अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है ? What is International Law ? Public International Law
अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है ? What is International Law ? Public International Law
लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं मानवाधिकार Public International Law and Human Rights
अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है ? यह किस प्रकार निजी अन्तर्राष्ट्रीय विधि से भिन्न है ?
[ What is International Law ? How does it differ from Private International Law ? ]
अन्तर्राष्ट्रीय विधि का प्रारम्भिक नाम ' राष्ट्रों की विधि ' ( Law of Nations ) था । कालान्तर में सन् 1789 में इंग्लैण्ड के विख्यात विधिशास्त्री जेरेमी बेन्थम ने इसे ' अन्तर्राष्ट्रीय विधि ' का नाम दिया ।
अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा - विभिन्न विधिशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय विधि की भिन्न - भिन्न परिभाषायें दी हैं ।
ओपेनहाइम ( Oppenheim ) अन्तर्राष्ट्रीय विधि के प्रख्यात विधिशास्त्री माने जाते हैं । उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय विधि को दो बार परिभाषित किया है ।
" ओपेनहाइम के अनुसार , " राष्ट्रों की विधि या अन्तर्राष्ट्रीय विधि उन रूढ़िजन्य एवं परम्परागत नियमों का समूह है जिन्हें सभ्य राज्य अपने पारस्परिक व्यवहारों में बाध्यकारी मानते हैं । "
( Law of Nations or International Law is the name for the body of customary and treaty rules which are considered legally binding by states in their intercourse with each other . ) जब इस परिभाषा की व्यापक आलोचना हुई तो ओपेनहाइम द्वारा अपनी कृति ' इन्टरनेशल लॉ ' के 1955 के 8 वें संस्करण में इसकी परिष्कृत परिभाषा दी गई । इस परिभाषा में भी काफी कमियाँ रह गई थीं । अतः सन् 1992 में इस पुस्तक के सम्पादक सर रॉबर्ट जेनिंग्स तथा सर आर्थर वाट्स द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय विधि की निम्नांकित परिभाषा दी गई “
अन्तर्राष्ट्रीय विधि ऐसे नियमों का समूह है जो राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों में विधिक रूप से बाध्यकारी है।
यह नियम प्राथमिक रूप से राज्यों के सम्बन्धों को नियंत्रित करते हैं , किन्तु केगल राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विषय नहीं हैं । अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा कुछ हद तक व्यक्ति भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारों एवं अधिरोपित कर्त्तव्यों के विषय हो सकते हैं । " ( International Law is the body of rules which are legally binding on states in their intercourse with each other . These rules are primarily those which govern the relations of states , but states are not the only subjects of International Law . International organisations and to some extent also individuals may be subject of rights conferred and duties imposed by International Law . )
ओपेनहाइम की इन दोनों परिभाषाओं में बाद वाली परिभाषा अधिक व्यापक है , क्योंकि यह अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं व्यक्तियों को भी अपने में सम्मिलित करती है जो अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों द्वारा शासित अर्थात् नियन्त्रित होते हैं । स्टार्क ( Starke ) के अनुसार " अन्तर्राष्ट्रीय विधि नियमों का वह समूह है जिसमें अधिकांशतः राज्यों के आचरण सम्बन्धी वे सिद्धान्त एवं नियम हैं जिनका अनुपालन करने के लिए राज्य अपने को बाध्यकारी मानते हैं । यही कारण है कि पारस्परिक सम्बन्धों में इसका सामान्यतः अनुपालन करते हैं तथा इसमें निम्नांकित भी सम्मिलित हैं- ( क ) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं या संगठनों की कार्यप्रणाली , उनके पारस्परिक सम्बन्धों तथा राज्यों एवं व्यक्तियों के सम्बन्धों के विधिक नियम एवं ( ख ) कतिपय ऐसे विधिक नियम जो व्यक्तियों तथा गैर - राज्य इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से सम्बन्धित है ।
स्वार्जनबर्जर ( Schwarzenberger ) के अनुसार " अन्तर्राष्ट्रीय विधि उन विधिक नियमों का समूह है जो प्रभुत्व सम्पन्न राज्यों तथा ऐसी अन्य इकाइयों पर लागू होते हैं , जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व प्राप्त है । "
जे . एल . ब्राइरली ( J.L. Brierly ) के शब्दों में राष्ट्रों की विधि या अन्तर्राष्ट्रीय विधि उन नियमों तथा कार्यरूप में परिणित होने वाले सिद्धान्तों का समूह है जो सभ्य राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों पर आबद्धकर होते हैं । "
केल्सन ( Kelson ) के अनुसार " अन्तर्राष्ट्रीय विधि या राज्यों के मध्य विधि ऐसे नियमों का समूह है जो राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों में उनके आचरण को नियंत्रित करते हैं । "
फिलिप सी . जेसप ( Phillip C. Jessup ) के शब्दों में राष्ट्रों की विधि या अन्तर्राष्ट्रीय विधि वह विधि है जो राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा व्यक्तियों के राज्यों के साथ सम्बन्धों पर प्रयोज्य होती है । "
हैकवर्थ ( Hackworth ) के अनुसार- " अन्तर्राष्ट्रीय विधि नियमों का एक ऐसा समूह हैं जो राज्यों के सम्बन्धों को नियंत्रित करता है । यह विधिशास्त्र की एक ऐसी प्रणाली है जिसका विकास मुख्यतः समय - समय पर होने वाले अनुभवों तथा परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार हुआ है । " चार्ल्स जी . फेनविक ( Charles G Fenwick ) के अनुसार- " अन्तर्राष्ट्रीय विधि ऐसे सामान्य सिद्धान्तों एवं विनिर्दिष्ट नियमों का समूह है जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय है के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों पर बाध्यकारी होते हैं । "
' क्वीन बनाम केन ' [ ( 1876 ) 2 एक्स . डी . 63 ] के मामले में मुख्य न्यायाधीश लार्ड कॉलरिज ने अन्तर्राष्ट्रीय विधि को परिभाषित करते हुए कहा है “ अन्तर्राष्ट्रीय विधि चलनों ( Usages ) का वह समूह है जिनका सभ्य राज्यों ने अपने पारस्परिक सम्बन्धों में पालन करना स्वीकार कर लिया है । "
' वेस्ट रैण्ड सेन्ट्रल गोल्ड माइनिंग क . लि . बनाम किंग ' [ ( 1905 ) 2 के . बी . 391 ] के मामले में अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “ अन्तर्राष्ट्रीय विधि से अभिप्राय सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत उन नियमों से है जो उनके नागरिकों के पारस्परिक आचरण को निर्धारित करते हैं । "
" हाल ( Hall ) के अनुसार " अन्तर्राष्ट्रीय विधि आचरण के उन नियमों का समूह है जिन्हें आधुनिक सभ्य राज्य अपने पारस्परिक सम्बन्धों पर उसी प्रकार आबद्धकर मानते हैं , जिस प्रकार एक प्रज्ञावान व्यक्ति अपने देश की विधि को मानता है , जिसका उसे अनुपालन करना होता है तथा जो उस पर आबद्धकर होती है । राज्य यह भी मानते हैं कि उल्लंघन होने पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि समुचित साधनों द्वारा लागू कराई जा सकती है । "
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि निरन्तर विकसित होने वाले नियमों तथा सिद्धान्तों का एक ऐसा समूह है जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियंत्रित करता
अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि में अन्तर
अन्तर्राष्ट्रीय विधि ( Public International Law ) तथा प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि ( Private International Law ) में अन्तर स्पष्ट करने से पूर्व यहाँ प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा को जान लेना समीचीन होगा ।
पिट कॉबेट ( Pitt Cobbett ) के अनुसार " प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि से अभिप्राय नियमों के ऐसे समूह से है जिनसे यह निर्धारित किया जाता है कि राज्य के न्यायालयों के समक्ष जब ऐसे वाद आते हैं जिनमें कोई विदेशी तत्त्व होता है या जिनसे विदेशी व्यक्ति प्रभावित होते हैं तो ऐसे वादों में उपयुक्त विधि क्या होगी जिसे लागू किया जा सके। '' इसे ' विधियों का संघर्ष ' ( Conflict of laws ) भी कहते हैं।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि उपर्युक्त प्रकृति के विवादों को निर्णीत करने के न्यायालय के क्षेत्राधिकार का निर्धारण करती है । लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि में निम्नांकित अन्तर पाया जाता है
( 1 ) लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि मुख्यतः राज्य के आचरण को तथा कुछ हद तक व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करती है जबकि प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करती है ।
( 2 ) प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि राज्य - विधि का एक अंग है जबकि लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि ऐसी नहीं है ।
( 3 ) लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि प्रायः सभी राज्यों के लिए समान होती हैं जबकि प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि विभिन्न राज्यों के लिए भिन्न - भिन्न हो सकती
( 4 ) लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि मुख्यतया राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों से सम्बन्धित है और इसके मुख्य स्रोत प्रथायें तथा अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं , जबकि प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियम राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा • निर्मित होते हैं तथा राज्यों के न्यायालयों द्वारा उन्हें लागू एवं विकसित किया जाता है ।
( 5 ) प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि विदेशी तत्त्व से सम्बन्धित मामलों में कौनसी विधि लागू होगी तथा उस पर किस न्यायालय का क्षेत्राधिकार होगा ।
लेकिन समय के साथ अब लोक अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं प्राइवेट अंतर्राष्ट्रीय विधि में विषमता कम होती जा रही है क्योंकि प्राइवेट अंतर्राष्ट्रीय विधि के कतिपय नियम अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम हो गये हैं । ऐसा मुख्य रूप से राज्यों द्वारा संधियां बनाकर किया गया है ।
Comments
Post a Comment