अधिवक्ताओं के अधिकारों की विवेचना || Discuss the rights of Advocates.@Law's Study 📖
अधिवक्ताओं के अधिकारों की विवेचना || Discuss the rights of Advocates.@Law's Study 📖
अधिवक्ताओं के अधिकारों की विवेचना || Discuss the rights of Advocates.@Law's Study 📖
न्याय प्रशासन में अधिवक्ताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । " इस कथन के सन्दर्भ में अधिवक्ताओं के विभिन्न अधिकारों को स्पष्ट कीजिए ।
[ " Advocates have an important role in the administration of justice . " Explain this statement giving various rights of the Advocates . ]
अथवा
अधिवक्ताओं के अधिकारों की विवेचना कीजिए ।
[ Discuss the rights of Advocates . ]
अधिवक्ता न्याय प्रशासन की धुरी है । न्याय प्रशासन में अधिवक्ताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । अधिवक्ता ही न्यायालय के समक्ष अपने पक्षकारों का पक्ष रखते हैं तथा उनकी ओर से पैरवी करते हैं । अधिवक्ता अपने पक्षकारों की पैरवी भलीभाँति कर सकें तथा न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष स्वतन्त्रता , निर्भीकता एवं निष्पक्षता से प्रस्तुत कर सकें , उसे कतिपय महत्त्वपूर्ण अधिकार प्रदान किए गए हैं । यह अधिकार निम्नलिखित हैं
( 1 ) पैरवी करने का अधिकार
अधिवक्ताओं का पहला महत्त्वपूर्ण अधिकार न्यायालय में अपने पक्षकार की • ओर से पैरवी करने का है । केवल अधिवक्ता ही पक्षकार की ओर से न्यायालय में उपस्थित हो सकते हैं एवं पैरवी कर सकते हैं । अन्य किसी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है ।
पैरवी करने के अधिकार से अभिप्राय केवल स्थगन ( Adjournment ) लेने से नहीं है , अपितु वास्तविक रूप से पैरवी एवं बहस करने से है । पैरवी करने का यह अधिकार प्रशिक्षणाधीन अधिवक्ता को भी है । उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता । वी . सुदीर बनाम बार कौंसिल ऑफ इण्डिया ( ए.आई.आर. 1999 एस.सी. 1167 )
प्रसाद उर्फ पुरुषोत्तमन् बनाम केरल वीमेन्स कमीशन तिरुवन्तपुरम ( ए.आई.आर. 2018 ) एन.ओ.सी. 573 केरल ) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अधिवक्ता को महिला आयोग के समक्ष पैरवी करने का अधिकार है , क्योंकि महिला आयोग द्वारा सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग किया जाता
' संजय आर . कोठारी बनाम साऊथ मुम्बई कन्ज्यूमर डिस्प्यूटस ड्रेस फोरम ' ( ए.आई.आर. 2003 मुम्बई 15 ) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि- " न्यायालय में उपस्थित होने के अधिकार का अर्थ अत्यन्त व्यापक है । इसमें न्यायालय को सम्बोधित करने , साक्षियों की परीक्षा एवं प्रति परीक्षा करने , मौखिक बहस करने आदि का अधिकार भी सम्मिलित है । " ( Right to appeal must be given wider meaning . It includes right of addressing court , examining , cross - examining witnesses , oral submissions etc. )
लेकिन किसी अधिवक्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता बन जाने पर उसकी स्थिति में कुछ परिवर्तन आ जाता है । उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अभिवचन आदि प्रस्तुत नहीं करे । ( बृजलाल पटेल बनाम उत्तर प्रदेश एग्रो - इण्डस्ट्रियल कॉरपोरेशन , ए.आई.आर. 2004 इलाहाबाद 178 )
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वकालत करने का अधिवक्ता का अधिकार मूल अधिकार नहीं है । यह अधिवक्ता अधिनियम द्वारा प्रदत्त एक सांविधिक अधिकार ( Statutory right ) है । ( बार कौंसिल ऑफ इण्डिया बनाम हाईकोर्ट ऑफ केरल , ए . आई . आर . 2004 एस . सी . 2227 )
' एन . के . वाजपेयी बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 1310 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह विनिश्चित किया गया है कि अधिवक्ताओं का पैरवी करने का अधिकार कतिपय प्रतिबन्धों के साथ केवल सांविधिक अधिकार नहीं होकर मूल अधिकार है । ( Right to practice is not only statutory right but also fundamental right subject to reasonable restrictions . )
' वी . दामोदिरन बनाम कर्नाटक मेडिकल कौंसिल ' ( ए.आई.आर. 2016 एन.ओ.सी. 221 कर्नाटक ) के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि उच्च स्तरीय तकनीकी मामलों में विशेषज्ञ के रूप में चिकित्सा व्यवसायी न्यायालय में उपस्थिति दे सकता है बशर्ते कि उसके पास प्राधिकार पत्र ( Power of Attorney ) हो । ' वी.के. गुप्ता बनाम इण्डस्ट्रियल ट्रिब्यूनल ' ( ए.आई.आर. 2016 इलाहाबाद ( 23 ) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि- पैरवी करने के अधिकार में किसी विनिर्दिष्ट मामले में पैरवी करने का अधिकार सम्मिलित नहीं है ।
( 2 ) समझौता करने का अधिकार
अधिवक्ता को अपने पक्षकार की ओर से मामले में राजीनामा अर्थात् समझौता ( Compromise ) करने का अधिकार होता है । उसके द्वारा पक्षकार की ओर से राजीनामा पेश किया जा सकता है और वह पक्षकार पर आबद्धकर होता है । सामान्यतः वकालतनामे में अधिवक्ता के राजीनामा करने के अधिकार का उल्लेख कर दिया जाता है ।
( 3 ) पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार
अधिवक्ता को अपने पक्षकार से पैरवी के बदले पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है । यदि कोई पक्षकार पारिश्रमिक का संदाय नहीं करता है तो अधिवक्ता द्वारा उसे विधिनुसार वसूल किया जा सकता है । पारिश्रमिक नहीं मिलने पर अधिवक्ता द्वारा पैरवी करने से इन्कार किया जा सकता है ।
लेकिन अधिवक्ता को पारिश्रमिक का संदाय नहीं किए जाने पर उसके द्वारा अपने पक्षकार की पत्रावलियों को अपने पास रोककर नहीं रखा जा सकता । ( न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कं . लि . बनाम ए . के . सक्सेना , ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 311 )
( 4 ) निरीक्षण करने का अधिकार
अधिवक्ता को अपने पक्षकार से सम्बन्धित न्यायालय की पत्रावली एवं अन्य दस्तावेजों का निरीक्षण करने का अधिकार होता है । वह निर्धारित शुल्क जमा कर न्यायालय की अनुज्ञा से ऐसा निरीक्षण कर सकता है । लेकिन निरीक्षण के दौरान वह पत्रावली अथवा दस्तावेजों में न तो कुछ लिख सकता है और न लिखे हुए को काट सकता है ।
( 5 ) प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार अधिवक्ता को अपने पक्षकारों से सम्बन्धित मामलों में किसी कार्यवाही , निर्णय , डिक्री , आदेश अथवा दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ ( Certified copies ) प्राप्त करने का अधिकार होता है । वह निर्धारित शुल्क जमा कराकर ऐसा कर सकता है । इसके लिए यथासमय आवेदन करना होता है ।
( 6 ) समन आदि प्राप्त करने का अधिकार
किसी मामले में विचारण के दौरान किसी कार्यवाही में पक्षकार की ओर से उसके अधिवक्ता पर समन की तामील कराई जा सकती है , जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता , 1908 के आदेश 3 में व्यवस्था की गई है ।
( 7 ) ब्रीफ पेश करने का अधिकार
अधिवक्ताओं को किसी अन्य अधिवक्ता के मामलों में उसकी ओर से ब्रीफ ( Brief ) प्रस्तुत करने का अधिकार होता है । सामान्यतः ऐसा तब होता है जब वह अधिवक्ता किसी कारणवश न्यायालय में उपस्थित रहने में असमर्थ रहता है । ऐसी स्थिति में ऐसे अधिवक्ता की उपस्थिति को क्षम्य करते हुए उसकी ओर से ब्रीफ पेश करने वाले अधिवक्ता की उपस्थिति ब्रीफ पर दर्ज कर ली जाती है । हालांकि उसके द्वारा कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया जाता है ।
( 8 ) वृत्तिक संसूचनाओं का अधिकार
भारतीय साक्ष्य अधिनियम , 1872 की धारा 126 के अन्तर्गत अधिवक्ताओं को • वृत्तिक संसूचनाओं के सम्बन्ध में विशेषाधिकार ( Privilege ) प्रदान किया गया है । इसके अनुसार- अधिवक्ताओं को पैरवी के दौरान अपने पक्षकारों से जो भी सूचनाएँ , साक्ष्य आदि प्राप्त होती हैं उन्हें प्रकट करने के लिए अधिवक्ता को विवश नहीं किया जा सकता है , क्योंकि ऐसी सूचनाएँ आदि गोपनीय मानी हैं । इन्हें प्रकट करने से पक्षकार के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । इसीलिए इन्हें प्रकट नहीं करने का अधिवक्ताओं को विशेषाधिकार प्रदान किया गया है ।
( 9 ) विनिर्णय प्रस्तुत करने का अधिकार अधिवक्ताओं को अपने मामलों में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों आदि के विनिर्णय प्रस्तुत करने का अधिकार होता है । ऐसा अपने पक्ष के समर्थन में किया जाता है । न्यायालयों द्वारा ऐसे विनिर्णयों को निर्णय या आदेश पारित करते समय ध्यान में रखा जाता है । लेकिन ऐसे विनिर्णयों को सुसंगत ( Relevant ) होना आवश्यक
( 10 ) बैठक आदि की सुविधाएँ प्राप्त करने का अधिकार
अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी होते हैं और वे अपने पक्षकारों के प्रतिनिधि या अभिकर्ता के रूप में उनकी पैरवी करते हैं । न्याय प्रशासन में उनकी अहम् भूमिका मानी जाती है । यही कारण है कि अधिवक्ताओं को न्यायालय की ओर से कतिपय विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं जिनमें से एक बैठक ( Sitting ) सुविधा है ।
अधिवक्ताओं के लिए न्यायालय कक्ष में कुर्सियाँ , मेज ( Tables ) आदि उपलब्ध रहती हैं । इनका उपयोग करने का पहला अधिकार अधिवक्ताओं को है । पक्षकार या अन्य व्यक्ति प्राथमिकता के आधार पर ऐसी सुविधा का क्लेम नहीं कर सकते । ( पी.सी. जोस बनाम नंदकुमार , ए . आई . आर . 1997 केरल 243 )
अधिवक्ताओं को चैम्बर ( Chambers ) भी आवंटित किए जाते हैं , लेकिन वे एक अधिकार के तौर पर उनका क्लेम नहीं कर सकते । ( विनय बालचन्द्र जोशी बनाम रजिस्ट्रार जनरल , सुप्रीम कोर्ट ऑफ इण्डिया , ए.आई.आर. 1999 एस.सी. 107 )
मेजर के . मैथ्यूज बनाम रजिस्ट्रार जनरल , हाईकोर्ट ऑफ चेन्नई , ए.आई.आर. 2003 चेन्नई 411 , के मामले में चेन्नई उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि- " ऐसे पक्षकार और मुकदमेबाज जो स्वयं अपने मामलों में पैरवी करते हैं , बार एवं अधिवक्ताओं को उपलब्ध सुविधाओं एवं विशेषाधिकारों का क्लेम नहीं कर सकते । वे अधिवक्ताओं के लिए उपलब्ध कराई गई कुर्सियों , मेजों आदि का न तो उपयोग कर सकते हैं और न ही उन पर कब्जा कर सकते हैं । "
( Litigants and parties appearing for their own causes can not claim same rights and privileges given to members of Bar and Advocates . They can not occupy or use chairs , tables provided for Advocates . )
( 11 ) कमिश्नर आदि नियुक्त होने का अधिकार
न्यायिक कार्यवाहियों के दौरान विभिन्न कार्यों के लिए अधिवक्ताओं की मदद ली जाती है और ऐसे कार्यों के लिए उन्हें समय - समय पर -
( i ) कमिश्नर ( Commissioner ) ,
( ii ) प्रापक ( Receiver ) ,
( iii ) शपथ आयुक्त ( Oath Commissioner ) ,
( iv ) नोटेरी पब्लिक ( Notary Public )
आदि नियुक्त किया जाता है । ऐसी नियुक्ति का अधिकार सामान्यतः अधिवक्ताओं को ही होता है । इन कार्यों के लिए उन्हें समुचित पारिश्रमिक भी दिया जाता है ।
कमिश्नर , प्रापक , शपथ आयुक्त व नोटेरी पब्लिक के रूप में उनके कुछ अधिकार भी हैं तो कुछ कर्त्तव्य भी उन्हें निष्ठा एवं ईमानदारी से अपने पदीय कृत्यों का निर्वहन करना होता है ।
रिसीवर को अपनी अभिरक्षा में की सम्पत्ति से किसी प्रकार का संव्यवहार ( Dealing ) करने की अपेक्षा नहीं की जाती है । ( पी . डी . गुप्ता बनाम राममूर्ति , ए.आई.आर. 1998 एस.सी. 283 )
( 12 ) सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन अधिकार
सिविल प्रक्रिया संहिता , 1908 के आदेश 3 आदि में अधिवक्ताओं के विभिन्न अधिकारों का उल्लेख किया गया है , यथा
( i ) अपने पक्षकारों का न्यायालय में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार ,
( ii ) पक्षकारों की ओर से न्यायालय में उपस्थिति देने का अधिकार ,
( iii ) राजीनामा ( समझौता ) पेश करने का अधिकार ,
( iv ) मामले में आवेदन पत्र , दस्तावेज आदि पेश करने का अधिकार ,
( v ) अपील , पुनरीक्षण , पुनरावलोकन आदि के लिए प्रार्थना पत्र पेश करने का अधिकार ,
( vi ) मृतक पक्षकार की ओर से वैध प्रतिनिधियों को अभिलेख पर लाने का अधिकार आदि ।
' अमरजीतसिंह कालरा बनाम प्रमोद गुप्ता ' ( ए.आई.आर. 2005 दिल्ली ( 41 ) के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि | अधिवक्ता की सुनवाई का अधिकार स्वयं न्यायालय द्वारा विनियमित किया जाता है । किसी विशिष्ट मामले में अधिवक्ता का न्यायालय में उपस्थित या प्रस्तुत होना न्यायालय के मत में अनुचित है तो ऐसे मामले में उसे उपस्थित होने से रोका जा सकता है ।
इस प्रकार अधिवक्ताओं को पैरवी के निहितार्थ अनेक महत्त्वपूर्ण अधिकार प्रदान किए गए हैं ।
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