भारत के संविधान की विशेषताएं,characteristics the Constitution of India भारत का संविधान [ India's Constitution ]


 प्रश्न . भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये । | Explain the various characteristics of the constitution of India ? ] ) 

उत्तर - भारत का संविधान एक पवित्र दस्तावेज है । इसमें विश्व के प्रमुख संविधानों की विशेषतायें समाहित है । यह संविधान निर्मात्री सभा के 2 वर्ष 11 माह 13 दिन के सतत् प्रयत्न , अध्ययन , विचार - विमर्श , चिन्तन एवं परिश्रम का निचोड है । इसे 26 जनवरी 1950 को सम्पूर्ण भारत पर लागू किया गया । 

भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नांकित है- 

( 1 ) विशालत्तम संविधान - सामान्यतया संविधानों का आकार अत्यन्त छोटा होता है । संविधान में मोटी - मोटी बातों का उल्लेख कर दिया जाता है और अन्य बातें अर्थान्वयन के लिए छोड़ दी जाती है । लेकिन भारत का संविधान इसका अपवाद है । भारत के संविधान का आकार न तो अत्यधिक छोटा रखा गया है और न ही अत्याधिक बड़ा । हमने सभी आवश्यक बातें समाहित करते हुए संतुलित आकार का रखा गया है । 

संविधान के मूल प्रारूप में 22 भाग 395 अनुच्छेद तथा 9 अनुसूचियां थी । कालान्तर में संशोधनों के साथ - साथ इनमें अभिवृद्धि होती गई । 

सर आइवर जेनिंग्स के शब्दों में , भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है । आलोचक इसे वकीलों का स्वर्ग कहकर सम्बोधित करते 

( 2 ) सर्वप्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना - हमारे संविधान का प्रमुख लक्षण सर्वप्रभुत्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना ( Sovereing Democratic Repubilic ) की स्थापना है । इसे सर्वप्रभुत्व सम्पन्न इसलिए कहा गया है क्योंकि इसकी पम्प्रभुता किसी विदेशी सत्ता में निहित नहीं होकर भारत की जनता में निहित है । यह बाहरी नियंत्रण से अब पूर्णतया मुक्त है । अपनी आन्तरिक एवं बाहरी नीतियों का निर्धारण एवं नियंत्रण स्वयं भारत ही करता है ।

भारत में लोकतंत्र ( Democracy ) की स्थापना की गई है । यहाँ का शासन जनता के हाथों में सुरक्षित है । यह प्रजातंत्र की इस कसौटी पर खरा उतरता है कि यहाँसरकार जनता की , जनता के लिए और जनता द्वारा संचालित है । इसका मुख्य उद्देश्य लोक कल्याण है । 

( 3 ) समाजवाद एवं धर्म निरपेक्षता- हमारा संविधान समाजवाद ( Socialism ) एवं धर्म निरपेक्षता ( Secularism ) का पोषक है । यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समाजवादी समाज की संरचना के स्वप्न को आकार करता है । इसकी प्रस्तावना में सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक न्याय ( Social Economic and Political justice ) का अवगाहन किया गया है । सभी प्रकार के विभेदों को समाप्त कर समता के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता । सम्पति के अधिकार को मूल अधिकारों के अध्ययन से निकाल कर साधारण सांवैधानिक अधिकार के रूप में प्रतिस्थापित करना समाजवादी स्वरूप की पुष्टि करता है । 

संविधान में प्रत्येक नागरिक को सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय ( Social Economic and Political justice ) का वचन दिया गया है । ( नन्दिनी सुन्दर बनाम स्टेट आफ छत्तीसगढ ए.आइ.आई. 2011 एस.सी. 2839 ) । हमारा संविधान एक धर्म निरपेक्ष संविधान का भी संवाहक है । इसमें सभी धर्मो को समान मान्यता प्रदान की गई है । प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने , आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है । यह किसी भी व्यक्ति पर राजधर्म नहीं थोपता है । 

उल्लेखनीय है कि अभिव्यक्ति समाजवाद एवं धर्म निरपेक्षता संविधान के मूल प्रारूप में समाहित नहीं थी । इसे संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया है । 

( 4 ) संसदीय शासन पद्धति का प्रादुर्भाव - भारत राज्यों का एक संघ है । यहाँ का संविधान संघात्मक है । संघात्मक संविधान भी दो प्रकार का होता है - अध्यक्षात्मक एवं संसदीय । अध्यक्षात्मक शासन पद्धति में राष्ट्रपति सर्वेसर्वो होता है जैसे कि अमेरिका में है । जबकि संसदीय शासन पद्धति में शासन की वास्तविक बागडोर जनता में निहित होती है । सरकार जनता की , जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाई जाती है । जन प्रतिनिधि मंत्रिपरिषद के रूप में शासन का संचालन करते है । 

भारत में संसदीय शासन पद्धति ( Parliamentary Form of Government ) को अंगीकृत किया गया है । यहाँ शासन की वास्तविक सत्ता जनता द्वारा निर्वाचित सदस्यों के हाथों में सुरक्षित है । राष्ट्रपति देश का मुखिया अवश्य है लेकिन नाम मात्र का । यह मंत्रिमरिषद की सलाह से ही सारे कार्य करता है । 

( 5 ) मूल अधिकार - भारत के संविधान की महत्वपूर्ण विशेषता एवं उपलब्धि इसमें मूल अधिकारों ( Fundamental Rights ) का समाहित होना है । वर्षों से दासता के अधीन रहे भारतवासियों के लिए यह मूल अधिकार एक वरदान एवं उपहारस्वरूप है ।

इन मूल अधिकारों का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों को सर्वोपडीण विकास के अवसर उपलब्ध कराना । संविधान के भाग तीन में नागरिकों के निम्नांकित मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है 

( 1 ) समता का अधिकार 

( 2 ) स्वातंत्र अर्थात स्वतंत्रता का अधिकार 

( 3 ) प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण 

( 4 ) गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण ( 5 ) शोषण के विरूद्ध अधिकार 

( 6 ) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार ( 7 ) संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार तथा 

( 8 ) संवैधानिक उपचारों का अधिकार । 

उल्लेखनीय है कि सम्पति का अधिकार पहले एक मूल अधिकार था , लेकिन कालान्तर में संशोधन द्वारा इसे एक संवैधानिक अधिकार मात्र बना दिया गया है । 

स्वतंत्रता का अधिकार अपने - आप में एक महत्वपूर्ण मूल अधिकार है । संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नांकि स्वतंत्रता का विवेचन किया गया है 

( i ) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 

( ii ) शांतिपूर्वक एवं निरायुध सम्मेलन की स्वतंत्रता 

( iii ) संगम या संघ बनाने की स्वतंत्रता 

( iv ) भारत के राज्यक्षेत्रा में सर्वत्र अबाध संचरण करने की स्वतंत्रता 

( v ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता , तथा 

( vi ) कोई वृत्ति , उप जीविका , व्यापार या कारोबार करने की स्वतत्रता 

( 6 ) मूल कर्त्तव्य - भारतीय संविधान के मूल प्रारूप में मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख नहीं था । संविधान में मूल अधिकार तो जोड़ दिये गये लेकिन मूल कर्त्तव्य रह गये । कालान्तर में संविधान में मूल कर्त्तव्यों को जोड़ने की आवश्यकता महसूस की गई । इसी का परिणाम है कि संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा एक नया भाग 4 क अन्त : स्थापित कर अनुच्छेद 51 क में निम्नांकित मूल कर्त्तव्य ( Fundamental Duties ) समाहित किये गये-

भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह- 

( क ) संविधान का पालन करे और उनके आदर्शों , संस्थाओं , राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें ,

( ख ) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदेशों को हृदय में संजोये रखे और उनका पालन करे , 

( ग ) भारत की प्रभुता , एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण रखे , 

( घ ) देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे , 

( ड ) भरत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म , भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से भरे हो , ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के समान के विरूद्ध है , 

( च ) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे , 

( छ ) प्राकृतिक पर्यावरण क , जिसके अन्तर्गत वन , झील , नदी और वन्य जीव है , तथा करे उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे ,

 ( ज ) वैज्ञानिक दृष्टिकोण , मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे , 

( झ ) सार्वजनिक सम्पति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे , 

( ञ ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर कढने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढते हुए प्रयल और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू लें । 

( 7 ) राज्य की नीति के निर्देशक तत्व - हमारे संविधान निर्माताओं ने एक ऐसे संविधान की संचरण की परिकल्पना की थी जो मानव मात्र के लिए कल्याणपरक हो । संविधान निर्माता यह चाहते थे कि राज्य अपनी नीतियों का निर्धारण इस प्रकार करे कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन स्तर ऊँचा उठे , बालकों को निःशुल्क शिक्षा मिले , अर्थाभाव के कारण कोई भी व्यक्ति जीवन न्याय से वंचित न रहे , समान कार्य के लिए सभी को समान वेतन मिले , वृद्धावस्था एवं रूग्णावस्था में आर्थिक सम्बल दिया जाये । सत्ता का अधिकाधिक विकेन्द्रीकरण हो , आदि । इन कल्याणपरक उपलब्धों की क्रियान्विती अनिवार्य न बनाकर राज्यों के आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता पर छोड़ दी गई । यहीं कारण है कि इन्हें मूल अधिकारों की संज्ञा नहीं देकर राज्य की नीति के निदेशक तत्वों ( Directive Principles of state policy ) के नाम से सम्बोधित किया गया । 

संविधान के भाग में इन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है यद्यपि इन नीति निदेशक तत्वावें को लागू करना राज्य के लिए आबद्धकर नहीं है ,

लेकिन एक कल्याणकारी राज्य के नाते राज्यों का वह नैतिक दायित्व बना जाता है कि वे इन्हें अधिकाधिक लागू करे । 

 अब तो न्यायपालिका के ऐसे अनेक विनिर्णय आ गये है जो इन नीति निदेशक तत्वों को भी मूल अधिकारों का दर्जा देते है । 

( 8 ) कठोरता एवं लचीलेपन का समन्वय - यदि यह दिया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं हो गी संशोधन की दृष्टि से भारत का संविधान न अधिक कठारे है और न ही अधिक लचीला । हमारे संविधान में संशोधन की ऐसी प्रक्रिया को अंगीकृत अत्यधिक कठोर । देश , काल और परिस्थितियों के अनुरूप इसमें संशोधन किये जाने का प्रावधान किया गया है । यह इस बात का प्रमाण है कि सन् 2001 तक इसमें केवल 85 संशोधन हुए है । 

( 9 ) वयस्क मताधिकार - जैसा कि हम ऊपर देख चुके है भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अंगीकृत किया गया है । संसदीय शासन प्रणाली में सत्ता जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों में सुरक्षित रहती है । जनता द्वारा ही जन प्रतिनिधियों का निर्वाचन किया जाता है । संविधान के अन्तर्गत निर्वाचन का यह अधिकार ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान किया गया है जो वयस्क है अर्थात जिसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली है । 

संविधान के अनुच्छेद 326 के अन्तर्गत वयस्क मताधिकार ( Adult suffrage ) की संज्ञा दी गई है । एक विशेष बात यह है कि मताधिकार के सम्बन्ध में धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग आदि के आधार पर कोई विभेद नहीं किया गया है । यह भारत के संविधान की एक अनूठी विशेषता है । 

( 10 ) न्यायपालिका की स्वतंत्रता - न्यायपालिका लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है । यही नागरिकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा प्रहरी है । संविधान की रक्षा का दायित्व भी न्यायपालिका पर ही है । ऐसे न्यायपालिका का स्वतंत्र होना अपिरहार्य है । यह सुखद है कि संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सर्वोपरि स्थान दिया गया है । यहाँ तक कि न्यायपालिका की स्वत्रंतता को संविधान का आधारभूत ढांचा माना गया है जिसके साथ किसी प्रकार की छेडछाड़ नहीं की जा सकती है । 

( 11 ) एकल नागरिकता - हमारे संविधान की एक और अनुपम विशेषता इसमें एकल नागरिकता का प्रावधान है । यहाँ का प्रत्येक नागरिक भारत का नागरिक ( Citizeb of india ) कहलाता है । वह अमेरिका की भांति दोहरी नागरिकता का दावा नहीं कर सकता । 

( 12 ) सत्ता का विकेन्द्रीकरण - भारत का संविधान सत्ता के विकेन्द्रीयकरण ( Decentralisation of powers ) में विश्वास रखता है । यह सत्ता किसी एक व्यक्ति के हाथों में केन्द्रीकृत न होकर जनता के हाथों में सन्निाहित है । पंचायती राज्य व्यवस्था इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है । संविधान के 73 वें संशोधन अधिनियम , 1992 द्वारा इसे और अधिक सुदृढ़ बनाया गया है । ( 13 ) आरक्षण - संविधान में सामाजिक , शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है । 

संविधान ( 103 वाँ संशोधन ) अधिनियम , 2019 द्वारा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े सवर्णों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है । 

इस प्रकार भारत का संविधान एक अनूठा एवं विलक्षण संविधान है । इसे विश्व के आदर्श संविधानों में से एक की संज्ञा दी जा सकती है ।

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