पटना केस के तथ्यों एवं उसमें प्रतिपादित विधि के सिद्धान्तों की संक्षेप में विवेचना कीजिए ? [ Discuss in brter the facts and principles of law laid down in the Patan case ? ]
प्रश्न-पटना केस के तथ्यों एवं उसमें प्रतिपादित विधि के सिद्धान्तों की संक्षेप में विवेचना कीजिए ?
[ Discuss in brter the facts and principles of law laid down in the Patan case ? ]
उत्तर- -भूमिका- भारत के विधि इतिहास में पटना प्रकरण का एक महत्वपूर्ण स्थान है । यह प्रकरण मृतक व्यक्ति की सम्पत्ति की विरासत से जुड़ा हुआ था । इसमें सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता ( ) उसकी कार्यप्रणाली , न्यायाधीशों की कार्यशैली आदि से सम्बन्धित प्रश्न विचारणीय थे । इसका कार्यकाल 1771-1779 माना जाता है ।
तथ्य - शाहबाज बेग नाम का एक व्यक्ति पटना में निवास करता था । उसकी मृत्यु हो जाने पर उसकी सम्पत्ति को लेकर उसकी पत्नी नादिरा बेगम तथा भतीजे बहादुर बेग में विवाद उत्पन्न हो गया था । पत्नी इच्छा पत्र एवं दानपत्र के आधार पर उस सम्पत्ति पर अपना हक जता रहा था ।
बहादुर बेग ने नादिरा बेगम के विरुद्ध पटना की प्रान्तीय परिषद् में सम्पत्ति के कब्जे की प्राप्ति हेतु वाद संस्थित किया जिसमें यह कहा गया कि नादिरा बेगम द्वारा मृतक की सम्पत्ति हड़प ली गई है अत : उसमें वादी का हिस्सा अभिनिश्चित किया जाए । वाद प्रस्तुत होने पर प्रान्तीय परिषद ने मामला जाँच हुते मुस्लिम विधि अधिकारियों ( काजी एवू मुफ्ती ) को सौंप दिया । काजी एव मुफ्ती ने विवादित सम्पत्ति को अपने कब्जे में ले लिया तथा साक्षियों के कथन आदि लेखबद्ध कर प्रान्तीय परिषद् को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी । रिपोर्ट में मृतक शाहबाज बेग की सम्पत्ति में एक - चौथाई हिस्सा बहादुर बेग का माना गया । प्रान्तीय परिषद् ने उक्त रिपोर्ट के आधार पर अपना निणर्य दे किया जिसे नादिरा बेगम ने स्वीकार नहीं किया । नादिरा बेगम ने उक्त निर्णय के विरुद्ध सदर दीवानी अदालत में अपील की लेकिन लम्ब समय तक वहाँ कोई सुनवाई नहीं हुई ।
इस पर नादिरा बेगम ने कलकत्ता के सुप्री कोर्ट में बहादुर बेग तथा काजी व मुफ्तियों के विरुद्ध आक्रमण ( Assault ) बल प्रयोग ( Battery ) तथा मिथ्या कारावास ( False imprisonment ) का आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया गया छ : लाख रुपए की क्षतिपूर्ति की मांग की ।
नादिरा बेगम का मुकदमा दायर होने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहादुर बेग , काजी व मुफ्तियों के विरुद्ध गिरफ्तारी वारन्ट जारी किया गया और उन्हें गिरफ्तार कर कलकत्ता लाया गया । उन्हें चार लाख रुपए की जमानत पर रिहा किए जाने का आदेश दिया गया लेकिन भारी रकम होने के जमानत पेश नहीं की जा सकी , फलस्वरूप उन्हें विचारण के दौरान जेल रहना पड़ा । बाद में उन्हें प्रान्तीय परिषद् की जमानत पर रिहा किया गया ।
निर्णय - सुप्रीम कोर्ट ने सम्पूर्ण मामले की सुनवाई कर यह निष्कर्ष निकाला कि-
( क ) नादिरा बेगम द्वारा प्रस्तुत किया गया इच्छा पत्र एवं दानपत्र वैध था । काजी एवं मुफ्तियों की यह राय गलत थी कि वे जाली ( Forged ) थे ।
( ख ) काजी एवं मुफ्ती के विरुद्ध मामले की सुनवाई करने की सुप्रीम कोर्ट को अधिकारिता है ।
( ग ) काजी एवं मुफ्ती बहादुर बेग के मामले में अपनी राय एवं रिपोर्ट देने के लए अधिकृत नहीं थे ।
( घ ) काजी एवं मुफ्ती द्वारा विचारण अथवा जाँच के दौरान नादिरा बेगम के साथ दुर्व्यवहार किया गया था ।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नादिरा बेगम का वाद डिक्री किया गया और यह आदेश दिया गया कि-
( क ) नादिरा बेगम मृतक शाहबाज बेग की सम्पूर्ण सम्पत्ति पाने की हकदार है तथा
( ख ) नादिरा बेगम प्रतिवादिगणों से तीन लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति के एवं नौ हजार दो सौ साठ रुपए वाद व्यय के पाने की भी अधिकारी है ।
बहादुर बेग , काजी एवं मुफ्ती इतनी बड़ी धनराशि का संदाय करने में असमर्थ थे , अत : उन्हें कलकत्ता की जेल में रहना पड़ा । इसी बीच काजी की तो रास्ते में ही मृत्यु हो गई थी । अन्ततः शेष को सन् 1781 के एक्ट ऑफ सेटलमेंट के अधीन जेल से रिहा किया गया |
विधि के सिद्धानत - इस मामले में विधि के निम्नांकित सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए-
( 1 ) सुप्रीम कोर्ट को काजी एवं मुफ्ती के विरुद्ध मामलों की सुनवाई करने की अधिकारिता थी , क्योंकि वे कंपनी के कर्मचारी थे ।
( 2 ) काजी एवं मुफ्ती को बहादुर बेग के मामले में जाँच करने की अधिकारिता नहीं थी ।
( 3 ) प्रान्तीय परिषद को जाँच का कार्य काजी एवं मुफ्ती को सौंपने की अधिकारिता नहीं थी , क्योंकि जो कार्य प्रान्तीय परिषद को प्रदत्त ( Delegate ) किया गया था , वह पुनः प्रत्यायोजित नहीं किया जा सकता था अर्थात् Delegatus non potest delegare का सिद्धान्त लागू होता था ।
( 4 ) काजी एवं मुफ्ती का कार्य न्यायाधीश को कानूनों एवं परम्पराओं से अवगत कराना था न कि मामले का विचारण करना आदि ।
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