श्रम कल्याण ' से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by 'Labour Welfare'?

 

श्रम कल्याण ' से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by 'Labour Welfare'?



श्रम कल्याण ' से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by 'Labour Welfare'?


श्रम एवं औद्योगिक विधि 

[ Labour and Industrial Law ]


' श्रम कल्याण ' से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रकृति व क्षेत्र पर प्रकाश डालिए । [ What do you understand by the term ' Labour Welfare ' ? Discuss the nature and scope of the labour welfare . ]


औद्योगिक विकास के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व है- श्रम एवं पूँजी । दोनों एक - दूसरे पर आश्रित है । न केवल श्रम और न केवल पूँजी से आर्थिक विकास सम्भव है । कहा तो यह जाता है कि देश का नव - निर्माण पूँजी के साथ - साथ श्रम पर निर्भर करता है । अतः श्रम की उपेक्षा नहीं की जा सकती । श्रम का स्रोत है श्रमिक वर्ग । 

श्रमिक वर्ग किसी समाज का एक महत्त्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग माना जाता हैं । देश का भौतिक एवं आर्थिक विकास श्रमिक वर्ग पर ही निर्भर करता है । अतः श्रमिकों का कल्याण सर्वोपरि है । जिस देश में श्रमिकों के कल्याण पर महत्त्व दिया जाता है उस देश की न केवल आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है , अपितु वहाँ का श्रमिक वर्ग नियोजक के प्रति वफादार भी होता है ।

स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम अल्का बी . हिंगड़े ( ए.आई.आर. 1998 एस.सी. 2342 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि श्रमिक वर्ग को झुग्गी - झोपड़ियों से हटाने से पूर्व उनके निवास की वैकल्पिक व्यवस्था किया जाना अपेक्षित है । आलगा टेलिस बनाम म्युनिसिपल कौंसिल ( ए.आई.आर. 1986 एस.सी. 180 ) के मामले में भी कुछ ऐसे ही विचार अभिव्यक्त किये गये हैं । जिन श्रमिकों के खून और पसीने पर औद्योगिक नगरियों के बड़े - बड़े कल - कारखाने एवं विशाल अट्टालिकायें खड़ी हुई है उस श्रमिक वर्ग की उपेक्षा नहीं की जा सकती । उसका कल्याण राज्य का प्राथमिक कर्त्तव्य है । 

श्रम कल्याण क्या है ? 

श्रम कल्याण एक गतिशील अवधारणा है । इससे अभिप्राय व्यक्ति अथवा समुदाय की उस पद्धति से है जो उसके सम्पूर्ण वातावरण के संदर्भ में आवश्यक है । कल्याण एक ऐसी पूर्ण अवधारणा है जिसमें मनुष्य की शारीरिक , मानसिक एवं ● भावनात्मक कल्याण की भावना अन्तर्निहित है । 

राष्ट्रीय श्रम आयोग के अनुसार " कल्याण की अवधारणा अनिवार्यतः एक गतिशील अवधारणा है जो देश , काल एवं परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में भिन्न - भिन्न रूप धारण करती है और शनैः शनैः निरन्तर आगे बढ़ती रहती है । " 


अभिप्राय यह हुआ कि श्रम कल्याण ( Labour Welfare ) से अभिप्राय श्रमिकों के शारीरिक ( भौतिक ) , मानसिक एवं भावनात्मक विकास से है । श्रमिकों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति ही वस्तुतः श्रम कल्याण है । प्राय : सभी कल्याणकारी राज्यों का यह कर्त्तव्य है कि वे श्रम कल्याण को महत्त्व दें तथा उसे अपनी नीतियों का अंग बनाये । 


कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को संविधान में निहित राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों द्वारा पोषित किया गया है । संविधान के भाग चार में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की संकल्पना की गई है । संविधान के अनुच्छेद 38 में यह कहा गया है कि— “ राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था करेगा , जिसमें सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करें , भरसक कार्यसाधक रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की उन्नति का प्रयास करेगा । " 


न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर का भी यह मत रहा है कि " हमारे संविधान की आत्मा उसकी प्रस्तावना में अन्तर्निहित है एवं उसके उद्देश्यों की गतिशीलता अनुच्छेद 38 में प्रतिस्थापित की गई है । यह सामाजिक न्याय पर आधारित अवधारणा है । " 

राष्ट्रीय श्रम आयोग ने अपनी 1969 की रिपोर्ट में यह कहा है कि “ राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व सामान्यतया जनसाधारण के कल्याण को प्रोत्साहित करते हैं । इन्हें श्रमिक वर्ग पर लागू करते समय कार्य की न्यायोचित एवं मानवीय दशाओं को महत्त्व प्रदान किया गया है । " 

इस प्रकार श्रम कल्याण से कुल मिलाकर अभिप्राय श्रमिक वर्ग के सर्वाङ्गीण विकास , बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं शारीरिक , मानसिक व भावनात्मक विकास से है । 

प्रकृति एवं क्षेत्र 

जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं , श्रम कल्याण एक गतिशील अवधारणा है । इसका सीधा सम्बन्ध श्रमिकों के समग्र विकास एवं कल्याण से है । इसे नियोजकों एवं श्रम संघों द्वारा निर्मित अनेक योजनाओं में देखा जा सकता है , यथा— स्वास्थ्य , सुरक्षा , शिक्षा , सामान्य उन्नति आदि । 

श्रम कल्याण का सरोकार केवल सुविधायें प्रदान करने से ही नहीं है , अपितु एक स्वच्छ वातावरण के निर्माण से भी है जहाँ श्रमिक स्वच्छन्दता से सांस ले सकें तथा अपनी चेतना शक्ति का विकास कर सकें । 

श्रम कल्याण की योजनायें औद्योगिक शांति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है तथा श्रमिकों में इस बात की भावना जागृत करती है कि उन्हें एक कुशल श्रम शक्ति को आर्थिक तौर पर सुदृढ़ करना है । उद्योग में कल्याणकारी योजनाओं का एकमात्र लक्ष्य श्रमिकों की कार्य की दशाओं में लाना तथा उन्हें उन्नत करना है । सुधार लाना तथा उन्हें उन्नत करना है।

सच तो यह है कि श्रम कल्याण औद्योगिक शांति की स्थापना के लिए अपरिहार्य है । सन् 1944 के फिलाडेलफिया के घोषणा पत्र में श्रम कल्याण को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया । 

श्रम कल्याण का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है । श्रम कल्याण के कार्यकलापों में उन समस्त गतिविधियों को सम्मिलित किया जा सकता है जो श्रमिकों के शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक एवं भावनात्मक विकास के लिए आवश्यक है । इसमें श्रमिकों की | आर्थिक उन्नति भी शामिल है । श्रमिकों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति भी | श्रम कल्याण का ही विषय है । श्रम कल्याण में निम्नांकित को सम्मिलित किया जा सकता है- 

( क ) आवास , 

( ख ) चिकित्सा ,

( ग ) शिक्षा , 

( घ ) पोषाहार , 

( ड ) मनोरंजन के साधन , 

( च ) सामाजिक बीमा , 

( छ ) अंश निधि , 

( ज ) ग्रेच्यूटी , 

( झ ) पेंशन , 

( ञ ) काम की समुचित दशायें , 

( ट ) जोखिम की प्रतिपूर्ति , आदि । 

सामूहिक सौदेबाजी ( Collective bargaining ) को भी श्रम कल्याण का एक अंग माना गया है । आज प्रत्येक श्रमिक यह चाहता है कि श्रम कल्याण में उसकी भौतिक एवं मानसिक विकास की समस्त योजनाओं को सम्मिलित किया जायें ताकि वे उत्पादन की प्रक्रिया में अपनी कार्य क्षमता को पूर्णतया लगाने में समर्थ हो सकें । 

संविधान के अनुच्छेद 43 में यह कहा गया है कि— “ राज्य उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के , उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम , निर्वाह - मजदूरी , शिष्ट जीवन स्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशायें तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा । " 

अनुच्छेद 41 में यह कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने के शिक्षा पाने के और बेकारी , बुढ़ापा , बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध । 

इस प्रकार उपरोक्त विवेचन एवं संवैधानिक प्रावधानों से श्रम कल्याण का क्षेत्र ( Scope ) परिलक्षित हो जाता है ।

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