बिना हानि के क्षति || अपकृत्य विधि || Injuria sine damnum || Tort || Law's Study 📖

 

बिना हानि के क्षति || अपकृत्य विधि || Injuria sine damnum || Tort || Law's Study 📖




Injuria sine damnun

बिना हानि के क्षति ( Injuria sine damnum ) - अपकृत्य विधि में इस सूत्र का बड़ा महत्व है। वस्तुतः यही सूत्र अपकृत्य का आधार एवं वाद-योग्य है। अपकृत्य विधि का यह सामान्य सिद्धान्त है कि किसी व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन अथवा अतिलंघन वाद योग्य होता है । जिस व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन होता है वह व्यक्ति ; उस व्यक्ति के विरुद्ध नुकसानी अर्थात् क्षतिपूर्ति का वाद ला सकता है जिसके द्वारा अधिकारों का उल्लंघन किया गया है ; चाहे ऐसे उल्लंघन से कोई आर्थिक क्षति हुई हो या नहीं । यही “ बिना हानि के क्षति " ( injuria sine damnum ) के सूत्र का सार है । सरलत्तम शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यह सूत्र ऐसे व्यक्ति को नुकसानी का वाद लाने का अधिकार प्रदान करता है जिसके विधिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है । इसमें आर्थिक क्षति का होना आवश्यक नहीं है । 
यह सूत्र तीन शब्दों से मिलकर बना है 
( i ) injuria अर्थात् क्षति या विधिक अधिकारों का उल्लंघन ; 
( ii ) sine अर्थात बिना ; एवं 
( iii ) damnum अर्थात हानि । 
इस प्रकार इन तीनों शब्दों का मिलाजुला अर्थ हुआ- ' बिना हानि के क्षति ’ । ऐसी क्षति बिना हानि के भी अनुयोज्य ( actionable ) अर्थात् वाद योग्य है । इसके लिए आवश्यक मात्र किसी व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन होना है । इसमें आर्थिक हानि का होना आवश्यक नहीं है ।

Example

इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है । ' ख'क ' के उद्यान में ' क ' की अनुमति के बिना प्रवेश करता है और जलाशय का आनन्द उठाता है । यद्यपि ' ख ' के इस कृत्य से ' क ' को कोई आर्थिक वास्तविक हानि नहीं होती है फिर भी ' क ' ' ख ' के विरुद्ध नुकसानी का वाद ला सकता है क्योंकि ' ख ' के इस कृत्य से ' क ' के विधिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है
                                                                                            
1.Case Law
एश बी बनाम व्हाइट ' [ ( 1703 ) 2 एल.आर .938 ]
इस सम्बन्ध में ' एश बी बनाम व्हाइट ' का एक महत्त्वपूर्ण मामला है । इसमें वादी आइलेसवरी निगम का निवासी था तथा प्रतिवादी निर्वाचन अधिकारी । सन् 1701 में हुए संसदीय चुनावों में वादी को मत देने का अधिकारी था लेकिन प्रतिवादी ने वादी को मत देने से वंचित कर दिया । यद्यपि इस चुनाव में वादी का प्रत्याशी विजयी रहा था तथा वादी के मत नहीं देने से उसे कोई नुकसान नहीं हुआ था फिर भी वादी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध नुकसानी का वाद दायर किया गया ।वादी का यह तर्क था कि उसे मताधिकार से वंचित कर देने से उसके विधिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है अत : वह क्षतिपूर्ति पाने का हक़दार है । जबकि प्रतिवादी की ओर से यह कहा गया कि वादी के मत नहीं देने से उसे कोई हानि नहीं हुई है इसलिये वह नुकसानी पाने का हक़दार नहीं है । न्यायालय ने प्रतिवादी के तर्क को नकारते हुए वादी का वाद डिक्री कर दिया । मुख्य न्यायाधीश लार्ड हॉल्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि - " प्रत्येक विधिक अधिकार के अतिक्रमण से हानि होती है चाहे उससे किसी को एक पेनी का भी नुकसान न हो । हानि केवल धन की ही नहीं होती है । किसी व्यक्ति के विधिक अधिकार में व्यवधान उत्पन्न होना स्वयं में एक हानि है । ऐसी हानि अपने आपमें अनुयोज्य अर्थात् वाद योग्य है

2.Case Law
आगरा म्युनिसिपल बोर्ड बनाम अशर्फीलाल ' [ ( 1921 ) 1 आई.एल.आर. 44 इलाहाबाद 202
ऐसा ही एक और मामला ' आगरा म्युनिसिपल बोर्ड बनाम अशर्फीलाल ' यह मामला इलाहाबाद का है । इसमें वादी मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने का हक़दार था लेकिन लापरवाही के कारण मतदाता सूची में उसका नाम अंकित नहीं किया जा सका जिससे वह मतदान करने से वंचित रह गया । न्यायालय ने इसे वादी के विधिक अधिकारों का अतिलंघन मानते हुए उसे क्षतिपूर्ति पाने का हक़दार ठहराया । न्यायालय ने कहा- यदि कोई व्यक्ति निर्वाचक नामावली ( Voterlist ) में अपना नाम सम्मिलत कराने का हक़दार है किन्तु लापरवाही के कारण उसका नाम निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किये जाने से रह जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह मतदान नहीं कर पाता है तो ऐसा व्यक्ति नुकसानी के लिए वाद ला सकता है चाहे उसे किसी प्रकार की हानि नहीं हुई हो ।


3.Case Law
' पुरुषोत्तमदास प्रभुदास बनाम बाई दही ' ( ए.आई.आर. 1940 बम्बई 205
एक और अन्य मामला ' पुरुषोत्तमदास प्रभुदास बनाम बाई दही ' यह मामला  बम्बई का है । इसमें प्रतिवादी ने एक ही क्षेत्र में वादी के मन्दिर के नाम का नया मन्दिर बनाकर भेंट व बलि स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया था । न्यायालय ने इसे वादी के विधिक अधिकारों का अतिक्रमण माना और उसे क्षतिपूकर्ति पाने का हक़दार ठहराया ।

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