विधिशास्त्र कानून की आँख है,विधिशास्त्र का महत्त्व Jurisprudence is the eye of law & Importance
विधिशास्त्र कानून की आँख है,विधिशास्त्र का महत्त्व Jurisprudence is the eye of law & Importance
विधिशास्त्र कानून की आँख है । " समझाइये ।
[ “ Jurisprudence is the eye of law . ” Explain . ]
अथवा
विधिशास्त्र का महत्त्व समझाइये । [ Explain the importance of Jurisprudence . ]
उत्तर – हैराल्ड जे . लास्की ( Herald J. Laski ) ने विधिशास्त्र को ' विधि का नेत्र ' ( eye of law ) कहकर सम्बोधित किया है । लास्की का यह कथन बिल्कुल सही है । मानव शरीर के लिए नेत्र का अत्यधिक महत्त्व है । नेत्रों के बिना उसका जीवन अंधकारमय लगता है । ठीक यही स्थिति विधिशास्त्र की है । विधिशास्त्र के ज्ञान के बिना विधि का अध्ययन अपूर्ण एवं अस्पष्ट है । विधिशास्त्र विधि की एक कुञ्जी ( key ) है जो उसके भीतर छिपे हुए अनेक रहस्यों को खोलकर सामने रख देती है और अनेक गुत्थियों को सुलझा देती है । जिस प्रकार भाषा के अध्ययन के लिए व्याकरणशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है , उसी प्रकार विधि के अध्ययन के लिए विधिशास्त्र का ज्ञान अपरिहार्य है ।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विधिशास्त्र का अध्ययन केवल विधि के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु समाज के प्रत्येक वर्ग यथा अधिवक्ता , न्यायाधीश , विधि - निर्माता , विधायक , राजनेता , प्रशासक आदि सभी के लिए उपादेय है । वस्तुतः व्यावहारिक जीवन में विधिशास्त्र का अत्यधिक महत्त्व है ।
विधिशास्त्र के महत्त्व का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है—
( 1 ) विधिशास्त्र का अध्ययन मानव मस्तिष्क की चिन्तनशीलता को गतिशील एवं प्रखर बनाता है । विख्यात विधिवेत्ता डायसी का कहना है कि विधिशास्त्र सामाजिक विज्ञान के सम्बन्ध में मानव व्यवहारों पर विचार करता है । इसलिये इसका अध्ययन विधिवेत्ताओं को जीवन में प्रकाश लाने का सुअवसर प्रदान करता है ।
( 2 ) यह सही है कि विधिशास्त्र विधि का सैद्धान्तिक अध्ययन है ; लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि इसका कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है । देश , काल एवं परिस्थितियों के प्ररिप्रेक्ष्य में इसका अत्यधिक महत्त्व है । सॉमण्ड का यह विचार है कि बढ़ते हुए सामान्यीकरण के कारण विज्ञान एवं गणित का विकास हुआ जिससे विभिन्न समस्याओं का निराकरण आसान हो गया है । उनके मत में विधि के क्षेत्र में सामान्यीकरण सुधार का संकेत । सॉमण्ड ने एक उदाहरण देते हुए कहा है कि यदि एक निश्चित समय के बाद किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध प्रतिकूल कब्जे ( adverse possession ) के माध्यम से अधिकार का प्रश्न उठता है तो विधिशास्त्र का अध्ययन कब्जे के लिए अनिवार्य तत्त्वों के निर्धारण के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण हो जाता ।
( 3 ) विधिशास्त्र केवल विधिक प्रणाली के माध्यम से न्याय प्रशासन ( administration of justice ) ही नहीं करता है अपितु वह नवीन सिद्धान्तों , विचारों एवं प्रतिपादनाओं के माध्यम से न्यायपूर्ण समाज ( just society ) की संरचना भी करता है ।
( 4 ) विधिशास्त्र विधि की विभिन्न शाखाओं की आधारभूत संकल्पनाओं के सैद्धान्तिक आधारों के ज्ञान के साथ - साथ उनके बीच अन्तर्सम्बन्धों का भी बोध कराता है ।
( 5 ) शैक्षणिक दृष्टि से भी विधिशास्त्र का अध्ययन उपादेय है । विधिक अवधारणाओं के तार्किक विश्लेषण ( logical analysis ) से विधिवेत्ताओं की तार्किक शक्ति का विकास होता है । इससे किसी समस्या के समाधान का मार्ग प्रशस्त होने में मदद मिलती है ।
( 6 ) विधिशास्त्र के अध्ययन से व्यक्तित्त्व का विकास होता है । विधिशास्त्र अध्येता में प्रतिभा के मुखर होने की अनुप्रेरणा देता है तथा खुले मस्तिष्क को प्रोत्साहित करता है । बकलैण्ड ( Buckland ) का कहना है कि यदि व्यक्ति का मस्तिष्क खुला है तो वह अपना स्वदर्शन विकसित करने में सफल हो सकता है । खुले मस्तिष्क से समस्याओं पर चिन्तन करने की क्षमता से व्यक्ति उसी प्रकार एक अच्छा विधिवेत्ता हो सकता जिस प्रकार एक शिल्पी एवं चिकित्सक होता है ।
( 7 ) विधिशास्त्र का अध्ययन नवीन परिस्थितियों के अनुकूल सामंजस्य के कौशल का विकास करता है । फिलिमोर का कहना है कि विधिशास्त्र का विज्ञान इतना उच्चस्तरीय है कि इसका ज्ञान अवधारणाओं और मनोवेगों के साथ जीवन में प्रवेश कराता है । *
( 8 ) विधि की गुत्थियों एवं मानव सम्बन्धों की जटिलताओं के निराकरण का मार्ग विधिशास्त्र में तलाशा जा सकता है । यही कारण है कि “ विधिशास्त्र को विधि का व्याकरण " कहा जाता है ।
' कन्जूमर एज्यूकेशन एण्ड रिसर्च सेन्टर बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' एस . सी.सी. 42 ] के मामले में न्यायमूर्ति के . रामास्वामी द्वारा यह कहा —– “ विधिशास्त्र विधि के मूलभूत सिद्धान्तों एवं विचारों पर प्रकाश डालता [ ( 1995 ) 3 गया है कि है । यह उस परिवेश एवं वातावरण को अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है , विधि जिसकी अभिव्यक्ति है । "
( 9 ) विधिशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य है लोगों को सामाजिक न्याय ( Social justice ) उपलब्ध कराना । ' बस्ती सागर मिल्स बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश ' ( ए.आई.आर. 1979 एस . सी 262 ) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विधिशास्त्र का उपयोग भारत के लोगों की गरीबी , अज्ञानता , विवशता आदि को दूर करने में किया जाना चाहिये ताकि संविधान निर्माताओं की परिकल्पना का कल्याणकारी राज्य स्थापित हो सकें ।
इस प्रकार वर्तमान समय में विधिशास्त्र के अध्ययन का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है । आज जेल प्रशासन में सुधार , कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार , मानव गरिमायुक्त जीवन जीने का अधिकार , लोकहित वाद , निःशुल्क विधिक सहायता आदि अवधारणाओं का अभ्युदय नवीन विधिशास्त्रीय दृष्टिकोण की ही देन है । इतना ही नहीं , वह विधिशास्त्र ही है जिसने पर्यावरण संरक्षण , उपभोक्ता संरक्षण , बाल विवाह एवं दहेज निषेध जैसे विधियों के उन्नयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
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