टिप्पणी एवं विवेचना कीजिए । अपने उत्तर की पुष्टि में निर्णय विधि का उल्लेख कीजिए ।
[ “ Residence and not the citizenship is the criteria for taxability under the Indian Income Tax Act . " Comment and discuss the criteria of residence for companies and firms . Support your answer with case law . ]
भारतीय आयकर विधि के अन्तर्गत करदेयता की कसौटी आवास ( Residence ) है , नागरिकता नहीं । अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि करदाता की आय का निर्धारण उसकी गत वर्ष में निवास स्थिति के आधार पर निर्भर करता है ।
' यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम आजादी बचाओ आन्दोलन ' ( ए.आई.आर. * 2004 एस.सी. 1107 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि- करदेयता की कसौटी आवास है जिसका निर्धारण अधिवास , आवास , प्रबन्ध स्थल अथवा इसी प्रकार की अन्य प्रास्थिति के आधार पर किया जाता है ।
( Term ' residence ' means any person who under the laws of the state is liable to taxation , therein by reason of his domicile , residence , place of management or any other criteria of similar nature . )
आवास स्थिति के आधार पर समस्त करदाताओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है , यथा
( 1 ) निवासी ( Resident ) ,
( 2 ) असाधारण निवासी ( Not ordinary Resident ) , एवं
( 3 ) . अनिवासी ( Non - resident ) । करदाताओं की निवास स्थिति का निर्धारण गत वर्ष में इनके भारत में रहने के दिनों की संख्या पर अथवा व्यापार के प्रबन्ध एवं नियन्त्रण आदि पर निर्भर करता है ।
भारत में रहने के दिनों की संख्या के आधार पर भारत का नागरिक भी अनिवासी हो सकता है । इसलिए यह कहा जाता है कि ' करदेयता की कसौटी आवास है , न कि नागरिकता ' ( Residence and not the citizenship is the criteria for taxability ) निवास स्थिति का निर्धारण प्रत्येक गत वर्ष के लिए किया जाता है । विभिन्न प्रकार के करदाताओं , यथा - व्यष्टि ( individual ) फर्म , कम्पनी , हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब , व्यक्तियों के समुदाय आदि के निवास स्थान के निर्धारण के नियम भिन्न - भिन्न हैं । आयकर अधिनियम , 1961 की धारा 6 में इस सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है ।
( 1 ) व्यक्ति विशेष की निवास स्थिति- व्यक्ति विशेष के निवास स्थान ( Residence of individual ) का निर्धारण निम्नानुसार किया जाता है
( क ) निवासी – धारा 6 ( 1 ) के अनुसार निवासी ( Resident ) होने के लिए व्यक्ति को निम्नांकित शर्तें पूरी करनी होती है ( 1 ) वह व्यक्ति करदाता उस गत वर्ष में ( i ) कुल मिलाकर 182 दिन या उससे अधिक समय तक भारत में रहा हो , अथवा
( ii ) उस वर्ष के पहले के चार वर्षों की अवधि में कुल मिलाकर 365 दिन या अधिक दिनों तक निवास कर चुका हो और उस गत वर्ष में कुल 60 दिन या उससे अधिक भारत में रहा हो । आयकर आयुक्त बनाम बी . के घोटे ( 1967 ) 66 आई . टी . आर . 457 एस.सी. ]
( 2 ) वह गत वर्ष से पूर्व के 10 वर्षों में कम - से - कम 2 वर्षों में भारत का निवासी रहा हो ।
( 3 ) वह गत वर्ष से पूर्व के 7 वर्षों में कुल 730 दिन या इससे अधिक भारत में रहा हो ।
स्पष्टीकरण के अनुसार निम्नांकित परिस्थितियों में 60 दिन के स्थान पर करदाता की भारत में 182 दिन की उपस्थिति आवश्यक होगी ।
* करदाता भारत का नागरिक हो और उसने विदेश में रोजगार के लिए भारत छोड़ा हो अथवा भारतीय समुद्री जहाज के चालक दल के सदस्य के रूप में भारत छोड़ा हो ।
* भारत का नागरिक हो अथवा भारतीय मूल का व्यक्ति हो जो विदेश में रहा हो और गत वर्ष में कुल 182 दिन की अवधि के लिए भारत में रहा हो ।
' आयकर आयुक्त बनाम पी.एल.एम.टी.टी. फर्म ' [ ( 1973 ) 87 आई . टी.आर. 260 चेन्नई ] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि — कर गत वर्ष में अर्जित आय पर अधिरोपित किया जाता है और गत वर्ष में करदाता का निवासी होना आवश्यक है।
( ख ) असाधारण निवासी-
इसे ' निवासी किन्तु भारत में साधारणतया निवासी नहीं ' ( Resident but not ordinarily resident in India ) भी कहा जाता है । किसी व्यक्ति विशेष को साधारणतया निवासी इसलिए नहीं माना जाता है , क्योंकि वह निम्नांकित शर्ते पूरी नहीं करता है
( i ) कि वह गत वर्ष से पूर्व के 10 वर्षों में कम से कम 2 वर्ष भारत में निवासी रहा है , तथा
( ii ) कि वह गत वर्ष से पूर्व के 7 वर्षों में कुल मिलाकर 730 दिन या इससे अधिक भारत में रहा है ।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति भारत में निवासी होने के लिए धारा 6 ( 1 ) की प्रथम शर्तों को पूरा करता हो लेकिन अन्य को नहीं तो वह असाधारण निवासी कहलाएगा ।
( ग ) अनिवासी –
अनिवासी ( Non Resident ) ऐसे व्यक्ति विशेष को कहा जाता है जो
( i ) न तो निवासी तथा साधारणतया निवासी है , और
( ii ) न ही ' निवासी किन्तु भारत में साधारणतया निवासी नहीं है ।
सरलतम शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जो धारा 6 ( 1 ) के अन्तर्गत निवासी नहीं है , उसे अनिवासी कहा जाता है ।
( 2 ) हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब एवं फर्म की निवास - प्रास्थिति
अधिनियम की धारा 6 ( 2 ) में हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब ( Hindu Undivided Family ) तथा फर्म ( Firm ) की निवास प्रास्थिति के बारे में प्रावधान किया गया है ।
( क ) निवासी –
यदि कोई संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब निम्नांकित शर्तों को पूरा करता है तो उसे गत वर्ष के लिए ' भारत में निवासी ' माना जाएगा । ( i ) यदि गत वर्ष में ऐसे कुंटुम्ब का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण पूर्णतः अथवा अंशतः भारत में रहा हो ।
आयकर अधिकारी बनाम रजा टैक्सटाइल्स लि . [ ( 1997 ) 106 आई . टी . आर 408 ] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि किसी संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब , फर्म या व्यक्तियों की संस्था को भारत में किसी गत वर्ष में तब निवासी कहा जाता है जब उसका नियन्त्रण तथा प्रबन्ध पूर्णतया या अंशतः भारत में स्थित हो ।
( ii ) यदि संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब का कर्ता ( Karta ) गत वर्ष से तुरन्त पूर्व 10 वर्षों में से 2 वर्ष ' भारत में निवासी ' करदाता रहा हो ।
( iii ) यदि संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब का कर्ता गत वर्ष से तुरन्त पूर्व के 7 वर्षों में कुल मिलाकर 730 दिन या इससे अधिक समय के लिए भारत में रहा हो ।
' आयकर आयुक्त बनाम पी.एल.एम. टी . फर्म ' [ ( 1973 ) 87 आई.टी.आर. 269 ] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि - जहाँ निर्धारिती ( करदाता ) का कोई मकान भारत में हो और उसमें कुटुम्ब के कुछ सदस्य रहते हो वहाँ ऐसे स्थान को नियन्त्रण एवं प्रबन्ध का केन्द्र नहीं कहा जाएगा । प्रबन्ध एवं नियन्त्रण का सम्बन्ध आय के प्राप्त होने पर निर्भर नहीं करता वरन् यह केवल उसके केन्द्र पर निर्भर करता
( ख ) असाधारण निवासी-
जहाँ कोई संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब ' निवासी ' होने की प्रथम शर्त को तो पूरी करता है लेकिन अन्य शर्तों को नहीं , तो वहाँ ऐसे कुटुब को ' असाधारण निवासी ' ( Not ordinary resident ) अर्थात् ' निवासी किन्तु भारत में साधारणतया निवासी नहीं ' ( Resident but not ordinarily resident in India ) कहा जाएगा ।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई कुटुम्ब अथवा फर्म निम्नांकित में से कोई भी शर्त पूरी नहीं करती है तो उसे ' निवासी किन्तु भारत में साधारणतया निवासी नहीं कहा जाएगा ( i ) यदि गत वर्ष से पूर्व समाप्त होने वाले 10 वर्षों में से 2 वर्षों में उसका प्रबन्धक व्यक्ति विशेष के रूप भारत का निवासी रहा है , तथा
( ii ) यदि गत वर्ष से पूर्व समाप्त होने वाले 7 वर्षों में उसका प्रबन्धक कुल मिलाकर भारत में 730 दिन या उससे अधिक रहा है ।
( ग ) अनिवासी –
जहाँ किसी संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब अथवा फर्म या व्यक्तियों के समूह के कार्यों का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण गत वर्ष में पूर्णतः भारत से बाहर रहा हो तो वहाँ उसे अनिवासी करदाता कहा जाएगा । .
( 3 ) कम्पनी की निवास -
प्रास्थिति अधिनियम की धारा 6 ( 3 ) में कम्पनी की निवास - प्रास्थिति के बारे में प्रावधान किया गया है । जहाँ कोई कम्पनी निम्नांकित शर्तों में से किसी भी शर्त को पूरा करती हो , वहाँ ऐसी कम्पनी को गत वर्ष में ' निवासी कम्पनी ' ( Resident Company ) कहा जाएगा ।
( i ) वह भारतीय कम्पनी हो , अथवा में
( ii ) गत वर्ष में उस कम्पनी का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण पूर्णतया भारत स्थित रहा हो ।
प्रबन्ध एवं नियन्त्रण से अभिप्राय केन्द्रीय प्रबन्ध एवं नियन्त्रण से है , न कि नौकरों , कर्मचारियों व अभिकर्ताओं के दिन - प्रतिदिन के व्यवसाय से यदि व्यवसाय पूर्णरूप से बाहर किया जाता है लेकिन प्रबन्ध व नियन्त्रण पूर्णतया भारत में है तो उसे निवासी कम्पनी माना जाएगा । [ नारकोटन एण्ड पिरेटिया बनाम आयकर आयुक्त , ( 1953 ) 23 आई.टी.आर. 454 मुम्बई ]
दूसरी तरफ यदि कोई कम्पनी भारतीय कम्पनी नहीं है अथवा गत वर्ष में उसका प्रबन्ध एवं नियन्त्रण पूर्णतया भारत के बाहर रहा हो , तो उसे ' अनिवासी कम्पनी ' ( Non Resident Company ) कहा जाएगा ।
किसी कम्पनी को भारत का निवासी या अनिवासी माने जाने के लिए कसौटी यह है कि कम्पनी का वास्तव में प्रबन्ध एवं नियन्त्रण भारत में है या अन्यत्र अथवा इसकी नियन्त्रण या निदेश देने वाली शक्ति कहाँ कार्य करती है अर्थात् इसका मुख्यालय अथवा मस्तिष्क कहाँ है ? [ युनाइटेड कन्स्ट्रक्शन क . लि . बनाम बुलक , ( 1961 ) 42 आई टी . आर . 340 ] कर - प्रभार
धारा 6 में हमने विभिन्न प्रकार के करदाताओं की निवास - प्रास्थिति का अध्ययन किया । धारा 5 में इन करदाताओं पर कर प्रभार के बारे में प्रावधान किया गया है । विभिन्न प्रकार के करदाताओं ( निर्धारितियों ) पर कर अधिरोपित किए जाने का दायित्व उनकी निवास ( आवास ) प्रास्थिति के अनुसार बदलता रहता है ।
( क ) निवासी–
निवासी करदाता की गत वर्ष की कुल आय में निम्नांकित को सम्मिलित किया जाएगा
( i ) उस गत वर्ष में उसके द्वारा भारत में प्राप्त होने वाली या प्राप्त हुई समझी जाने वाली आय ,
( ii ) उस गत वर्ष में उसके द्वारा भारत में उपार्जित या उत्पन्न हुई अथवा उपार्जित या उत्पन्न हुई समझी जाने वाली आय , अथवा
( iii ) उस गत वर्ष में भारत से बाहर उपार्जित अथवा उत्पन्न हुई आय ।
( ख ) असाधारण निवासी -
असाधारण निवासी करदाता की गत वर्ष की कुल आय में निम्नांकित को सम्मिलित किया जाएगा
( i ) उस गत वर्ष में करदाता द्वारा या उसकी ओर से भारत में प्राप्त हुई या प्राप्त हुई समझी जाने वाली आय , अथवा
( ii ) उस गत वर्ष में उसके द्वारा भारत में उपार्जित या उत्पन्न हुई अथवा उपार्जित या उत्पन्न हुई समझी जाने वाली आय , अथवा
( iii ) ऐसी आय जो गत वर्ष में करदाता को भारत से बाहर उपार्जित या उत्पन्न हुई हो , लेकिन ऐसे व्यापार का नियन्त्रण भारत में हो अथवा भारत में स्थापित किसी पेशे से प्राप्त हो । -
( ग ) अनिवासी – अनिवासी करदाता की गत वर्ष की कुल आय में निम्नांकित को सम्मिलित किया जाएगा
( i ) उस गत वर्ष में करदाता या उसकी ओर से भारत में प्राप्त हुई या प्राप्त हुई समझी जाने वाली आय , अथवा
( ii ) उस गत वर्ष में करदाता को भारत में उपार्जित या उत्पन्न हुई अथवा उपार्जित उत्पन्न हुई समझी जाने वाली आय ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ' करदेयता की कसौटी आवास है , न कि नागरिकता ' । कोई व्यक्ति चाहे भारत का नागरिक ही क्यों न हो , लेकिन यदि वह धारा 6 में वर्णित शर्तों को पूरा नहीं करता है तो वह करदेयता की श्रेणी में नहीं आएगा ।
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