पति द्वारा पत्नी को तलाक व पुनःविवाह मुस्लिम विधि Divorce by Husband to wife & Remarriage Muslim Law

 पति द्वारा पत्नी को तलाक व पुनःविवाह मुस्लिम विधि Divorce by Husband to wife & Remarriage Muslim Law



पति द्वारा पत्नी को तलाक व पुनःविवाह मुस्लिम विधि Divorce by Husband to wife & Remarriage Muslim Law


मुस्लिम विधि के अन्तर्गत विवाह एक संस्कार नहीं होकर संविदा है और यही कारण है कि संविदा को अर्थात् विवाह को आसानी से भंग किया जा सकता है। पति जब चाहे अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। यहाँ तक कि हंसी मजाक और नशे की अवस्था में भी तलाक दिया जा सकता है। अपने प्रारम्भिक काल में तो यह अत्यधिक आसान था। लेकिन कालान्तर में मोहम्मद साहब ने इस व्यवस्था पर अंकुश लगाने का अथक प्रयास किया।


वैसे पति-पत्नी के सम्बन्ध-विच्छेद को 'विवाह-विच्छेद' अथवा 'विवाह विघटन' (Dissolution of marriage) कहा जाता है। तलाक, विवाह के विघटन का एक तरीका है। लेकिन आजकल विवाह विघटन के स्थान पर 'तलाक' शब्द अत्यधिक प्रचलित हो गया है। सामान्य बोलचाल की भाषा में 'तलाक' (Divorce) शब्द का ही प्रयोग किया जाता है।


'कौसर बी के. मुल्ला बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र' (ए.आई.आर. 2007 एन.ओ.सी. 419 मुम्बई) के मामले में मुम्बई उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि तलाक युक्तियुक्त कारणों पर दिया जाना चाहिए तथा तलाक से पूर्व समझौते के प्रयास किये जाने चाहिए।


विवाह विच्छेद के तरीके- मुस्लिम विवाह विच्छेद निम्नांकित रीतियों से हो सकता है—

(i) पति या पत्नि में से किसी की मृत्यु हो जाने पर,

(ii) पति या पत्नी में से किसी के द्वारा धर्म परिवर्तन कर दिये जाने पर

(iii) तलाक द्वारा,

(iv) वयस्कता के विकल्प (ख्यार-उल-वुलूग) द्वारा, तथा

(v) अन्य तर्क संगत आधारों पर जैसे—न्यायिक प्रक्रिया आदि ।


यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कुछ आधार ऐसे होते हैं जिन पर पति द्वारा पत्नी से विवाह विच्छेद किया जा सकता है, कुछ आधार ऐसे है जिन पर केवल पत्नी द्वारा पति से विवाह विच्छेद किया जा सकता है और कुछ आधार ऐसे है जिन पर पति एवं पत्नी दोनों द्वारा विवाह विच्छेद किया जा सकता है।


मौटे तौर पर विवाह - विघटन के तरीकों को यहाँ निम्नांकित चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-


यहाँ हमें केवल उन तरीकों का उल्लेख करने जा रहे हैं जो पति द्वारा विवाह- विच्छेद के लिए निर्धारित है। पति निम्नांकित प्रकार से अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद कर सकता है—



(1) तलाक-तलाक विवाह विच्छेद का सर्वाधिक प्रचलित तरीका है। तलाक का शाब्दिक अर्थ है—अस्वीकृत करना, निरस्त करना, निराकरण करना, मंसूख करना, छुटकारा पाना आदि। कोई भी वयस्क एवं स्वस्थचित्त व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। तलाक लिखित रूप से या मौखिक तौर पर दिया जा सकता है। लिखित में दिये जाने वाले तलाक का माध्यम 'तलाकनामा' होता है। मौखिक तौर पर दिये जाने वाले तलाक में पति को "मैं अपनी पत्नी को तलाक देता हूं" शब्दों का तीन बार स्पष्ट रूप से उच्चारण करना होता है अर्थात् इस आशय की स्पष्ट घोषणा करनी होती है।


कून्हीमोहम्मद बनाम आयिशाकूट्टी (ए.आई. आर. 2010 एन.ओ.सी. 992 केरल) के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मुस्लिम पति अपनी पत्नी को एकतरफा तलाक दे सकता है और उसके लिए कारण बताने की भी आवश्यकता नहीं है, तथापि वह स्वैच्छिक (मनमाना) नहीं होना चाहिए। पवित्र कुरान की यह मंशा है कि तलाक की प्रक्रिया युक्तियुक्त होनी चाहिए।


तलाक मुख्यतया दो प्रकार का होता है- (i) तलाक-उस-सुन्नत (Talak- us-sunnat), (ii) तलाक-उल-बिद्दत (Talak-ul-bidaat)।


तलाक-उस-सुन्नत- तलाक उस सुन्नत से अभिप्राय ऐसे तलाक से है जो पैगम्बर द्वारा प्रतिपादित परम्पराओं पर आधारित होता है। तलाक-उस-सुन्नत भी दो प्रकार का माना जाता है— (क) तलाक- अहसन (Talak ahsan), एवं (ख) तलाक- हसन (Talak hasan)।


"तलाक- अहसन" का शाब्दिक अर्थ है—अति उत्तम, बहुत अच्छा। इसे तलाक का सर्वोत्तम प्रकार माना जाता है। स्वयं पैगम्बर द्वारा इसे मान्यता प्रदान की गई थी। इसमें


(i) पति द्वारा एक ही बार में तलाक के शब्दों का उच्चारण किया जाता है,

(ii) ऐसे उच्चारण के समय पत्नी का पाक अवस्था में होना आवश्यक है।

(iii) पत्नी को इद्दत की अवधि काटनी होती है, तथा

(iv) इद्दत की अवधि में समागम से परहेज करना आवश्यक है।


इद्दत की अवधि पूर्ण होने से पूर्व इसे प्रतिसंहत किया जा सकता है। ऐसे प्रतिसंहरण अभिव्यक्त अथवा आचरण द्वारा हो सकता है, जैसे पति द्वारा पत्नी के साथ संभोग कर लेना आचरण द्वारा प्रतिसंहरण का अच्छा उदाहरण है। लेकिन इद्दत की अवधि पूर्ण हो जाने पर यह तलाक अप्रतिसहरणीय (Irrevocable) हो जाता है। (मोहम्मद शमसुद्दीन बनाम नूरजहाँ, ए.आई. आर. 1955 हैदराबाद 144)


“तलाक-हसन” का शाब्दिक अर्थ है-उत्तम, अच्छा। तलाक- अहसन के बाद इसे दूसरी श्रेणी का तलाक का अच्छा तरीका माना जाता है। इसमें


(i) तलाक के शब्दों का तीन बार उच्चारण किया जाता है,

(ii) ऐसा उच्चारण तीस-तीस दिन के अन्तराल किया जाता है और यदि पत्नी मासिक धर्म की अवस्था है तो ऐसा उच्चारण पाक अवस्था में किया जाना आवश्यक है, तथा

(iii) इस दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ संभोग से प्रविरत रहना अपेक्षित है ।


यदि इस दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ संभोग कर लिया जाता है तो यह तलाक प्रतिसंहत (Revoke) हो जाता है और यदि संभोग नहीं किया जाता है तो तलाक अप्रतिसंहरणीय हो जाता है।


तलाक-उल-बिद्दत्त- इसे तलाक का घृणित तरीका माना जाता है। इसमें तलाक के शब्दों का एक ही बार उच्चारण किया जाता है, जैसे—“मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ" अथवा "मैं तुम्हें तीन बार तलाक देता हूँ" ऐसा उच्चारण किये जाने पर तलाक अप्रतिसंहरणीय (Irrevocable) हो जाता है। [अमीरुद्दीन बनाम खातून बीबी, (1917)39 इलाहाबाद 371 तथा सारा भाई बनाम रबियाबाई (1905) 30 बम्बई 537] ऐसे तलाक के अप्रतिसंहरणीय होने के लिए इद्दत की अवधि पूर्ण करना आवश्यक नहीं है। [ रशीद अहमद बनाम अनीशा खातून, (1932)59 आई.ए. 21]


शिया विधि में तलाक-उल-बिद्दत को मान्यता प्रदान नहीं की गई है। यह इसे निन्दनीय अथवा पापमय तलाक मानती है। (अली नवाज बनाम मोहम्मद युसूफ, पी.एल.डी. 1963 एस.सी. 51) तलाक के कुछ और प्रकार भी हैं, जैसे-


सायराबानो का ऐतिहासिक प्रकरण


सायराबानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए.आई.आर. 2017 एस.सी. 4609) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने बहुमत के निर्णय में तीन तलाक अर्थात् तलाक-उल-बिद्दत को अपास्त कर दिया गया है। न्यायालय ने इसे अवैध एवं असंवैधानिक मानते हुए यह कहा कि-तलाक-उल-बिद्दत मुस्लिम धर्म की स्वतंत्रता का अंग नहीं है। यह कुरान की व्यवस्था के अनुरूप भी नहीं है। न्यायालय ने कहा कि यह तुरन्त प्रभावी एवं अविखण्डनीय होने से संविधान के अनुच्छेद 14, 21 एवं 25 का अतिक्रमण करता है। यह मनमाना

 एवं एक पक्षीय है।


दण्डनीय अपराध


तलाक-उल-बिद्दत अवैध एवं शून्य होगा तथा ऐसा तलाक देने वाला व्यक्ति तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास एवं जुर्माने से दण्डनीय होगा। [ मुस्लिम स्त्री ( तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019]


तलाक-ए-बैन- जब तलाक अप्रतिसंहरणीय (Irrevocable) हो जाता है। तब उसे 'तलाक-ए-बेन' (Talak-a-bain) कहा जाता है।


तलाक-ए-सरीह-जब तलाक स्पष्ट शब्दों में दिया जाता है तब वह 'तलाक-ए-सरीह' कहलाता है।


तलाक-ए-कनायत-जब तलाक के शब्द अस्पष्ट या संदिग्ध होते है उसे 'तलाक-ए-कनायत' कहा जाता है। 


तलाक-ए-तालिक- किसी घटना विशेष पर आधारित तलाक को 

'तलाक-ए-तालिक' के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

(2) तलाक-ए-तफवीज- तलाक-ए-तफवीज में यद्यपि तलाक पत्नी की ओर से दिया जाता हैं लेकिन पत्नी को तलाक की यह शक्तियाँ पति द्वारा प्रत्यायोजित (Delegate) की जाती है। शक्तियों का ऐसा प्रत्यायोजन सशर्त या शर्त रहित हो सकता है। इस प्रकार तलाक-ए-तफवीज के अन्तर्गत पत्नी पति द्वारा प्राप्त शक्तियों के अधीन अपने पति को तलाक दे सकती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऐसा प्रत्यायोजन किसी अन्य व्यक्ति को भी किया जा सकता है।


'महराम अली बनाम आयसा खातून' [ ( 1915) 19सी. डब्ल्यू. एन. 1226] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि पति पत्नि को इस शर्त के अधीन तलाक की शक्तियाँ प्रत्योजित करता है कि उसके (पति) द्वारा पत्नी की सहमति के बिना किसी अन्य स्त्री के साथ विवाह किया जायेगा तो वह (पत्नी) तलाक की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगी, मान्य है।


तलाक-ए-तफवीज भी तीन प्रकार का माना गया है-

(i) इरिव्तयार अर्थात् तलाक का अधिकार पत्नी को देना,

(ii) अमर-बा-यद अर्थात् पत्नी के हाथों में मामले को सौंप देना, एवं

(iii) मशीअत अर्थात् पत्नी को उसकी इच्छानुसार करने का विकल्प देना ।


(3) इला-इला का अर्थ है— शपथ या प्रतिज्ञा । जब पति खुदा की कसम खाकर पत्नी से यह कहता है कि वह कम से कम चार माह तक उसके साथ समागम नहीं करेगा या नहीं आयेगा तो इसे खुला रूपी तलाक कहा जाता है। ऐसी दशा में पत्नी न्यायालय की डिक्री से पति से तलाक प्राप्त कर सकती है। (अब्दुल अजीज बनाम बसीरन बीबी, 1958 लाहौर 59 )


(4) जिहर - जब पति अपनी पत्नी की तुलना निषिद्ध आसत्तियों के भीतर आने वाली किसी स्त्री से करता है जैसे—वह यह कहता है कि "तुम मेरी माता के समान हो" तब जब तक पति प्रायश्चित नहीं कर लेता, पत्नी अपने पति को तलाक दे सकती है।


(5) लिअन - जब पति द्वारा पत्नी पर 'पर-पुरुष गमन' का मिथ्या आरोप लगाया जाता है तब पत्नी इस आधार पर अपने पति को तलाक दे सकती है। लेकिन यदि आरोप सत्य प्रमाणित होता है तो तलाक नहीं लिया जा सकता। (काबिजगाजी बनाम मदारी बीबी, 145 आई.सी. 828)


(6) खुला - जब तलाक पत्नी की सहमति एवं प्रेरणा से दिया जाता अर्थात् पत्नी की ओर से तलाक की प्रस्थापना की जाती है तब उसे 'खुला' रूपी तलाक कहा जाता है। ऐसे तलाक में पत्नी पति से मुक्ति पाना चाहती है तथा इसी उद्देश्य से वह प्रतिकर के साथ पति के समक्ष तलाक का प्रस्ताव रखती है। पत्नी की ओर से पति को प्रतिकर किसी भी रूप में दिया जा सकता है अर्थात् वह महर की राशि भी छोड़ सकती है। [ मुंशी बजूल उल रहीम बनाम लतीफुन्निसा (1861)8 एम.आई.ए. 379]


(7) मुबारत - जब तलाक पति एवं पत्नी की पारस्परिक सहमति से दिया जाता है अर्थात् एक-दूसरे की इच्छा से दिया जाता है तब उसे 'मुबारत' द्वारा तलाक कहा जाता है। इसमें प्रतिकर देय नहीं होता है।


'खुला' एवं 'मुबारत' में निम्नांकित अन्तर पाया जाता है—

(i) खुला में पत्नी पति से मुक्ति पाने हेतु तलाक का प्रस्ताव करती है। और पति द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है जबकि मुबारत में तलाक का प्रस्ताव किसी भी पक्षकार द्वारा किया जा सकता है।

(ii) खुला में तलाक पत्नी की पहल एवं प्रेरणा पर होता है जबकि मुबारत में पारस्परिक सहमति से ।

(iii) खुला में पत्नी की ओर से पति को प्रतिकर देय होता है जबकि मुबारत में ऐसा कोई प्रतिकर देय नहीं होता ।


श्रीमती सबाह अदनन समी खान बनाम अदनन समी खान (ए.आई. आर. 2010 बम्बई 109) के मामले में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा खुला (hula) एवं मुबारत (Mubarat) में अन्तर स्पष्ट किया गया है।


मुबारत में तलाक पति पत्नी की पारस्परिक सहमति से होता है, जबकि खुला में पत्नी द्वारा तलाक की पहल की जाती है और वही पृथक् होने का प्रस्ताव रखती है।


इस प्रकार तलाक अर्थात् विवाह के विघटन के उपरोक्त तरीके प्रचलित हैं। तलाकशुदा पत्नी से पुनर्विवाह- कई बार यह प्रश्न उठता है कि क्या पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से पुनर्विवाह (Remarriage) कर सकता है? इसका उत्तर सकारात्मक तो है लेकिन यह अत्यन्त कठोरतम व्यवस्था है। कोई भी पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से निम्नांकित शर्तें पूरी हो जाने पर ही पुनर्विवाह कर सकता है-


(i) तलाक के पश्चात् पत्नी इद्दत की अवधि पूर्ण कर ले,


(ii) ऐसी अवधि पूर्ण होने के पश्चात वह किसी अन्य पुरुष से विवाह कर ले,


(iii) ऐसे पुरुष से वास्तविक संभोग हो जाये,


(iv) वह दूसरा पति उसे स्वेच्छा से तलाक दे दे, तथा


(v) ऐसे तलाक के बाद इद्दत की अवधि पूरी हो जाये।


श्रीमती सबाह अदनन समी खान बनाम अदनन समी खान (ए.आई. आर. 2010 बम्बई 109 ) के मामले में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि- खुला एवं मुबारत तलाक में यदि पत्नी पुनः उसी पति से विवाह करना चाहती है तो उसके लिए हलाल (Halala) का पालन किया जाना आवश्यक नहीं है। हलाल का पालन किया जाना तब आवश्यक है जब तलाक तीन बार उच्चारण द्वारा दिया जाये ।


धर्म परिवर्तन

मुस्लिम स्वीय विधि के अन्तर्गत विवाह में के किसी भी पक्षकार द्वारा धर्म परिवर्तन कर दिए जाने पर विवाह अपने आप समाप्त हो जाता है। (मुन्नवर उल इस्लाम बनाम रिषु अरोड़ा, ए.आई. आर. 2014 दिल्ली 130 )



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