निर्णय क्या है? What is Judgement kya hae Define Judgement in Crpc Code Of Criminal Procedure,1973
निर्णय क्या है? What is Judgement kya hae Define Judgement in Crpc Code Of Criminal Procedure,1973
निर्णय क्या है ? इसकी भाषा एवं अन्तर्वस्तुओं पर प्रकाश डालिये। क्या किसी निर्णय में परिवर्तन किया जा सकता है ?
[What is Judgement ? What are its contents ? Whether any changes can ge made in the judgement?]
उत्तर - निर्णय विचारण का सार एवं अन्तिम चरण है। विचारण समाप्त होने के पश्चात् न्यायालय द्वारा अपना निर्णय सुनाया जाता है। वह निर्णय ही है जिसके माध्यम से पक्षकारों को अनुतोष प्रदान किया जाता है अथवा उन्हें दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया जाता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 353 में यह कहा गया है कि:-
1. सम्पूर्ण निर्णय देकर सुनाया जायेगा,
2. सम्पूर्ण निर्णय पढ़कर सुनाया जायेगा,
3. अभियुक्त या उसके प्लीडर द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निर्णय का सार पढ़कर सुनाया व समझाया जायेगा, -
4. निर्णय खुले न्यायालय में सुनाया जायेगा,
5. उसकेँ प्रत्येक पृष्ठ पर पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे,
6. निर्णय विचारण समाप्त होने के तुरन्त पश्चात् या अन्य किसी समय, जिसकी सूचना पक्षकारों को दी जायेगी, सुनाया जायेगा,
7. निर्णय की प्रतिलिपि निःशुल्क दी जायेगी तथा
8. निर्णय अभियुक्त की उपस्थिति में सुनाया जायेगा। यदि वह अभिरक्षा में है तो उसे न्यायालय में लाया जायेगा।
अमीन अहमद दौसा बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (ए.आई.आर. 2001 एस.सी. 626) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि निर्णय संक्षिप्त एवं सारगर्भित होना चाहिए। उसमें प्रत्येक बिन्दु का विवेचन किया जाना अपेक्षित है।
निर्णय की भाषा एवं अन्तर्वस्तुएँ
संहिता की धारा 354 में निर्णय की भाषा एवं उसकी अन्तर्वस्तुओं के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार-
1. निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जायेगा,
2. उसमें अवधारणा के लिए प्रश्न, उस पर या उन पर विनिश्चय एवं विनिश्चय के कारण दिये जायेंगे,
3. निर्णय में अपराध की धारा व उसके लिए दण्ड का उल्लेख किया जायेगा,
4. यदि निर्णय दोषमुक्ति का है तो उस धारा का जिसमें अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया है, निर्णय में उल्लेख किया जायेगा तथा अभियुक्त को स्वतंत्र किये जाने का आदेश दिया जायेगा,
5. यदि अभियुक्त को मृत्यु दण्ड दिया जाता है तो निर्णय में यह लिखा जायेगा कि अभियुक्त को फांसी पर तब तक लटका कर रखा जाये, जब तक कि उसकी मृत्यु नहीं हो जाये,
6. निर्णय में दण्डादेश के कारणों का स्पष्ट उल्लेख किया जायेगा और यदि दण्डादेश मृत्यु - दण्ड का है तो उसके विशेष कारण दर्शाये जायेंगे।
नागेश्वर बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (ए.आई. आर. 1973 एस.सी. 165)के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि निर्णय में संयत भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए अर्थात् भाषा शिष्ट एवं संसदीय होनी चाहिए।
निर्णय में निष्कर्ष के कारण दिये जाने आवश्यक हैं। कारण के बिना निकाला गया निष्कर्ष अर्थहीन है। (प्रेम कौर बनाम स्टेंट ऑफ पंजाब, ए.आई. आर. 2013एस.सी. 2083)
दण्ड सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला एवं अपराध की गम्भीरता के अनुरूप होना चाहिए। (पुरुषोत्तम दशरथ बोराटे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, ए.आई. आर. 2015 एस.सी. 2170)
रविशंकर उर्फ बाबा बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश (ए.आई.आर. 2019 एस.सी. 5347) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है।कि मृत्यु दण्ड विलक्षण प्रकृति के मामलों में दिया जाना चाहिए और वह भी तब जब मामला संदेह से परे साबित हो।
महानगर मजिस्ट्रेट का निर्णय
संहिता की धारा 355 के अनुसार महानगर मजिस्ट्रेट के निर्णय निम्नांकित बातों का उल्लेख किया जाना अपेक्षित है- -
1. मामले की क्रम संख्या,
2. अपराधकारित किये जाने की तारीख,
3. परिवादी का नाम (यदि कोई हो),
4. अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम एवं निवास स्थान,
5. अपराध का विवरण,
6. अभियुक्त का अभिवाक् एवं उसकी परीक्षा
7. अन्तिम आदेश,
8. आदेश की तारीख तथा
9. निर्णय अथवा निष्कर्ष के कारण।
निर्णय में परिवर्तन
संहिता की धारा 362 में यह कहा गया है कि निर्णय या अन्तिम आदेश पर पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर हो जाने के पश्चात् उसमें निम्नांकित परिस्थितियों के अलावा किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा-
1. लिपिकीय, या
2. गणितीय भूल को ठीक करना ।
स्टेट ऑफ पंजाब बनाम दविन्दर पॉल सिंह भूल्लर (ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 364) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह विनिर्धारित किया गया है कि निर्णय पर हस्ताक्षर होते ही न्यायालय का कार्य समाप्त हो जाता है। उसके पश्चात् न्यायालय द्वारा निर्णय में लिपिकीय या गणितीय त्रुटि को सुधारा जा सकता है। अन्य किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि दण्डादेश में परिवर्तन अथवा उसका रूपान्तरण करना निर्णय का पुनर्विलोकन करना है अर्थात् दण्डादेश में परिवर्तन निर्णय के पुनर्विलोकन के तुल्य है। (अजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब, ए.आई.आर. 1982 एन.ओ.सी. 219, पंजाब एण्ड हरियाणा)
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